गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे - 7
गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे - 6
गुरुजी – काजल बेटी अब हम साथ साथ हवन करेंगे. हवन हमारे शरीर के अंदर के दोषों को दूर करने की प्रक्रिया है. अगर तुमने इसे ठीक से पूरा कर लिया तो तुम अपनी पढ़ाई में आने वाली बाधाओं को सफलतापूर्वक पार कर सकोगी.
काजल ने सर हिलाकर हामी भरी और अग्निकुण्ड के पास खड़ी हो गयी. मैं थोड़ा साइड में खड़ी थी. अब गुरुजी ने घी का बर्तन उठाया.
गुरुजी – काजल बेटी, इसे पकड़ो.
काजल ने घी का बर्तन पकड़ लिया. अब गुरुजी काजल के पीछे खड़े हो गये और काजल की बाँहों के अंदर से अपनी बाँहें घुसाकर घी का बर्तन पकड़ लिया. अब गुरुजी की बाँहें काजल की बाँहों और उसके बदन के बीच दबी हुई थीं और दोनों ने उस घी के बर्तन को पकड़ा हुआ था. गुरुजी की बाँहों से काजल की ब्रा से ढकी हुई चूचियाँ साइड्स से दब रही थीं. लेकिन जिस तरह से काजल के नितंबों पर गुरुजी ने अपने श्रोणि भाग को एडजस्ट किया उससे मुझे झटका लगा और उनके इरादों पर शक हुआ.
अब गुरुजी मंत्रोच्चार करने लगे और धीरे धीरे घी के बर्तन से अग्नि में घी की आहुति देने लगे. मैं उन दोनों के साइड में खड़ी थी इसलिए मुझे सब दिख रहा था. अब गुरुजी जानबूझकर काजल की चूचियों पर अपनी बाँहें रगड़ने लगे . मुलायम चूचियों को छूने से गुरुजी की कामोत्तेजना बढ़ने लगी क्यूंकी अब उन्होने काजल की पैंटी से ढकी हुई गांड पर अपने श्रोणि भाग को रगड़ना शुरू कर दिया. काजल भी जरूर गर्मी महसूस कर रही होगी, सामने अग्निकुण्ड की गर्मी थी और पीछे से एक मर्द उसके बदन को छू रहा था. गुरुजी की बाँहों में सिर्फ सफेद ब्रा पैंटी में काजल किसी अप्सरा की तरह लग रही थी.
गुरुजी – काजल बेटी, अब मैं तुम्हारे आगे आऊँगा और तुम मेरे दोनों तरफ बाँहें डाल कर अग्नि में घी की आहुति देना.
काजल – जी गुरुजी.
अब गुरुजी काजल के सामने आ गये. काजल ने गुरुजी की बाँहों के अंदर से अपनी बाँहें डाली और यज्ञ में घी की आहुति देने लगी. गुरुजी सिर्फ धोती पहने हुए थे और उनका ऊपरी बदन नंगा था. मैंने ख्याल किया की गुरुजी ने अपने को ऐसे एडजस्ट किया की काजल की नुकीली चूचियाँ उनकी बालों से भरी छाती को छूने लगीं. स्वाभाविक रूप से किसी भी औरत की तरह काजल को भी असहज महसूस हुआ होगा की उसकी चूचियाँ एक मर्द की छाती को छू रही हैं. वो अपनी जगह से थोड़ा हिली लेकिन गुरुजी ने उसको अपनी तरफ खींचकर फिर से उसी स्थिति में ला दिया. काजल गुरुजी से नजरें नहीं मिला रही थी और ज़्यादातर आँखें बंद ही रख रही थी और गुरुजी जो मंत्र बोल रहे थे काजल उन्हें दुहरा रही थी. शायद काजल के आँखें बंद करने से गुरुजी को ज़्यादा अच्छे से मौका मिल गया. अब गुरुजी अपनी अंगुलियों को काजल के पेट में ऊपर नीचे फिराने लगे और उसकी पैंटी के ऊपर से नितंबों पर भी. काजल हल्के से कुलबुला रही थी. मैं समझ गयी की एक मर्द के छूने से उस पर जो प्रभाव हो रहा है , काजल उसको छुपाना चाह रही है. कुछ पलों तक ऐसे होता रहा फिर अचानक गुरुजी ने मंत्रोच्चार बंद कर दिया और काजल से अलग हो गये.
गुरुजी – काजल बेटी, ये क्या है ? मैंने तुम्हें चेतावनी दी थी की सिर्फ मंत्र और पूजा में ध्यान लगाना. लेकिन ऐसा लगता है की तुमने कोई सबक नहीं सीखा.
काजल का मुँह फक पड़ गया और उससे कुछ जवाब देते नहीं बना. उसकी ब्रा में तने हुए निपल्स की शेप साफ दिख रही थी जिससे ये साबित हो रहा था की गुरुजी के छूने से वो उत्तेजित हो रही थी.
गुरुजी – तुम अपनी पढ़ाई में सफल नहीं हो पा रही हो क्यूंकी तुम्हारा ध्यान और चीज़ों में ज़्यादा रहता है. जब तक तुम कुँवारी हो उन चीज़ों से तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए. मैं तुमसे बहुत नाराज हूँ.
गुरुजी क्षुब्ध नजर आ रहे थे, कमरे में बिल्कुल चुप्पी छा गयी.
काजल – गुरुजी प्लीज मुझे क्षमा कर दीजिए.
गुरुजी – क्षमा करने की बात नहीं है. पूरे यज्ञ के दौरान तुमने पूजा की बजाय अपने शारीरिक सुख पर ध्यान लगा रखा है. मुझे तुम्हारे माता पिता को ये बात बतानी पड़ेगी.
ये सुनकर काजल इतना घबरा गयी की उसने और भी ज़्यादा गड़बड़ कर दी . उसने तुरंत गुरुजी के पैर पकड़ लिए और रोने लगी. लेकिन उसे नहीं मालूम था की इस मुद्रा में वो इतनी लुभावनी लग रही थी की मुझे नजरें फेर लेनी पड़ीं. ब्रा के स्ट्रैप को छोड़कर उसकी पूरी गोरी पीठ नंगी थी और जब वो फर्श में झुकी तो उसके मांसल नितंबों पर पैंटी खींच गयी और उसकी गांड की दरार का ऊपरी हिस्सा दिखने लगा. वो दृश्य देखकर किसी भी मर्द का लंड खड़ा हो जाता. उसने पैंटी के ऊपर भगवा वस्त्र लपेटा हुआ था पर ऐसे झुकने से वो भी नीचे को खिसक गया था और गांड की दरार का ऊपरी हिस्सा दिख गया.
गुरुजी – बेटी उठो और ये रोना धोना बंद करो.
अब मुझे आगे आना पड़ा और मैंने काजल को उठाने की कोशिश की. काफ़ी समझाने के बाद वो खड़ी हुई . लेकिन जब वो झुकी हुई स्थिति से खड़ी होने लगी तो उसकी चूचियों का ऊपरी हिस्सा और उनके बीच की घाटी गहराई तक दिख गयी , जिसे देखकर किसी भी उमर के मर्द की उत्तेजना बढ़ जाती.
गुरुजी – अब इस यज्ञ को पूरा करने का एक ही तरीका है और वो है ‘दोष निवारण’. तुम इसके लिए तैयार हो ?
काजल – गुरुजी, आप जो कहेंगे मैं वही करूँगी.
वो अभी भी सुबक रही थी. और उसको अधनंगी देखकर ऐसा लग रहा था की जैसे वो अपने कपड़ों के लिए रो रही हो. गुरुजी दूसरी तरफ चले गये और वहाँ बैठकर चंदन की थाली में लेप बनाने लगे.
“गुरुजी, आप कहें तो मैं बना दूँ ?”
गुरुजी – नहीं रश्मि, मैं बना लूँगा. तुम इसका ध्यान रखो और इससे चुप होने के लिए कहो. ये कोई बच्ची नहीं है.
काजल शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से असहाय लग रही थी. मैंने उसके सर पे हाथ फेरा और उससे चुप होने को कहा. मैंने अपनी साड़ी के पल्लू से उसके गालों से आँसू पोंछ दिए और वो अब शांत हो गयी.
गुरुजी – रश्मि, अब ठीक है काजल ?
“जी गुरुजी.”
गुरुजी – ठीक है. अब फर्श में वो सफेद साड़ी फैला दो जो नंदिनी ने तुम्हें दी थी.
मैंने वैसा ही किया. काजल चुपचाप खड़ी थी. गुरुजी ने एक बड़े कटोरे में चंदन का लेप बना दिया था और मैं सोच रही थी की इतने ज़्यादा चंदन से वो क्या करेंगे ? अब गुरुजी खड़े हो गये और अचानक हमारे सामने ही अपनी धोती खोल दी. अब वो सिर्फ एक कच्छे में थे और छोटे से कच्छे में उनके बड़े लंड की शेप देखकर मेरे मुँह से “ओह्ह …” निकल गया. गुरुजी लंबे चौड़े शरीर वाले थे और उन्हें ऐसे सिर्फ एक छोटे से कच्छे में देखकर कोई भी औरत डर जाती. मैंने देखा उनका मोटा लंड उस कच्छे के कपड़े को भद्दे ढंग से ताने हुए है और हम दोनों लड़कियों की नजरें उसी पर जमी हुई थीं.
गुरुजी – काजल बेटी, घबराओ नहीं. ये ’दोष निवारण’ का रिवाज है. जब तुम लिंगा महाराज के सामने खुद को समर्पित करते हो, तो तुम्हें अपने विशुद्ध रूप में होना चाहिए.
ऐसा कहते हुए गुरुजी अग्नि के सम्मुख एक पैर में खड़े हो गये और आँखें बंद करके अपने हाथ सर के ऊपर उठाकर जोड़ लिए और ज़ोर ज़ोर से मंत्रोच्चार करने लगे. अग्निकुण्ड से उठती लपटों के सामने वो बड़े भयंकर लग रहे थे. मैंने काजल की ओर देखा और वो अभी भी गुरुजी के कच्छे से ढके हुए लंड को देख रही थी. उसकी देखादेखी मेरी नजरें भी फिर वहीं टिक गयीं, जो किसी भी औरत का मनपसंद अंग होता है. मैं सोचने लगी , आज तक थोड़े बहुत जितने भी लंड मैंने देखे हैं , उनमें सबसे बड़ा और मोटा यही है भले ही अभी कच्छे के अंदर है. फिर गुरुजी ने मंत्रोच्चार बंद कर दिया और आँखें खोल दी.
गुरुजी – काजल बेटी, अब तुम बच्ची नहीं रही. तुमने 18 साल पूरे कर लिए. इसलिए अब तक जो काम तुम अपने माता पिता से छुप छुपाकर करती हो और इस तरह से अपनी पढ़ाई का नुकसान कर रही हो, वो अब तुम्हें खुलकर जान लेना चाहिए.
गुरुजी अभी भी अग्नि के सामने उसी स्थिति में एक पैर के ऊपर खड़े थे. वो देखकर काजल ने पूजा की मुद्रा में हाथ जोड़ लिए और गुरुजी की आँखों में देखा.
गुरुजी – काजल बेटी , तुम्हारी आँखों में स्वाभाविक विस्मय का भाव मुझे साफ दिख रहा है जो मैं तुम्हारी रश्मि आंटी की आँखों में नहीं देख रहा हूँ. जानती हो क्यूँ ? ऐसा इसलिए है क्यूंकी वो शादीशुदा है और उसने मर्द के ‘यौन अंग’ को देखा भी है और महसूस भी किया है, जबकि तुमने अभी ऐसा नहीं किया है.
गुरुजी के मुँह से ये सुनकर मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया और मैं उनकी तरफ आँखें नहीं उठा पायी जबकि अभी वो काजल से बोल रहे थे.
गुरुजी – काजल बेटी, हर लड़की को मर्द के शरीर के बारे में , उनके छूने से होने वाली कामोत्तेजना के बारे में जानने की उत्सुकता रहती है. इस उमर में ये स्वाभाविक है. पर इस वजह से अपने लक्ष्य से ध्यान भटकाना ग़लत है और तुम्हें अपने व्यवहार को नियंत्रित करना होगा. इस ‘दोष निवारण’ प्रक्रिया से तुम्हें इसमें मदद मिलेगी.
वो थोड़ा रुके फिर ….
गुरुजी – बेटी , जो जिज्ञासायें तुम्हारे मन में हैं, वो मेरे मन में भी थीं जब मैं तुम्हारी उमर का था. हम मर्द भी इसी तरह से औरतों के बदन, उनके छूने से होने वाली कामोत्तेजना के प्रति उत्सुक रहते हैं. यही जीवन है .
गुरुजी के इस तरह चीज़ों को खुलकर समझाने से माहौल हल्का हो गया. काजल भी अब खुलकर अपने मन की बात बताने लगी.
काजल – गुरुजी , आप ठीक कह रहे हैं. मैं ध्यान नहीं लगा पाती हूँ और हर समय ……
गुरुजी – मैं समझ रहा हूँ बेटी. लेकिन जब तुम्हें लगता है की इससे तुम्हारी पढ़ाई में असर पड़ रहा है तो तुम्हें नंदिनी से बात करनी चाहिए. है की नहीं ? लेकिन तुम्हारी सोच तुम्हें ऐसा नहीं करने देती, क्यूंकी तुम्हें लगता है की अगर तुम ऐसी बातें अपने माता पिता को बताओगी तो वो डंडा लेकर तुम्हारे पीछे दौड़ेंगे.
काजल – गुरुजी , आप बिल्कुल सच कह रहे हैं.
गुरुजी – मेरे पास आओ बेटी.
काजल गुरुजी के पास चली गयी और हाथ जोड़कर अग्निकुण्ड के पास खड़ी हो गयी. उसका करीब करीब नंगा बदन अग्नि की लपटों से लाल लग रहा था.
गुरुजी – लिंगा महाराज के सामने कुछ भी मत छिपाओ. माध्यम के रूप में मैं भी उसका ही एक भाग हूँ. मुझे बताओ क्या तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है ?
गुरुजी – मेरे पास आओ बेटी.
काजल गुरुजी के पास चली गयी और हाथ जोड़कर अग्निकुण्ड के पास खड़ी हो गयी. उसका करीब करीब नंगा बदन अग्नि की लपटों से लाल लग रहा था.
गुरुजी – लिंगा महाराज के सामने कुछ भी मत छिपाओ. माध्यम के रूप में मैं भी उसका ही एक भाग हूँ. मुझे बताओ क्या तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है ?
काजल शरमा गयी और कुछ देर तक चुप रही. गुरुजी ने धैर्यपूर्वक उसके जवाब देने का इंतज़ार किया.
काजल – हाँ गुरुजी.
गुरुजी – हम्म्म ….मेरा अंदाज़ा है की जबसे तुम उससे मिली हो ज़्यादातर तब से ही अपनी पढ़ाई से तुम्हारा ध्यान भटका है.
काजल ने हाँ में सर हिला दिया.
गुरुजी – तुम दोनों कब कब मिलते हो ? वो कॉलेज में है क्या ?
काजल – हाँ गुरुजी, वो कॉलेज में है. हम हफ्ते में दो तीन बार मिलते हैं.
गुरुजी – तुम उसे कब से जानती हो ?
काजल – जी, तीन चार महीने से.
गुरुजी – तुम दोनों का संबंध कितनी दूर तक गया है ?
काजल ने आँखें झुका ली और फर्श को देखने लगी. ये देखकर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था की कैसे गुरुजी बड़ी चालाकी से काजल की पर्सनल बातों को उगलवा रहे हैं.
गुरुजी – काजल बेटी, तुमने कोई पाप नहीं किया है जो तुम गिल्टी फील कर रही हो. मुझे बताओ कितनी दूर तक गये हो ?
एक लड़की के लिए ये एक मुश्किल सवाल था क्यूंकी उसको बताना था की उसने अपने बॉयफ्रेंड को अपने साथ क्या क्या करने दिया है.
काजल – गुरुजी, हमने साथ साथ समय बिताया है, मेरा मतलब…..बस इतना ही, इससे ज़्यादा कुछ नहीं.
गुरुजी – क्या उसने तुम्हारा चुम्बन लिया है ?
गुरुजी ने अब सीधे सीधे पूछना शुरू कर दिया . कुछ पल तक चुप रहने के बाद काजल ने जवाब दिया.
काजल – मैंने इन चीज़ों से अपने को बचाने की कोशिश की . लेकिन गुरुजी मेरा विश्वास कीजिए, परिस्थितियों ने मुझे इतना कमज़ोर बना दिया की…
गुरुजी – हम्म्म ….तुम लोग अक्सर कहाँ समय बिताते हो ?
काजल – जी, वाटरवर्ल्ड या लुंबिनी पार्क में.
मैं तो बाहर से आई थी इसलिए मुझे इन जगहों के बारे में नहीं पता था. लेकिन लगता था की गुरुजी इन जगहों को जानते थे.
गुरुजी – लुंबिनी पार्क ! वो तो खराब जगह है. ख़ासकर शाम को तो वहाँ आवारा लोगों का जमावड़ा रहता है.
काजल – लेकिन गुरुजी हम वहाँ शाम को कभी नहीं गये. हम स्कूल के बाद 3-4 बजे वहाँ जाते थे.
गुरुजी – अच्छा अब ये बताओ की परिस्थितियों ने तुम्हें कमज़ोर कैसे बना दिया ? बेटी, कुछ भी मत छिपाना. लिंगा महाराज के सामने दिल खोलकर सब कुछ सच बताना.
काजल को अब पसीना आने लगा था और वो कुछ गहरी साँसें लेने लगी थी जिससे उसकी सफेद ब्रा में चूचियाँ कुछ ज़्यादा ही उठ रही थीं.
काजल – गुरुजी, शुरू में तो सिर्फ़ ये होता था की पार्क बेंच में बैठकर हम बातें करते थे और घूमते समय एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते थे बस इतना ही. लेकिन जैसे जैसे दिन गुज़रते गये मुझे उसके छूने से अच्छा लगने लगा और मेरी भी इच्छा होने लगी की वो मुझे छुए. एक दिन हल्की बूंदाबादी हो रही थी और हम दोनों एक छाता के नीचे चल रहे थे. पार्क में जिस बेंच में हम अक्सर बैठते थे उस दिन उसमें एक जोड़ा बैठा हुआ था. हम भी उनके बगल में बैठ गये. उस दिन मैं अपने बॉयफ्रेंड को रोक नहीं पाई लेकिन ये पूरी तरह से मेरी ग़लती नहीं थी.
गुरुजी – काजल बेटी, जो हुआ सब कुछ बताओ. ये भी तुम्हारे ‘दोष निवारण’ की एक प्रक्रिया है.
काजल – गुरुजी , जब हम उस जोड़े के बगल में बेंच में बैठे तो वो दोनों एक दूसरे के बहुत नज़दीक़ बैठे थे और जल्दी ही उन्होंने एक दूसरे के होठों को छूना शुरू कर दिया. फिर उस आदमी ने उस औरत को अपने आलिंगन में लेकर बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया. गुरुजी वो हमसे सिर्फ़ एक फुट की दूरी पर थे और खुलेआम ऐसा कर रहे थे. वो औरत लगभग रश्मि आंटी की उमर की होगी और तब तक उसके कपड़े इतने अस्त व्यस्त हालत में आ गये थे की मुझे अपने बॉयफ्रेंड को उसकी तरफ देखने से रोकना पड़ा.
गुरुजी – मुझे सब कुछ बताओ बेटी. उसी दिन से तुम्हारी अपने बॉयफ्रेंड से नज़दीक़ियाँ बढ़ गयीं. ठीक ?
काजल – हाँ गुरुजी. ज़रा सोचिए खुलेआम वो दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे और उस औरत की साड़ी का पल्लू ज़मीन में गिरा हुआ था और उसके खुले हुए ब्लाउज और ब्रा में से एक चूची बाहर निकली हुई थी.
“खुले पार्क में ?”
वो सवाल पूछने से मैं अपनेआप को रोक नहीं पाई.
गुरुजी – रश्मि, तुम उस जगह को नहीं जानती. वहाँ कोई सिक्योरिटी गार्ड वगैरह नहीं रहते इसलिए कोई डिस्टर्बेंस नहीं होता. बेटी, फिर क्या हुआ ?
काजल – गुरुजी, अपने इतने नज़दीक़ ऐसा सीन देखकर हम दोनों भी एक्साइटेड हो गये. और फिर जब उसने मुझे आलिंगन में लिया तो मैं उसे रोक नहीं पाई. वो पहला दिन था, मेरा मतलब उस दिन पहली बार उसने मेरा चुंबन लिया.
