दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा - 5

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दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा - 5

दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा - 4


मैंने दरवाजा बंद किया और उसकी आँखों में देखते हुए सोचने

लगा.. बेटा राहुल.. तवा गर्म है.. सेंक ले रोटी.. पर मुझे इसके

साथ ही एक तरफ यह भी डर था कि कहीं मैंने जो सोचा है..

वो यदि कुछ गलत हुआ.. तो सब हाथ से फिसल जाएगा..

खैर.. अब सब्र से काम ले शायद तेरी इच्छा पूरी हो जाए।

मैं अभी भी उसकी आँखों को ही देखे जा रहा था और वो

मेरी आँखों को देख रही थी।

तभी उसने मेरे मन में चल रही उथल-पुथल को समझते हुए कहा-

राहुल उधर ही खड़ा रहेगा या बैग भी पैक करेगा.. तुझे जाना

नहीं है क्या?

तो मैंने उसके मुँह से अपना नाम सुनते हुए हड़बड़ाते हुए जवाब

दिया- अरे जाना तो है।

तो वो बोली- फिर सोच क्या रहे हो.. बोलो?

फिर मैंने भी उसके मन को टटोलने के लिए व्यंग्य किया- मैं इस

बात से काफी हैरान हूँ.. कि जो लड़की मुझे कुछ देर पहले गन्दा

और बुरा बोल रही थी.. वही मुझे रोकने का प्लान क्यों बना

रही है?

इस बात को सुन कर उसने मुझे अपने पास बुलाया और अपनी

बाँहों में थाम लिया.. और फिर मुझे बिस्तर पर बैठा कर मेरे

बगल में बैठ गई।

उसकी बाँहों में जाते ही मेरी तो लंका लगी हुई थी..

उत्तेजना के साथ-साथ मन में एक अजीब सा डर भी बसा हुआ

था कि क्या ये सही है? लेकिन कहते हैं न कि वासना के आगे

कुछ समझ नहीं आता.. और न ही अच्छा-बुरा दिखाई देता है।

मैंने बोला- रूचि.. तुम तो मुझे अभी कुछ देर पहले भगा रही थीं

और फिर अब अचानक से ऐसा क्या हो गया?

तो उसने मुझे हैरानी में डाल दिया.. जब वो भैया की जगह

मुझसे ‘राहुल’ कहने लगी- देखो.. मैं नहीं चाहती कोई ड्रामा

हो.. इसलिए जब मैं और तुम अकेले होंगे तो मैं तुम्हें सिर्फ और

सिर्फ राहुल.. जान.. या चार्मिंग बॉय.. ही कह कर

बुलाऊँगी.. देखो राहुल मुझे अभी तक नहीं मालूम था कि तुम

मेरे बारे में क्या सोचते थे.. पर मैं जब से तुमसे मिली हूँ.. पता

नहीं क्यों मेरा झुकाव तुम्हारी तरफ बढ़ता ही चला गया और

न जाने कब मुझे प्यार हो गया। तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो और

सच पूछो तो मैं पता नहीं.. कब से तुम्हें दिल ही दिल में चाहने

लगी हूँ। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ राहुल.. आई लव यू..

ये कहते हुए उसने मेरी छाती को चूम लिया और उसके हाथों की

कसावट मेरी पीठ पर बढ़ने लगी।

लेकिन उसे मैंने थोड़ा और खोलने और तड़पाने के लिए अपने से

दूर किया और उसकी गिरफ्फ्त से खुद को छुड़ाया.. तो वो

तुरंत ही ऐसे बोली.. जैसे किसी चिड़िया के उड़ते वक़्त पर टूट

गए हो और वो नीचे गिर गई हो।

‘क्या हुआ राहुल तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या.. या फिर तुम मुझे

नहीं चाहते.. सिर्फ आकर्षित हो गए थे मुझसे?’

मैंने भी उसके दर्द भरे स्वर को भांपते हुए कहा- नहीं रूचि.. ऐसा

नहीं है.. जब पहली बार तुमको देखा था.. मैं तो उसी दिन से

ही तुम्हें चाहने लगा था.. मेरी सोच तो तुम पर ही ख़त्म हो गई

थी और सोच लिया था.. कैसे भी करके तुम्हें अपना बना लूँगा।

तो वो बोली- फिर मुझे अपने से अलग क्यों किया?

मैंने बोला- आज जब तुमने मुझे बहुत खरी-खोटी सुनाई.. तो मुझे

बहुत बुरा लगा.. मैं अपनी ही नजरों में खुद को नीच समझने

लगा था और मेरा सपना टूटा हुआ सा नज़र आने लगा था। मेरे

मन में कई बुरे ख्याल घर करने लगे थे।

तो वो तुरंत ही बोली- कैसे ख्याल?

मैंने अपनी बात सम्हालते हुए जबाव दिया- तुमने मेरे बारे में

बिना कुछ जाने ही मेरे सम्बन्ध अपनी माँ से जोड़ दिए.. जो

कि मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।

तो वो बोली- तुमने हरकत ही ऐसी की थी.. तुम मेरी माँ की

चड्डी लिए सोते थे.. तो भला तुम ही बोलो.. मैं क्या

समझती? और जब से तुम हमारे घर आ रहे थे.. मैं तब से ही ध्यान दे

रही थी कि तुम और माँ एक-दूसरे के काफी करीब नज़र आते थे।

इस बात पर मैंने तुरंत ही उसको डाँटते हुए स्वर में कहा- रूचि..

तुम पागल हो क्या? तुम्हारी माँ तो तुम्हारे भाई के जैसे ही

मुझे प्यार देती थी और मैं भी बिल्कुल विनोद के जैसे ही

तुम्हारी माँ का ख्याल रखता था। तुम ऐसा सोच भी कैसे

सकती हो? और रही चड्डी की बात.. तो तुम ही बताओ कि

तुम्हारे और तुम्हारी माँ के शरीर की बनावट में कोई ख़ास

अंतर है क्या?

तो वो थोड़ा सा लजा गई और मुस्कान छोड़ते हुए बोली-

सॉरी राहुल.. अगर तुम्हें मेरी वजह से कोई दुःख हुआ हो तो..

और वैसे भी जब तुमने सच मुझे बताया था.. तो मैं खुद भी अपने

आपको कोस रही थी.. अगेन सॉरी..

अब मैंने भी अपनी लाइन क्लियर देखते हुए बोला- फिर अब

आज के बाद ऐसा कभी नहीं बोलोगी।

वो तपाक से बोली- पर एक शर्त पर..

तो मैंने पूछा- कैसी शर्त?

बोली- मेरी माँ की चड्डी तुम अपने पास नहीं रखोगे।

तो मैं बोला- जब विनोद कमरे में आया था.. मैंने तो उसी वक़्त

उसको यहाँ फेंक कर बाथरूम में चला गया था.. और प्रॉमिस..

आज के बाद ऐसी गलती नहीं होगी.. क्योंकि..

तो वो मेरी बात काटते हुए बोली- क्योंकि क्या?

मैं बोला- क्योंकि अपनी चड्डी तुम खुद ही मुझे दिया

करोगी।

तो वो हँसने लगी और मेरे गालों पर चिकोटी काटते हुए

बोली- बहुत शैतान और चुलबुला है.. ये मेरा आशिक यार..

उसकी इस अदा पर मैं इतना ज्यादा मोहित हो गया कि

उसको शब्दों में पिरो ही नहीं पा रहा हूँ।

फिर वो मेरी ओर प्यार भरी नजरों से देखते हुए बोली- जान..

अब तो मेरी माँ की चड्डी दे दो।

तो मैंने बोला- मेरे पास नहीं है.. यहीं तो फेंककर गया था।

वो बोली- तुमने अभी नीचे कुछ नहीं पहना है क्या?

तो मैंने बोला- नहीं.. पर तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो?

वो बोली- फिर क्या तुम ऐसे ही नहाए और ऐसे ही बाहर भी

आ गए?

मैंने उसे थोड़ा और खोलने के लिए शरारत भरे लहज़े में बोला-

थोड़ा खुलकर बोलो न.. क्या ‘ऐसे..ऐसे..’ लगा रखा है।

तो वो बोली- बेटा.. तुम समझ सब रहे हो.. पर अपनी बेशर्मी

दिखा रहे हो.. पर मुझे शर्म आ रही है।

अब मैंने तुरंत ही उसका हाथ पकड़ा और बोला- यहाँ हम दोनों

के सिवा और है ही कौन.. और मुझसे कैसी शर्म?

तो वो बोली- अरे जाने दो..

मैंने उसे आँख मारते हुए बोला- ऐसे कैसे जाने दो..

तो वो मुस्कुराते हुए बोली- मेरे ‘ऐसे-ऐसे’ का मतलब था कि तुम

नंगे-नंगे ही नहा लेते हो.. तुम्हें शर्म नहीं आती?

तो मैंने उससे बोला- खुद से कैसी शर्म..? क्या तुम ‘ऐसे..ऐसे..’

नहीं नहातीं?

वो बोली- न बाबा.. मुझे तो शर्म आती है।

मैंने उसकी जांघों पर हाथ रखते हुए बोला- एक बार आज़मा कर

देखो.. कितना मज़ा आता है।

यह सुनते ही उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया और मैंने उसके

शरीर पर एक अजीब सी फुरकन जैसी हरकत महसूस की..

क्योंकि मेरा हाथ उसकी जाँघों पर था।

फिर वो मेरी बात काटते हुए बोली- देखेंगे कभी करके ऐसे..

लेकिन जो चड्डी तुम ले गए थे.. वो है कहाँ?

तो मैंने भी लोअर की जेब में हाथ डाला और झटके से उसकी

आँखों के सामने लहराने के साथ-साथ बोला- लो कर लो

तसल्ली.. मेरी ही है कि नहीं?

वो एकदम से बोली- अरे मेरे भोले राजा.. अब तो खुद भी तो

देख लो.. या फिर नज़र कमजोर हो चली।

मैंने जैसे ही उसके चेहरे से नज़र हटाई और चड्डी की ओर देखा..

तो वो बोली- क्या है ये?

मैंने शर्मा कर सॉरी बोलते हुए बोला- मैंने ध्यान ही नहीं

दिया यार.. उस समय हड़बड़ाहट में कुछ समझ ही नहीं आया..

खैर.. ये लो.. पर मेरी चड्डी कहाँ है?

तो उसने बोला- तुम्हें मेरी खुश्बू अच्छी लगती है न.. तो मैंने उसे

पहन लिया.. वैसे भी तुम्हारी ‘वी-शेप’ की चड्डी बिल्कुल

मेरी ही जैसी चड्डी की तरह दिखी.. तो मैंने पहन ली..

ताकि मैं तुम्हें अपनी खुश्बू दे सकूँ और उसे अपने पास रखने में तुम्हें

शर्म भी न आए..

ये सुनकर पहले तो मुझे लगा कि ये मज़ाक कर रही है, तो मैंने

बोला- यार मज़ाक बाद मैं. मुझे अभी जल्दी से तैयार होकर घर

के लिए भी निकलना है।

बोली- अरे.. मज़ाक नहीं कर रही मैं.. अभी खुद ही महसूस कर

लेना..

ये कहती हुई वो बाथरूम में चली गई और जब निकली तो उसके

हाथ में मेरी ही चड्डी थी।

पर जब तक मैं उसे पहने हुए देख न लेता.. तो कैसे समझता कि उसने

पहनी ही थी।

फिर वो मेरे पास आकर खड़ी हुई और मेरी चड्डी देते हुए बोली-

लो और अब कभी भी ऐसी खुश्बू की जरुरत हो.. तो मुझे अपनी

ही चड्डी दे दिया करना।

मैंने उसके हाथों से लेते ही उसको देखा तो उसके अगले भाग पर

मुझे उसके चूत का रस महसूस हुआ और मैंने सोचा.. लगता है रूचि

कुछ ज्यादा ही गर्म हो गई थी। इसे क्यों न और गर्म कर दिया

जाए ताकि ये भी अपनी माँ की तरह ‘लण्ड..लण्ड..’