गुरुजी – फिर ?
काजल - हम दोनों अपनी मुलाक़ातों को लेकर बहुत उत्सुक रहते थे और अपनी पढ़ाई से मेरा ध्यान भटकने लगा. हम पार्क में मिलते थे, बातें करते थे और मज़े में समय गुजारते थे. मुझे लगने लगा था की उसकी इच्छायें बढ़ते जा रही हैं और पार्क में सुनसानी होने से कोई रोक टोक नहीं थी उसके बाद तीसरी या चौथी मुलाकात में उसने चुंबन लेने के बाद मेरे पूरे बदन को छुआ और मेरी ड्रेस के अंदर भी. गुरुजी, मेरा विश्वास कीजिए, हर दिन मैं मन में सोचती थी की जब मैं उससे मिलूंगी तो अपने बदन को छूने नहीं दूँगी , लेकिन…..
गुरुजी – हम्म्म ….बेटी, लिंगा महाराज जानना चाहते हैं की तुम कितनी दूर तक गयी ? क्या तुम उसके साथ बेड तक …
काजल – नहीं नहीं गुरुजी. कभी नहीं.
कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया. गुरुजी अभी भी एक पैर पे सर के ऊपर हाथ जोड़े खड़े थे. लेकिन उनके कच्छे में उभार थोड़ा बढ़ गया था और बड़ा अजीब लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसी किसी पोल को कपड़े से ढक रखा हो.
काजल – गुरुजी मेरा विश्वास कीजिए, हम ज़्यादातर सिर्फ़ बातें ही करते थे. लेकिन अक्सर आस पास में कोई ना कोई जोड़ा ऐसी हरकतें कर रहा होता था और हम भी उनसे प्रभावित हो जाते थे. मेरे बॉयफ्रेंड ने मुझे टॉप के ऊपर से छुआ है लेकिन सीधे नहीं , मेरा मतलब…
काजल थोड़ा रुकी और तभी गुरुजी ने एक बेहूदा सवाल पूछ लिया.
गुरुजी – तुमने अपने बॉयफ्रेंड का छुआ है ?
ऐसा कहते हुए उन्होंने अपनी आँखों से अपने लंड की तरफ इशारा किया. काजल एकदम बहुत शरमा गयी. मेरे भी ब्लाउज और ब्रा के अंदर निप्पल कड़क हो गये और चूत में सनसनी सी हुई.
गुरुजी – क्या हुआ बेटी ? तुमने बताया की तुम्हारे बॉयफ्रेंड ने तुम्हारी चूचियों को छुआ है पर क्या तुमने उसका नहीं छुआ ?
काजल ने ना में सर हिला दिया.
गुरुजी – सच बताओ. अभी तुम लिंगा महाराज के सामने हो .
काजल कुछ देर चुप रही और नीचे फर्श को देखती रही. फिर उसने सब कुछ बता दिया.
काजल – गुरुजी , आप सब कुछ जानते हैं. हाँ उसने मुझे इनरवियर के अंदर छुआ था और मैंने भी उसका छुआ था. पार्क में तो सिर्फ़ चुंबन और आलिंगन होता था , वैसे कभी कभी वो मेरे टॉप में भी हाथ डाल देता था पर मैं हमेशा मना ही करती थी. लेकिन जब हम वाटरवर्ल्ड जाने लगे तो नज़दीक़ आ गये. वहाँ पूल में जब वो मेरे नज़दीक़ आता था तो मैं उसे रोक नहीं पाती थी. पानी के अंदर वो मेरे स्विमिंग सूट के ऊपर से मुझे हर जगह छूता था और मैंने भी उसके अंडरवियर के ऊपर से उसका छुआ है.
काजल ने थोड़ा रुककर एक गहरी सांस ली.
काजल – स्वाभाविक रूप से उसका मेरे बदन को छूना मुझे अच्छा लगता था लेकिन एक दिन कुछ ज़्यादा ही हो गया और मैंने तुरंत उसको मना कर दिया और उसने भी अपनी हरकत के लिए माफी माँगी. वाटरपार्क में लड़कों और लड़कियों के कपड़े बदलने के लिए चेंजिंग रूम अगल बगल थे. वो रूम्स छोटे छोटे थे. उस दिन हल्की बारिश थी और लोग भी बहुत कम थे. चेंजिंग रूम में कोई नहीं था . मैं वहाँ अपने कपड़े बदल रही थी तभी उसने दरवाज़ा खटखटाया और आवाज़ दी.
काजल ने अपने बॉयफ्रेंड का नाम नहीं लिया.
काजल – मैंने थोड़ा सा दरवाज़ा खोला और बाहर झाँका, वो मुझे धकेलते हुए अंदर घुस आया. मैं जैसे अभी हूँ वैसे ही सिर्फ़ अंडरगार्मेंट्स में थी. मैं अंडरगार्मेंट्स के ऊपर स्विमिंग सूट पहनने ही वाली थी की वो अंदर आ गया था. उसने अपने कपड़े बदलकर स्विमिंग ब्रीफ पहन लिया था. अंदर आते ही उसने मुझे आलिंगन में लिया और चूमना शुरू कर दिया. गुरुजी मैंने उससे बचने की कोशिश की पर मैं करीब करीब…..मेरा मतलब …नंगी थी, उसके मुझे छूने से मैं कमज़ोर पड़ती चली गयी ….
काजल ने सर झुका लिया और कुछ पलों तक चुप रही.
काजल – गुरुजी , उस दिन पहली बार उसने मुझे अंडरगार्मेंट्स के अंदर छुआ. आप मेरी हालत समझ सकते हैं. मुझे डर भी लग रहा था. फिर मैंने उसे चेंजिंग रूम से बाहर निकाल दिया.
गुरुजी – उसने कुछ और करने की कोशिश नहीं की ?
काजल – उसने मेरी ब्रा उतारने की कोशिश की लेकिन मेरे विरोध करने से वो थोड़ा सा ही नीचे कर पाया.
गुरुजी – और इसको ?
गुरुजी ने अपनी आँखों से काजल की पैंटी की तरफ इशारा किया. कितनी अपमानजनक बात थी. लेकिन वो लड़की कर ही क्या सकती थी.
काजल – हाँ गुरुजी….मेरा मतलब….उसने इसे नीचे कर दिया था लेकिन उसके कुछ करने से पहले ही मैं तुरंत संभल गयी.
गुरुजी – हम्म्म ….तो उसने तुम्हारी चूत देख ली. तुमने उसका लंड देखा ?
गुरुजी के मुँह से सीधे ऐसे शब्द सुनकर मैं हक्की बक्की रह गयी. काजल भी ऐसे शब्दों का जवाब देने के लिए तैयार नहीं थी. उसके लिए बड़ी अजीब स्थिति थी. बल्कि ऐसा सवाल सुनकर मैं भी असहज महसूस कर रही थी. कुछ देर बाद काजल ने सर झुकाए हुए जवाब दिया.
काजल – नहीं गुरुजी.
गुरुजी – लेकिन ऐसी सिचुयेशन में तुमने अपने हाथ से छुआ तो होगा.
काजल – उसने ज़बरदस्ती मुझे छूने पर मजबूर किया.
गुरुजी – ठीक है. ये जानकर अच्छा लगा की तुमने अपना कुँवारापन बचा लिया. लेकिन इससे ये तो पूरी तरह से साबित हो गया की तुम्हारा ध्यान अपनी पढ़ाई से क्यूँ भटका. लेकिन ध्यान रखो की शादी से पहले शारीरिक संबंध रखना हमारे समाज में स्वीकार्य नहीं है. बल्कि किसी लड़के का तुम्हें चूमना या तुम्हारे बदन को छूना भी हमारी संस्कृति के अनुसार ठीक नहीं है. है की नहीं ?
काजल – जी गुरुजी.
गुरुजी – इसलिए बेहतर होगा की तुम अपने बॉयफ्रेंड से दूरी बना के रखो. लेकिन अगर तुम उसे वास्तव में चाहती हो तो संबंध बिगाड़ना मत. तुमने लिंगा महाराज के सामने सच स्वीकार किया है , तो अब तुमने
‘दोष निवारण’ की आधी प्रक्रिया पूरी कर ली है.
काजल ने सर हिलाया और काफ़ी देर बाद उसके चेहरे पर मुस्कान आई, ऐसा लग रहा था जैसे उसे बड़ी राहत हुई हो.
गुरुजी – ठीक है फिर. रश्मि , काजल बेटी को यज्ञ के शेष भाग के लिए तैयार करो.
गुरुजी – ठीक है फिर. रश्मि , काजल बेटी को यज्ञ के शेष भाग के लिए तैयार करो.
मैंने गुरुजी की और प्रश्नवाचक निगाहों से देखा क्यूंकी मुझे मालूम नहीं था की करना क्या है. वो मेरा चेहरा देखकर समझ गये.
गुरुजी – काजल बेटी, लिंगा महाराज की पूजा और मंत्रोच्चार के दौरान तुम्हारा ध्यान भटक गया था , इस तरह उनकी पूजा तुमने पूरे मन से नहीं की क्यूंकी तुम्हारा ध्यान कहीं और था. अब मैं तुम्हें वो उपाय बताता हूँ जिससे लिंगा महाराज तुम्हें क्षमा कर दें. तुम्हारे इस दोष से मुक्ति पाने का उपाय ये है की तुम अपने को लिंगा महाराज को समर्पित कर दो.
काजल ने हाँ में सर हिला दिया , हालाँकि उसकी समझ में कुछ नहीं आया.
गुरुजी – रश्मि सफेद साड़ी को फर्श में फैला दो और काजल बेटी के बदन में चंदन का लेप लगाओ.
“जी गुरुजी.”
नंदिनी ने जो सफेद साड़ी मुझे दी थी मैंने उसको फर्श में फैला दिया और काजल से उसमें लेटने के लिए कहा.
काजल – लेकिन ये तो मेरी मम्मी की साड़ी नहीं है.
गुरुजी – हाँ बेटी, मैंने यज्ञ के लिए मँगवाई है.
“हाँ, ये तो विधवा औरतों की साड़ी जैसी लग रही है.”
काजल साड़ी में लेट गयी. उसकी ब्रा से ढकी हुई चूचियाँ दो चोटियों जैसी लग रही थीं. मैंने वो बड़ा सा कटोरा उठा लिया जिसमें गुरुजी ने चंदन का लेप बनाया था.
गुरुजी – रश्मि, अब तुम इसकी कमर से कपड़ा निकाल सकती हो.
काजल ने अनिच्छा से अपने नितंब ऊपर को उठाए और मैंने उसके बदन को कुछ हद तक ढक रहा आख़िरी कपड़ा निकाल दिया. वैसे तो उस कपड़े से उसकी सफेद पैंटी साफ दिख रही थी लेकिन फिर भी गुरुजी के सामने वो कपड़ा लपेटने से काजल को कुछ तो कंफर्टेबल फील हो रहा होगा. अब वो सिर्फ ब्रा पैंटी में थी. शरम से उसने तुरंत अपना दायां हाथ पैंटी के ऊपर रख दिया. मैंने कटोरे से अपने दाएं हाथ में चंदन का लेप लिया और काजल के माथे और गालों में लगाया. फिर उसके बाद गर्दन और छाती के ऊपरी भाग में लगाया. काजल के गोरे बदन में चंदन का लेप ऐसा लग रहा था जैसे एक दूसरे के पूरक हों. मैंने शरारत से थोड़ा चंदन उसकी चूचियों के बीच की घाटी में भी लगा दिया. लेकिन शरम की वजह से काजल अभी मुस्कुराने की हालत में भी नहीं थी.
गुरुजी अब अग्निकुण्ड के सामने आँखें बंद करके बैठ गये थे . ये देखकर काजल ने मुझसे कुछ कहने के लिए अपना सर थोड़ा सा ऊपर उठाया.
काजल – आंटी, मेरे पूरे बदन में चंदन क्यों लगाना है ?
मैंने उसकी फुसफुसाहट के जवाब में कंधे उचका दिए की मुझे नहीं मालूम. फिर उसने जाहिर सा सवाल पूछ दिया.
काजल – आंटी, मुझे ये भी उतारने पड़ेंगे ?
काजल ने अपने अंडरगार्मेंट्स की तरफ इशारा करते हुए पूछा. मेरे पास इसका भी कोई जवाब नहीं था. काजल मेरा चेहरा देखकर समझ गयी और अब उसने अपना सर वापस फर्श में रख लिया. मैंने उसके पेट में भी चंदन लगा दिया था. अब मैं उसकी नंगी जांघों में लेप लगाने लगी और मेरी अंगुलियों के उसकी नंगी त्वचा को छूने से उसके बदन में कंपकपी को मैं महसूस कर रही थी. मैंने ख्याल किया अब गुरुजी ने आँखें खोल दी हैं और फिर उन्होंने जय लिंगा महाराज का जाप किया.
“गुरुजी, इसकी पीठ में भी लगाना होगा क्या ?”
गुरुजी – नहीं सिर्फ आगे लगाना है. धन्यवाद रश्मि, अब तुम वहाँ बैठ जाओ.
गुरुजी अपनी जगह से उठ खड़े हुए. उनका लंड अभी भी कच्छे को भोंडी तरह से ताने हुए था. अग्नि के सामने उनका लंबा चौड़ा बालों से भरा हुआ नंगा बदन डरावना लग रहा था. अब वो काजल के पास आकर बैठ गये. मैंने ख्याल किया की काजल ने पहले ही आँखें बंद कर ली हैं. अबकी बार गुरुजी मुझे कुछ ज़्यादा ही सक्रिय लग रहे थे. काजल उनके सामने सफेद साड़ी में सिर्फ छोटे से अंतर्वस्त्रों में लेटी हुई थी. उन्होंने काजल के बदन में कुछ फूल फेंके और मंत्र पढ़े और फिर उसके पैरों के पास बैठ गये.
गुरुजी – काजल बेटी , सबसे पहले मैं तुम्हारे बदन के बाहरी भाग से ‘दोष निवारण’ करूँगा. तुम जैसी हो वैसे ही लेटी रहो. जो करना होगा वो मैं कर लूँगा.
काजल चुपचाप रही और मैं ये देखकर शॉक्ड रह गयी की अब गुरुजी ने झुककर उसकी टाँगों को चाटना शुरू कर दिया. उन्होंने दोनों हाथों से काजल की नंगी टाँगें पकड़ लीं और चंदन को चाटना शुरू कर दिया जो कुछ ही पल पहले मैंने लगाया था. वो लंबी जीभ निकालकर काजल की चिकनी टाँगों को चाट रहे थे. अपनी टाँगों पर गुरुजी की गीली जीभ लगने से काजल के बदन में कंपकपी होने लगी. मैंने ख्याल किया की उसकी मुट्ठियां बंध गयी थी और वो अपने दाँत भींचकर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पाने की कोशिश कर रही थी. स्वाभाविक रूप से एक मर्द की गीली जीभ लगने से उसको सहन करना मुश्किल हो रहा होगा.
काजल की हालत मैं अच्छी तरह से समझ रही थी. वो तो अभी लड़की थी , मैं तो शादीशुदा थी और सेक्स के काफ़ी अनुभव ले चुकी थी फिर भी जब भी मेरे पति मेरे साथ ऐसा करते थे तो मेरे लिए सहन करना मुश्किल हो जाता था. मेरे पति ने ऐसा सुख मुझे बहुत बार दिया था. एक बात जो मुझे पसंद नहीं आती थी वो ये थी की मेरे पति मुझे पूरी नंगी करके ही मेरी टाँगों और जांघों को चाटते थे जबकि मुझे पैंटी या कोई और कपड़ा पहनकर ही इसका मज़ा लेना अच्छा लगता था. शायद औरत होने की स्वाभाविक शरम से मैं ऐसा महसूस करती थी. क्यूंकी अगर मैं किसी मर्द को अपनी जाँघें चूमने देती हूँ तो इसका मतलब ये है की मैं उसकी बाँहों में नंगी हूँ. लेकिन मेरी समस्या ये थी की जब मेरे पति मेरी टाँगों और जांघों को चाट रहे होते थे तो उनका हाथ मेरे प्यूबिक हेयर्स को सहलाता और खींचता रहता था , जिससे मैं बहुत अनकंफर्टेबल फील करती थी. इसलिए मुझे ज़्यादा मज़ा तभी आता था जब मैंने पैंटी पहनी होती थी पर ऐसा कम ही होता था.
अब गुरुजी ने काजल के दोनों तरफ हाथ रख लिए थे और उसकी टाँगों को चाटते हुए घुटनों तक पहुँच गये थे. मैंने देखा उनके कच्छे में उभार भी थोड़ा बढ़ गया है , स्वाभाविक था आख़िर गुरुजी भी थे तो एक मर्द ही. अब गुरुजी रुक गये और ज़ोर से कुछ मंत्र पढ़े और फिर से उस सेक्सी लड़की की नंगी टाँगों को चाटने लगे. काजल की गोरी गोरी मांसल जांघों पर गुरुजी की जीभ लपलपाने लगी. काजल आँखें बंद किए चुपचाप लेटी रही , उसका चेहरा शरम से लाल हो गया था. गुरुजी अब काजल की पैंटी के पास पहुँच गये थे , उन्होंने कुछ कहने के लिए अपना सर उठाया.
गुरुजी – बेटी, अपनी टाँगें खोलो.
काजल ने आँखें खोल दी लेकिन उसके चेहरे पर उलझन के भाव थे. उसने टाँगें चिपका रखी थी. वो सोच रही होगी की अगर टाँगें खोलती हूँ तो गुरुजी टाँगों के बीच में मुँह डाल देंगे. स्वाभाविक था की वो हिचकिचा रही थी.
गुरुजी – बेटी, मुझे ठीक से कार्य करना है. तुम अपनी टाँगें पूरी खोल दो और बिल्कुल मत शरमाओ.
मैं सब देख रही थी. काजल ने अनिच्छा से थोड़ी सी टाँगें खोल दी लेकिन गुरुजी संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने थोड़ा ज़ोर लगाकर काजल की नंगी टाँगों को फैला दिया. काजल के कुछ कहने से पहले ही गुरुजी ने ज़ोर से जय लिंगा महाराज का जाप किया और काजल की गोरी जांघों के अंदरूनी भाग को चाटने लगे.
काजल – उम्म्म्म……गुरुजी….
गुरुजी रुके और सर उठाकर देखा.
गुरुजी – बेटी , अपने मन में इस मंत्र का जाप करती रहो और अपनी शारीरिक भावनाओं पर ध्यान मत दो.
ऐसा कहते हुए उन्होंने काजल को एक मंत्र दिया और अपने मन में जाप करने को कहा. काजल उस मंत्र का जाप करने लगी और गुरुजी ने उसकी जांघों को फिर से चाटना शुरू कर दिया. मैंने देखा की गुरुजी अब काजल की जांघों के ऊपरी भाग से चंदन को चाट रहे हैं. उनका मुँह काजल की पैंटी के बिल्कुल पास पहुँच गया था और काजल बहुत असहज महसूस करते हुए फर्श पर अपने बदन को इधर उधर हिला रही थी. गुरुजी की जीभ उसकी जांघों के सबसे ऊपरी भाग में पैंटी के थोड़ा नीचे घूम रही थी. उस सेंसिटिव हिस्से में एक मर्द की जीभ और नाक लगने से कोई भी औरत उत्तेजना से बेकाबू हो जाती. काजल का भी वही हाल था और वो ज़ोर ज़ोर से सिसकारियाँ लेने लगी थी.
काजल – उहह…..आआहह….उफफफफफ्फ़…..
मैंने ख्याल किया की गुरुजी ने काजल की पैंटी के आस पास मुँह , जीभ और नाक लगाई लेकिन उसके गुप्तांग को नहीं छुआ और जय लिंगा महाराज का जाप करने के बाद उसकी नाभि से चंदन चाटने लगे. अब काजल का निचला बदन गुरुजी के बदन से ढक गया था. नाभि और चिकने पेट पर गुरुजी की जीभ लगने से काजल बहुत उत्तेजित हो गयी और ज़ोर से सिसकने लगी. वो दृश्य ऐसा ही था जैसे मैं बेड में नंगी लेटी हूँ और मेरे पति चुदाई करने के लिए धीरे धीरे मेरी टाँगों से मेरे बदन के ऊपर चढ़ रहे हों. अपनी आँखों के सामने ये सब होते देखकर अब मेरी साँसें भारी हो गयी थीं और मेरी ब्रा के अंदर चूचियाँ वैसी ही टाइट हो गयी थीं जैसी लगभग दो घंटे पहले बाथरूम में गुप्ताजी के मसलने से हुई थीं. मैं ये कभी नहीं भूल सकती की बाथरूम में कैसे गुप्ताजी ने मुझसे छेड़खानी की थी और चुदने से बचने के लिए मुझे उसकी मूठ मारनी पड़ी थी.