चिल्लाने लगे।

तो मैंने उसकी ओर ही देखते हुए बिना कुछ सोचे-समझे ही उसके

रस को सूंघने और चाटने लगा और अपनी नजरों को उसके चेहरे

पर टिका दीं।

मैंने उसके चेहरे के भावों को पढ़ते हुए महसूस किया कि वो कुछ

ज्यादा ही गर्म होने लगी थी। उसके आँखों में लाल डोरे

साफ़ दिखाई दे रहे थे। उसके होंठ कुछ कंपने से लगे थे.. मुझे ऐसा

लग रहा था जैसे मैं उसकी चूत का रस अपनी चड्डी से नहीं..

बल्कि उसकी चूत से चूस रहा होऊँ।

मैंने उसे ज्यादा न तड़पाने की सोचते हुए अपनी चड्डी से

मुँह को हटा लिया और उसकी ओर मुस्कुराते हुए बोला- वाह

यार.. क्या महक थी इसकी.. इसे मैं हमेशा अपने जीवन में याद

रखूँगा.. आई लव यू रूचि..

तो वो भी मन ही मन में मचल उठी और शायद उसे भी अपने रस

को अपने होंठों पर महसूस करना था.. इसलिए उसने कहा-

अच्छा.. इतनी ही मादक खुश्बू और स्वाद था ये.. तो मुझे

मालूम ही नहीं.. कि मेरी वेजिना किसी को इतना पागल

कर सकती है?

मैं उसके मुँह से ‘वेजिना’ शब्द सुनकर हँसने लगा.. तो वो बोली-

मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो न..

मैं बोला- ऐसा नहीं है..

तो उसने भी प्रतिउत्तर मैं कहा- फिर कैसा है?

‘तुम्हें क्या यही मालूम है.. या बन कर बोली थीं..?’

तो वो बोली- क्या?

मैंने फिर से हँसते हुए कहा- वेजिना..

तो वो बोली- उसे यही कहते हैं.. मैं और कुछ नहीं जानती..

मैंने बोला- क्या सच मैं?

तो वो बोली- क्या लिखकर दे दूँ.. पर मुझे तुम बताओ न.. इसे

और क्या कहते हैं?

मैं बोला- फिर तुम्हें भी दोहराना होगा..

तो वो तैयार हो गई.. फिर मैंने उसकी वेजिना को अपनी

गदेली में भरते हुए कामुकता भरे अंदाज में बोला- जान.. इसे

हिंदी में बुर और चूत भी बोलते हैं।

मेरी इस हरकत से वो कुछ मदहोश सी हो गई और उसके मुख से

‘आआ.. आआआह..’ रूपी एक मादक सिसकारी निकल पड़ी।

मैंने उसकी चूत पर से हाथ हटा लिया इससे वो और बेहाल हो

गई.. लेकिन वो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती थी कि मैं उसकी

चूत को छोड़ दूँ.. जो कि उसने मुझे बाद में बताया था।

लेकिन स्त्री-धर्म.. लाज-धर्म पर चलता है.. इसलिए उस समय

वो मुझसे कुछ कह न सकी और मुझसे धीरे से बोली- राहुल..

क्या इतनी अच्छी खुश्बू आती है मेरी चू… से..

ये कहती हुई वो ‘सॉरी’ बोली.. तो मैं तपाक से बोला- मैडम

सेंटेंस पूरा करो.. अभी तुमने बोला कि दोहराओगी और वैसे

भी अब.. जब तुम भी मुझे चाहती हो.. तो अपनी बात खुल कर

कहो।

तो बोली- नहीं.. फिर कभी..

मैं बोला- नहीं.. अभी के अभी बोलो.. नहीं तो मैं आज शाम

को नहीं आऊँगा।

ये मैंने उसे झांसे में लेने को बोला ही था कि उसने तुरंत ही मेरा

हाथ पकड़ा और लटका हुआ सा उदास चेहरा लेकर बोली-

प्लीज़ राहुल.. ऐसा मत करना.. तुम जो कहोगे.. वो मैं करूँगी।

मैंने बोला- प्रॉमिस?

तो वो बोली- गॉड प्रोमिस..

शायद वो वासना के नशे में कुछ ज्यादा ही अंधी हो चली

थी.. क्योंकि उसके चूचे अब मेरी छाती पर रगड़ खा रहे थे और

वो मुझे अपनी बाँहों में जकड़े हुए खड़ी थी। उसके सीने की

धड़कन बता रही थी कि उसे अब क्या चाहिए था।

तो मैंने उसे छेड़ते हुए कहा- तो क्या कहा था.. अब बोल भी

दो?

तो वो बोली- क्या मेरी चूत की सुगंध वाकयी में इतनी

अच्छी है…

तो मैंने बोला- हाँ मेरी जान.. सच में ये बहुत ही अच्छी है।

वो बोली- फिर सूंघते हुए चाट क्यों रहे थे?

तो मैंने बोला- तुम्हारे रस की गंध इतनी मादक थी कि मैं ऐसा

करने पर मज़बूर हो गया था.. उसका स्वाद लेने के लिए..

ये कहते हुए एक बार फिर से अपने होंठों पर जीभ फिराई.. जिसे

रूचि ने बड़े ही ध्यान से देखते हुए बोला- मैं तुमसे कुछ बोलूँ..

करोगे?

तो मैंने सोचा लगता है.. आज ही इसकी बुर चाटने की इच्छा

पूरी हो जाएगी क्या?

ये सोचते हुए मन ही मन मचल उठा।

मैंने उसे ज्यादा न तड़पाने की सोचते हुए अपनी चड्डी से

मुँह को हटा लिया और उसकी ओर मुस्कुराते हुए बोला- वाह

यार.. क्या महक थी इसकी.. इसे मैं हमेशा अपने जीवन में याद

रखूँगा.. आई लव यू रूचि..

तो वो भी मन ही मन में मचल उठी और शायद उसे भी अपने रस

को अपने होंठों पर महसूस करना था.. इसलिए उसने कहा-

अच्छा.. इतनी ही मादक खुश्बू और स्वाद था ये.. तो मुझे

मालूम ही नहीं.. कि मेरी वेजिना किसी को इतना पागल

कर सकती है?

मैं उसके मुँह से ‘वेजिना’ शब्द सुनकर हँसने लगा.. तो वो बोली-

मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो न..

मैं बोला- ऐसा नहीं है..

तो उसने भी प्रतिउत्तर मैं कहा- फिर कैसा है?

‘तुम्हें क्या यही मालूम है.. या बन कर बोली थीं..?’

तो वो बोली- क्या?

मैंने फिर से हँसते हुए कहा- वेजिना..

तो वो बोली- उसे यही कहते हैं.. मैं और कुछ नहीं जानती..

मैंने बोला- क्या सच मैं?

तो वो बोली- क्या लिखकर दे दूँ.. पर मुझे तुम बताओ न.. इसे

और क्या कहते हैं?

मैं बोला- फिर तुम्हें भी दोहराना होगा..

तो वो तैयार हो गई.. फिर मैंने उसकी वेजिना को अपनी

गदेली में भरते हुए कामुकता भरे अंदाज में बोला- जान.. इसे

हिंदी में बुर और चूत भी बोलते हैं।

मेरी इस हरकत से वो कुछ मदहोश सी हो गई और उसके मुख से

‘आआ.. आआआह..’ रूपी एक मादक सिसकारी निकल पड़ी।

मैंने उसकी चूत पर से हाथ हटा लिया इससे वो और बेहाल हो

गई.. लेकिन वो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती थी कि मैं उसकी

चूत को छोड़ दूँ.. जो कि उसने मुझे बाद में बताया था।

लेकिन स्त्री-धर्म.. लाज-धर्म पर चलता है.. इसलिए उस समय

वो मुझसे कुछ कह न सकी और मुझसे धीरे से बोली- राहुल..

क्या इतनी अच्छी खुश्बू आती है मेरी चू… से..

ये कहती हुई वो ‘सॉरी’ बोली.. तो मैं तपाक से बोला- मैडम

सेंटेंस पूरा करो.. अभी तुमने बोला कि दोहराओगी और वैसे

भी अब.. जब तुम भी मुझे चाहती हो.. तो अपनी बात खुल कर

कहो।

तो बोली- नहीं.. फिर कभी..

मैं बोला- नहीं.. अभी के अभी बोलो.. नहीं तो मैं आज शाम

को नहीं आऊँगा।

ये मैंने उसे झांसे में लेने को बोला ही था कि उसने तुरंत ही मेरा

हाथ पकड़ा और लटका हुआ सा उदास चेहरा लेकर बोली-

प्लीज़ राहुल.. ऐसा मत करना.. तुम जो कहोगे.. वो मैं करूँगी।

मैंने बोला- प्रॉमिस?

तो वो बोली- गॉड प्रोमिस..

शायद वो वासना के नशे में कुछ ज्यादा ही अंधी हो चली

थी.. क्योंकि उसके चूचे अब मेरी छाती पर रगड़ खा रहे थे और

वो मुझे अपनी बाँहों में जकड़े हुए खड़ी थी। उसके सीने की

धड़कन बता रही थी कि उसे अब क्या चाहिए था।

तो मैंने उसे छेड़ते हुए कहा- तो क्या कहा था.. अब बोल भी

दो?

तो वो बोली- क्या मेरी चूत की सुगंध वाकयी में इतनी

अच्छी है…

तो मैंने बोला- हाँ मेरी जान.. सच में ये बहुत ही अच्छी है।

वो बोली- फिर सूंघते हुए चाट क्यों रहे थे?

तो मैंने बोला- तुम्हारे रस की गंध इतनी मादक थी कि मैं ऐसा

करने पर मज़बूर हो गया था.. उसका स्वाद लेने के लिए..

ये कहते हुए एक बार फिर से अपने होंठों पर जीभ फिराई.. जिसे

रूचि ने बड़े ही ध्यान से देखते हुए बोला- मैं तुमसे कुछ बोलूँ..

करोगे?

तो मैंने सोचा लगता है.. आज ही इसकी बुर चाटने की इच्छा

पूरी हो जाएगी क्या?

ये सोचते हुए मन ही मन मचल उठा।

तो मैं उसकी चूत की कसावट को देखते हुए बोला- कोई बात

नहीं.. मैं सब सिखा दूँगा और रही बात सूंघने की.. तो मैं तो

सोच रहा हूँ.. इसे चाट कर सूँघूं या सूंघ कर चाटूं..।

तो वो बोली- जो भी करना.. जल्दी करो.. नहीं तो तुम्हें देर

हो जाएगी जाने में.. और प्लान भी बिगड़ सकता है।

मैंने तुरंत ही उसके नितंबों को पकड़ कर बिस्तर के आगे की ओर

खींचा ताकि उसकी चूत पर मुँह आराम से लगा सकूँ।

फिर मैंने बिना देर किए हुए उसे बिस्तर के किनारे लाया और

सीधा उसकी चूत पर मुँह लगा कर उसके दाने को अपनी जुबान

से छेड़ने लगा.. जिससे उसके मुँह से मादक सिसकारियाँ फूट

पड़ीं- ओह्ह..शिइई..