गुरुजी ने अब काजल के पेट को पूरा चाट लिया था. गुरुजी जैसे जैसे ऊपर को बढ़ते जा रहे थे , अपने बदन को काजल के ऊपर खिसकाते जा रहे थे. हर एक अंग को चाटने के बाद वो जय लिंगा महाराज का जाप करते और फिर ऊपर को बढ़ जाते. काजल वही मंत्र बुदबुदा रही थी जो कुछ मिनट पहले गुरुजी ने उसे दिया था. लेकिन जब कोई मर्द किसी लड़की के बदन को चाट रहा हो तो उसका ध्यान किसी और चीज़ पर कैसे लग सकता है ? अब गुरुजी काजल के कंधों और गर्दन से चंदन को चाटने लगे और फिर उसके चेहरे पे आ गये. अब काजल का नाज़ुक बदन गुरुजी के विशालकाय नंगे बदन से पूरा ढक चुका था. गुरुजी ने काजल के माथे को चाटना शुरू कर दिया.
गुरुजी - जय लिंगा महाराज.
अब गुरुजी काजल के गालों को चाटने लगे. उनकी चौड़ी छाती से काजल की ब्रा से ढकी नुकीली चूचियाँ पूरी तरह से दबी हुई थीं. उन्होंने काजल के बदन के ऊपर अपने बदन को ऐसे एडजस्ट किया हुआ था की कच्छे के अंदर उनका लंड ठीक काजल की पैंटी के ऊपर था. जिस तरह से काजल अपनी टाँगों को हिला रही थी उससे साफ जाहिर हो रहा था की एक मर्द के अपने बदन के ऊपर चढ़ने से वो बहुत कामोत्तेजित हो गयी थी.
मैं फर्श पे बैठी हुई थी और गुरुजी अब क्या कर रहे हैं देखने के लिए अपना सर थोड़ा सा टेढ़ा किया. मैंने देखा गुरुजी ने दोनों हाथों में काजल का चेहरा पकड़ लिया. काजल की आँखें बंद थी. फिर गुरुजी ने अपने मोटे होंठ काजल के नाज़ुक होठों पर रख दिए. गुरुजी काजल का चुंबन ले रहे थे. शुरू में काजल हिचकिचा रही थी फिर गुरुजी के डर या आदर से उसने समर्पण कर दिया.
वो चुंबन धीमा पर लंबा था. मैं वहीं पर बैठकर सूखे गले से ये सब देख रही थी, मेरा भी मन हो रहा था की कोई मर्द मुझे भी ऐसे चूमे. बाथरूम में कुछ देर पहले गुप्ताजी ने मेरे होठों को चूसा था , वही याद करके मैंने अपने सूखे होठों पर जीभ फिरा दी. मैंने देखा अभी मुझे कोई नहीं देख रहा है , तो अपने बैठने की पोज़िशन एडजस्ट करते हुए थोड़ी सी टाँगें खोल दीं और साड़ी के ऊपर से अपनी चूत सहला और खुजा दी. अब गुरुजी और काजल का चुंबन पूरा हो चुका था और गुरुजी ने काजल के गीले होठों से अपना चेहरा ऊपर उठाया. लंबे चुंबन से काजल की साँसें उखड़ गयी थीं और वो हाँफ रही थी. उसके चेहरे से लग रहा था की उसने चुंबन का मज़ा लिया है लेकिन गुरुजी जैसी शख्सियत के साथ चुंबन से उसके चेहरे पर घबराहट और विस्मय के भाव भी थे. गुरुजी अब काजल के बदन से उठ गये और उसके पास बैठ गये.
गुरुजी – काजल बेटी, अब मैं तुम्हारे मन और शरीर से ‘दोष निवारण’ करूँगा. मैंने ख्याल किया की जब मैं तुम्हारे होठों को शुद्ध कर रहा था तब तुम काँप रही थी. ऐसा क्यूँ ? तुम डर क्यूँ रही थी बेटी ?
गुरुजी – काजल बेटी, अब मैं तुम्हारे मन और शरीर से ‘दोष निवारण’ करूँगा. मैंने ख्याल किया की जब मैं तुम्हारे होठों को शुद्ध कर रहा था तब तुम काँप रही थी. ऐसा क्यूँ ? तुम डर क्यूँ रही थी बेटी ?
काजल – जी गुरुजी.
गुरुजी – क्यूँ बेटी ? जब तुम्हारा बॉयफ्रेंड तुम्हारा चुंबन लेता है तब भी तुम घबराती हो ? मुझे ‘दोष निवारण’ की प्रक्रिया का ठीक से पालन करना होगा नहीं तो लिंगा महाराज रुष्ट हो जाएँगे और ना सिर्फ तुम्हें बल्कि मुझे भी उनका प्रकोप भुगतना पड़ेगा. इसलिए घबराओ मत और अपने बदन को ढीला छोड़ दो.
काजल ने सर हिला दिया.
गुरुजी – देखो , तुम कितनी देर से अंतर्वस्त्रों में हो. शुरू में तुम बहुत शरमा रही थी. लेकिन अब तुम उतना नहीं शरमा रही हो. इसलिए इन बातों पर ज़्यादा ध्यान मत दो और जो मंत्र मैंने तुम्हें दिया है उसका जाप करती रहो. तुम्हारी आत्मा के शुद्धिकरण के लिए जो करना है वो मुझे करने दो.
काजल फिर से शरमाने लगी क्यूंकी गुरुजी की बात से उसको ध्यान आया की वो एक मर्द के सामने सिर्फ ब्रा पैंटी में लेटी है. गुरुजी की बात का वो कोई जवाब नहीं दे पायी.
गुरुजी – मैं जानता हूँ की तुम्हारे मन में कुछ शंकाएँ हैं, कुछ प्रश्न हैं और यही कारण है की बार बार तुम्हारा ध्यान भटक जा रहा है. मैं चाहता हूँ की तुम उस स्थिति को प्राप्त करो जहाँ तुम्हारा ध्यान बिल्कुल ना भटके.
काजल – वो कैसे गुरुजी ?
गुरुजी – अपनी आँखें बंद कर लो और मंत्र का जाप करो. मन में किसी शंका, किसी प्रश्न को आने मत दो. जो मैं करूँ उसकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया दो. ठीक है ?
काजल ने सर हिलाकर हामी भर दी. पर उसे मालूम नहीं था की इस तरह उसने गुरुजी को अपने खूबसूरत अनछुए बदन से खेलने की खुली छूट दे दी है.
गुरुजी – जय लिंगा महाराज. बेटी अपनी आँखें बंद कर लो और मंत्र का जाप करती रहो जब तक की मैं रुकने के लिए ना बोलूँ. ‘दोष निवारण’ की प्रक्रिया में अगला भाग है तुम्हारे बदन के बाहरी भाग की शुद्धि. रश्मि, मुझे वो जड़ी बूटी वाले पानी का कटोरा लाकर दो.
गुरुजी मेरी तरफ देखेंगे या मुझे कोई आदेश देंगे, इसकी अपेक्षा मैं नहीं कर रही थी. और इसके लिए तैयार भी नहीं थी. क्यूंकी काजल के साथ गुरुजी जो हरकतें कर रहे थे उन्हें देखकर मैं कामोत्तेजित हो गयी थी और उस समय अपने दाएं हाथ से ब्लाउज के ऊपर निप्पल को सहलाने और दबाने में मगन थी. इसलिए जब उन्होंने मेरी तरफ देखकर मुझे आदेश दिया तो मैं हड़बड़ा गयी.
“जी…जी गुरुजी.”
मैं जल्दी से उठी और पानी का कटोरा लाकर गुरुजी को दिया. गुरुजी ने मुझसे कटोरा ले लिया लेकिन आँखों से मेरी गांड की तरफ इशारा किया. मैं हैरान हुई की क्या कहना चाह रहे हैं ? मैंने उलझन से उनकी तरफ देखा तो उन्होंने बिना कुछ बोले, मेरी दायीं जाँघ पकड़कर मुझे थोड़ा घुमाया और मेरी गांड की दरार में फँसी हुई साड़ी खींचकर निकाल दी. उनकी इस हरकत से मुझे इतनी शर्मिंदगी हुई की क्या बताऊँ. असल में बैठी हुई पोजीशन से मैं हड़बड़ाकर जल्दी से उठी थी तो अपने नितंबों पर साड़ी फैलाना भूल गयी और साड़ी मेरे नितंबों की दरार में फँसी रह गयी . मुझे मालूम है की ऐसे मैं बहुत अश्लील लगती हूँ. मैं गुरुजी के सामने खड़ी थी और शरम से मेरा मुँह लाल हो गया था और मेरी नजरें फर्श पर झुक गयीं.
वैसे तो मैं जब भी देर तक बैठती हूँ तो खड़े होते समय इस बात का ख्याल रखती हूँ लेकिन कभी कभी ध्यान नहीं रहता जैसा की आज हुआ था.एक बार मैं बस से बाजार गयी थी और जब बस से उतरी तो साड़ी ठीक करने का ध्यान नहीं रहा. मुझे मालूम नहीं था की मेरी साड़ी गांड की दरार में फँसी हुई है. मैं पूरे बाजार में ऐसे ही घूमती रही और मेरे मटकते हुए बड़े नितंबों के बीच फँसी साड़ी को ना जाने कितने मर्दों ने देखा होगा. मुझे तब पता चला जब एक कॉस्मेटिक्स शॉप में किसी औरत ने मुझे बताया. लेकिन आज से पहले कभी किसी मर्द की इतनी हिम्मत नहीं हुई की वो मेरी साड़ी को अपने हाथ से ठीक कर दे. घर में काम करते हुए मेरे पति ने कई बार मुझे इस हालत में देखा होगा लेकिन वो भी कभी नहीं बताते थे. लेकिन वो जानबूझकर ऐसा करते थे क्यूंकी मेरी बड़ी गांड में फँसी साड़ी में मुझे अपने सामने इधर उधर चलते हुए देखने का मजा जो लेना होता था.
मैं ख्यालों में डूबी हुई थी. मुझे तब होश आया जब गुरुजी ने मंत्रोच्चार शुरू किया. उन्होंने काजल के बदन में पानी छिड़का और मुझे अपनी जगह बैठने को कहा. गुरुजी ने काजल के बदन में बचे हुए चंदन को अपने दाएं हाथ से पानी से साफ कर दिया. काजल आँखें बंद किए हुए लेटी थी लेकिन गुरुजी के अपनी गर्दन, नाभि, पेट और नंगी जांघों को छूने से थोड़ा कांप रही थी. गुरुजी ने उसके ऊपर काफ़ी पानी छिड़क दिया था जिससे उसकी सफेद ब्रा और पैंटी भी गीली हो गयी थी. उसकी गीली हो चुकी ब्रा में निप्पल तने हुए थे जो अब साफ दिख रहे थे. गुरुजी के जीभ लगाकर चाटने से वो बहुत गरम हो गयी थी.
अब गुरुजी काजल के बगल में बैठकर गौर से उसे देख रहे थे. मैंने ख्याल किया उनकी नज़रें काजल की ब्रा से झाँकती चूचियों पर थी. पानी छिड़कने से काजल की गोरी त्वचा चमकने लगी थी और बहुत लुभावनी लग रही थी. अब गुरुजी ने काजल के दोनों तरफ हाथ रख लिए और उसके चेहरे पे झुके. मैं सोचने लगी , गुरुजी क्या कर रहे हैं ? उन्होंने काजल के दोनों कानों को धीरे से चूमा. काजल के बदन में कंपकपी दौड़ गयी. फिर उनके मोटे होंठ काजल के गालों से होते हुए उसकी गर्दन पर आ गये. और फिर उसकी गर्दन को चूमने लगे. काजल हाँफने लगी और उसकी टाँगें अलग अलग हो गयीं.
उनके लव सीन को देखकर मुझे आनंद आ रहा था. उसके बाद गुरुजी ने काजल के हाथों को चूमा. उनके होठों ने एक एक करके दोनों बाँहों को कांख तक चूमा. काजल अब गहरी साँसें लेने लगी थी. ये पहली बार था जब इतने कम कपड़ों में कोई मर्द उसके बदन को चूम रहा था. फिर गुरुजी ने उसकी नाभि, पेट, जांघों और घुटनों को चूमा. उसके बाद वो काजल के पैरों के पास बैठ गये और उसकी बायीं टाँग को अपनी गोद में उठा लिया. मैंने देखा कच्छे में गुरुजी का लंड खड़ा हो गया था और उन्होंने जानबूझकर काजल के पैर को अपने लंड से छुआ दिया.
गुरुजी ने थोड़ी देर तक अपनी आँखें बंद कर लीं. शायद वो अपने लंड से काजल के पैर को महसूस कर रहे थे . फिर उन्होंने ऐसा ही उसकी दायीं टाँग को अपनी गोद में उठाकर किया. फिर उन्होंने वो किया जिससे कोई भी औरत उत्तेजना से पागल हो जाती. उन्होंने काजल की दायीं टाँग ऊपर उठाई और उसका तलवा चाटने लगे.
काजल – आआईयईईईईईईईईई……गुरुजी प्लीज़……….
काजल उत्तेजना से सिसकी , जो की स्वाभाविक ही था. गुरुजी के तलवा चाटने से वो फर्श पे अपने नितंबों को इधर उधर हिलाने लगी , उसकी टाँग गुरुजी ने ऊपर उठा रखी थी और वो दृश्य देखने में बहुत अश्लील लग रहा था. मैंने अपनी नजरें झुका लीं. गुरुजी ने ऐसा ही दूसरे पैर के साथ भी किया और काजल की पैंटी ज़रूर गीली हो गयी होगी. उसने अपनी आँखें बंद ही रखी थीं और उसके चेहरे पर शरम और कामोत्तेजना के मिले जुले भाव आ रहे थे.
मैंने देखा की गुरुजी ने बड़ी चालाकी से काम किया और काजल को राहत दिए बिना उसे खड़ा कर दिया. काजल मुझसे नजरें नहीं मिला पाई और नीचे फर्श को देखने लगी. गुरुजी अब उसके पीछे खड़े हो गये. उनका खड़ा लंड काजल के उभरे हुए नितंबों में चुभ रहा था. गुरुजी ने अपनी बाँहें उसके पेट में लपेट दीं. अब वो गुरुजी की बाँहों के घेरे में थी. गुरुजी ने उसके कान में कुछ कहा जो मुझे सुनाई नहीं दिया. काजल आँखें बंद किए चुपचाप खड़ी रही और उसके होंठ कुछ बुदबुदा रहे थे , शायद गुरुजी ने कोई मंत्र जपने को बोला था. अब पहली बार गुरुजी की अँगुलियाँ काजल के बदन के सबसे सेंसिटिव भाग में पहुँच गयीं. गुरुजी धीरे से काजल की पैंटी के ऊपर अँगुलियाँ फिरा रहे थे. काजल पीछे को गुरुजी के बदन पर झुक गयी और वो दृश्य देखकर मेरे निप्पल कड़क होकर ब्रा के कपड़े को छेदने लगे. असहज महसूस करके मुझे अपने ब्लाउज और ब्रा को एडजस्ट करना पड़ा.
तब तक गुरुजी ने काजल की ब्रा का हुक खोल दिया जिससे काजल असहज हो गयी और उसने हल्का सा विरोध किया.
काजल – गुरुजी , प्लीज़……मैं बहुत असहज महसूस………..
गुरुजी – काजल बेटी, तुम अपने को शारीरिक रूप से लिंगा महाराज को समर्पित करने के लिए अपने मन को दृढ़ बनाओ. मुझसे क्या शरमाना ? अगर रश्मि आंटी के यहाँ होने से तुम असहज महसूस कर रही हो तो बोलो ?
गुरुजी की बाँहों में काजल थोड़ा हिली और उसकी ब्रा का हुक खुला होने से चूचियाँ उछल गयीं.
काजल – नहीं नहीं , रश्मि आंटी से मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही लेकिन……
काजल बोलते हुए अभी भी गुरुजी के बदन में झुकी हुई थी और जवाब देते हुए गुरुजी भी उसके नंगे पेट के निचले भाग में अँगुलियाँ फिरा रहे थे. मैं सोच रही थी, ये तो हद हो रही है.
गुरुजी – काजल बेटी, मैं कोई पहली बार ‘दोष निवारण’ नहीं कर रहा हूँ. तुम्हारी उमर ही कितनी है ? 18 ? मेरे सामने तुम्हारी माँ की उमर की औरतों को ‘दोष निवारण’ के लिए अपने अंतर्वस्त्र उतारने पड़ते हैं. यही नियम है बेटी. और अगर वो औरतें नहीं शरमाती हैं तो तुम क्यूँ असहज महसूस कर रही हो ?
काजल – लेकिन….
काजल अभी भी कोई तर्क करना चाह रही थी , तभी अचानक गुरुजी ने उसकी पैंटी के अंदर हाथ डाल दिया और उसकी चूत को सहलाने लगे.
काजल – आउच….आआअहह.
अब माहौल बहुत गर्म हो गया था. काजल की ब्रा खुली हुई थी और उसकी पैंटी में एक मर्द का हाथ घुसा हुआ था , वो हाँफने लगी और उसकी टाँगें जवाब देने लगीं. गुरुजी बहुत चतुराई से एक एक कदम आगे बढ़ा रहे थे.
गुरुजी – काजल बेटी, अगर तुम्हें बहुत शरम आ रही है तो एक काम करो. अपनी आँखें बंद कर लो और अपनी योनि के ऊपर हथेलियां रख लो.
मैं हैरान हो गयी की गुरुजी काजल की पैंटी में हाथ डालकर उसे सलाह दे रहे हैं. काजल अभी भी आश्वस्त नहीं हुई थी , जो की उसकी उमर की लड़की के लिहाज से स्वाभाविक था.
काजल – नहीं गुरुजी, मैं नहीं कर सकती…..
ऐसा कहते हुए उसने वो किया जिसकी अपेक्षा नहीं थी. वो गुरुजी की तरफ मुड़ी और शरम से उनकी चौड़ी छाती में मुँह छुपा लिया. गुरुजी को उसकी पैंटी से हाथ बाहर निकालना पड़ा और कुछ पल के लिए तो उन्हें भी समझ नहीं आया की कैसे रियेक्ट करें. लेकिन जल्दी हो वो संभल गये.
गुरुजी – काजल बेटी , शरमाओ मत. देखो तुम्हारी आंटी तुम्हें देखकर मुस्कुरा रही है.
मैं बिल्कुल भी नहीं मुस्कुरा रही थी. लेकिन जब गुरुजी और काजल , दोनों ने मुड़कर मुझे देखा तो मुझे मुस्कुराना पड़ा.
“हाँ काजल…”
मैं और कुछ नहीं बोल पाई. और कहती भी क्या ? “हाँ , हाँ , अपने अंतर्वस्त्र खोल दो और नंगी हो जाओ” , खुद एक औरत होते हुए मैं उस लड़की से ऐसा कैसे कह सकती थी ?
गुरुजी ने मेरी बात पूरी कर दी.
गुरुजी – अब तो तुम्हारी आंटी ने भी कह दिया है. अब तुम्हें शरमाना नहीं चाहिए.
ऐसा कहते हुए वो काजल से अलग हो गये. काजल सर झुकाए खड़ी थी उसकी ब्रा के हुक कांखों के नीचे लटक रहे थे और शरम से उसने अपनी छाती पे बाँहें आड़ी करके रखी हुई थीं.
गुरुजी – काजल बेटी, समय बर्बाद मत करो. अपने अंतर्वस्त्र उतारो.
काजल चुपचाप खड़ी रही. गुरुजी ने सख़्त आवाज़ में आदेश दोहराया.
गुरुजी – मैंने कहा…..बिल्कुल नंगी !!
गुरुजी – मैंने कहा…..बिल्कुल नंगी !!
काजल ने धीरे धीरे अपनी छाती से ब्रा हटानी शुरू की और जब उसने ब्रा फर्श में गिरा दी तो उसकी चूचियाँ अनार के दानों जैसी लग रही थीं. उसकी गोरी चूचियाँ कसी हुई थीं और उनमें गुलाबी रंग के निप्पल तने हुए खड़े थे. मैंने ख्याल किया उनकी खूबसूरती देखकर गुरुजी रोमांचित लग रहे थे , 18 बरस की कमसिन लड़की की कसी हुई अनछुई चूचियों को देखकर कौन नहीं होगा.