मैंने जब उसकी ओर देखा तो वो अपने चेहरे को अपने दोनों

हाथों से ढके हुए थी.. पर जब उसने अपनी चूत पर मेरा मुँह नहीं

महसूस किया.. तो अपनी आँख खोल कर मुझसे बोली- राहुल..

यार फिर से कर न.. मुझे बहुत अच्छा लगा.. मुझे नहीं पता था

कि इसमें इतना मज़ा आता है।

तो मैं बोला- परेशान मत हो… अभी तो खेल शुरू हुआ है.. देखती

जाओ.. मैं क्या-क्या और कितना मजा देता हूँ।

वो बोली- एक बात पूछू.. मज़ाक तो नहीं बनाओगे मेरा?

तो मैं बोला- हाँ.. पूछो..

वो बोली- राहुल मैं चाहती हूँ.. कि जो मज़ा तुम मुझे दे रहे

हो.. वो मैं भी दूँ.. क्या ये एक साथ हो सकता है? मेरा मतलब

तुम मेरी वेजिना को मुँह से प्यार करो और मैं तुम्हारे पेनिस को

अपने मुँह से प्यार करूँ।

मैंने अपनी ख़ुशी दबाते हुए कहा- हो सकता है..

तो वो चहकते हुए स्वर में बोली- राहुल सच..

मैंने बोला- हम्म..

तो वो बोली- पर कैसे?

मैं बोला- तुम सच में कुछ नहीं जानती..

तो वो बोली- तुम्हारी कसम.. ये मेरा पहला अनुभव है।

मैंने कहा- अच्छा चलो कोई बात नहीं.. मैं तुम्हें सिखा दूंगा सब

कुछ..

मैं मन ही मन बहुत खुश हो गया कि चलो अपने आप ही मेरा

काम आसान हो गया।

मैंने तुरंत ही खड़े होकर अपने लोअर को नीचे खिसकाकर अपने

शरीर से अलग कर दिया.. जिससे मेरा पहले से ही खड़ा

‘सामान’ बाहर आ कर झूलने लगा।

मेरा लवड़ा देखकर रूचि बोली- यार ये बताओ.. तुम्हारा ये

पेनिस मेरे मुँह तक कैसे आएगा.. जब तुम नीचे बैठोगे तभी तो मैं

कुछ कर पाऊँगी

तो मैं बोला- पहले तो इसे पेनिस नहीं लण्ड बोलो.. और अपना

दिमाग न लगाओ.. जैसे मैं बोलूँ.. वैसे करो।

तो वो चहक कर बोली- ठीक है.. चलो अब जल्दी से अपना

ल..लण्ड मेरे मुँह में डालो और अपना मुँह मेरी च..चूत पर

लगाओ.. अब मुझसे और इंतज़ार नहीं हो सकता।

लण्ड-चूत कहने में वो कुछ हिचक रही थी.. बेचारी.. सच में

उसको कुछ नहीं मालूम था कि कैसे क्या करना है.. उसे तो बस

इतना ही मालूम था कि लण्ड चूत में जाता है जिससे माल

निकलता है.. और लण्ड का माल चूत में भर जाता है.. जिससे

बच्चा हो जाता है बस।

ये सब उसने मुझे बाद में बताया था..

मैंने उसे बिस्तर पर सही से लिटाया और हम 69 अवस्था में

लेट गए। यह देख कर उसके दिमाग की बत्ती जल उठी और रूचि

खुश होते हुए बोली- यार वाकयी में तुम स्मार्ट के साथ-साथ

होशियार भी हो.. क्या जुगाड़ निकाला है..

मैं तुरंत ही उसकी चूत के दाने को अपनी जुबान से छेड़ने लगा

और वो मेरे लण्ड को पकड़ कर खेलने लगी और थोड़ी ही देर में

उसने अपनी नरम जुबान मेरे लौड़े पर रखकर सुपाड़े को चाटने

लगी.. जिससे मुझे असीम आनन्द की प्राप्ति होने लगी।

उसकी गीली जुबान की हरकत से मेरे अन्दर ऐसा वासना का

सैलाब उमड़ा.. जिसे मैं शब्द देने में असमर्थ हूँ.. फिर मैंने भी

प्रतिउत्तर में उसके दाने को अपने मुँह में भर-भर कर चूसना चालू

कर दिया.. जिससे उसके मुँह से ‘अह्ह्ह ह्ह.. हाआआह…

आआआ..’ की आवाज स्वतः ही निकलने लगी।

उसके शरीर में एक अजीब सा कम्पन हो रहा था.. जिसे मैं

महसूस करने लगा।

चूत चुसवाने के थोड़ी ही देर में वो अपनी टाँगें खुद ही फ़ैलाने

लगी और अपने चूतड़ों को उठा कर मेरे मुँह पर रगड़ने लगी।

अब मुझे एहसास हो गया कि रूचि को इस क्रिया में असीम

आनन्द की प्राप्ति हो रही है। फिर मैंने उसके जोश को और

बढ़ाने के लिए अपनी उँगलियों के माध्यम से उसकी चूत की

दरार को थोड़ा फैलाया और देखता ही रह गया.. चूत के अन्दर

का बिलकुल ऐसा नज़ारा था.. जैसे किसी ने तरबूज पर हल्का

सा चीरा लगा कर फैलाया हो.. उसकी चूत से रिस रहा

पानी उसकी और शोभा बढ़ा रहा था।

मैंने बिना कुछ सोचे अपनी जुबान उसकी दरार में डाल दी..

और उसे चाटने लगा।

जिससे उत्तेजित होकर रूचि ने भी मेरे लण्ड के शिश्न-मुण्ड को

और अन्दर ले कर चूसते हुए ‘ओह.. शिइ… इइइइ.. शीईईई..’ की

सीत्कार के साथ ‘अह्ह्ह.. अह्ह्ह्ह ह्ह..’ करने लगी।

तो मैंने वक्त की नज़ाकत देखते हुए अपनी एक ऊँगली उसकी चूत

के छेद में घुसेड़ दी.. जिससे उसकी एक और दर्द भरी ‘आह्ह्ह्ह

ह्ह..’ छूट गई और दर्द से तड़पते हुए बोली- यार.. लग रही है ये..

क्या कर दिया.. अब तो अन्दर जलन सी होने लगी है..

तो मैंने मन में सोचा शायद इसने अपनी चूत में ऊँगली भी नहीं

डाली है.. इसलिए इसे ऐसा लग रहा होगा।

मैंने बोला- जान बस थोड़ा रुको.. अभी सही किए देता हूँ।

फिर मैंने उंगली बाहर निकाली और उसकी चूत पर थूक का ढेर

लगाकर.. उसके छेद को चूसते हुए.. जुबान से ही अपने थूक को

उसके छेद के अन्दर ठेलने लगा.. जिससे उसका दर्द अपने आप ही

ठीक होने लगा।

‘अह्ह्ह्ह.. अह्ह्ह ह्ह्ह्ह.. शिइइ… शहअह…’ की ध्वनि उसके मुँह से

निकलने लगी।

दोस्तो, सच में उस समय मेरी थूक ने उसके साथ बिल्कुल एंटी

बायोटिक वाला काम किया और जब वो मस्तिया के फिर

से मेरा लण्ड चूसने लगी.. तो मैंने फिर से उसकी चूत में उंगली

डाल दी।

इस बार वो थोड़ा कसमसाई तो.. पर कुछ बोली नहीं.. शायद

वो और आगे का मज़ा लेना चाहती थी.. या फिर उसे

दोबारा में दर्द कम हुआ होगा।

अब मैंने धीरे-धीरे उसकी चूत में उंगली करते हुए उसके दाने को

अपनी जुबान से छेड़ने और मुँह से चूसने लगा। मेरी इस हरकत से

उसने भी जोश में आकर मेरे लौड़े को अपने मुँह में और अन्दर ले

जाते हुए तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगी।

उसके शरीर में हो रहे कम्पन को महसूस करते हुए मैं समझ गया कि

अब रूचि झड़ने वाली है.. यही सही मौका है दूसरी उंगली भी

अन्दर कर दो.. ताकि छेद भी थोड़ा और फ़ैल जाए।

इस अवस्था में इसे दर्द भी महसूस नहीं होगा.. ये विचार आते

ही मेरा भी जोश बढ़ गया और मैं एक सधे हुए खिलाड़ी की

तरह उसकी चूत में तेजी से उंगली अन्दर-बाहर करने लगा।

अब रूचि के मुँह से भी ‘गु.. गगगग गु.. आह्ह..’ की आवाज़

निकलने लगी.. क्योंकि वो भी मेरा लौड़ा फुल मस्ती में चूस

रही थी.. जैसे सारा आज ही रस चूस-चूस कर खत्म कर देगी।

मैंने तुरंत ही अपनी उंगली अन्दर-बाहर करते हुए अचानक से पूरी

बाहर निकाली और दोबारा तुरंत ही दो उँगलियों को

मिलाकर एक ही बार में घुसेड़ दी.. जिससे उसके दांत मेरे लौड़े

पर भी गड़ गए और उसके साथ-साथ मेरे भी मुँह से भी ‘अह्ह

ह्ह्ह्ह..’ की चीख निकल गई।

सच कहूँ दोस्तो, हम दोनों को इसमें बहुत मज़ा आया था।

आज भी हम आपस में जब मिलते हैं तो इस बात को याद करते

ही एक्साइटेड हो जाते हैं मेरा लौड़ा तन कर आसमान छूने

लगता है और उसकी चूत कामरस की धार छोड़ने लगती है।

खैर.. जब उसका दर्द कुछ कम हुआ तो फिर से वो लण्ड को

चचोर-चचोर कर चूसने लगी और अपनी टांगों को मेरे सर पर

बांधते हुए कसने लगी।

वो मेरे लौड़े को बुरी तरह चूसते हुए ‘अह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह ह्ह्ह..’ के

साथ ही झड़ गई। उसका यह पहला अनुभव था.. जो कि शायद

10 से 15 मिनट तक ही चल पाया था।

मेरा अभी बाकी था.. पर मैंने वहीं रुक जाना बेहतर समझा..