फिर काजल थोड़ा सा झुकी और अपनी पैंटी उतारने लगी. किसी मर्द के लिए वो दृश्य बहुत ही लुभावना था , क्यूंकी जब भी हम औरतें ऐसे झुकती हैं तो हमारी चूचियाँ हवा में लटककर पेंडुलम की तरह इधर उधर डोलती हैं. मैं तो किसी औरत के सामने कपड़े बदलते समय भी ऐसे झुकने से बचने की कोशिश करती हूँ क्यूंकी मेरी बड़ी चूचियों के ऐसे लटकने से मुझे बड़ा अजीब लगता है. काजल उस पोज़ में बहुत सेक्सी लग रही थी और मैंने देखा गुरुजी के लंड ने कच्छे में तंबू सा बना दिया है. अपने अंतर्वस्त्र उतारकर अब काजल पूरी नंगी हो गयी.
गुरुजी – जय लिंगा महाराज.
गुरुजी ने काजल को अपने आलिंगन में ले लिया. उनके छूने से काजल के नंगे बदन में कंपन हो रहा था जो की मुझे साफ दिख रहा था. फिर गुरुजी नीचे झुके और काजल के गोरे पेट में मुँह रगड़ने लगे. काजल हल्के से सिसकारियाँ लेने लगी. गुरुजी अब कामोत्तेजित हो उठे थे और काजल के चिकने सपाट पेट को हर जगह चाटने लगे. उनके हाथ काजल के नग्न नितंबों को सहला और दबा रहे थे. काजल भी अब धीरे धीरे गुरुजी की कामेच्छाओं की प्रतिक्रिया देने लगी. उसने गुरुजी के सर के ऊपर अपने हाथ रख दिए , शायद सहारे के लिए.
अपने सामने ये नग्न कामदृश्य देखकर मेरी आँखें बाहर निकल आयीं. गुरुजी के लंबे चौड़े बदन में सिर्फ़ एक छोटा सा कच्छा था जिसे उनका खड़ा लंड ताने हुए था और कमसिन कली काजल के बदन में कपड़े का एक धागा भी नहीं था. अब गुरुजी ने काजल की नाभि में जीभ डालकर गोल घुमाना शुरू किया , काजल उत्तेजना से कसमसाने लगी. मेरे लिए तो ये ना भूलने वाला अनुभव था. मैंने कभी अपनी आँखों के सामने ऐसी कामलीला नहीं देखी थी. फिर गुरुजी खड़े हो गये और उन्होंने अपना ध्यान काजल की चूचियों पर लगाया. उसकी चूचियाँ उनकी आँखों के सामने और होठों के बिल्कुल पास थीं. कुछ पल तक गुरुजी खुले मुँह से उसकी कसी हुई नुकीली चूचियों को देखते रहे. फिर उन्होंने अपना मुँह एक चूची पर लगा दिया और निप्पल को चूसने लगे और दूसरे हाथ से दूसरी चूची को दबाने लगे.
काजल – आआअहह….ऊऊऊओह…उम्म्म्मममम…..गुरुजिइइईईईईईईईईईईई…………..
गुरुजी के चूची को चूसने और दबाने से काजल बहुत कामोत्तेजित हो गयी और जोर जोर से सिसकारियाँ लेने लगी. गुरुजी ने काजल की हिलती हुई रसीली चूचियों का अपने मुँह, होठों, जीभ और हाथों से भरपूर आनंद लिया. ऐसा कुछ देर तक चलता रहा और अब काजल हाँफने लगी थी. गुरुजी ने काजल को सांस लेने का मौका नहीं दिया और दाएं हाथ से उसके गोल मुलायम नितंबों को मसलने लगे. गुरुजी के मसलने से काजल के गोरे नितंब लाल हो गये. उसके बाद उन्होंने फिर से काजल को आलिंगन में ले लिया , शायद कामोत्तेजना से उनकी खुद की साँसें उखड़ गयी थीं. उन्होंने काजल को कस कर आलिंगन किया हुआ था और उसकी चूचियाँ उनकी छाती से दब गयीं. काजल ने भी गुरुजी की पीठ में आलिंगन किया हुआ था और गुरुजी के हाथ उसकी पीठ और नितंबों को सहला रहे थे.
गुरुजी ने काजल के नितंबों को पकड़कर अपनी तरफ खींचा और उसकी चूत को अपने कच्छे में खड़े लंड से सटा दिया. कुछ पल बाद गुरुजी ने काजल को धीरे से फर्श में सफेद साड़ी के ऊपर लिटा दिया और खुद भी उसके ऊपर लेट गये. अब गुरुजी काजल के होठों को चूमने लगे और उसके चेहरे और गर्दन को चाटने लगे , साथ ही साथ उसकी चूचियों को हाथों से पकड़कर मसल दे रहे थे. अब मुझे बेचैनी होने लगी थी क्यूंकी गुरुजी इन सबमें बहुत समय लगा रहे थे और मेरी हालत खराब होने लगी थी. मेरा मन कर रहा था की टाँगें फैलाकर अपनी चूत खुजलाऊँ. गुरुजी को काजल की चूचियों से खेलते देखकर मेरा मन भी ब्लाउज खोलकर अपनी चूचियों को आज़ाद कर देने का हो रहा था.
काजल – आअहह……ओइईई……माआआअ…
शायद गुरुजी ने काजल की चूचियों पर दाँत काट दिया था. मैं सोचने लगी अगर किसी मर्द के नीचे इतनी सुंदर लड़की नंगी लेटी हो तो ऐसा मौका भला कौन छोड़ेगा. गुरुजी अब नीचे की ओर खिसकने लगे. मैंने देखा काजल की चूचियाँ गुरुजी की लार से गीली होकर चमक रही थीं और उसके निप्पल एकदम कड़क होकर तने हुए थे. वैसे निप्पल तो मेरे भी इतने ही कड़क हो गये थे. अब गुरुजी ने काजल की चूत में मुँह लगा दिया और जीभ से चूत की दरार को कुरेदने लगे.
काजल – उफफफफफ्फ़….नहियीईईईईईईईईई प्लेआसईईईईईईईई……………
पहली बार अनछुई चूत में जीभ लगते ही काजल कसमसाने लगी. गुरुजी ने दोनों हाथों से उसे कस कर पकड़ा और उसकी चूत को और वहाँ पर के छोटे छोटे बालों को चाटने लगे. उन्होंने चाट चाटकर उसकी चूत के आस पास सब जगह गीला कर दिया और फिर उसकी चूत की दरार के अंदर जीभ घुसा दी. काजल से बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था और वो साड़ी के ऊपर लेटे हुए अपना सर और बदन इधर उधर हिलाने लगी. काजल अब बहुत जोर जोर से सिसकारियाँ ले रही थी. और गुरुजी के मुँह में अपनी गांड को ऊपर उछाल रही थी. अब गुरुजी उसकी दूधिया जांघों को चाटने लगे. मैंने देखा काजल का चूतरस उसकी जांघों के अंदरूनी भाग में लगा हुआ था.
अब गुरुजी ने अपना कच्छा उतार कर फर्श में फेंक दिया जो मेरे पास आकर गिरा. उस नारंगी रंग के कच्छे में मुझे गीले धब्बे दिखे जो की गुरुजी के प्री-कम के थे. उनके तने हुए लंड की मोटाई देखकर मेरी सांस रुक गयी.
हे भगवान ! कितना मोटा है ! ये तो लंड नहीं मूसल है मूसल ! मैंने मन ही मन कहा. काजल अगर देख लेती तो बेहोश हो जाती. मैं सोचने लगी की गुरुजी की कोई पत्नी नहीं है वरना हर रात को इस मस्त लंड से मज़े लेती. मैं गुरुजी के लंड से नज़रें नहीं हटा पा रही थी , इतना बड़ा और मोटा था , कम से कम 8 – 9 इंच लंबा होगा. आश्रम आने से पहले मैंने सिर्फ अपने पति का तना हुआ लंड देखा था और यहाँ आने के बाद दो तीन लंड देखे और महसूस किए थे लेकिन उन सबमें गुरुजी का ही सबसे बढ़िया था. काजल आँखें बंद किए हुए लेटी थी इसलिए उसने गुरुजी का लंड नहीं देखा. एक कुँवारी लड़की नहीं जान सकती की मुझ जैसी शादीशुदा औरत जो की कई बार लंड ले चुकी है , के लिए इस मूसल जैसे लंड के क्या मायने हैं. गुरुजी के लंड को देखकर मैं स्वतः ही अपने सूख चुके होठों में जीभ फिराने लगी , लेकिन जब मुझे ध्यान आया तो अपनी बेशर्मी पर मुझे बहुत शरम आई. मुझे डर था की काजल की कुँवारी चूत को तो गुरुजी का लंड फाड़ ही डालेगा.
अब गुरुजी ने काजल की टाँगें फैला दीं और उनके बीच में आकर अपने कंधों पर उसकी टाँगें ऊपर उठा ली. उनकी इस हरकत से काजल को अपनी आँखें खोलनी पड़ी. उसने गुरुजी को देखा और शरम से तुरंत नज़रें झुका ली. गुरुजी ने एक बार उसके निपल्स को दबाया और मरोड़ा. उसके बाद उन्होंने अपने तने हुए लंड को काजल की चूत के होठों के बीच छेद पर लगाया और एक धक्का दिया.
काजल – ओह……..आआआआअहह…ओओओईईईईईईईईईईईईईईईईइ…..माआआआआ……….
काजल मुँह खोलकर जोर से चीखी और कामोत्तेजना में उसने गुरुजी के सर के बाल पकड़ लिए. काजल की कुँवारी चूत बहुत टाइट थी और गुरुजी का मूसल अंदर नहीं घुस पाया. अब गुरुजी ने एक हाथ से उसकी चूत के होठों को फैलाया और दूसरे हाथ से अपना लंड पकड़कर अंदर को धक्का दिया. इस बार काजल और भी जोर से चीखी. गुरुजी ने एक बार बंद दरवाज़े की ओर देखा और फिर काजल के होठों के ऊपर अपने होंठ रखकर उसका मुँह बंद कर दिया. मैं समझ रही थी की इस कुँवारी कमसिन लड़की के लिए ये दर्दभरा अनुभव है , ख़ासकर इसलिए क्यूंकी उसकी टाइट चूत के छेद में गुरुजी का मूसल घुसने की कोशिश कर रहा था. बल्कि मुझे तो लग रहा था की अनुभवी औरतों को भी गुरुजी के मूसल को अपनी चूत में लेने में कठिनाई होगी. गुरुजी इस बात का ध्यान रख रहे थे की काजल को ज़्यादा दर्द ना हो और धीरे धीरे धक्के लगा रहे थे. वो बार बार काजल का चुंबन ले रहे थे और उसे और ज़्यादा कामोत्तेजित करने के लिए उसके निपल्स को भी मरोड़ रहे थे.
काजल – आआहह…..ओइईईईईई….माआआ….उफफफफफफफ्फ़…..
काजल गुरुजी के भारी बदन के नीचे दबी हुई दर्द और कामोत्तेजना से कसमसा रही थी. यज्ञ की अग्नि में उनके एक दूसरे से चिपके हुए नंगे बदन अलौकिक लग रहे थे. उस दृश्य को देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गयी थी. वो दोनों पसीने से लथपथ हो गये थे. अब गुरुजी ने तेज धक्के लगाने शुरू किए और काजल जोर से सिसकारियाँ लेती रही और दर्द होने पर चिल्ला भी रही थी. मैंने काजल के नीचे सफेद साड़ी में खून की कुछ बूंदे देखी जो की इस बात का सबूत थी की अब काजल कुँवारी नहीं रही. अब गुरुजी उसके चिल्लाने पर ध्यान ना देकर अपने मोटे लंड को ज़्यादा से ज़्यादा उसकी चूत के अंदर घुसाने में लगे थे. मैं महसूस कर सकती थी की इतने मोटे लंड को अपनी टाइट चूत में घुसने से काजल को बहुत दर्द हो रहा होगा. कुछ देर बाद काजल की चीखें कम हो गयीं और सिसकारियाँ बढ़ गयीं , लग रहा था की अब वो भी चुदाई का मज़ा लेने लगी है. सफेद साड़ी में खून के लाल धब्बे लग गये थे और गुरुजी काजल की चूत में धक्के लगाए जा रहे थे. पहली बार मैं अपनी आँखों के सामने चुदाई होते देख रही थी और मंत्रमुग्ध हो गयी थी. अब गुरुजी ने अपने होंठ काजल के होठों से हटा लिए थे क्यूंकी वो भी चुदाई का मज़ा ले रही थी और उसको दर्द भी कम हो गया था. काजल की चूत में धक्के लगाते हुए गुरुजी ने अपनी हथेलियों में काजल की चूचियों को पकड़ रखा था और उन्हें जोर से मसल रहे थे.
अब पहली बार गुरुजी हाँफने लगे थे और मुझे अंदाज़ा लगा की वो काजल की चूत में वीर्य गिरा रहे हैं. काजल कामोत्तेजना से सिसक रही थी. मुझे अपने पति के साथ पहली रात याद आई और उस रात को मुझे भी ऐसा ही दर्द, आँसू , कामोत्तेजना और कामानंद का अनुभव हुआ था जैसा अभी काजल को हो रहा था. लेकिन सच कहूँ तो मेरे पति का लंड 6 इंच था और गुरुजी के मूसल से उसकी कोई तुलना नहीं थी. थकान से धीरे धीरे उन दोनों के पसीने से भीगे हुए बदन शिथिल पड़ गये. गुरुजी काजल के नंगे बदन के ऊपर लेटे हुए थे और उन दोनों की आँखें बंद थीं और रुक रुक कर साँसें चल रही थीं.
बार बार मेरा ध्यान गुरुजी के लंड पर चला जा रहा था. काजल की चूत के छेद में जब वो घुसने वाला था तो कितना कड़ा, बड़ा और मोटा लग रहा था जैसे कोई रॉड हो और उसका लाल रंग का सुपाड़ा इतना बड़ा था की मेरी नज़र उस पर से हट ही नहीं रही थी. मैं इतनी गरम हो गयी थी की मेरी पैंटी चूतरस से भीग गयी थी और मेरी चूचियाँ ब्लाउज के अंदर तन गयी थीं.
मैंने देखा की काजल और गुरुजी की आँखें अभी बंद हैं , वैसे काजल अभी भी हल्के हल्के सिसक रही थी, मैंने जल्दी से साड़ी के ऊपर से अपनी चूत खुजा दी , वैसे तो मेरा मन चूत में अंगुली करने का हो रहा था. उसके बाद मैंने अपनी साड़ी के पल्लू के अंदर हाथ डालकर ब्लाउज और ब्रा को थोड़ा एडजस्ट कर लिया. मेरी भी इच्छा होने लगी की काश गुरुजी का मूसल मेरी चूत में भी जाए. मैं शादीशुदा थी और मुझे ऐसी लालसाओं से दूर रहना चाहिए था. मैंने मन ही मन अपने को फटकार लगाई की ऐसे गंदे विचार मेरे मन में क्यूँ आए. मैं सिर्फ़ अपने शारीरिक सुख के बारे में सोच रही थी जबकि आश्रम आने का मेरा उद्देश्य गर्भधारण ना कर पाने का उपचार करवाना था. मैं अपने पति राजेश से ऐसी बेईमानी कैसे कर सकती हूँ जबकि वो मुझे बहुत प्यार करते हैं. आश्रम में अब तक जो भी मेरे साथ हुआ था वो मेरे उपचार का हिस्सा था. हाँ ये बात सच है की उस दौरान मैंने बहुत बेशर्मों की तरह व्यवहार किया था और कुछ मर्दों ने मेरे बदन से छेड़छाड़ की थी. लेकिन वो सब कुछ गुरुजी के निर्देशानुसार हुआ था. एक ग़लती ज़रूर मेरी थी , विकास की पर्सनालिटी और फिज़ीक से मैं बहक गयी थी और गुरुजी के निर्देशों से भटक गयी थी. मैंने अपने मन में ये सब सोचा और अपनी कामेच्छा को काबू में करने की कोशिश की.
अब गुरुजी काजल के बदन के ऊपर से उठ गये. मैंने देखा मुरझाई हुई अवस्था में भी उनका लंड केले के जैसे लटक रहा है. मैं उसी को गौर से देख रही थी तभी गुरुजी से मेरी नज़रें मिली और शरम से मैंने तुरंत अपनी आँखें नीचे कर ली. क्या गुरुजी ने मुझे अपने मूसल को घूरते हुए पकड़ लिया था ? अब गुरुजी ने अपनी नंगी गांड मेरी तरफ करके लिंगा महाराज और यज्ञ की अग्नि को प्रणाम किया. काजल भी उठने की कोशिश कर रही थी. मुझे लगा उसे मेरी मदद की ज़रूरत है. वो सफेद साड़ी में नंगी लेटी हुई थी. गुरुजी का वीर्य उसकी चूत से बाहर निकालकर जांघों में बह रहा था. मैं एक सफेद कपड़ा लेकर उसके पास गयी.
गुरुजी – काजल बेटी अब तुम शुद्ध हो. तुम्हारा ‘दोष निवारण’ हो चुका है. अब तुम्हें रहस्य पता चल चुका है इसलिए मेरे ख्याल से अब तुम्हारा ध्यान नहीं भटकेगा.
काजल कोई जवाब देने की स्थिति में नहीं थी क्यूंकी उसे इस सच्चाई से पार पाने में समय लगना था की थोड़ी देर पहले वो गुरुजी के हाथों अपना कौमार्य खो चुकी है. मैंने उसकी चूचियाँ, होंठ और पेट पोंछ दिए. गुरुजी ने मुझे गरम पानी का एक कटोरा दिया और मैंने उससे काजल की चूत साफ कर दी , जो की उसके चूतरस, खून और गुरुजी के वीर्य से सनी हुई थी. उसके बाद मैंने उसकी जाँघें और चेहरा भी पोंछ दिया. काजल को साफ करते हुए मुझे उन दोनों के पसीने और कामरस की मिली जुली गंध आ रही थी. अब काजल कुछ ताज़गी महसूस कर रही थी.
गुरुजी – रश्मि, इसकी योनि में ट्यूब लगा दो इससे दर्द चला जाएगा और फिर ये गोली खिला देना.
ऐसा कहते हुए गुरुजी ने मुझे एक ट्यूब और एक गोली दे दी. मैंने उसकी चूत में ट्यूब से निकालकर जेल लगा दिया. गुरुजी की दवाई से कुछ ही मिनट्स में काजल का दर्द चला गया. मैंने उसे खड़े होने में मदद की. गुरुजी कपड़े पहन रहे थे और मैंने जल्दी से उनके मूसल की आख़िरी झलक देख ली. काजल को अब अपनी नग्नता से कोई मतलब नहीं था. हमारे सामने पूरी नंगी होकर भी उसे कोई फरक नहीं पड़ रहा था. लेकिन मुझे बड़ा अजीब लग रहा था क्यूंकी गुरुजी और मैं कपड़ों में थे. मैंने उसकी ब्रा और पैंटी उठाई और उसे पहनाने की कोशिश की ताकि उसके गुप्तांग ढक जाएँ.
काजल – आंटी, प्लीज़ ….
उसने अपने अंतर्वस्त्र पहनने से मना कर दिया , क्यूंकी पहली बार संभोग करने से उसके गुप्तांगों में जलन हो रही होगी.
“लेकिन काजल, इसे तो पहन लो. अभी सब लोग यहाँ आ जाएँगे.”
ऐसा कहते हुए मैंने उसकी ब्रा की तरफ इशारा किया लेकिन उसने सर हिलाकर मना कर दिया. मैं समझ रही थी की वो थककर चूर हो चुकी है.
काजल – आंटी, मेरा पूरा बदन दर्द कर रहा है …उफफफफ्फ़….
मैंने सलवार कमीज़ पहनने में उसकी मदद की. गुरुजी ने फर्श से सफेद साड़ी उठाकर वहाँ पर साफ कर दिया और अब कोई नहीं बता सकता था की कुछ देर पहले यहाँ क्या हुआ था.
यज्ञ की समाप्ति पर घर के सभी लोगों ने प्रसाद गृहण किया. गुप्ताजी शराब पिया हुआ था लेकिन होश में था. शुक्र था की उसने मुझसे कोई बदतमीज़ी नहीं की. नंदिनी बहुत खुश लग रही थी और हो भी क्यू ना. मैं अंदाज़ा लगा सकती थी की जब यहाँ काजल की चुदाई हो रही थी तो नीचे किसी कमरे में नंदिनी और समीर क्या कर रहे होंगे.
रात में मुझे ठीक से नींद नहीं आई. अपनी आँखों के सामने जो जबरदस्त चुदाई मैंने देखी उसी के सपने आते रहे. गुरुजी का तना हुआ मूसल भी मुझे दिखा और मैं सपने में उसे ‘लंड महाराज’ कह रही थी. मैं सुबह जल्दी उठ गयी क्यूंकी गुरुजी ने कहा था की सवेरे आश्रम वापस चले जाएँगे. हाथ मुँह धोकर फ्रेश होने के बाद मेरा दरवाज़ा समीर ने खटखटाया. मैंने थोड़ा सा दरवाजा खोला क्यूंकी अभी मैं सिर्फ नाइटी में थी और उसके अंदर अंतर्वस्त्र नहीं पहने थे.
समीर – मैडम, हम तैयार हैं. आप नीचे डाइनिंग हॉल में आ जाओ.
वो चला गया और मैं कपड़े पहनकर नीचे डाइनिंग हॉल में चली गयी. वहाँ गुप्ताजी, नंदिनी, काजल , गुरुजी और समीर सभी लोग मौजूद थे.
नंदिनी – गुड मॉर्निंग रश्मि. उम्मीद करती हूँ की तुम्हें अच्छी नींद आई होगी.
मैंने हाँ में सर हिला दिया और चाय का कप ले लिया.
गुरुजी – नंदिनी, तुम कह रही थी की पूजा घर में हनुमान जी की मूर्ति लगानी है. समीर तुम्हें बता देगा की कहाँ पर लगानी है और किधर को मुँह करना है.
समीर – जी गुरुजी.
नंदिनी – ठीक है गुरुजी. हम इस काम को कर लेते हैं.
गुरुजी – हाँ, जाओ.
मैंने देखा नंदिनी खुशी खुशी समीर के साथ डाइनिंग हॉल से बाहर चली गयी. वैसे भी उसके लिए समीर के साथ थोड़ा समय बिताने का ये आख़िरी मौका था क्यूंकी कुछ देर बाद तो वो वापस आश्रम जाने वाला था. अपनी टाइट पहनी हुई साड़ी में चौड़े नितंबों को मटकाती हुई नंदिनी को जाते हुए हम सभी देख रहे थे सिवाय काजल के. काजल का ध्यान कहीं और था , जाहिर था की वो अपने कौमार्यभंग होने की घटना से अभी उबर नहीं पाई थी और उसने ये बात जरूर अपने पेरेंट्स से छुपाई होगी.
गुरुजी – रश्मि, तुमने इनका छोटा सा मंदिर नहीं देखा होगा ना ?
मैंने ना में सर हिला दिया.
गुरुजी – ये छोटा सा बड़ा अच्छा मंदिर है. एक बार तो देखना ही चाहिए. कुमार तुम रश्मि को मंदिर क्यूँ नहीं दिखा लाते ? तब तक नंदिनी भी वापस आ जाएगी.
कुमार – जरूर गुरुजी. मुझे बड़ी खुशी होगी. आओ रश्मि.
मैंने देखा अचानक गुप्ताजी के चेहरे में मुस्कुराहट आ गयी. सच कहूँ तो उस समय मुझे उसके गंदे इरादों का ख्याल नहीं आया था. वो अपनी बैसाखी के सहारे धीरे धीरे चलने लगा और मैं उसके पीछे थी. हम उनके घर के पिछवाड़े में चले गये. अब गुरुजी ने सबको इधर उधर भेज दिया था और काजल उनके साथ अकेली थी . मैं सोच रही थी की ना जाने गुरुजी उससे क्या कह रहे होंगे. लेकिन जल्दी ही मुझे समझ आ गया की काजल और गुरुजी के बारे में सोचने की बजाय , ये सोचना है की अपने को कैसे बचाऊँ ? मंदिर बहुत अच्छा बनाया हुआ था और अंदर जाने के लिए 2-3 सीढ़ियां थी. सीढ़ियां चढ़ते हुए मैं मन ही मन मंदिर की तारीफ कर रही थी तभी मेरी पीठ में हाथ महसूस हुआ. मैंने भौंहे चढ़ाकर गुप्ताजी की ओर देखा.
कुमार – रश्मि , सीढ़ियां चढ़ने के लिए सहारा ले रहा हूँ.
मुझे इस विकलांग आदमी को सहारा देना पड़ा पर उसने तुरंत इसका फायदा उठाना शुरू कर दिया. वो मेरे ब्लाउज के कट में गर्दन के नीचे अँगुलियाँ फिराने लगा. मैंने उसके छूने पर ध्यान ना देकर मंदिर की तरफ ध्यान देने की कोशिश की. जैसे ही हम सीढ़ियां चढ़कर मंदिर के फर्श में पहुँचे तो उसका हाथ मेरी पीठ में खिसकते हुए दाएं ब्रा स्ट्रैप पर आ गया. मैंने उसकी तरफ मुड़कर आँखें चढ़ायीं. उसने अपना हाथ फिराना बंद कर दिया लेकिन ब्रा स्ट्रैप के ऊपर हाथ स्थिर रखा.
कुमार – रश्मि, मंदिर की छत का डिज़ाइन देखो.
“बहुत सुंदर है.”
गुंबद के आकर की छत में अंदर से बहुत अच्छी पेंटिंग बनी हुई थी. मैं सर ऊपर उठाकर उस सुंदर पेंटिंग को देख रही थी और गुप्ताजी का हाथ खिसककर मेरी नंगी कमर में आ गया. मुझे इतना असहज महसूस हो रहा था की अब मुझे टोकना ही पड़ा.
“क्या है ये ? बंद करो अपनी हरकतें और …….”
मैं अपनी बात पूरी कर पाती इससे पहले ही उसने मुझे अपने आलिंगन में भींच लिया. ये इतनी जल्दी हुआ की मैं अपनी चूचियाँ भी नहीं बचा पाई और वो गुप्ताजी की छाती से दब गयीं.
कुमार – रश्मि, मेरी सेक्सी डार्लिंग.
“आउच….”
कुमार – रश्मि, मैं कल सारी रात सो नहीं पाया, तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा.
“आआआआह ……तमीज से रहो. क्या कर रहे हो ?”
मैं गुप्ताजी की बाँहों में संघर्ष कर रही थी और अपने कंधों और कमर से उसके हाथों को हटाने की कोशिश कर रही थी. उसका चेहरा मेरे इतने नजदीक़ था की उसका चश्मा मेरी नाक को छू रहा था और उसकी दाढ़ी मुझे गुदगुदी कर रही थी. लेकिन उसकी पकड़ मजबूत होते गयी और मेरे विरोध का कोई असर नहीं हुआ. मेरी बड़ी चूचियों को अपनी छाती में महसूस करने के लिए वो मुझे और भी अपनी तरफ दबा रहा था. फिर वो मेरे गालों, होठों और नाक को चूमने की कोशिश करने लगा. अचानक मेरे पेट में कोई चीज चुभने लगी.
“आआह….इसे हटाओ. मुझे चुभ रहा है.”
गुप्ताजी की बैशाखी मेरे पेट में चुभ रही थी , उसने बिना मुझे अलग किए बैशाखी को थोड़ा खिसका दिया. क्यूंकी घर के पिछवाड़े में कोई नहीं था इसलिए गुप्ताजी ने मौके का फायदा उठना शुरू कर दिया था. अब गुप्ताजी ने मेरे विरोध करते हाथों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए मुझे साइड से आलिंगन कर लिया. उसका दायां हाथ मेरी दायीं बाँह को पकड़े हुए था और उसका बायां हाथ मेरी बायीं बाँह को मेरे ब्लाउज में दबाए हुए था. अपनी दोनों टाँगों के बीच उसने मेरी बायीं जाँघ दबाई हुई थी. एक दो मिनट तक संघर्ष करने के बाद मुझे समझ आ गया की कोई फायदा नहीं , इस ठरकी बुड्ढे से छुटकारा पाने के लिए मेरे पास उतनी ताक़त नहीं थी.
कुमार – शशश...... …..रश्मि, तुम कितनी सेक्सी हो …आआहह…
वो कपटी बुड्ढा मेरी बायीं चूची को अपनी हथेली में दबाते हुए ऐसा कह रहा था. उसने मेरे दाएं हाथ को छोड़कर मेरी चूची पकड़ ली थी और मेरे गाल को चूमते हुए चूची को दबाए जा रहा था. वो मेरे होठों को चूमना चाह रहा था पर मैंने मुँह घुमा लिया.
“उम्म्म्म….आआहह……”
गुप्ताजी ने जोर से मेरी बायीं चूची मसल दी. उसकी अँगुलियाँ ब्लाउज के बाहर से मेरी चूची के हर हिस्से को दबा रही थीं. उसका अंगूठा मेरे निप्पल को दबा रहा था. उत्तेजना से कुछ पल के लिए मेरी आँखें बंद हो गयीं और मेरी सिसकी निकल गयी. वो अनुभवी आदमी था और एकदम से मेरी हालत समझ गया. अब वो कमीना बार बार मेरे निप्पल को ब्लाउज के बाहर से मसलने लगा.
“ऊऊओ…….प्लीज रुक जाओ. प्लेआस्ईईईई….”
अब वो रुकनेवाला नहीं था. उसने मेरे ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर चूची को मसल दिया. मैं भी गरम हो गयी और काजल की चुदाई मेरी आँखों के सामने घूमने लगी. अब गुप्ताजी ने अपनी बैशाखी फर्श में फेंक दी और मेरे बदन का सहारा लेकर मुझे कमरे की दीवार की तरफ धकेलकर दीवार से सटा दिया. अब मैं दीवार और गुप्ताजी के बीच फँस गयी थी. मैंने अपनी पीठ पर ठंडी दीवार महसूस की. उसने अपनी बैशाखी फेंक दी थी इसलिए सहारे के लिए पूरा वजन मुझ पर ही डाला हुआ था. वो मेरे पूरे बदन में हाथ फिराने लगा.
उसका दुस्साहस बढ़ता गया. मैं ज़्यादा विरोध नहीं कर पायी और धीरे धीरे समर्पण कर दिया. वो दोनों हाथों से मेरे नितंबों को दबा रहा था और मेरे पूरे चेहरे पर अपनी दाढ़ी चुभा रहा था. उसके हाथ मेरे अंगों को सिर्फ सहलाने और दबाने तक ही सीमित नहीं थे. अब उसने मेरी साड़ी भी ऊपर उठाकर मेरी नंगी टाँगों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया. स्वाभाविक रूप से अब तक मैं भी कामोत्तेजित हो चुकी थी और उसकी कामुक हरकतों से मेरी पैंटी गीली हो गयी थी. उस कमीने ने मेरी ऐसी हालत का फायदा उठाया और मेरे होठों को चूमने लगा , अबकी बार मैंने कोई विरोध नहीं किया. मुझे चूमते हुए उसने मेरे नितंबों से अपना दायां हाथ हटाया और मेरी दायीं चूची पकड़ ली. मेरे बदन में जैसे तीन तरफ से आग लग गयी, उसके मोटे होंठ मेरे होठों को गीला कर रहे थे , उसका बायां हाथ साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को मसल रहा था और उसका दायां हाथ मेरी चूची के निप्पल को दबा रहा था.
मेरी आँखें बंद हो गयी थीं और सच कहूँ तो अब मुझे भी मज़ा आ रहा था. तभी किसी के कदमों की आवाज आई.
“गाता रहे मेरा दिल…..”
कोई गाना गाते हुए मंदिर की तरफ आ रहा था. मैंने देखा गुप्ताजी के हाथ जहाँ के तहाँ रुक गये.
कुमार – शशश.....….वो हमारा माली है. लेकिन ये यहाँ क्यूँ आ रहा है ?
मैंने जल्दी से अपना पल्लू उठाया और साड़ी ठीक करने की कोशिश की लेकिन गुप्ताजी ने मेरी साड़ी कमर से करीब करीब निकाल दी थी और पेटीकोट दिखने लगा था. मेरे ब्लाउज के दो हुक भी उसने खोल दिए थे. इतनी जल्दी ये सब ठीक करने का समय नहीं था.
“वो अंदर आएगा क्या ?”
गुप्ताजी ने तुरंत मेरे होठों पर अंगुली रख दी. गाने की आवाज अभी भी आ रही थी लेकिन हमारी तरफ नहीं बढ़ रही थी. इसका मतलब था की माली बाहर कुछ कर रहा था.
कुमार – रश्मि बहुत धीमे बोलो. ये माली नंदिनी का खास है. अगर वो यहाँ आकर हमें ऐसे देख लेगा तो मैं बहुत बुरा फँस जाऊँगा.
वो मेरे कान में फुसफुसाया.
कुमार – रश्मि जल्दी से मेरी बैशाखी उठा लाओ. अगर यहाँ से गुजरते हुए उसने देख ली तो वो जरूर अंदर आ जाएगा.
“लेकिन मैं ऐसे चलूं कैसे ? देखते नहीं आपने मेरी साड़ी खोल दी है ……”
मैंने थोड़ा जोर से बोल दिया और तुरंत गुप्ताजी ने मेरे पेटीकोट के बाहर से मेरे नितंबों पर चिकोटी काट दी और धीरे बोलने का इशारा किया. इस तरह से मुझे धीरे बोलने को कहने पर मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई और मैंने पक्का उसे झापड़ मार दिया होता लेकिन अभी मेरी हालत ऐसी थी की मुझे चुपचाप सहन करना पड़ा.
कुमार – रश्मि , समझने की कोशिश करो. अगर वो मुझे तुम्हारे साथ ऐसे देख लेगा तो……तुम बस मेरी बैशाखी ले आओ. जल्दी से.
मैं अभी भी अपनी साड़ी पकड़े हुए थी और उसे ठीक करने की कोशिश कर रही थी. शायद ये देखकर गुप्ताजी ने एक हाथ से मेरी बाँह पकड़ी और दूसरे हाथ से मेरी साड़ी को मेरे बदन से अलग कर दिया. अब मैं उसके सामने सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी. मेरी पीठ अभी भी दीवार से सटी हुई थी.
“प्यार हुआ….”
माली दूसरा गाना गाने लगा था लेकिन शुक्र था की वो हमारी तरफ नहीं बढ़ रहा था. ऐसा लग रहा था की माली एक जगह पर ही रुक कर कुछ कर रहा है.
कुमार – रश्मि, प्लीज ….मेरी बैशाखी ला दो.
जिस तरह से उसने मेरी साड़ी उतार दी थी उससे मैं थोड़ी हक्की बक्की रह गयी थी लेकिन अभी हालत थोड़ी गंभीर थी इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा. मैंने उसे दीवार के सहारे खड़ा किया और उसकी बैशाखी लाने गयी. चलते हुए मैंने अपने ब्लाउज के खुले हुए दोनों हुक लगा लिए और अपनी आधी खुली हुई चूचियों को ढक लिया. बिना साड़ी के चलना बड़ा अजीब लग रहा था ख़ासकर इसलिए क्यूंकी मैं जानती थी की गुप्ताजी की नजर मुझ पर ही होगी. मैंने बैशाखी उठाई और एक नजर मंदिर के दरवाज़े से बाहर देखा लेकिन वहाँ कोई नहीं था. मैं जल्दी से उसके पास दौड़ गयी और बैशाखी दे दी. मैंने तुरंत अपनी साड़ी लपेटनी शुरू कर दी तभी गाने की आवाज हमारी तरफ बढ़ने लगी.
कुमार – रश्मि , एकदम चुप रहो. वो इसी तरफ आ रहा है.
उसने एक हाथ से बैशाखी पकड़ी हुई थी और दूसरे हाथ से जोर से मुझे अपनी तरफ खींचा. मेरी बड़ी चूचियाँ फिर से उसकी छाती से जा टकराई और मेरा चेहरा उसके चश्मे से. अब मेरा दिल भी जोर जोर से धड़कने लगा क्यूंकी मैं भी ऐसी हालत में किसी के द्वारा पकड़े जाने से डरी हुई थी, मैं सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में थी और मेरी साड़ी फर्श में गिरी हुई थी और उस बुड्ढे ने मुझे अपने से चिपटाया हुआ था.
कुमार – शायद वो दरवाज़े के पास है.
उसने मेरे कान में फुसफुसाया और पकड़े जाने की चिंता से मैंने उसकी छाती में अपना मुँह छुपा लिया. कुछ पल तक शांति रही. फिर गाना शुरू हो गया.
“गाता रहे मेरा दिल….”
इस बार वो आवाज हमारे बहुत करीब थी. अब गुप्ताजी ने मुझे बहुत कसकर पकड़ लिया शायद घबराहट की वजह से. मैंने भी कोई विरोध नहीं किया. लेकिन उसकी हरकतों से मैं कन्फ्यूज हो गयी. वो मेरी दोनों चूचियों को अपनी छाती में दबा रहा था. मुझे अपने पेट के निचले हिस्से में उसका लंड भी महसूस हो रहा था. अपने हाथों से मेरे पतले पेटीकोट के बाहर से वो मेरी गांड भी दबा रहा था. कोई आदमी ऐसे कैसे बिहेव कर सकता है अगर वो पकड़े जाने के डर से घबरा रहा है तो ?
मैं अपने हाथ पीछे ले गयी और अपनी गांड से उसकी हथेलियों को हटाने की कोशिश की. वो मेरे हाथ से बचते हुए मेरे नितंबों में अपनी हथेलियां घूमने लगा. मेरे हाथ पीछे होने से मेरा बदन गुप्ताजी की तरफ झुक गया और मेरी चूचियाँ उसकी छाती से और भी ज़्यादा दबने लगी. मुझे समझ आ गया की उसके हाथों को मैं हटा नहीं सकती क्यूंकी एक जगह से हटाने पर वो दूसरी जगह मेरे नितंबों को पकड़ लेता था.
“ठीक से रहो ना …”
मैंने ऐसा कहते ही अपनी जीभ बाहर निकाल ली क्यूंकी मुझे एहसास हुआ की मैंने जोर से बोलकर ग़लती कर दी है.
कुमार – रश्मि डार्लिंग, वो चला गया है.
अरे हाँ. अब तो गाने की आवाज नहीं आ रही थी. माली जरूर चला गया होगा.
“आउच…… अरेरेरेरे……….रुको$$$$$$$$$.....….”
इससे पहले की मैं अपने नितंबों से हाथ आगे ला पाती उस कमीने ने मेरा पेटीकोट कमर तक ऊपर उठा दिया और दोनों हाथों से मेरी नंगी मांसल जाँघें पकड़ लीं. मैंने उसको रोकने की कोशिश की पर तब तक उसने मेरी पूरी टाँगें नंगी कर दी थीं. मुझे मालूम था की अब वो मेरी पैंटी नीचे करने की कोशिश करेगा , इस बार मैंने उसका विरोध करने की ठान ली , चाहे कुछ भी हो जो इसने मेरे साथ बाथरूम में किया था अब नहीं करने दूँगी.
“देखो, अगर तुम नहीं माने तो मैं चिल्लाऊँगी.”
मैंने दृढ़ स्वर में उसे चेतावनी दी. गुप्ताजी एक पल के लिए रुक गया. उसने अभी भी मेरा पेटीकोट मेरी कमर तक उठाया हुआ था जिससे मेरी सफेद पैंटी दिखने लगी थी. लेकिन उसने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया और फिर से मुझे आलिंगन में लेने की कोशिश की. लेकिन इस बार मैंने उसके आगे समर्पण नहीं किया क्यूंकी मुझे मालूम था की अबकी बार ये हरामी बुड्ढा मेरी चूत में लंड घुसाए बगैर मानेगा नहीं. मैंने उसको थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया तभी ……….
“कुमार ….. कुमार ….”
दूर से नंदिनी ने आवाज लगाई. उसकी आवाज सुनते ही गुप्ताजी में आया बदलाव देखने लायक था. उसने मुझे अलग किया, अपने कपड़े ठीक किए और बैशाखी लेकर मंदिर के दरवाज़े की तरफ जाने लगा. अपनी बीवी की आवाज सुनकर वो घबरा गया था और उसकी शकल देखने लायक थी. उसकी हालत देखकर मैं मन ही मन मुस्कुरायी . मेरी खुद की हालत भी देखने लायक नहीं थी इसलिए मैंने जल्दी से साड़ी पहनी और ब्लाउज ठीक करके मंदिर से बाहर आ गयी.