क्योंकि ये उसके जीवन का पहला सुखद अनुभव था.. जो कि

उसके शरीर की शिथिलता बयान कर रही थी।

मैंने इस तरह उसके रस को पूरा चाट लिया और छोड़ता भी

कैसे.. आखिर मेरी मेहनत का माल था।

उसकी तेज़ चलती सांसें.. मेरे लौड़े पर ऐसे लग रही थीं.. जैसे मेरे

लौड़े में नई जान डाल रही हो.. और मैं भी पूरी मस्ती में

उसकी बुर को चाट कर साफ करने लगा।

जब उसकी सांसें थोड़ा सधी.. तो वो एक लम्बी कराह ‘अह्ह्ह

ह्ह्ह्ह..’ के साथ चहकते हुए स्वर में बोली- राहुल.. यू आर

अमेज़िंग.. सच यार.. मुझे तो तूने फुल टाइट कर दिया.. यार लव

यू और ये क्या तुम्हें लगता है.. ज्यादा मज़ा नहीं आया क्योंकि

तुम पहले की ही तरह नार्मल दिख रहे हो.. जबकि मैं पसीने-

पसीने हो गई।

तो मैं बोला- जान तुम्हारा डिस्चार्ज हो गया है और मेरा

अभी नहीं हुआ है और असली मज़ा डिस्चार्ज होने के बाद ही

आता है।

उसने झट से बिना कुछ बोले- मेरे लण्ड को पकड़ा और दबा कर

बोली- अच्छा.. तुम पहले की तरह मेरे जैसे बिस्तर पर बैठो और मैं

जमीन पर बैठ कर तुम्हारी तरह करती हूँ।

मैं तुरंत ही बैठ गया और वो उठी और मेरे सामने अपने घुटनों के

बल जमीन पर बैठकर मेरे लौड़े को पकड़ कर अपने मुँह में डालकर

चूसने लगी।

फिर मैंने उंगली बाहर निकाली और उसकी चूत पर थूक का ढेर

लगाकर.. उसके छेद को चूसते हुए.. जुबान से ही अपने थूक को

उसके छेद के अन्दर ठेलने लगा.. जिससे उसका दर्द अपने आप ही

ठीक होने लगा।

‘अह्ह्ह्ह.. अह्ह्ह ह्ह्ह्ह.. शिइइ… शहअह…’ की ध्वनि उसके मुँह से

निकलने लगी।

दोस्तो, सच में उस समय मेरी थूक ने उसके साथ बिल्कुल एंटी

बायोटिक वाला काम किया और जब वो मस्तिया के फिर

से मेरा लण्ड चूसने लगी.. तो मैंने फिर से उसकी चूत में उंगली

डाल दी।

इस बार वो थोड़ा कसमसाई तो.. पर कुछ बोली नहीं.. शायद

वो और आगे का मज़ा लेना चाहती थी.. या फिर उसे

दोबारा में दर्द कम हुआ होगा।

अब मैंने धीरे-धीरे उसकी चूत में उंगली करते हुए उसके दाने को

अपनी जुबान से छेड़ने और मुँह से चूसने लगा। मेरी इस हरकत से

उसने भी जोश में आकर मेरे लौड़े को अपने मुँह में और अन्दर ले

जाते हुए तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगी।

उसके शरीर में हो रहे कम्पन को महसूस करते हुए मैं समझ गया कि

अब रूचि झड़ने वाली है.. यही सही मौका है दूसरी उंगली भी

अन्दर कर दो.. ताकि छेद भी थोड़ा और फ़ैल जाए।

इस अवस्था में इसे दर्द भी महसूस नहीं होगा.. ये विचार आते

ही मेरा भी जोश बढ़ गया और मैं एक सधे हुए खिलाड़ी की

तरह उसकी चूत में तेजी से उंगली अन्दर-बाहर करने लगा।

अब रूचि के मुँह से भी ‘गु.. गगगग गु.. आह्ह..’ की आवाज़

निकलने लगी.. क्योंकि वो भी मेरा लौड़ा फुल मस्ती में चूस

रही थी.. जैसे सारा आज ही रस चूस-चूस कर खत्म कर देगी।

मैंने तुरंत ही अपनी उंगली अन्दर-बाहर करते हुए अचानक से पूरी

बाहर निकाली और दोबारा तुरंत ही दो उँगलियों को

मिलाकर एक ही बार में घुसेड़ दी.. जिससे उसके दांत मेरे लौड़े

पर भी गड़ गए और उसके साथ-साथ मेरे भी मुँह से भी ‘अह्ह

ह्ह्ह्ह..’ की चीख निकल गई।

सच कहूँ दोस्तो, हम दोनों को इसमें बहुत मज़ा आया था।

आज भी हम आपस में जब मिलते हैं तो इस बात को याद करते

ही एक्साइटेड हो जाते हैं मेरा लौड़ा तन कर आसमान छूने

लगता है और उसकी चूत कामरस की धार छोड़ने लगती है।

खैर.. जब उसका दर्द कुछ कम हुआ तो फिर से वो लण्ड को

चचोर-चचोर कर चूसने लगी और अपनी टांगों को मेरे सर पर

बांधते हुए कसने लगी।

वो मेरे लौड़े को बुरी तरह चूसते हुए ‘अह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह ह्ह्ह..’ के

साथ ही झड़ गई। उसका यह पहला अनुभव था.. जो कि शायद

10 से 15 मिनट तक ही चल पाया था।

मेरा अभी बाकी था.. पर मैंने वहीं रुक जाना बेहतर समझा..

क्योंकि ये उसके जीवन का पहला सुखद अनुभव था.. जो कि

उसके शरीर की शिथिलता बयान कर रही थी।

मैंने इस तरह उसके रस को पूरा चाट लिया और छोड़ता भी

कैसे.. आखिर मेरी मेहनत का माल था।

उसकी तेज़ चलती सांसें.. मेरे लौड़े पर ऐसे लग रही थीं.. जैसे मेरे

लौड़े में नई जान डाल रही हो.. और मैं भी पूरी मस्ती में

उसकी बुर को चाट कर साफ करने लगा।

जब उसकी सांसें थोड़ा सधी.. तो वो एक लम्बी कराह ‘अह्ह्ह

ह्ह्ह्ह..’ के साथ चहकते हुए स्वर में बोली- राहुल.. यू आर

अमेज़िंग.. सच यार.. मुझे तो तूने फुल टाइट कर दिया.. यार लव

यू और ये क्या तुम्हें लगता है.. ज्यादा मज़ा नहीं आया क्योंकि

तुम पहले की ही तरह नार्मल दिख रहे हो.. जबकि मैं पसीने-

पसीने हो गई।

तो मैं बोला- जान तुम्हारा डिस्चार्ज हो गया है और मेरा

अभी नहीं हुआ है और असली मज़ा डिस्चार्ज होने के बाद ही

आता है।

उसने झट से बिना कुछ बोले- मेरे लण्ड को पकड़ा और दबा कर

बोली- अच्छा.. तुम पहले की तरह मेरे जैसे बिस्तर पर बैठो और मैं

जमीन पर बैठ कर तुम्हारी तरह करती हूँ।

मैं तुरंत ही बैठ गया और वो उठी और मेरे सामने अपने घुटनों के

बल जमीन पर बैठकर मेरे लौड़े को पकड़ कर अपने मुँह में डालकर

चूसने लगी।

फिर वो उठी और बाथरूम में जाकर मुँह धोया और वापस आकर

मेरे पास बैठ गई और इस समय मैं और रूचि दोनों ही नीचे कुछ

नहीं पहने थे जिससे मुझे साफ़ पता चल रहा था कि रूचि का

चूत रस अभी भी बह रहा है।

तो मैंने उसे छेड़ते हुए पूछा- अरे तुम तो बहुत माहिर हो लण्ड चूसने

में… कहाँ से सीखा?

तो बोली- और कहाँ से सीखूँगी… बस अभी अभी सीख

लिया!

तो मैं बोला- कैसे?

तो वो बोली- जैसे तुम अच्छे से बिना दांत गड़ाए मेरी चूत को

अपने मुँह में भर भर कर चूस रहे थे तो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था,

ऐसा लग रहा था कि तुम बस चूसते ही रहो… मुझे सच में बहुत

अच्छा लगा और तुम्हारी उँगलियों ने तो कमाल कर दिया,

जैसे तुमने अपनी उंगली नहीं बल्कि मेरे अंदर नई जान डाल दी

हो! ठीक वैसे ही मैंने भी सोचा कि क्यों न तुम्हें भी तुम्हारी

तरह मज़ा दिया जाये! बस मैंने तुम्हारी नक़ल करके वैसे ही

किया और मुझे पता है कि तुम्हें भी बहुत मज़ा आया… पर यार,

तुमने मेरी हालत ही बिगाड़ दी थी, मेरी तो सांस ही फूल गई

थी पर अब दोबारा ऐसा न करना वरना… मैं नहीं करुँगी।

तो मैं बोला- फिर अभी क्यों किया?

वो बोली- क्योंकि तुमने मुझे इतनी मज़ा दिया था जिसे मैं

अपने जीवन में कभी नहीं भुला सकती!

मैंने बोला- अच्छा अगर मैं इसी तरह तुम्हें मज़ा देता रहा तो

क्या तुम भी मुझे मज़े देती रहोगी?

वो बोली- यह बाद की बात है पर सच में मेरे गले में दर्द होने

लगा था!

मैंने बोला- अच्छा, अब आगे से ध्यान रखूँगा पर तुम्हें बता दूँ कि

आने वाले दिनों में मैं बहुत कुछ देने वाला हूँ।

वो बोली- और क्या?

तब मैंने बोला- यह तो सिर्फ शुरुआत है, और अभी सब बता कर

मज़ा नहीं खराब करना चाहता, बस देखती जाओ कि आगे आगे

होता है क्या?

कहते हुए मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में दबा कर उसके

होंठों का रसपान करने लगा और वो भी मेरा पूर्ण सहयोग देते

हुए मेरे निचले होंठ को पागलों की तरह बेतहाशा चूसे जा रही

थी, मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं जन्नत में हूँ, मुझे

बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि ये सब इतनी जल्दी हो

जायेगा।

खैर मैं उसके पंखुड़ी समान होंठों को चूसते हुए उसकी पीठ

सहलाने लगा और रूचि की मस्ती वासना से भरने लगी।

मैंने मौके को देखते हुए उसके चूचों पर धीरे से दोनों हाथ रखकर

उन्हें सहलाने लगा और हल्का हल्का सा दबा भी देता जिससे

रूचि के मुख से सिसकारियाँ ‘शिइइइइइइइ’ फ़ूट पड़ती जो आग

में घी का काम कर रही थी।

फिर मैंने अपने दोनों हाथों को नीचे ले जाकर उसकी टी-शर्ट

ऊपर की ओर उठाते हुए उसे किस करता रहा। तभी अचानक

उसने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़ लिया और

बोली- यह क्या कर रहे हो? इसकी क्या जरूरत?

तो मैंने बोला- तुम्हें इसके पहले कुछ पता भी था या मुझसे

सीखा?

वो बोली- तुमसे… पर तुम्हें तो मेरी चूत पसंद है न… वो तो कब

की खुली है।

तो मैं बोला- जान असली मज़ा तो खुले में ही आता है न! मेरी

बात मानो!

वो हल्की सी मुस्कान के साथ फिर से मेरी बाँहों में आ गई

और मेरे कान के पास मुख ले जाकर फुसफुसाई- यार, मुझे शर्म आ

रही है, अगर इसे न उतारा जाये तो क्या काम नहीं चलेगा?

मैं बोला- हम्म… बिल्कुल बिना टॉप उतारे वो मज़ा आ ही

नहीं सकता।

तो वो बोली- क्यों?

तो मैंने मन ही मन खुश होते हुए अपने हाथों को ठीक से साध के

उसके चूचों पर निशाना साधा और अचानक मैंने उसके गोल और

मांसल चूचों को भींचते हुए मसक दिया जिससे उसकी दर्द

भरी ‘अह्ह… ह्ह्ह्ह… आह्ह…’ निकल गई और मुझसे अलग हट कर

अपने चूचों को सहलाने लगी और मुझसे गुस्सा करते हुए बोली-

यार, ये क्या कर दिया तूने? मेरी तो जान ही निकल गई।

तो मैंने भी तुरंत बोला- इसी लिए तो कह रहा था कि बिना

टॉप के मज़ा आता है और ऊपर से ग्रिप अच्छी नहीं बन पाती

जैसा कि अभी तुमने खुद ही देखा, तुम्हें दर्द हुआ न?

तो बोली- सच में इसमें मज़ा आएगा?

तो मैंने उसको होंठों को चूसते हुए अपने होंठों को उसके कान

के पास ले गया और एक लम्बी सांस छोड़ते हुए उसके कान में

धीरे से बोला- खुद ही महसूस करके देख लो।

और एक बात मैंने जब सांस छोड़ी थी तो मैंने महसूस किया कि

मेरी सांस ने रूचि के बदन की झुरझुरी बढ़ा दी थी जिससे उसके

बदन में एक अजीब सा कम्पन महसूस हुआ था।

खैर फिर मैंने दोबारा धीरे से उसके कान के पास चुम्बन लेते हुए

अपने हाथ उसकी टॉप में डाले और ऊपर की ओर उठाने लगा

जिसमें रूचि ने भी सहयोग देते हुए अपने दोनों हाथ ऊपर की ओर

उठा लिए जिससे उसकी चूचियाँ तन के मेरी आँखों के सामने

आ गई।

दोस्तो, क्या गजब का नज़ारा था… जैसे सफ़ेद छेने पर गाढ़ी

लाल रंग की चेरी रख दी हो!