उसके बाद कोई खास घटना नहीं हुई और करीब एक घंटे बाद हम कार से आश्रम चले गये. कार में बातचीत के दौरान गुरुजी ऐसे बिहेव कर रहे थे जैसे कल रात कुछ हुआ ही ना हो और उन्हें इस बात की रत्ती भर भी शरम नहीं थी की मैंने उनको पूर्ण नग्न होकर एक कमसिन लड़की को चोदते हुए देखा है. बल्कि समीर जिसे मैंने नंदिनी के साथ करीब करीब रंगे हाथों पकड़ा था वो भी बहुत कैजुअली बिहेव कर रहा था. लेकिन कल रात की घटना की वजह से मुझे गुरुजी से नजरें मिलाने में थोड़ी शरम महसूस हो रही थी.
गुरुजी – रश्मि, अब तुम अपने उपचार के आखिरी पड़ाव में पहुँच गयी हो. आराम करो और महायज्ञ के लिए अपने को मानसिक रूप से तैयार करो. लंच के बाद मेरे कमरे में आना फिर मैं विस्तार से बताऊँगा.
“ठीक है गुरुजी.”
मैं अपने कमरे में चली गयी और नाश्ता किया. फिर दवाई ली और नहाने के बाद बेड में लेट गयी. बेड में लेटे हुए सोचने लगी , अब क्या होनेवाला है ? गुरुजी ने कहा था महायज्ञ उपचार का आखिरी पड़ाव है. यही सब सोचते हुए ना जाने कब मेरी आँख लग गयी. नींद में मुझे एक मज़ेदार सपना आया. मैं अपने पति राजेश के साथ एक सुंदर पहाड़ी जगह पर छुट्टियाँ बिता रही हूँ. हम दोनों एक दूसरे के ऊपर बर्फ के टुकड़े फेंक रहे थे और तभी मैं बर्फ में फिसल गयी. राजेश ने जल्दी से मुझे पकड़ लिया और मेरा चुंबन लेने लगे तभी……
“खट खट …..”
किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया. मुझे बड़ी निराशा हुई , इतना अच्छा सपना देख रही थी , ठीक टाइम पर डिस्टर्ब कर दिया. दरवाज़े पे परिमल लंच लेकर आया था.
मैं नींद से सुस्ती महसूस कर रही थी और परिमल से टेबल पर लंच रख देने को कहा क्यूंकी अभी मेरा खाने का मन नहीं था. मैंने ख्याल किया ठिगना परिमल मुझे घूर रहा है , कुछ पल बाद मुझे समझ आ गया की ऐसा क्यूँ. मैंने जब दरवाज़ा खोला तो नींद से उठी थी और अपने कपड़ों पर ध्यान नहीं दिया. मैं नाइटी पहने हुए थी और अंदर से अंतर्वस्त्र नहीं पहने थे. परिमल की नजरें मेरे निपल्स पर थी. मैं थोड़ी देर और आराम करने के मूड में थी इसलिए उससे जाने को कह दिया. निराश मुँह बनाकर परिमल चला गया. मैं बाथरूम में गयी और शीशे के सामने अपने को देखने लगी.
“हे भगवान ..”
मेरे दोनों निपल्स तने हुए थे और नाइटी के कपड़े में उनकी शेप साफ दिख रही थी. ये देखकर मैं शरमा गयी और समझ गयी की परिमल घूर क्यूँ रहा था. मैंने अपनी चूचियों के ऊपर नाइटी के कपड़े को खींचा ताकि निपल्स की शेप ना दिखे लेकिन जैसे ही कपड़ा वापस अपनी जगह पर आया, मेरे तने हुए निपल्स फिर से दिखने लगे. वास्तव में मैं ऐसे बहुत सेक्सी और लुभावनी लग रही थी. ये जरूर उस सपने की वजह से हुआ होगा. बाथरूम से बाहर आते हुए मैं राजेश के चुंबन को याद करके मुस्कुरा रही थी. मैं फिर से बेड में लेट गयी और अपनी जांघों के बीच तकिया दबाकर दुबारा से सपने को याद करने लगी. लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी ठीक से सपना याद नहीं आया ना ही दुबारा नींद आई. निराश होकर कुछ देर बाद मैं उठ गयी और लंच किया.
फिर मैंने नयी ब्रा पैंटी के साथ नयी साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज पहन लिए और गुरुजी के कमरे में जाने के लिए तैयार हो गयी थी. तभी किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया. दरवाज़े पे परिमल था.
परिमल – मैडम, अगर आपने लंच कर लिया है तो गुरुजी बुला रहे हैं.
“हाँ ….”
उसने मेरी बात काट दी.
परिमल – अरे , आप तो तैयार हो. मैडम, समीर ने पूछा है की धोने के लिए कुछ है ?
“हाँ , लेकिन…”
मेरे कल के कपड़े धोने थे लेकिन मैं परिमल को वो कपड़े देना नहीं चाहती थी क्यूंकी ना सिर्फ साड़ी बल्कि ब्लाउज, पेटीकोट और ब्रा पैंटी भी थे.
परिमल – लेकिन क्या मैडम ?
मैंने सोचा कुछ बहाना बना देती हूँ ताकि कपड़े इसे ना देने पड़े.
“असल में मैंने पहले ही समीर को धोने के लिए दे दिए थे.”
परिमल – लेकिन मैडम, मैंने तो चेक किया था वहाँ तो सिर्फ मंजू के कपड़े हैं.
अब मैं फँस गयी थी, क्या जवाब दूँ ?
परिमल – आज तो समीर की जगह वहाँ मैं काम कर रहा हूँ.
मेरा झूठ परिमल ने पकड़ लिया था. पर मुझे कुछ तो कहना ही था.
“अरे हाँ. तुम ठीक कह रहे हो. मैंने आज नहीं दिए , कल दिए थे. मुझे याद नहीं रहा.
परिमल मुस्कुराया और मुझे भी जबरदस्ती मुस्कुराना पड़ा.
परिमल – मैडम, आप मुझे बता दो कहाँ रखे हैं , मैं उठा लूँगा. आपको पुराने कपड़े छूने नहीं पड़ेंगे.
मुझे कुछ जवाब नहीं सूझा और उसकी बात माननी पड़ी.
“धन्यवाद. बाथरूम में रखे हैं, दायीं तरफ.”
परिमल मुस्कुराया और मेरे बाथरूम में चला गया. मैं भी उसके पीछे चली गयी वैसे इसकी जरूरत नहीं थी. जो कपड़े मैंने कल गुप्ताजी के घर जाने के लिए पहने हुए थे वो बाथरूम के एक कोने में पड़े हुए थे. परिमल ने फर्श से मेरी साड़ी उठाई और अपने दाएं कंधे में रख ली और मेरा पेटीकोट उठाकर बाएं कंधे में रख लिया. मैं बाथरूम के दरवाज़े में खड़ी होकर उसे देख रही थी. अब फर्श में ब्लाउज के साथ मेरी सफेद ब्रा और पैंटी लिपटे हुए पड़े थे. मुझे बहुत अटपटा महसूस हो रहा था की अब परिमल उन्हें उठाएगा. परिमल झुका और उन कपड़ों को उठाकर मेरी तरफ घूम गया. मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और मुझे बहुत इरिटेशन हुई जब मैंने देखा की मेरे अंतर्वस्त्रों को देखकर उसके दाँत बाहर निकल आए हैं. मेरी तरफ मुँह करके वो ब्लाउज से लिपटी हुई ब्रा को अलग करने की कोशिश करने लगा.
इतना बदमाश. उसको ये सब मेरे ही सामने करना था.
मैंने देखा मेरी ब्रा का स्ट्रैप ब्लाउज के हुक में फँसा हुआ है . परिमल को ये नहीं दिखा और वो ब्रा को खींचकर अलग करने की कोशिश कर रहा था.
“अरे ….क्या कर रहे हो ? हुक टूट जाएगा.”
परिमल ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा जबकि मुझे बिल्कुल हँसी नहीं आ रही थी. अब उसने हुक से स्ट्रैप निकाला.
परिमल – मैडम, मुझे पता नहीं चला की आपकी ब्रा ब्लाउज के हुक में फँसी है. आपने सही समय पर बता दिया वरना मैंने ग़लती से आपके ब्लाउज का हुक तोड़ दिया होता.
ऐसा कहते हुए उसने अपने एक हाथ में ब्रा और दूसरे में ब्लाउज पकड़ लिया जैसे की मुझे दिखा रहा हो की देखो मैंने बिना हुक तोड़े अलग अलग कर दिए हैं. ब्लाउज से ब्रा अलग करने में मेरी पैंटी फर्श में गिर गयी.
परिमल – ओह…..सॉरी मैडम.
पैंटी के गिरते ही मैं अपनेआप ही झुक गयी और पैंटी उठाने लगी. मेरी मुड़ी तुड़ी पैंटी फर्श से उठाकर उसको देने में बड़ा अजीब लग रहा था. आश्रम आने से पहले कभी किसी मर्द को अपने अंतर्वस्त्र देने की जरूरत नहीं पड़ी. अपने घर में मैं अपने अंतर्वस्त्र खुद धोती थी. इसलिए कभी धोबी को देने की जरूरत नहीं पड़ी. मैंने तो कभी अपने पति से भी नहीं कहा की अलमारी से मेरी ब्रा पैंटी निकाल कर दे दो. मुझे याद है की जब मैं आश्रम आई थी तो पहले ही दिन मुझे अपने अंतर्वस्त्र समीर को देने पड़े थे. वो तो फिर भी चलेगा लेकिन इस बौने की हरकतों से मुझे इरिटेशन हो रही थी.
परिमल अब मेरी पैंटी को गौर से देखने लगा. असल में वो एक रस्सी की तरह मुड़कर उलझ गयी थी. नहाने के बाद मैंने उसे सीधा नहीं किया था.
परिमल – मैडम, ये तो घूम गयी है.
मेरे पास इस बेहूदी बात का कोई जवाब नहीं था और मैंने नजरें झुका ली और शरम से अपने होंठ काटने लगी.
परिमल – मैडम , मैं इसको सीधा करता हूँ , नहीं तो ठीक से धुल नहीं पाएगी. आप इनको पकड़ लो.
एक मर्द मुझसे मेरी ब्रा और ब्लाउज को पकड़ने के लिए कह रहा था और खुद मेरी पैंटी को सीधा करना चाहता था. मुझे तो कुछ कहना ही नहीं आया. मैंने अपनी ब्रा और ब्लाउज पकड़ लिए. परिमल दोनों हाथों से मेरी घूमी हुई पैंटी को सीधा करने लगा. वो देखकर मैं शरम से मरी जा रही थी.
मुझे बहुत एंबरेस करके आखिरकार परिमल बाथरूम से बाहर आया.
परिमल – मैडम अब आप गुरुजी के पास जाओ. उन्होंने लंच ले लिया है.
अपने हाथों में मेरे अंतर्वस्त्र पकड़कर दाँत दिखाते हुए परिमल चला गया. उसकी मुस्कुराहट पर इरिटेट होते हुए मैं भी गुरुजी के कमरे की तरफ चल दी.
“गुरुजी, मैं आ जाऊँ ?”
गुरुजी एक सोफे में बैठे हुए थे और समीर भी वहाँ था.
गुरुजी – आओ रश्मि. मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था.
मैं अंदर आकर कालीन में बैठ गयी. समीर भी वहीं पर बैठा हुआ था. वो एक कॉपी में कुछ हिसाब लिख रहा था. मैंने गुरुजी को प्रणाम किया और उन्होंने जय लिंगा महाराज कहकर आशीर्वाद दिया.
गुरुजी – रश्मि , मुझे कुछ देर बाद भक्तों से मिलना है इसलिए मैं सीधे काम की बात पे आता हूँ. जैसा की मैंने तुम्हें बताया है की महायज्ञ तुम्हारे गर्भधारण में आने वाली सभी बाधाओं से मुक्ति का आखिरी उपाय है. ये एक कठिन प्रक्रिया है और इसको पूरा करने में तुम्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. सिर्फ तुम्हारी लगन ही तुम्हें पार ले जा सकती है. तुम्हें सिर्फ उस वरदानी फल का ध्यान करना है जो महायज्ञ के उपरांत तुम अपने गर्भ में धारण करोगी.
मैं उनकी बातों से मंत्रमुग्ध हो गयी. गुरुजी की ओजस्वी वाणी से मुझे कॉन्फिडेन्स भी आ रहा था. मैंने सर हिलाया.
गुरुजी – महायज्ञ का पाठ किसी भी औरत के लिए कठिन है लेकिन अंत में जो सुखद फल प्राप्त होगा , उसकी इच्छा से तुम अपनेआप को तैयार करो. महायज्ञ में कुछ चरण हैं और हर चरण को पूरा करने के बाद तुम अपने लक्ष्य के करीब आती जाओगी. ये तुम्हारे मन, शरीर और धैर्य की कड़ी परीक्षा होगी. अगर तुम्हें मुझमें और लिंगा महाराज में विश्वास है तो तुम अपनी मंज़िल तक जरूर पहुँचोगी.
“गुरुजी , मैं जरूर पूरा करूँगी. किसी भी कीमत पर मैं माँ बनना…….”
मेरी आवाज गले में रुंध गयी क्यूंकी संतान ना हो पाने का दुख मेरे मन पर हावी हो गया.
गुरुजी – मैं तुम्हारा दुख समझता हूँ रश्मि. अभी तक तुमने सफलतापूर्वक उपचार की प्रक्रिया पूरी की है और लिंगा महाराज के आशीर्वाद से तुम जरूर महायज्ञ को सफलतापूर्वक पूरा करोगी.
गुरुजी कुछ पल के लिए रुके फिर ….
गुरुजी – मैं जानता हूँ की तुम्हारी जैसी शादीशुदा औरत के लिए किसी पराए मर्द को अपना बदन छूने देने के लिए राज़ी होना बहुत कठिन है. लेकिन मेरे उपचार का तरीका ऐसा है की तुम्हें इन चीज़ों को स्वीकार करना ही पड़ेगा. संतान पैदा होना ‘यौन अंगों’ से संबंधित है , है की नहीं रश्मि ? इसलिए मैं उपचार के दौरान उन्हें बायपास कैसे कर सकता हूँ ? अगर मुझे तुम्हारे स्खलन की मात्रा ज्ञात नहीं होगी, अगर मुझे ये मालूम नहीं होगा की तुम्हारे योनीमार्ग में कोई रुकावट है या नहीं तो मैं उपचार का अगला चरण कैसे तय कर पाऊँगा ?
मैंने एक आज्ञाकारी शिष्य की तरह गुरुजी की बात पर सर हिला दिया.
गुरुजी – इसीलिए मैंने पहले ही दिन तुमसे कहा था की अपना सारा संकोच और शरम को भूल जाओ. और आज जब तुम अपने उपचार के आखिरी पड़ाव पर हो, मैं तुमसे कहूँगा की महायज्ञ के दौरान कोई संकोच , कोई शरम अपने मन में मत रखना.
गुरुजी – मेरा मतलब है की मानसिक तौर पर किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना. वैसे तो तुमने पिछले कुछ दिनों में उपचार की प्रक्रिया ठीक से पूरी की है लेकिन महायज्ञ में हो सकता है की तुम्हें और भी ज़्यादा बेशरम बनना पड़े. असल में जो तुम्हारे लिए बेशरम कृत्य है , वो हमारे लिए साधारण कृत्य है. जैसे उदाहरण के लिए कल कुमार के घर में मुझे नग्न होकर काजल के साथ संभोग करते हुए देखकर तुमने जरूर मेरे बारे में ग़लत सोचा होगा लेकिन तांत्रिक क्रियाएँ ऐसे ही की जाती हैं, यही विधान है.
स्वाभाविक शरम से मैंने गुरुजी से आँखें मिलने से परहेज किया. मेरे चेहरे की लाली बढ़ने लगी थी.
गुरुजी – जब मैंने अपने गुरु से तांत्रिक दीक्षा ली थी , तब हम पाँच शिष्य थे और उनमें से दो औरतें थीं. उन दिनों पूरी प्रक्रिया के दौरान नग्न रहना जरूरी होता था. इसलिए तुम समझ सकती हो……
मैंने फिर से गुरुजी से नजरें नहीं मिलाई और मेरी साँसें थोड़ी भारी हो गयी थीं. गुरुजी सीधे मेरी आँखों में देखकर बात कर रहे थे.
गुरुजी – रश्मि, मैं फिर से इस बात पर ज़ोर दूँगा की अपनी शारीरिक स्थिति पर ध्यान देने की बजाय जो प्रक्रिया चल रही है उस पर ध्यान देना. तभी तुम्हें लक्ष्य की प्राप्ति होगी. समझ गयीं ?
“जी गुरुजी.”
गुरुजी – जैसा की मैंने तुम्हें पहले भी बताया था महायज्ञ दो रातों तक चलेगा. आज रात 10 बजे से शुरू होगा. कल दिन में तुम आराम करना और कल रात को महायज्ञ का दूसरा चरण होगा. महायज्ञ में क्या क्या होगा इसके बारे में मैं अभी बात नहीं करूँगा, यज्ञ के दौरान ही तुम्हें पता चलते रहेगा. ठीक है ?
मैंने फिर से सर हिला दिया.
गुरुजी – ठीक है फिर. समीर जरा देखो की सभी भक्त आ गये हैं या नहीं. वरना मुझे जाना होगा.
समीर – जी गुरुजी.
समीर ने अपनी कॉपी बंद की और कमरे से बाहर चला गया. अब मैं गुरुजी के साथ अकेली थी.
गुरुजी – रश्मि , महायज्ञ और तंत्र दर्शन कोई आज के दिनों के नहीं हैं. ये प्राचीन काल से चले आ रहे हैं और इस प्रक्रिया में भक्तों को अपने शुद्ध रूप यानी की नग्न रूप में रहना होता है. लेकिन आज के दौर में शहरों में रहने वाले स्त्री - पुरुष भी इसका लाभ प्राप्त करने आते हैं , अब आज के समय को देखते हुए हम उन्हें नग्न रूप में पूजा के लिए नहीं कहते बल्कि ‘महायज्ञ परिधान’ पहनना होता है. एक बात मैं साफ बता देना चाहता हूँ की पहले के समय में भक्त और यज्ञ करवाने वाले दोनों को ही नग्न रूप में रहना होता था.
गुरुजी थोड़ा रुके शायद मेरा रिएक्शन देखने के लिए. मैं अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी की मुझे क्या पहनना होगा ? मैं गुरुजी से पूछना चाह रही थी की ‘महायज्ञ परिधान’ होता क्या है ? इस परिधान के बारे में अंदाज़ा लगाते हुए मेरा गला सूखने लगा था. गुरुजी ने जैसे मेरे मन की बात जान ली.
गुरुजी – रश्मि, मैं इस बात से सहमत हूँ की ‘महायज्ञ परिधान’ एक औरत के लिए पर्याप्त नहीं है पर मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता. लेकिन जैसा की मैंने कई बार कहा है तुम्हारा ध्यान लक्ष्य पर होना चाहिए ना की और बातों पर.
“लेकिन फिर भी गुरुजी…”
गुरुजी – मैं जानता हूँ रश्मि की तुम्हें उत्सुकता हो रही होगी. लेकिन तुम्हारा ध्यान लिंगा महाराज की पूजा पर होना चाहिए. बाकी सब मुझ पर छोड़ दो.
ऐसा कहते हुए वो मुस्कुराए और उठने को हुए. सच कहूँ तो उस समय तक मुझे इस ‘महायज्ञ परिधान’ को लेकर फिक्र होने लगी थी.
गुरुजी – अब मुझे जाना है. मुझे उम्मीद है की तुम्हें गोपाल टेलर को कपड़े की नाप देने में कोई आपत्ति नहीं होगी.
गोपाल टेलर ? हे भगवान ! मुझे तुरंत याद आया की उसकी दुकान में ब्लाउज की नाप देते समय गोपालजी और उसके भाई मंगल ने मेरे साथ क्या किया था. मेरा मुँह शरम से लाल हो गया.
“लेकिन गुरुजी , क्या मैं कहीं और से …”
गुरुजी – रश्मि, ‘महायज्ञ परिधान’ एक खास तरह का वस्त्र है जो उच्चकोटि के कपास (कॉटन) से बनता है. ये बाजार में नहीं मिलता की तुम गये और खरीद कर ले आए.
गुरुजी खीझ गये. मैं अपने उपचार के आखिरी पड़ाव में गुरुजी को नाराज नहीं करना चाहती थी.