मैं तो देख कर इतना मस्त हो गया कि मुझे कुछ होश ही न रहा

और मैं उसके चूचों की घुंडियों को प्यार से मसलने लगा जिससे

रूचि कुछ कसमसाई तो मैंने उससे धीरे से पूछा- क्या हुआ?

तो बोली- यार अच्छा भी लग रहा है और थोड़ा अजीब सा

भी!

मैंने बोला- बस थोड़ी देर रुको, अभी तुम्हें मज़ा आने लगेगा।

तो वो बोली- अब क्या करने वाले हो?


मैंने बिना बोले ही उसके बायें चूचे के निप्पल को अपने मुँह में भर

लिया और मस्ती में चूसने लगा जैसे लोग कोल्ड ड्रिंक में स्ट्रॉ

डाल कर चुस्की लगाते हैं और दूसरे चूचे को अपनी हथेली से

सहलाने लगा जिससे रूचि इतना मदहोश हो गई कि पूछो ही

मत… वो ऐसे सीत्कार ‘शिइइइइइइ शीईईईईई आह्ह्ह ह्ह्ह अह्ह्ह’

कर रही थी जैसे रो रही हो !

पर जब मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो नज़ारा कुछ ओर ही था,

वो अपनी गर्दन को पीछे किये हुए अपनी आँखें बंद करके निचले

होंठों को दांतों से दबाते हुए मंद सीत्कार कर रही थी जैसे

की पक्की रंडी हो!

फिर मैंने भी अपने हाथों को उसके पीछे ले जाकर उसकी गर्दन

को सहारा दिया और उसकी गोरी चिकनी गर्दन को चाटने

लगा जिससे उसका खुद पर से काबू टूट गया और वो भी अपने

हाथ मेरे पीछे ले जाकर अह्ह्ह्ह अह्ह्ह शिइइइई… करती हुई अपने

सीने से दबाने लगी जिससे उसकी गठीली चूचियाँ मेरे सीने पर

रगड़ खा रही थी।

मैं इतना गर्म हो गया था कि मुझे लग रहा था कि अबकी तो

मैं ऐसे ही बह जाऊँगा।

फिर मैंने सोचा कि कुछ और करके देखते हैं तो मैंने फिर से उसे

दबाते हुए पूरी तरह से बेड पर लिटा दिया और उसके ऊपर लेटकर

उसके कान के पास किस करते हुए काट भी रहा था, जिससे

उसको भरपूर जवानी का सुख मिल रहा था जो उसने मुझे बाद

में बताया।

फिर मैंने धीरे से अपने पैर एडजस्ट कुछ इस तरह किया जिससे

उसकी चूत का मिलान मेरे खड़े लौड़े पर होने लगा तो मैंने

महसूस किया की उसकी चूत भी पूरी चूत रस से सनी थी और

गजब की गर्मी फेंक रही थी।

मैंने सयंम रखा… दोस्तो, मैं चाहता तो उसकी चूत मैं अपना

लौड़ा डाल सकता था पर वो कभी चुदी नहीं थी और हम

लोग काफी देर से अंदर भी थे इससे माया को शक भी हो

सकता था क्योंकि पहली बार चुदने के बाद कोई भी लड़की

हो उसकी चाल सब बता देती है कि यह लण्ड खाकर आई है।

इसलिए मैंने ऊपर से अपने लण्ड को उसकी चूत के दाने पर सेट

किया और रगड़ने लगा जिससे रूचि मदहोशी में आकर आह…

अह्हह करके सीत्कार करने लगी।

फिर मैंने उसके होंठों को मुँह में भर चूसना चालू कर दिया

ताकि आवाज़ कुछ काम हो सके और अपने दोनों हाथों को

उसकी चूचियों की सेवा में लगा दिया जो जम के उसके चूचों

की सेवा कर रहे थे।

रूचि मदहोशी कर इतना भूल चुकी थी कि वो अभी घर पर है

और सब लोग बाहर ही बैठे हैं, वो पागलों की तरह अपनी कमर

उठा उठा कर तेज़ी से मेरे लण्ड पर रगड़ मारते हुए ‘अह्ह्ह ह्ह्ह्ह

अह्ह्ह उउम्म्ह्ह ह्ह्ह्हह’ करते हुए अपनी गर्दन इधर उधर पटकने लगी

थी।

उसकी इस हरकत को भांप कर मैं समझ गया कि यह झड़ने वाली

है तो मैंने भी अपनी गति बढ़ा दी ताकि मेरा भी पानी

निकल जाये और उसकी चूत की चिकनाहट से लौड़ा आराम से

रगड़ खा रहा था जिसे हम दोनों मस्ती से एन्जॉय कर रहे थे।


अचानक उसने चादर को अपने दोनों हाथों में भर कर अपने

दोनों पैरों को तान कर बेड से चिपका लिया और एक भारी

‘अह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह’ के साथ अपना पानी छोड़ दिया जिसका

साफ़ एहसास मुझे मेरे लण्ड पर हो रहा था, उसकी चूत के गर्म

लावे और उसकी इस अदा को मेरा लौड़ा भी बर्दाश्त न कर

सका और मेरा भी माल बह निकला जिसे उसने महसूस करते मेरे

गले अपने हाथो से फंडा बनाते हुए मुझे अपने सीने से चिपका

लिया और इस बार उसने खुद ही मेरे होंठों को अपने होंठों से

जकड़ कर चूसने लगी।

कोई 5 मिनट बाद हमारी होंठ चुसाई छूटी तो उसने मुझे

बोला- राहुल.. आई लव यू… यू आर अमेज़िंग… आई एम इन

स्काई…I love you… You are amazing… I am in the sky…

फिर हम दोनों उठे तो मैंने बेड की चादर देखी तो बहुत आश्चर्य

हुआ कि वो इतना कैसे भीग गई क्योंकि माया के साथ भी

ऐसा करता था पर इतना चादर कभी न भीगी थी।

खैर कुछ भी कहो, दोनों को खूब मज़ा आया था और उसके चेहरे

की चमक बता रही थी कि उसको भी बहुत मज़ा आया।

वो उठी- राहुल यार, इतना मज़ा जब ऊपर से आया है तो अंदर

जा कर तो यह बवाल ही मचा देगा… कसम से मुझे इतना अच्छा

कभी नहीं लगा…

तो मैंने बोला- हाँ ये तो है!

तो वो तुरंत बोली- क्यों न अभी करके दिखाओ तुम?

तो मैंने उसके गालों पर किस किया और बोला- जान थोड़ा

इंतज़ार करो अभी तुम्हारी माँ को शक हो सकता है, तुम मेरे

साथ बैग पैक करने आई हो, ज्यादा समय लगता है उसमें और हम

वैसे ही इतना देर तक समय बिता चुके हैं, अब यह काम मेरा है, तुम

फ़िक्र मत करो, जल्द ही तुम्हें वो मज़ा भी दूँगा जो हर लड़की

और औरत चाहती है।

तो वो बोली- औरत क्यों चाहेगी? उसका तो हस्बेंड उसे मज़े

देता ही होगा!

मैं कुछ नहीं बोला और अपने सारे कपड़े उतार कर जींस टी-शर्ट

पहनने लगा और इस बीच रूचि मुझे बराबर छेड़ती रही जैसे कभी

मेरी छाती में किस करे, कभी मेरे लौड़े से खेले, उसे किस करे,

कभी हल्के हाथों से मेरी पीठ सहलाये…

जिससे मुझे ऐसा लग रहा था कि रूचि मेरे दोस्त की बहन नहीं

बल्कि मेरी बीवी है।

मैंने कपड़े पहने और उसे भी बोला- जल्दी से तुम भी कपड़े पहन

लो!

पर वो चुहलबाज़ी में पड़ी थी और बोले जा रही थी- मेरा तो

अभी और करने का मन कर रहा है।

मैंने बोला- मैं कहीं शहर छोड़ कर नहीं जा रहा हूँ… पहले जल्दी

से चादर बदलो।

तो वो उठी और सूंघते हुए बोली- यार क्या खुशबू है मिली

जुली सरकार की!

तो हम दोनों ही हंस दिए।

फिर उसने बोला- यह तो धोनी भी पड़ेगी!

कहते हुए बाथरूम में चादर को टब में भिगो के डाल आई और

दूसरी चादर बिछा कर अपने कपड़े पहनने के बजाय फिर मेरे गले में

अपने हाथों को डालकर मुझे ‘आई लव यू…’ बोलते हुए चूमने लगी

जिससे मुझे भी बहुत मज़ा अ रहा था और मेरे हाथ उसके नग्न

शरीर पर फिसलने लगे थे।

छोड़ कर जाने का तो मन नहीं था पर प्लान के मुताबिक

जाना भी था ताकि दो दिन और समय मिले उन लोगों के

साथ वक्त गुजारने के लिए…

और तभी जिस बात का डर था, वही हुआ, बाहर दरवाज़े पर

ठक ठक ठक होने लगी, हम दोनों ही घबरा गए कि कौन हो

सकता है जो बिना रुके दरवाज़े को ठोके जा रहा है?

फिर मैंने ऊँचे स्वर में बोला- कौन है? अभी आया खोलने!

और रूचि तुरंत ही अपने कपड़े लेकर बाहर भागी, मैंने भी भूसे की

तरह बैग भरकर चैन बंद की और पीठ पर टांग के दरवाज़ा खोलने

चल दिया।

अब आगे क्या हुआ?

कौन था दरवाजे पर?

हम पर क्या बीती? जानने के लिए कमेंट करे रेप्स दे

फिर मैंने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो मैं माया को देखकर एक

पल के लिए घबरा सा गया था कि पता नहीं कहीं इन्होंने कुछ

सुन या देख तो नहीं लिया?

पर दरवाजा खुलते ही उन्होंने जो बोला, उससे मेरा डर एक पल

में ही छू हो गया क्योंकि दरवाज़ा खुलते ही माया बोली-

अरे राहुल, तुम अभी तक तैयार होकर गए नहीं? क्या इरादा ही

नहीं जाने का?

मैं बोला- अरे नहीं ऐसा नहीं है, मेरी कुछ चीज़ें नहीं मिल रही

थी तो उन्हें खोजने में समय लग गया… खैर अब सब मिल चुका है।

तो वो बोली- यह क्या? ऐसे ही जायेगा क्या? तुम्हारी माँ

देखेगी तो बोलेगी मेरा लड़का आवारा हो गया है।

तो मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उनकी ओर देखा तो वो मेरा

हाथ पकड़कर कमरे में लगे बड़े शीशे की ओर लाई और खुद कंघा

उठा कर मेरे बाल सही करने लगी।

तो मैंने बोला- आप रहने दें, मैं कर लूंगा। और रूचि अभी बाथरूम

से निकलेगी तो यह देखकर मुझे चिढ़ाएगी जो मुझे अच्छा नहीं

लगेगा।

तो वो मेरे गालों पर चुम्बन करके कंघे को मुझे देती हुई बाथरूम

की ओर चल दी, और जैसे ही दरवाज़े के पास पहुंची कि रूचि

खुद ही बाहर आ गई।

और उसे देखते ही माया ने कहा- अरे मेरा बच्चा, तुम्हारी

तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है… क्या डॉक्टर के पास चलें?

तो रूचि बोली- नहीं माँ, मैंने अभी दवाई ली है, देखते हैं अगर

मुझे अब लगता है कि अभी सही नहीं हुआ तो मैं बता दूंगी।

फिर मैं भी बोला- अरे आंटी, बेकार की टेंशन मत लो, होता

है!

और मैं रूचि की चुहुल लेते हुए बोला- अभी इसका पेट साफ़ हो

रहा है, आप देखती जाओ, इन दो दिनों में इसकी सारी

शिकायत दूर हो जाएगी।

तो आंटी बोली- ऐसे कैसे?

तो मैं बोला- अरे मैं हूँ ना… इसे इतना खुश रखूँगा कि इसकी

बिमारी दूर हो जायेगी। डॉक्टर भी बोलते है कि हंसने से कई

बिमारियों का इलाज़ अपने आप हो जाता है। तो वो भी

मेरी बात से सहमत होते हुए हम्म बोली।

फिर मैंने कंघा रखा और प्लान के मुताबिक मैंने आंटी से कहा-

अच्छा, मैं अब चल रहा हूँ। और रूचि तुम ठीक समय पर फ़ोन कर

देना।

‘ठीक है…’

पर यह साला क्या? बोल तो मैं रूचि से रहा था, पर मेरी नज़रें

रूचि के चेहरे की ओर न होकर उसके चूचों पर ही टिकी थी,

क्या मस्त लग रही थी यार… शायद क्या बिल्कुल यक़ीनन…

उसने टॉप के नीचे कुछ न पहना था जिससे उसके संतरे संतरी रंग

के ऊपर से ही नज़र आ रहे थे जिसे माया और रूचि दोनों ही

जान गई थी कि मेरी निगाह किधर है।

माया ने मेरा ध्यान तोड़ने के लिए ‘अच्छा अब जल्दी जा,

नहीं तो आएगा भी देर में…’ और रूचि इतना झेंप गई थी कि

पूछो ही मत!

इतना सुनते ही वो चुपचाप वहाँ से अपने बेड पर आराम करने का

बोल कर लेट गई और मैं वहाँ से बाहर आने के लिए चल दिया।

साथ ही साथ माया भी मुझे छोड़ने के लिए बाहर आते समय

पहले रूचि के दरवाज़े को बाहर से बंद करते हुए बोली- बेटा, तू

आराम कर ले थोड़ी देर, अभी तुमने दवाई ली है, मैं दरवाज़ा

बाहर से बंद कर लेती हूँ।

बोलते हुए दरवाज़ा बंद किया और इधर मैं भी मन ही मन खुश

था कि आंटी को तो पता ही नहीं चल पाया कि रूचि ने

आज मेरी ही टॉनिक पी है जिसके बाद अच्छा आराम

मिलता है।

तभी आंटी ने मेरा हाथ पकड़ा और किचेन की ओर चल दी, जब

तक मैं कुछ समझ पाता, उसके पहले ही उन्होंने फ़्रिज़ से बोतल

निकाली और मेरे हाथों में देते हुए बोली- अब विनोद अगर

बीच में उठता है तो तुम बोलना कि मैं पानी पीने आया था।

तो मैं बोला- फिर आप?

तो उन्होंने कुछ बर्तन उठाये और सिंक में डाल दिए और धीमा

सा नल का पानी चालू कर दिया।

मैं उनसे बोला- जान क्या इरादा है? जाने का मन तो मेरा

भी नहीं है, पर जाना पड़ेगा और वैसे भी अभी थोड़ी देर में ही

फिर आता हूँ।

वो बोली- वो मुझे पता है, पर कितनी देर हो गई कम से कम एक

पप्पी ही ले ले !

कहते हुए उन्होंने मेरे होठों को अपने होठों में भर लिया और

किसी प्यासे पथिक की तरह मेरे होठों के रस से अपनी प्यास

बुझाने लगी।

और मैंने भी प्रतिउत्तर मैं अपने एक हाथ से उनकी पीठ

सहलाना और दूसरे हाथ से उनके एक चुच्चे की सेवा चालू कर दी

और मन में विचार करने लगा कि माँ और बेटी दोनों मिलकर

मेरे लिए इस घर को तो स्वर्ग ही बना देंगी आने वाले दिनों में।

इतना सोचना था कि नहीं मेरे लौड़े ने भी मेरे विचार को

समर्थन देते हुए खुद खड़ा होकर माया की नाभि में हलचल मचा

दी जिसे माया ने महसूस करते ही मेरे जींस के ऊपर से मेरे लौड़े

को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे दबाते हुए बोलने लगी-

क्यों राहुल, अभी रूम में तुम्हारी नज़र किधर थी?

मैं बोला- किधर?

वो बोली- मैंने देखा था जब तुम रूचि के स्तनों को देख रहे थे।

तो मैं बोला- अरे ऐसा नहीं है…

तो बोली- अच्छा ही है अगर ऐसा न हो तो !

मैंने उनके विचारों को समझते हुए उन्हें कसके बाँहों में जकड़

लिया मानो उन्हें तो मन में गरिया ही रहा था पर फिर भी

मैंने उनके होठों को चूसते हुए बोला- जब इतनी हॉट माशूका

हो तो इधर उधर क्या ताड़ना, और वैसे भी तुमने मेरे लिए अनछुई

कली का इंतज़ाम करने का वादा किया है, तो मुझे और क्या

चाहिए।

तो वो बोली- उसकी फ़िक्र मत करो पर मेरी बेटी का दिल

मत तोड़ना अगर पसंद हो तो जिंदगी भर के लिए ही पसंद

करना।

मैंने उनके माथे को चूमा और स्तनों को भींचते हुए बोला-

अच्छा, अब मैं चल रहा हूँ, वरना मैं शाम को जल्दी नहीं आ

पाऊँगा।

कहते हुए मैं उनके घर से चल दिया और आंटी भी मुस्कुराते हुए

बोली- चल अब जल्दी जा, और आराम से जाना और तेरी माँ

को बिल्कुल भी अहसास न होने देना।

मैं उनके घर से जैसे तैसे निकला और रास्ते भर अपने खड़े लण्ड को

दिलासा देता रहा कि ‘प्यारे अभी परेशान न कर, दुःख रहा

है, तू बैठ जा, तेरा जुगाड़ जल्दी ही होगा…’ क्योंकि माया

की हरकत ने मेरे लौड़े को तन्ना कर रख दिया था, उसके हाथों

के स्पर्श से मेरा लौड़ा इतना झन्ना गया था कि बैठने का

नाम ही नहीं ले रहा था।

जैसे तैसे मैं घर पहुँचा, दरवाज़ा खटखटाया तो माँ ने ही

दरवाज़ा खोला और मुझे देखते ही बोली- अरे राहुल बेटा, तुम

आ गए।

मैंने बोला- हाँ माँ!

तो वो बोली- तुम इतनी देर से क्यों आये?

तो मैं बोला- आ तो जल्दी ही रहा था पर वो लोग अभी तक

नहीं आये और फ़ोन भी नहीं लग रहा था तो आंटी बोली शाम

तक चले जाना। तो मैं अब आ गया।

फिर माँ बोली- वो लोग आ गए?

मैं बोला- नहीं, अभी तक तो नहीं आये थे, आ ही जायेंगे।

वो बोली- अच्छा जाओ मुँह हाथ धो लो, मैं चाय बनाती हूँ।

बस फिर क्या था, मैं तुरंत ही गया और सबसे पहले जींस को

उतार कर फेंका और रूम अंदर से लॉक करके अपने लौड़े को हाथ

से हिलाते हुए बाथरूम की ओर चल दिया, इतना भी सब्र नहीं

रह गया था कि मैं अपने आप पर काबू रख पाता और बहुत तेज़ी

के साथ सड़का मारने लगा।

आँखें बंद होते ही मेरे सामने रूचि का बदन तैरने लगा और कानो

में उसकी ‘अह्ह ह्ह्ह शिइई इइह…’ की मंद ध्वनि गूंजने लगी।

मैं इतना बदहवास सा हो गया था कि मुझे होश ही नहीं था

की मैं सड़का लगा रहा हूँ या उसकी चूत पेल रहा हूँ।

खैर जो भी हो, आखिर मज़ा तो मिल ही रहा था और देखते

ही देखते बहुत तेज़ी के साथ मेरे हाथों की रफ़्तार स्वतः ही

धीमी पड़ने लगी और मेरा वीर्य गिरने लगा।

मैं सोचने लगा ‘जब इन दो पलों में इतना मज़ा आया है, तो मैं

उसे जब चोदूंगा तो कितना मज़ा आएगा!’

‘पर कैसे चोदूँ’ उसे यही उधेड़बुन मेरे अंतर्मन को और मेरी

कामवासना धधकाये जा रही थी कि कैसे करूँगा मैं रूचि के

साथ… अब तो घर में माया के साथ साथ विनोद भी है।

‘क्या करूँ जो मुझे रूचि के साथ हसीं पल बिताने का मौका

मिल जाये!’

इसी के साथ मैंने मुँह पर पानी की ठंडी छींटे मारे और लोअर

पहनकर बाहर आ गया, पर मन मेरा रूचि की ओर ही लगा था,

इन दो दिनों में मुझे हर हाल में उसे पाना ही होगा कैसे भी

करके!

तब तक माँ ने आकर चाय सोफे के पास पड़ी मेज़ पर रख दी थी

जिसे मैं नहीं जान पाया था, मेरी इस उलझन की अवस्था को

देखते हुए माँ ने कहा- क्या हुआ राहुल, तुमने चाय पी नहीं?

मैं बोला- कुछ नहीं माँ, बस यही सोच रहा हूँ कि मेरा दोस्त

घर पहुँचा या नहीं क्योंकि आंटी को बच्चों की तरह डर

लगता है।

माँ बोली- होता है किसी किसी के साथ ऐसा…

मैं बोला- माँ, बस उन्हें होरर फिल्म की आवाज़ सुना दो,

फिर देखो !

माँ बोली- अच्छा ऐसा क्या हुआ?

तो मैं बोला- माँ, अभी कल ही मैं टीवी देख रहा था कि

अचानक सोनी चैनल लग गया और उस वक़्त उसमें ‘आहट’ आ रहा

था तो उसमे डरावनी आवाज़ सुनते ही आंटी पागल हो उठी

उन्होंने झट से टीवी बंद कर दिया और मुझसे बोली- अब रात

को मेरे कमरे में ही सोना, नहीं तो मुझे डर लगेगा तो पता नहीं

क्या होगा।

उस पर मैं बोला- अच्छा आंटी कोई बात नहीं!

और फिर सोते समय जान बूझकर वही सीन उन्हें दिलाने लगा

मस्ती लेने के लिए… आंटी बाथरूम जा ही रही थी कि फिर से

मारे डर के दौड़ के मेरे पास आने लगी और उनका कपड़ा पता

नहीं कैसे और कहाँ फंसा तो वो गिर पड़ी।

तो माँ ने मुझे डांटा कि ऐसा नहीं करते हैं।

हम चाय पीने लगे और चाय ख़त्म होते ही माँ कप लेकर किचन

की ओर जाने लगी, तभी उनका फ़ोन बजा और मेरे दिल की

धड़कन बढ़ गई।

माँ ने फ़ोन उठाया और चहक कर बोली- अरे रूचि, अभी राहुल

तुम्हारे ही घर की बात कर रहा था।

फिर दूसरी तरफ की बात सुनने लगी और कुछ देर बाद फिर

बोली- हाँ, वो यहीं है, अभी आया है कुछ देर पहले…

‘क्यों क्या हुआ?’ कहकर फिर शांत हो गई, उधर की बात सुनने

लगी और क्या बताऊँ यारो, मेरी फटी पड़ी थी क्योंकि

अबकी बार सब नाटक हो रहा था फिर तभी मैंने सुना, माँ

बोली- अरे कैसे?