“माफ़ कीजिए गुरुजी. मुझे ये समझ लेना चाहिए था.”
गुरुजी – तुम्हें ये जानकार आश्चर्य होगा की गोपाल टेलर आज ही तुम्हारा परिधान सिल देगा और वो भी रात 10 बजे से पहले. तुम यज्ञ के लिए अपने को मानसिक रूप से तैयार करो और उसका काम उसे करने दो. वो तुम्हारे कमरे में दोपहर 2 बजे आ जाएगा.
मैंने सहमति में सर हिलाया और कालीन से उठ खड़ी हुई. मेरे दिमाग़ में परिधान को लेकर बहुत से प्रश्न थे लेकिन गुरुजी से पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुई.
गुरुजी – अब तुम जाओ.
मैं अपने कमरे में चली आई. लेकिन मेरी उत्सुकता बढ़ते जा रही थी की आखिर ये परिधान होता कैसा है ? गुरुजी ने मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया था. मैंने अपने मन में याद करने की कोशिश की गुरुजी ने क्या कहा था ? मुझे याद आया की उन्होंने कहा था की ये परिधान एक औरत के लिए पर्याप्त नहीं है. इसका क्या मतलब हुआ ? ये कोई साड़ी या सलवार कमीज जैसी पूरे बदन को ढकने वाली ड्रेस तो नहीं होगी लेकिन कुछ छोटी होगी.
तभी मेरे दिमाग़ में ख्याल आया की मुझे कौन बता सकता है. वो थी मंजू. मैं आश्रम के किसी मर्द से ये बात पूछने में बहुत असहज महसूस करती पर मंजू जरूर मुझे इसके बारे में बता सकती थी.
“मंजू….”
मंजू अपने कमरे में थी और मुझे अंदर आने को कहा. वो अपने बेड में बैठी हुई कुछ सिल रही थी. मैं भी उसके साथ बेड में बैठ गयी.
मंजू – गुप्ताजी के घर की सैर कैसी रही ?
“ठीक रही. असल में मैं तुमसे कुछ पूछने आई थी.”
वो मुस्कुरायी और प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखा.
“तुम्हें मालूम ही होगा की गुरुजी मेरे लिए महायज्ञ करने वाले हैं और ….”
मंजू – हाँ , मुझे मालूम है.
“उन्होंने अभी मुझे इसके बारे में बताया.”
मंजू – कोई समस्या ?
“मेरा मतलब वो …..असल में गुरुजी कुछ ‘महायज्ञ परिधान’ की बात कर रहे थे.
मंजू - तो ?
“असल में मैं जाना चाहती थी की ये कैसी ड्रेस होती है ?”
मंजू – ओह …..तुम इसके लिए बहुत चिंतित लग रही हो.
“हाँ, तुम्हें मालूम होगा की यज्ञ के दौरान मुझे उसी ड्रेस में रहना होगा, इसलिए…”
मंजू – सच बात है रश्मि. ये हम औरतों के लिए समस्या है. मर्द तो दिन भर एक कच्छा पहनकर घूम सकते हैं लेकिन हम औरतें नहीं.
मुझे लगा आखिर कोई तो मिला जो औरत होने के नाते मेरी शरम को समझता हो.
मंजू – रश्मि, मैं तुम्हें कोई दिलासा नहीं दे सकती क्यूंकी महायज्ञ में पूर्ण भक्ति और शरीर की शुद्धि की जरूरत होती है.
“हाँ, गुरुजी भी कुछ ऐसा ही कह रहे थे.”
मंजू – फिर भी मैं तुम्हें ये भरोसा दिला सकती हूँ की ये दो हिस्से ढके रहेंगे.
ऐसा कहते हुए उसने अपने हाथ से अपनी चूचियों और चूत की तरफ इशारा किया और शरारत से मुस्कुराने लगी. ये सुनकर सचमुच मुझे राहत मिली और मैं भी मुस्कुरा दी लेकिन मैं अभी भी चिंतित थी. ये देखकर उसने अपना सिलाई का कपड़ा एक तरफ रख दिया और मेरी तरफ झुककर अपनी अंगुलियों से मेरा दायां गाल पकड़कर हिलाया.
मंजू – चिंता मत करो रश्मि. परिधान के बारे में रहस्य को बने रहने दो.
वो ज़ोर से हंस पड़ी और उसके व्यवहार को देखकर मैं भी मुस्कुरा रही थी.
मंजू – ये बताओ , तुम्हारी शादी को कितने साल हो गये ?
“चार साल…”
मंजू – हे भगवान . तब तो तुम्हारे पति ने तुमसे 400 बार मज़े लिए होंगे , है ना ?
वो हँसे जा रही थी और उसके चिढ़ाने से मेरा चेहरा लाल होने लगा था.
मंजू – तुममें अब भी शरम बाकी है ? कहाँ रखती हो उसे ?
उसकी बात पर हम दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े और बेड पे लोटपोट हो गये.
मंजू – मैं सोच रही हूँ की गुरुजी से कहूँ की तंत्र के नियमों के अनुसार महायज्ञ के लिए शादीशुदा औरतों को कोई वस्त्र पहनने की अनुमति ना दें.
हम अभी भी हंस रहे थे और मंजू की इस बात पर मैंने उसे चिकोटी काट दी. और सच कहूँ तो अब मेरी चिंता काफ़ी कम हो चुकी थी.
मंजू – रश्मि, मज़ाक अलग है लेकिन तुम बिल्कुल फिक्र मत करो.
वो थोड़ा रुकी और हम फिर से बेड पे ठीक से बैठ गये. ब्लाउज के ऊपर से उसका पल्लू गिर गया था और उसकी बड़ी क्लीवेज दिख रही थी ख़ासकर इसलिए क्यूंकी उसके ब्लाउज का ऊपरी हुक खुला हुआ था. उसके साथ ही मैंने भी अपना पल्लू ठीक कर लिया.
मंजू – रश्मि, इन छोटी मोटी बातों पर ध्यान मत दो और बस लिंगा महाराज की पूजा करो ताकि तुम्हें इच्छित फल की प्राप्ति हो.
“तुम ठीक कह रही हो मंजू. मुझे सिर्फ उस पर ही ध्यान लगाना चाहिए. सिर्फ मैं ही जानती हूँ की कितनी रातों को मैं अकेले में चुपचाप रोई हूँ…..”
हम दोनों कुछ पल के लिए चुप रहे फिर कुछ इधर उधर की बातें करके मैं वापस अपने कमरे मैं चली आई. अब 2 बजने में आधा घंटा ही बचा था और गोपाल टेलर को मेरे कमरे में आना था.
‘मैडम , मैंने सुना है की अगर अच्छे से चूचियों को चूसा जाए तो कुँवारी लड़कियों का भी दूध निकल जाता है.
मैडम , क्या मस्त गांड है आपकी. बहुत ही चिकनी और मुलायम है.’
और मूठ मारते समय मंगल का तना हुआ काला लंड मैं कैसे भूल सकती हूँ. इन सब बातों को याद करके मेरी चूचियाँ ब्लाउज में टाइट होने लगीं और मैंने अपना ध्यान दूसरी बातों की तरफ लगाने की कोशिश की. तभी दरवाज़े में खट खट हुई.
“आ गये “ मैंने सोचा और दरवाज़ा खोल दिया. दरवाज़े में मुस्कुराते हुए गोपाल टेलर खड़ा था.
गोपाल टेलर – मैडम, फिर से आपसे मुलाकात हो गयी.
मैं भी मुस्कुरा दी और उससे अंदर आने को कहा. उसके साथ मंगल की बजाय एक छोटा लड़का था.
गोपाल टेलर – आप कैसी हैं मैडम ?
“ठीक हूँ. उम्मीद है आपके हाल भी ठीक होंगे.”
गोपाल टेलर – मैडम , अब इस उमर में तबीयत ठीक नहीं रहती है. दो दिन पहले ही मुझे बुखार था , पर अब ठीक हूँ.
“अच्छा …”
गोपाल टेलर – मेरे आने के बारे में गुरुजी ने आपको बताया होगा.
“हाँ गोपालजी. पर ये कौन है ?”
मैंने उस लड़के की तरफ इशारा किया.
गोपाल टेलर – असल में मैंने नाप लेने के लिए मंगल को ले जाना बंद कर दिया है. ये लड़का सिलाई सीख रहा है और नाप लेने में मेरी मदद करता है.
ये सुनकर मुझे बड़ी राहत हुई की मंगल यहाँ नहीं आएगा. मेरे चेहरे पर राहत के भाव देखकर गोपालजी ने उलझन भरी निगाहों से मुझे देखा. मैंने जल्दी से बात संभाल ली.
“आप जैसे एक्सपर्ट के साथ ये लड़का जल्दी सीख जाएगा.”
गोपालजी ने सर हिला दिया और मेरे बेड पर कॉपी और पेन्सिल रख दी. वो लड़का एक बैग लेकर बेड के पास खड़ा था.
गोपाल टेलर – ये बहुत ध्यान से सीखता है और बहुत सवाल करता है, जो की अच्छी बात है.
“लेकिन मंगल को क्या हुआ ?”
मुझे ये सवाल पूछने की कोई ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी इससे कुछ ऐसी बातें हुई जिनकी वजह से मुझे इस 60 बरस के बुड्ढे के सामने असहज महसूस हुआ.
गोपाल टेलर – क्या बताऊँ मैडम.
वो थोड़ा रुका और उस लड़के से बोला.
गोपाल टेलर – दीपक बेटा, मेरे लिए एक ग्लास पानी ले आओ.
दीपक – जी अभी लाया.
दीपक कमरे से बाहर चला गया और गोपालजी मेरे पास आया.
गोपाल टेलर – मैडम, ये बात मैं दीपक के सामने नहीं बताना चाहता था. आखिर मंगल मेरा भाई है.
अब मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी थी.
“लेकिन हुआ क्या ?”
गोपाल टेलर – मैडम , हम अपने डिस्ट्रीब्यूटर को कपड़े देने पिछले हफ्ते शहर गये थे. उसने हमें बताया की एक धनी महिला है जो उसकी दुकान में आती रहती है, उसे कुछ मॉडर्न ड्रेस सिलवानी है और उसने खास तौर पर कहा है की टेलर बड़ी उमर का ही होना चाहिए. तो हुआ ये की मेरे डिस्ट्रीब्यूटर ने मुझे उसके घर भेज दिया. मंगल भी मेरे साथ था. जब हम उसके घर पहुँचे तो पहले तो वो औरत मंगल के सामने नाप देने में हिचकिचा रही थी फिर बाद में मान गयी. लेकिन जानती हो उस सुअर ने क्या किया ?
मैं बड़ी उत्सुकता से टेलर का मुँह देख रही थी और मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गयी थीं. मेरा चेहरा देखकर गोपालजी का उत्साह भी बढ़ गया और वो विस्तार से किस्सा सुनाने लगा.
गोपाल टेलर – मैडम, वो औरत पार्टी के लिए एक टाइट गाउन सिलवाना चाहती थी. जब मैं उसके नितंबों की नाप ले रहा था तो उसके कपड़ों के ऊपर से सही नाप नहीं आ पा रही थी , इसलिए मैंने उससे साड़ी उतारने के लिए कहा. पहले तो वो राज़ी नहीं हुई फिर अनिच्छा से तैयार हो गयी. मैंने उससे कहा, साड़ी को बस पेटीकोट के ऊपर उठा दो , उतारो मत ताकि उसको असहज ना लगे. लेकिन खड़ी होकर वो ठीक से साड़ी ऊपर नहीं कर सकी तो मैंने मंगल से मदद करने को कहा. मंगल ने उसकी साड़ी ऊपर उठा दी और उसके पीछे खड़ा हो गया. अब मैं उसके पेटीकोट के बाहर से नितंबों की नाप लेने लगा. जब मैं अपने हाथ पीछे उसके नितंबों पर ले गया तो , अब मैं क्या कहूँ मैडम, वो बदमाश मेरा भाई है, वो उस औरत की गांड में अपना लंड चुभो रहा था.
“क्या…???”
मेरे मुँह से अपनेआप निकल पड़ा.
“आपका मतलब उसने अपना पैंट खोला और …….”
गोपाल टेलर – नहीं नहीं मैडम , ये आप क्या कह रही हो. उसने सिर्फ अपने पैंट की ज़िप खोली और अपना …..
मैंने जल्दी से अपना सर हिला दिया , ये जतलाने के लिए की मैं बखूबी समझती हूँ की अपने पैंट की ज़िप खोलकर एक मर्द क्या चीज बाहर निकालता है ताकि गोपालजी को मेरे सामने उस चीज का नाम ना लेना पड़े. फिर क्या हुआ ये जाने के लिए मेरी उत्सुकता बढ़ रही थी.
गोपाल टेलर – शायद उस औरत को पहले पता नहीं चला क्यूंकी ज़रूर उसने ये सोचा होगा की मंगल उसकी साड़ी को ऊपर करके पकड़े हुए है इसलिए उसकी अँगुलियाँ गांड पर छू रही होंगी. मंगल के व्यवहार से मुझे ऐसा झटका लगा की मेरी अँगुलियाँ काँपने लगीं. तभी उस औरत ने कहा की नितंबों पर थोड़ी ढीली नाप रखो क्यूंकी वो गाउन के अंदर पैंटी के बजाय अंडरपैंट पहनेगी और अगर गाउन नितंबों पर टाइट हुआ तो अंडरपैंट की शेप दिखेगी. मैं उसकी बात समझ गया और फिर से उसके नितंबों की नाप लेने लगा लेकिन अपने भाई की हरकत देखकर मैं टेंशन में आ गया था.
गोपालजी थोड़ा रुका और दरवाज़े की तरफ देखने लगा की कहीं दीपक वापस तो नहीं आ गया है. लेकिन वो अभी नहीं आया था. उस टेलर का ऐसा कामुक किस्सा सुनते सुनते मेरी चूत में खुजली होने लगी थी लेकिन मैं उसके सामने खुज़ला नहीं सकती थी.
गोपाल टेलर – मैडम , उस दिन मंगल की हरकत देखकर मुझे बहुत हताशा हुई. ग्राहक से ऐसे व्यवहार किया जाता है ? फिर मैं उस औरत के सामने बैठ गया और दोनों हाथ पीछे ले जाकर नितंबों की नाप लेने लगा तभी मंगल ने कहा की पंखे की हवा से मैडम का पेटीकोट उड़ रहा है इसलिए मैं पेटीकोट भी पकड़ लेता हूँ. उस मैडम को इसमें कोई परेशानी नहीं थी. मंगल को दो अंगुलियों से पेटीकोट का कपड़ा पकड़ना था ताकि वो उड़े ना. लेकिन उस बदमाश ने पेटीकोट को मैडम की गांड पर हथेली से दबा दिया.
गोपालजी थोड़ा रुका. अबकी बार मैंने साड़ी एडजस्ट करने के बहाने बेशर्मी से अपनी चूत खुजा दी. गोपालजी ने ये देख लिया और मुस्कुराया. अब मेरे कान भी लाल होने लगे थे.
गोपाल टेलर – मैडम फिर क्या था, जैसे ही मंगल ने उस मैडम की गांड में पेटीकोट को हथेली से दबाया , वो औरत असहज दिखने लगी और फिर अगले एक मिनट में क्या हुआ मुझे नहीं मालूम पर मैंने चटाक की आवाज़ सुनी.
चटा$$$$$$$$$$क………..
मंगल को थप्पड़ मारकर वो मैडम गुस्से से आग बबूला हो गयी और ख़ासकर उसके पैंट की खुली ज़िप देखकर. शुक्र था की उस दिन उसका पति घर पर मौजूद नहीं था. वरना हम ज़रूर मार खाते. आप मेरी हालत समझो मैडम, इस उमर में इतनी बेइज़्ज़ती, इतनी शर्मिंदगी.
मंगल की इस लम्पट हरकत पर मैंने ना में सर हिलाकर अफ़सोस जताया.
गोपाल टेलर – मैडम, मैंने मंगल से पूरे एक दिन तक बात नहीं की. उस दिन से मैंने नाप लेने के लिए उस सूअर को साथ आने से मना कर दिया.
“बहुत अच्छा किया गोपालजी. इतना बदतमीज.”
गोपाल टेलर – मैडम, मैं आपसे माफी चाहता हूँ की उस दिन आपके ब्लाउज की नाप लेते समय मंगल भी मेरे साथ था. लेकिन सब उसके जैसे नहीं होते. असल में इसीलिए मैं इस नये लड़के को लाया हूँ….
तभी दीपक पानी का ग्लास लेकर कमरे में आ गया और गोपालजी चुप हो गया. गोपालजी पानी पीने लगा वैसे तो मेरा गला ज़्यादा सूख रहा था. पानी पीने के बाद गोपालजी ने बैग से सामान निकलना शुरू कर दिया.
गोपाल टेलर – मैडम ,एक बात तो अच्छी हुई है.
“कौन सी बात ?”
गोपाल टेलर – मैडम , पिछली बार आपने अपनी समस्या बताई थी. तब समय नहीं था पर इस बार मैं उसे ठीक कर दूंगा.
मुझे तुरंत याद आ गया की मैंने इस बुड्ढे टेलर को अपनी पैंटी की समस्या बताई थी जो की अक्सर चलते समय मेरे नितम्बों के बीच की दरार में सिकुड़ जाती थी. शादी के बाद मेरे नितम्ब चौड़े हो गए थे और ये समस्या और भी बढ़ गयी थी. मै चाहती थी की इस समस्या का हल निकले . मैंने अपने शहर के लोकल दुकानदार को भी ये समस्या बताई थी, जिसकी दुकान से मैं अक्सर अपने अंडर गारमेंट्स खरीदती थी और उसने ब्रांड चेंज करने को कहा. मैंने कई दूसरी कम्पनीज की ब्रांड चेंज करके देखि पर उससे कोई खास फायदा नहीं हुआ. जब भी मै किसी भीड़ भरी बस या बाजार में जाती थी तो किसी मर्द का हाथ मेरे नितम्बों पर लगता था तो मुझे बहुत उनकंफर्टबल फील होता था क्यूंकि पैंटी तो नितम्बों पर होती नहीं थी. दूसरी बात ये थी की पैंटी के सिकुड़ने से मेरे चौड़े नितम्ब कुछ ज्यादा ही हिलते थे. वैसे तो ये समस्या ऐसी थी की किसी से खुलकर बात भी नहीं कर सकती थी लेकिन गोपालजी बूढ़ा था और अनुभवी टेलर था इसीलिए मैंने उसे अपनी समस्या के बारे में बात करने में ज्यादा संकोच नहीं किया. वैसे तो वहां पर दीपक भी था पर वो छोटा लड़का था इसलिए मैंने उसे नज़रंदाज़ कर दिया.
“हाँ, गोपालजी. मुझे लंबे समय से ये परेशानी है. और मै बहुत असहज महसूस करती हूँ…”
गोपाल टेलर – मै समझता हूँ मैडम. क्यूंकि मै पैंटी सिलता हूँ इसीलिये मुझे मालूम है कि समस्या कहां पर है. आपकी परेशानी ये है की पैंटी नितम्बों से सिकुड़ जाती है. है न मैडम?
“हाँ , यही परेशानी है.”
गोपाल टेलर – आप कौन सी ब्रांड की पैंटी पहनती हो ?
“आजकल मैं ‘डेज़ी’ ब्रांड की यूज करती हूँ.”
गोपाल टेलर – ‘डेज़ी नार्मल’ ?
मैंने सर हिला दिया.
“कोई और वैरायटी भी है क्या इसमें ?”
मुझे हैरानी हो रही थी की मई एक मर्द के साथ खुलकर अपने अंडर गारमेंट्स की बात कर रही थी , लेकिन मंगल के यहाँ न होने से मुझे झिझक नहीं हो रही थी. उस कमीने को तो मै नहीं झेल सकती. दीपक चुपचाप हमारी बातें सुन रहा था.
गोपाल टेलर – हाँ मैडम. डेज़ी नार्मल, डेज़ी टीन और डेज़ी मेगा.
“लेकिन मै तो सोचती थी की उनकी वैरायटी सिर्फ प्रिंट्स में है , नार्मल और फ्लोरल.”
गोपाल टेलर – मैडम, दुकानदार तो हमेशा उसी ब्रांड को ग्राहकों को दिखायेगा जिसमें उसे ज्यादा कमीशन मिलेगा. लेकिन आपको वही लेनी चाहिए जो आपको सूट करे.
“लेकिन मुझे तो ये मालूम ही नहीं था. इनमें अंतर क्या है ?”