फिर शांत हो कर कुछ देर बाद बोली- अब कैसे और कब तक

आओगी?

तो वो जो भी बोली हो फिर माँ बोली- अरे कोई नहीं,

परेशान मत हो, मैं राहुल को भेज दूंगी, तुम लोग अपना ध्यान

रखना।

मैं तो इतना सुनते ही मन ही मन बहुत खुश हो गया कि चलो

अब तो ऐश ही ऐश होने वाली है।

तभी माँ फ़ोन रखकर किचन में गई, मैं उनके पीछे पीछे गया,

पूछने लगा- माँ क्या हुआ? रूचि घर क्यों बुला रही थी?

तो माँ ने जो बोला उसे सुनकर मैं तो हक्का बक्का सा हो

गया, ‘साली बहुत ही चालू लौंडिया थी क्योंकि प्लान दो

दिन का था पर अब 5 दिन का हो चुका था!

वो कैसे?

तो अब सुनें, माँ ने बोला कि उसकी तबीयत कुछ खराब हो गई

थी जिसकी वजह से उनकी ट्रेन छूट गई थी और वापसी के

लिए उन्हें रिजर्वेशन भी नहीं मिल पा रहा है। जैसे तैसे उनका

रिजर्वेशन तो हो गया पर पांच दिन के बाद का मिला है। और

हाँ, वो बोली है कि माँ से पैसे लेकर विनोद के अकाउंट में

ट्रांसफर कर दें कल, क्योंकि उनके पास पैसे भी कम हो गए हैं।

तो मैं बोला- ठीक है, पर अब मैं क्या करूँ?

तो वो बोली- करना क्या है, अपना बैग उठा और आंटी के

पास जा और हाँ अब उन्हें डराना नहीं, नहीं तो मैं तुझे मारूँगी

और उनसे पूछूँगी कि कोई शरारत तो नहीं की तूने फिर से…

इसलिए अब अच्छे बच्चे की तरह रहना 5 से 6 दिन… अब जा

जल्दी, देर न कर !

तो मैं बोला- ठीक है माँ!

और मैं ख़ुशी में झूमता हुआ अपने दूसरे कपड़ों को निकाल कर

रखने लगा और अपनी उस चड्डी को जो की रूचि की चूत रस

भीगी हुई थी, उसे बतौर निशानी मैंने अपनी ड्रॉर में रख दी

जिसकी चाभी सिर्फ मेरे ही पास थी, उसे मेरे सिवा कोई

और इस्तेमाल नहीं करता था।

फिर बैग पैक करके मैं उनके घर की ओर चल दिया पर मैं रूचि को

चोदना चाहता था इसलिए मैं प्लान बना रहा था कि कैसे

हमें मौका मिल सकता है।

तभी मेरे दिमाग में विचार आया कि क्यों न माया से इस

विषय पर बात की जाये।

फिर मैं यही विचार मन में लिए उनके घर की बजाये, पास में ही

एक पार्क था, तो मैं वहाँ चल दिया, और दिमाग लगाने लगा

कि कैसे स्थिति को अनुरूप किया जा सके। फिर यही सोचते

सोचते पार्क में बैठा ही था कि माया का फोन आया- क्यों

राजा बाबू, माँ ने अभी परमिशन नहीं दी क्या?

मैं- नहीं, उन्होंने तो भेज दिया है।

‘फिर तू अभी तक आया क्यों नहीं?’

तो मैं बोला- अरे, ऐसा नहीं है, मैं थोड़ा परेशान हूँ, इसी लिए

पार्क में बैठा हूँ।

उन्होंने मुझसे मेरी परेशानी के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें कहा-

आप मदद तो कर सकती हो, पर कैसे… यह सोच रहा हूँ।

तो वो बोली- अरे बात तो बता पहले, ये क्या पहेलियाँ बुझा

रहा है?

तो मैंने उन्हें अपने मन की अन्तर्पीड़ा बताई तो वो बोली-

पागल, पहले क्यों नहीं बताया? यह तो मैं भी चाहती थी।

मैं बोला- फिर आपके पास कोई प्लान है?

वो बोली- नहीं, पर तुम कोई जुगाड़ सोचो!

मैं बोला- अच्छा, फिर मैं ही कुछ सोचता हूँ, बस आप मेरा

साथ देना, बाकी का मैं खुद ही देख लूंगा।

तो वो बोली- बिल्कुल मेरे राजा, पर थोड़ा जल्दी से सोच

और घर आ जा!

मैं पुनः सोच ही रहा था कि पास बैठे कुछ बच्चों के गानों

की आवाज़ आई, मैंने देखा लो वहाँ कुछ बच्चे ग्रुप में बट कर

अन्ताक्षरी खेल रहे हैं और हारने पर एक दूसरे को कुछ न कुछ दे रहे

थे जैसे कि कभी कोई टॉफी तो कभी चॉकलेट, कभी

लोलीपोप!

तो मेरे दिमाग में तुरंत यह बात बैठ गई और मैंने सोचा कि क्यों

न इस खेल को बड़े स्तर पर खेला जाये?

और प्लान बनाते ही बनाते मैं मन ही मन चहक सा उठा

क्योंकि इस प्लान से मुझे ऐसी आशा की किरण दिखने लगी

थी जिसकी परिकल्पना करना हर किसी के बस की बात

नहीं थी, यहाँ तक मैंने भी कुछ देर पहले ऐसा कुछ भी नहीं

सोचा था पर मुझे प्रतीत हो गया था कि अब मेरे कार्य में

किसी भी प्रकार की कोई बाधा नहीं आएगी।

बस अब रूचि को तैयार करना था साथ देने के लिए तो मैंने तुरंत

ही अपना फ़ोन निकाला और रूचि को कॉल किया। जैसे जैसे

उधर फोन पर घंटी बज रही थी, ठीक वैसे ही वैसे मेरे दिल की

घंटी यानि धड़कन…

खैर कुछ देर बाद फ़ोन उठा पर मैं निराश हो गया क्योंकि उधर

से फ़ोन रूचि ने नहीं बल्कि मेरे दोस्त विनोद ने उठाया था।

जैसे उसकी आवाज़ मेरे कान में पड़ी, मैं तो इतना हड़बड़ा गया

था, जैसे मेरे तोते ही उड़ गए हों। फिर उधर से तीन चार बार

‘हेलो हेलो’ सुनने के बाद मैं ऐसे बोला जैसे उल्टा चोर

कोतवाल को डांटे… मैं बोला- क्यों बे, फोन की जब बेटरी

चार्ज नहीं कर सकते तो रखता क्यों है, कब से तेरा फोन मिला

रहा हूँ!

अब आप सोच रहे होंगे ऐसा मैंने क्यों कहा, तो आपको बता दूँ

कि हर भाई को अपनी बहन की चिंता होती है और मेरे

अचानक से उसके फोन पर फोन करने उसके मन पर कई तरह के

प्रश्न उठ सकते थे क्योंकि ऐसा पहली बार था जब मैंने रूचि

को अपने फोन से काल की थी।

तो वो बोला- बेवकूफ हो का बे? मेरा फोन तो ओन है।

मैंने बोला- फिर झूट बोले?

तो बोला- सच यार… अभी रुक और उसने अपने फोन से कॉल

की ओर देखा मेरा नंबर वेटिंग पर आ रहा है।

मैंने बोला- हम्म आ तो रहा है पर मिल क्यों नहीं रहा था?

वो बोला- होगा नेटवर्क का कोई इशू…

मैं बोला- चल छोड़, यह बता मैं आ रहा था तो सोच रहा हूँ

बाहर से कुछ ले आऊँ खाने पीने के लिए?

वो बोला- रहने दे यार, माँ खाना बना ही रही है।

तब मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी जो रूचि की थी पर मुझे यह तब

मालूम पड़ा जब उसने खुद विनोद से फोन लेकर हेलो कहा,

बोली- अरे आप हो कहाँ? आये नहीं अभी तक?

मैंने बोला- पास में विनोद हो तो थोड़ा दूर हटकर बात करो,

जरूरी बात करनी है।

वो बोली- अच्छा!

और फिर कुछ रुक कर बोली- वैसे आप लाने वाले क्या थे?

मैं बोला- जो तुम कहो?

तो वो बोली- खाना तो बन ही गया है, आप थम्स-अप लेते

आना, खाने के बाद पी जाएगी।

साथ बैठकर कहती हुई वो विनोद से दूर जाने लगी और उचित

दूरी पर पहुँच कर मुझसे बोली- हाँ बताओ, क्या जरूरी बात

थी?

मैं बोला- मेरे दिमाग में एक प्लान है जिसे सुनकर तुम झन्ना

जाओगी और सबके साथ रहते हुए भी हम साथ में वक़्त गुजार

पाएंगे।

तो वो बोली- लव यू राहुल, क्या ऐसा हो सकता है?

मैं बोला- क्यों नहीं, अगर तुमने साथ दिया तो!

फिर वो बोली- अरे, मैं क्यों नहीं दूंगी साथ… पर अपना प्लान

तो बताओ?

मैंने उसे अपना प्लान सुना दिया तो वो बहुत खुश हुई और मारे

ख़ुशी के उछलने सी लगी थी और मुझसे कहने लगी- जल्दी से आ

जाओ, अब मुझे तुम्हारी जरूरत है। क्या प्लान बनाया… मास्टर

माइंड निकले तुम तो!

कहते हुए बोली- अब और देर न करो, बस जल्दी से आओ।

मैंने बोला- बस अभी आया!

और फ़ोन काट दिया।

अब आप लोग सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा प्लान मैंने

बनाया जिससे मेरी चूत इच्छा आसानी से पूरी हो सकती

थी, वो भी सबके रहते हुए?

फिर मैं उठा और विनोद के घर की ओर चल दिया और कुछ ही

देर में मैं उसके घर के पास पहुँच गया, उसके अपार्टमेंट के पास एक

बेकरी की शॉप थी जहाँ से मैंने रूचि के लिए थम्स-अप की

बड़ी बोतल ली और अपार्टमेंट में जाने लगा।

जैसे ही मैंने घंटी बजाई, वैसे ही अंदर से विनोद की आवाज

आई- कौन?

मैं बोला- दरवाज़ा भी खोलेगा या नहीं?

तो वो बिना बोले ही आया और दरवाज़ा खोला, मैंने अंदर

जाते हुए उससे पूछा- आंटी और रूचि कहाँ हैं?

वो बोला- माँ किचन में है और रूचि शायद रूम में है तो मैंने

अपना बैग वहीं सोफे पर रखा और विनोद से बोला- यार कोई

बढ़िया चैनल लगाओ, तब तक मैं इसे यानि की कोल्ड्ड्रिंक

को फ्रीज़ में लगा कर आता हूँ।

कहते हुए किचन की ओर दबे पाँव जाने लगा।

जैसे ही मैं किचन के पास पहुँचा तो मैं माया को देखकर

मतवाला हाथी सा झूम उठा, क्या क़यामत ढा रही थी वो…

मैं तो बस देखता ही रह गया, एक पल के लिए मेरे दोनों पैर

स्थिर हो गए थे जैसे कि मैं धरती से चिपक गया हूँ, उसने उस

वक़्त साड़ी पहन रखी थी और बालों को पोनी टेल की तरह

संवार रखा था जो उसके ब्लॉउज के अंतिम छोर से थोड़ा सा

नीचे लटक रहे थे और उसका ब्लाउज गहरे गले का होने के कारण

उसकी पीठ पीछे से स्पष्ट दिख रही थी जिसकी वजह से मैं

मंत्र-मुग्ध सा हो गया था।

जैसे तैसे अपने आप को सम्हालते हुए धीरे से मैं उनके पीछे गया

और कोल्ड्ड्रिंक की बोतल को उनकी जांघों के बीच में

घुसेड़ते हुए उनके पीछे से में चिपक गया जिससे माया तो पहले

चौंक ही गई थी और एक हल्की सी चीख निकल गई पर मुझे

देखते ही उसने अपना सर झुका कर मेरे गालों पर चुम्बन लिया

और गालों की चुटकी लेते हुए बोली- राहुल, बहुत शैतान हो गए

हो तुम… ऐसे कहीं करते हैं मैं अगर जल जाती तो?