गोपाल टेलर – मैडम जैसा की नाम से अंदाजा लग रहा है, डेज़ी नार्मल जो आप यूज करती हो वो नार्मल साइज की पैंटी है , इसमें नार्मल कट होते हैं. और डेज़ी टीन ….
मैंने स्मार्ट बनने की कोशिश करते हुए गोपालजी की बात बीच में काट दी.
“टीनएजर लड़कियों के लिए . अच्छा ऐसा है नाम के अनुसार.”
गोपाल टेलर – नहीं मैडम, आपका अंदाज़ गलत है. डेज़ी टीन , टीनएजर लड़कियों के लिए नहीं है. नाम से साइज और पैंटी के कट्स का पता चलता है. ये पैंटी डेज़ी नार्मल से साइज में छोटी होती है और कट्स भी ऊँचे होते हैं. मैडम, आप भी डेज़ी टीन पहन सकती हो , टीनएजर से कोई मतलब नहीं है.
“ओह…अच्छा…..”
गोपाल टेलर – असल में जब मेरे पास ऑर्डर्स आते हैं तो मुझे भी डिमांड के अनुसार अलग अलग टाइप की पैंटी सिलनि पड़ती हैं जैसे की नार्मल, टीन, मेगा, मिग. हर कंपनी अलग अलग नाम रखती है.
मिग ? ये क्या है ? मैं अपने मन में सोचने लगी. लेकिन मुझे बड़ी ख़ुशी हुई की गोपालजी को इन सब चीज़ों की बहुत बारीकी से जानकारी है. अब मै अपनी शर्म छोड़कर और भी खुलकर बात करने लगी.
“डेज़ी मेगा में क्या है ?”
गोपाल टेलर – मैडम, डेज़ी मेगा आपके लिए सही रहेगी क्यूंकि आपके बहुत मांसल नितम्ब हैं. ये पैंटी ऐसी ही औरतों के लिए है जिनके आपके आपके ही जैसे बड़े बड़े गोल नितम्ब हो मतलब की बड़ी गाँड वाली.
उस बुड्ढे टेलर के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर मेरी नज़रें झुक गयी और मेरे कान गरम हो गए. गोपालजी साइड से मेरी साड़ी से ढकी हुई गाँड देख रहे थे और मैंने देखा की वो छोटा लड़का दीपक भी मेरी गांड देख रहा था. मैंने बात बदलने की कोशिश की.
“गोपालजी आपने कुछ मिग के बारे में कहा था, ये क्या है ?”
गोपाल टेलर – मैडम, ये डायना कंपनी की पैंटी का नाम है. आपने डायना ब्रा पैंटी के बारे में सुना है ?
मैंने न में सर हिला दिया क्यूंकि मैंने कभी इस कंपनी का नाम नहीं सुना था.
गोपाल टेलर – मैडम, ये पैंटी मॉडर्न टाइप की है और उप्पेर क्लास की औरतें इसे पसंद करती हैं.
“लेकिन मिग का मतलब क्या है ?”
गोपाल टेलर – मैडम , मिग अंग्रेजी शब्द ‘मर्ज’ का छोटा रूप है, जिसका मतलब है बहुत कम. इसलिए इसमें बहुत कम कपडा होता है. इसमें पैंटी के पीछे बहुत पतला कपडा होता है और कट्स भी बहुत बड़े होते हैं. और आगे से इसमें नायलॉन नेट होता है जिससे ये आकर्षक लगती है.
गोपालजी मुस्कुराया. उसकी बात से मैं असहज महसूस कर रही थी , खासकर सामने से नायलॉन नेट वाली बात से. मैं समझ सकती थी कि जो औरत इस पैंटी को पहनेगी उसकी चूत साफ़ दिखती होगी क्यूंकि नायलॉन नेट से ढकेगा कम दीखेगा ज्यादा.
“ऐसी पैंटी कौन खरीदता है ?”
गोपाल टेलर – मैडम, आपको शायद मालूम नहीं लेकिन दुनिया कहाँ की कहाँ पहुँच गयी है. मेरे पास इस मिग पैंटी के बहुत आर्डर आते हैं और सेल्समेन ने मुझे बताया कि ज्यादातर नयी शादी वाली लड़कियां इसे खरीदती हैं लेकिन मिडिल एज्ड औरतें भी इसे पसंद करती हैं.
मुझे हैरानी हुई कि इस बुड्ढे टेलर के पास सारी जानकारी है. मै गहरी सांसे लेने लगी थी और मेरे कान और चेहरा गरम हो गए थे जैसे मुझे इस मिग पैंटी को पहनने के लिए कहा गया हो. लेकिन मुझे क्या पता था कि गुरूजी ने मेरे लिए इस मिग पैंटी से भी सेक्सी सरप्राइज रखा है.
गोपाल टेलर – ठीक है मैडम. आप डेज़ी नार्मल ब्रांड यूज करती हो. मेरे ख्याल से दो बातें हैं अगर ये ठीक हो जाएँ तो आपकी परेशानी खत्म हो जाएगी.
मैंने उत्साही नज़रों से उसकी तरफ देखा.
गोपाल टेलर – मैडम, पहली ये कि आपकी पैंटी के पिछले हिस्से को खींचना पड़ेगा और दूसरी ये की उसमें कट्स को थोड़ा टाइट करना पड़ेगा और अच्छी क्वालिटी के इलास्टिक बैंड्स लगाने पड़ेंगे. बस इतना ही.
“ओह्ह.. इतना सरल उपाय…”
मैंने राहत की सांस ली.
गोपाल टेलर – अनुभव है मैडम , अनुभव.
गोपालजी मुस्कुराया और मुझे भरोसा हो गया की मेरी पैंटी की परेशानी अब नहीं रहेगी.
गोपाल टेलर – मैडम, अभी मई यहाँ महायग्य परिधान के लिए आया हूँ. अगर बुरा न माने तो पैंटी को मै बाद में ठीक करूँगा .
“हाँ ठीक है."
मुझे इस महायज्ञ परिधान के बारे में कुछ भी नहीं पता था और अभी भी मैं इसे लेकर थोड़ी चिंतित थी लेकिन मैंने अपने चेहरे से ये जाहिर नहीं होने दिया.
गोपाल टेलर – दीपू , कॉपी लाओ जिसमें डिजाइन बनाया है. मैडम, गुरुजी ने आपको बताया होगा लेकिन फिर भी एक बार डिजाइन देख लो उसके बाद मैं नाप लूँगा.
मैं डिजाइन देखने के लिए उत्सुक थी और दीपू के पास जाकर खड़ी हो गयी. दीपू के हाथ में कॉपी थी और गोपालजी उसकी बायीं तरफ खड़े हो गया. दीपू ने कॉपी खोली और उस पेज में चार डिजाइन थे, एक चोली , एक घाघरा जैसा कुछ था, एक ब्रा और एक पैंटी . सच कहूँ तो चोली घाघरा देखकर मेरी चिंता कम हुई क्यूंकी मुझे फिकर हो रही थी की महायज्ञ परिधान कितना बदन दिखाऊ होगा. गुरुजी के शब्द मुझे याद थे…..” रश्मि, मैं इस बात से सहमत हूँ की ‘महायज्ञ परिधान’ एक औरत के लिए पर्याप्त नहीं है पर मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता”……
मैंने राहत की सांस ली और अब नाप देने के लिए मैं सहज महसूस कर रही थी.
गोपाल टेलर – मैडम, जैसा की आप देख रही हैं , महायज्ञ परिधान में अंतर्वस्त्रों के साथ कुल चार वस्त्र हैं. इसी डिजाइन के अनुसार मैं नाप लूँगा.
“ठीक है.”
उस कॉपी में ब्रा का डिजाइन मेरी ब्रा से बिल्कुल अलग लग रहा था. क्या है ये ? मैं सोचने लगी.
गोपाल टेलर – मैडम, अगर नाप लेते समय मैं इस लड़के को नाप का तरीका बताते जाऊँ तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी ? आपको बोरिंग लगेगा लेकिन इस लड़के को सीखने में बहुत मदद मिलेगी.
“ना, ना मुझे कोई दिक्कत नहीं है.”
मैंने सोचा मेरे लिए तो ये अच्छा ही है क्यूंकी अगर मैं टेलर से पूछती की ये कैसी ब्रा का डिजाइन है तो औरत होने की वजह से मुझे शरम आती लेकिन अगर टेलर लड़के को समझाते हुए नाप लेगा तो मुझे भी बिना पूछे सब पता चलते रहेगा.
गोपाल टेलर – धन्यवाद मैडम. दीपू बेटा, अब ध्यान से देखो मैं कैसे मैडम की नाप लेता हूँ. अगर कोई शंका हो तो सवाल पूछ लेना.
दीपू – जी ठीक है. मैं मैडम को ध्यान से देखूँगा.
दीपू की इस बात से मुझे थोड़ा झटका लगा और मैंने गौर से उसके चेहरे की तरफ देखा. लग तो छोटा ही रहा है , मुझे ऐसा लगा की मासूमियत से ऐसा बोल दिया होगा. एक अच्छी बात जो मुझे उसमें लगी वो ये थी की बाकी मर्दों की तरह वो मेरे ख़ास अंगों को बिल्कुल भी नहीं घूर रहा था. इसलिए मैंने उसकी बात को नजरअंदाज कर दिया.
गोपाल टेलर – अच्छा दीपू अब यहाँ देखो. पहले दो डिजाइन मैडम के अंतर्वस्त्रों के हैं लेकिन ये साधारण ब्रा पैंटी नहीं हैं जैसी हम रोज सिलते हैं.
दीपू – जी मैंने ख्याल किया था. ब्रा में स्ट्रैप नहीं हैं और पीछे तीन हुक्स हैं.
गोपाल टेलर – हाँ, ये स्ट्रैपलेस ब्रा है और ब्रा के कप्स को सहारा देने के लिए इसमें तीन हुक्स लगेंगे.
ओह्ह …ये स्ट्रैपलेस ब्रा है. मैंने स्ट्रैपलेस ब्रा के बारे में सुना तो था पर पहले कभी पहनी नहीं. बल्कि मैंने किसी और को पहने हुए भी कभी नहीं देखा. महायज्ञ परिधान का डिजाइन देखकर अब मैं थोड़ी बेफ़िक्र हो गयी थी. क्यूंकी गुरुजी ने कहा था की पहले तो इस यज्ञ को निर्वस्त्र होकर ही करना होता था , उस हिसाब से मैं घबरा रही थी की बहुत कम या छोटे कपड़े होंगे.
गोपाल टेलर – तुमने ये भी देखा होगा की पैंटी में एक भाग में दोहरा आवरण है.
दीपू – जी मैंने ये भी ख्याल किया था.
गोपाल टेलर – असल में ये अलग डिजाइन के इसलिए हैं क्यूंकी ये ड्रेस महायज्ञ के लिए है. मैडम, मैं आपको बता दूं की मैं इस ड्रेस में कोई फेर बदल नहीं कर सकता क्यूंकी महायज्ञ परिधान गुरुजी के निर्देशानुसार बनाया गया है.
ऐसा कहते हुए गोपालजी ने पेज पलटे और कुछ लिखा हुआ दिखाया जो महायज्ञ परिधान के लिए आश्रम से मिले हुए निर्देश थे. मैं उसे पढ़ नहीं पाई क्यूंकी समझ में नहीं आ रहा था की लिखा क्या है.
“ठीक है. मैं भी गुरुजी के निर्देशों का प्रतिकार नहीं कर सकती. इसलिए जो भी उन्होंने आपसे सिलने को कहा है , मुझे वही पहनना पड़ेगा.
गोपालजी मुस्कुराया और उसने सहमति में सर हिलाया.
गोपाल टेलर – दीपू अभी हम अंतर्वस्त्रों को रहने देते हैं. चोली बिना बाहों की है इसलिए कपड़ा काटते समय बाहों का कपड़ा कम करके काटना. मैडम की छाती का साइज 34 है तो 34 साइज के ब्लाउज के अनुसार कपड़ा काटना.
दीपू – जी ठीक है.
दोनों मर्द मेरी चूचियों की तरफ देखने लगे जैसे की आँखों से ही मेरी 34” की चूचियों का साइज नाप रहे हों. उनकी निगाहों से बचने के लिए मुझे अपनी नजरें झुकानी पड़ी.
गोपाल टेलर – मैडम, जो कपड़ा इसमें लगेगा वो बहुत खास और महँगा है. गुरुजी क्वालिटी से कभी समझौता नहीं करते. ये खास मलमल के कपड़े की तरह है, एकदम सफेद और मुलायम. दीपू , एक बार मैडम को कपड़ा दिखाओ.
दीपू ने बैग से निकालकर मुझे एक सफेद कपड़ा दिया.
“हाँ ये तो वास्तव में बहुत मुलायम और हल्का कपड़ा है.”
गोपाल टेलर – मैडम , इसको पहनकर आपको बहुत अच्छा लगेगा, ये मेरी गारंटी है.
मैंने वो कपड़ा वापस दीपू को दे दिया और उसने बैग में रख दिया. अचानक मेरी नजर दीपू की हथेलियों पर पड़ी , मैं कन्फ्यूज हो गयी , चेहरे से तो बहुत मासूम लग रहा है पर हाथ तो बड़े लग रहे हैं.
गोपाल टेलर – मैडम, प्लीज यहाँ पर लाइट के पास आ जाइए.
मैं दो तीन कदम चलकर लाइट के पास खड़ी हो गयी. मैं सोचने लगी ये छोटा लड़का कितने साल का होगा. मैंने उससे बात करने की कोशिश की.
“दीपू, सिलाई के अलावा और क्या करते हो ?”
दीपू – मैं शाम को एक किताबों की दुकान में भी काम करता हूँ.
“अच्छा. तुम्हारे कितने भाई बहन हैं ?”
असल में बात ये थी की मुझे मालूम था की नाप देते समय टेलर के सामने थोड़ा एक्सपोज करना पड़ सकता था और मैं दीपू को छोटा लड़का समझकर नजरअंदाज कर सकती थी लेकिन अब मुझे उसकी उमर पर शक़ हो रहा था.
दीपू – मेरी दो बड़ी बहनें हैं और दोनों की शादी हो चुकी है.
“अच्छा तो तुम अकेले अपने मां बाप की देखभाल करते हो.”
दीपू – हाँ मैडम, लेकिन कुछ महीने बाद मेरी घरवाली भी उनकी देखभाल करेगी.”
ये सुनकर मैं हक्की बक्की रह गयी.
“क्या ? तुम्हारी घरवाली ?”
गोपाल टेलर – मैडम, गांव में जल्दी शादी हो जाती है.
“लेकिन इसकी उमर कितनी है ?”
गोपाल टेलर – ये 18 बरस का है.
हे भगवान , जिसे मैं मासूम लड़का समझ रही थी वो तो 18 बरस का है और अब इसकी शादी भी होने वाली है. गोपालजी ने मेरे चेहरे पर आश्चर्य के भावों को देखा.
गोपाल टेलर – मैडम , ये छोटा लगता है क्यूंकी अभी इसकी दाढ़ी मूँछ नहीं आई हैं.
टेलर ज़ोर से हंसा और दीपू भी शरमाते हुए मुस्कुराने लगा. लेकिन मुझे बिल्कुल हँसी नहीं आई और ये जानकर की दीपू बालिग है अब मुझे असहज महसूस हो रहा था. इसकी तो शादी भी होने वाली है, बुड्ढे टेलर के लिए भले ही वो छोटा लड़का हो पर मेरे लिए नहीं. समस्या ये थी की अब मैं गोपालजी से कह भी नहीं सकती थी की दीपू के सामने नाप देने में मुझे असहज महसूस हो रहा है इसलिए चुप ही रहना पड़ा.
गोपालजी टेप लेकर मेरे पास आया. मुझे ध्यान आया की पिछली बार मेरे ब्लाउज की नाप लेते समय इसके पास टेप नहीं था और ये मेरे लिए बहुत शर्मिंदगी वाली बात थी क्यूंकी गोपालजी ने अपनी अंगुलियों से मेरे सीने की नाप ली थी और ब्लाउज के बाहर से मेरी बड़ी चूचियों पर अपनी हथेली रख दी थी.
गोपाल टेलर – मैडम , मेरे हाथ में टेप देखकर आपको आश्चर्य हो रहा होगा. मैंने आपको बताया था की नाप लेने के लिए मैं अपनी अंगुलियों पर भरोसा करता हूँ पर ये ख़ास ड्रेस है और मुझे गुरुजी के निर्देश मानने पड़ेंगे.
मैं मुस्कुरायी और टेप देखकर वास्तव में मुझे खुशी हुई.
गोपाल टेलर – मैडम आप अपना पल्लू हटा दें तो …
मुझे मालूम था ऐसा ही होगा लेकिन पहले मैं दीपू को छोटा समझ रही थी तो मुझे ज़्यादा संकोच नहीं था पर अब बात दूसरी थी. मैंने संकोच से पल्लू अपनी छाती से हटाया और बाएं हाथ में पकड़ लिया. दीपू की नजरें भी मुझ पर होंगी सोचकर मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था. पल्लू हटने से मेरी गोरी चूचियों का ऊपरी हिस्सा ब्लाउज के कट से दिखने लगा था. मैंने देखा दीपू की नजरें मेरी रसीली चूचियों पर ही हैं और जब हमारी नजरें मिली तो वो जल्दी से अपनी कॉपी देखने लगा.
गोपालजी टेप लेकर मेरे बहुत नजदीक़ खड़ा था और अब एक मर्द मेरे बदन को छुएगा सोचकर मेरी साँसें थोड़ी भारी हो गयी थीं. वैसे तो उस टेलर से मुझे ज़्यादा शरम नहीं थी क्यूंकी वो बुड्ढा भी था और उसने पहले भी मेरा बदन देखा था. लेकिन एक 18 बरस का जवान लड़का भी मेरी जवानी पर नजर गड़ाए है ये देखकर मेरी पैंटी में खुजली होने लगी थी.
जब मैं अपने लोकल टेलर के पास नाप देने जाती थी तब भी मैं थोड़ी असहज रहती थी क्यूंकी वो गोपालजी जैसा बुड्ढा नहीं था बल्कि 38- 40 का होगा. नाप लेते समय वो अपनी अंगुलियों से मेरे ब्लाउज के बाहर से चूचियों को छूता जरूर था. और ब्लाउज की फिटिंग देखने के बहाने चूचियों को दबा भी देता था. मुझे मालूम था की टेलर को तो नाप देनी ही पड़ेगी और वो सभी के साथ ऐसा ही करता होगा लेकिन फिर भी मैं असहज महसूस करती थी और हर बार नाप देने के बाद मेरी पैंटी गीली जरूर हो जाती थी.
गोपाल टेलर – मैडम , ये चोली बिना बाहों की है इसलिए बाँहों की नाप नहीं लेनी पड़ेगी.
“शुक्र है.”
हम दोनों मुस्कुराए और फिर मैं शरमा गयी क्यूंकी टेलर ने एक नजर मेरी बिना पल्लू की गोल चूचियों पर डाली , जो की मेरे सांस लेने के साथ ऊपर नीचे उठ रही थीं. गोपालजी ने मेरी गर्दन का नाप लिया और दीपू से कुछ नोट करने को कहा. मेरी गर्दन पर गोपालजी की ठंडी अंगुलियों के स्पर्श से मेरे बदन में कंपकपी सी हुई.
गोपाल टेलर – चोली स्ट्रैप ½ इंच.
कंधों पर स्ट्रैप की चौड़ाई सुनकर मुझे टोकना पड़ा.
“गोपालजी , कंधों पर ½ इंच तो कुछ भी नहीं है , बाँहें भी खुली हैं.”
गोपाल टेलर – लेकिन मैडम, आपको चौड़ी पट्टी क्यूँ चाहिए ? आपकी ब्रा भी तो स्ट्रैपलेस है.
मैं भूल गयी थी की इस चोली के अंदर स्ट्रैपलेस ब्रा है. इसलिए गोपालजी की बात में दम था.
“लेकिन गोपालजी इतने पतले स्ट्रैप से तो मेरे कंधे पूरे नंगे दिखेंगे.”
गोपाल टेलर – मैडम, अब डिजाइन ही ऐसा है तो….
“प्लीज गोपालजी. ये तो बहुत खुला खुला दिखेगा.”
गोपाल टेलर – नहीं मैडम, ज़्यादा खुला नहीं दिखेगा. आपके कंधे खुले रहेंगे लेकिन आपकी छाती ढकी रहेगी.

0 टिप्पणियाँ