मैं तपाक से बोला- ऐसे कैसे जलने देता? मैं हूँ ना… वैसे आज तुम

मुझे बहुत ही खूबसूरत लग रही हो!

तो वो बोली- हर समय मक्खन मत लगाया करो!

मैं बोला- नहीं यार, मैं मक्खन नहीं लगा रहा हूँ, सच ही बोल

रहा हूँ, तभी तो मैं खुद पर कंट्रोल न रख सका… क्या एक चुम्मी

मिलेगी अभी?

तो बोली- नहीं, अभी रूचि कभी भी आ सकती खाना लगाने

के लिए… बाद में!

मैं बोला- नहीं, मुझे अभी चाहिए!

वो बोली- अच्छा ठीक है बाबा, परेशान मत हो, बस थोड़ा

रुको और देखते जाओ कैसे मैं तुम्हें आज अपने बच्चों के सामने

चुम्मी दूँगी।

मैं बोला- देखते हैं क्या कर सकती हो?

और मैंने उन्हें बोतल दी फ्रीज़ में लगाने को और फिर हॉल में आ

गया पर मैंने एक चीज़ नोटिस की, वो यह थी कि जो पूरे

प्लान का मास्टर माइंड है, वो अभी तक यहाँ मेरे सामने क्यों

नहीं आया तो मैंने सोचा खुद ही रूम में जाकर इसका जवाब ले

लेता हूँ।

मैंने अपना बैग उठाया और विनोद से बोला- मैं रूम में बैग रख कर

आता हूँ और कपड़े भी चेंज कर लेता हूँ।

वो बोला- अबे जा, रोका किसने है तुझे? अपना ही घर समझ!

तब क्या… मैंने बैग लिया और चल दिया रूम की तरफ और अंदर

घुसते ही रूचि भूखी बिल्ली की तरह मुझ पर टूट पड़ी और मुझे

अपनी बाँहों में लेकर मेरे गालों और गर्दन पर चुम्बनों की

बौछार करने लगी। उसकी इस हरकत से मैं समझ गया था कि

वो क्यों बाहर नहीं आई थी, शायद इस तरह से वो सबके सामने

मुझे प्यार न दे पाती!

फिर मैंने भी उसकी इस हरकत के प्रतिउत्तर में अपने बैग को बेड

की ओर फेंक कर उसे बाँहों में भर लिया और उसके रसीले

गुलाबी होठों को अपने अधरों पर रखकर उसे चूसने लगा जिससे

उसके होठों में रक्त सा जम गया था, मुझे तो कुछ होश ही न

था कि कैसी अवस्था में हम दोनों का प्रेममिलाप हो रहा

है। वो तो कहो, रूचि ज्यादा एक्साइटेड हो गई थी, जिसके

चलते उसने मेरे होठों पर अपने दांत गड़ा दिए थे जिससे मेरा कुछ

ध्यान भंग हुआ।

फिर मैंने उसे कहा- यार, तुम तो वाकयी में बहुत कमाल की हो,

तुम्हारा कोई जवाब ही नहीं!

वो कुछ शर्मा सी गई और मुस्कुराते हुए मुझसे बोली- आखिर ये

सब है तो तुम्हारा ही असर!

मैं बोला- वो कैसे?

तो बोली- जिसे मैंने केवल सुना था, उससे कहीं ज्यादा तुम मेरे

साथ कर चुके हो और सच में मुझे नहीं मालूम था कि इसमें इतना

मज़ा आएगा जो मुझे तुमसे मिला है। मैं तुमसे सचमुच बहुत प्यार

करने लगी हूँ…

‘आई लव यू राहुल…’ कहते हुए उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़

लिया, उसका सर इस समय मेरे सीने पर था और दोनों हाथ मेरे

बाजुओं के नीचे से जाकर मेरी पीठ पर कसे थे और यही कुछ

मुद्रा मेरी भी थी, बस फर्क इतना था कि मेरे हाथ उसकी

पीठ को सहला रहे थे।

मुझे भी काफी सुकून मिल रहा था क्योंकि अभी हफ्ते भर

पहले तक मेरे पास कोई ऐसा जुगाड़ तो क्या कल्पना भी नहीं

थी कि मुझे ये सब इतना जल्दी मिल जायेगा!

पर हाँ इच्छा जरूर थी और इच्छा जब प्रबल हो तो हर कार्य

सफल ही होता है, बस वक़्त और किस्मत साथ दे !

फिर मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो उधर उसका भी वही हाल

था वो भी अपनी दोनों आँखें बंद किए हुए मेरे सीने पर सर रखे

हुए काफी सहज महसूस कर रही थी जैसे कि उसे उसका

राजकुमार मिल गया हो।

मैं इस अवस्था में इतना भावुक हो गया कि मैंने अपने सर को

हल्का सा नीचे झुकाया और उसके माथे पर किस करने लगा

जिससे रूचि के बदन में कम्पन सा महसूस होने लगा।

शायद रूचि इस पल को पूरी तरह से महसूस कर रही जो उसने मुझे

बाद में बताया।

वो मुझे बहुत अधिक चाहने लगी थी, मैं उसका पहला प्यार बन

चुका था!

अब आप लोग समझ ही सकते हो कि पहला प्यार तो पहला

ही होता है।

आज भी जब मैं उस स्थिति को याद कर लेता हूँ तो मैं एकदम

ठहर सा जाता हूँ, मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता है

और रह रह कर उसी लम्हे की याद सताने लगती है।

आज मैं इसके आगे अब ज्यादा नहीं लिख सकता क्योंकि अब

मेरी आँखों में सिर्फ उसी का चेहरा दौड़ रहा है क्योंकि

चुदाई तो मैंने जरूर माया की करी थी पर वो जो पहला

इमोशन होता है ना प्यार वाला… वो रूचि से ही प्राप्त हुआ

था।

अब आगे:

फिर मैं उठा और विनोद के घर की ओर चल दिया और कुछ ही

देर में मैं उसके घर के पास पहुँच गया, उसके अपार्टमेंट के पास एक

बेकरी की शॉप थी जहाँ से मैंने रूचि के लिए थम्स-अप की

बड़ी बोतल ली और अपार्टमेंट में जाने लगा।

जैसे ही मैंने घंटी बजाई, वैसे ही अंदर से विनोद की आवाज

आई- कौन?

मैं बोला- दरवाज़ा भी खोलेगा या नहीं?

तो वो बिना बोले ही आया और दरवाज़ा खोला, मैंने अंदर

जाते हुए उससे पूछा- आंटी और रूचि कहाँ हैं?

वो बोला- माँ किचन में है और रूचि शायद रूम में है तो मैंने

अपना बैग वहीं सोफे पर रखा और विनोद से बोला- यार कोई

बढ़िया चैनल लगाओ, तब तक मैं इसे यानि की कोल्ड्ड्रिंक

को फ्रीज़ में लगा कर आता हूँ।

कहते हुए किचन की ओर दबे पाँव जाने लगा।

जैसे ही मैं किचन के पास पहुँचा तो मैं माया को देखकर

मतवाला हाथी सा झूम उठा, क्या क़यामत ढा रही थी वो…

मैं तो बस देखता ही रह गया, एक पल के लिए मेरे दोनों पैर

स्थिर हो गए थे जैसे कि मैं धरती से चिपक गया हूँ, उसने उस

वक़्त साड़ी पहन रखी थी और बालों को पोनी टेल की तरह

संवार रखा था जो उसके ब्लॉउज के अंतिम छोर से थोड़ा सा

नीचे लटक रहे थे और उसका ब्लाउज गहरे गले का होने के कारण

उसकी पीठ पीछे से स्पष्ट दिख रही थी जिसकी वजह से मैं

मंत्र-मुग्ध सा हो गया था।

जैसे तैसे अपने आप को सम्हालते हुए धीरे से मैं उनके पीछे गया

और कोल्ड्ड्रिंक की बोतल को उनकी जांघों के बीच में

घुसेड़ते हुए उनके पीछे से में चिपक गया जिससे माया तो पहले

चौंक ही गई थी और एक हल्की सी चीख निकल गई पर मुझे

देखते ही उसने अपना सर झुका कर मेरे गालों पर चुम्बन लिया

और गालों की चुटकी लेते हुए बोली- राहुल, बहुत शैतान हो गए

हो तुम… ऐसे कहीं करते हैं मैं अगर जल जाती तो?

मैं तपाक से बोला- ऐसे कैसे जलने देता? मैं हूँ ना… वैसे आज तुम

मुझे बहुत ही खूबसूरत लग रही हो!

तो वो बोली- हर समय मक्खन मत लगाया करो!

मैं बोला- नहीं यार, मैं मक्खन नहीं लगा रहा हूँ, सच ही बोल

रहा हूँ, तभी तो मैं खुद पर कंट्रोल न रख सका… क्या एक चुम्मी

मिलेगी अभी?

तो बोली- नहीं, अभी रूचि कभी भी आ सकती खाना लगाने

के लिए… बाद में!

मैं बोला- नहीं, मुझे अभी चाहिए!

वो बोली- अच्छा ठीक है बाबा, परेशान मत हो, बस थोड़ा

रुको और देखते जाओ कैसे मैं तुम्हें आज अपने बच्चों के सामने

चुम्मी दूँगी।

मैं बोला- देखते हैं क्या कर सकती हो?

और मैंने उन्हें बोतल दी फ्रीज़ में लगाने को और फिर हॉल में आ

गया पर मैंने एक चीज़ नोटिस की, वो यह थी कि जो पूरे

प्लान का मास्टर माइंड है, वो अभी तक यहाँ मेरे सामने क्यों

नहीं आया तो मैंने सोचा खुद ही रूम में जाकर इसका जवाब ले

लेता हूँ।

मैंने अपना बैग उठाया और विनोद से बोला- मैं रूम में बैग रख कर

आता हूँ और कपड़े भी चेंज कर लेता हूँ।

वो बोला- अबे जा, रोका किसने है तुझे? अपना ही घर समझ!

तब क्या… मैंने बैग लिया और चल दिया रूम की तरफ और अंदर

घुसते ही रूचि भूखी बिल्ली की तरह मुझ पर टूट पड़ी और मुझे

अपनी बाँहों में लेकर मेरे गालों और गर्दन पर चुम्बनों की

बौछार करने लगी। उसकी इस हरकत से मैं समझ गया था कि

वो क्यों बाहर नहीं आई थी, शायद इस तरह से वो सबके सामने

मुझे प्यार न दे पाती!

फिर मैंने भी उसकी इस हरकत के प्रतिउत्तर में अपने बैग को बेड

की ओर फेंक कर उसे बाँहों में भर लिया और उसके रसीले

गुलाबी होठों को अपने अधरों पर रखकर उसे चूसने लगा जिससे

उसके होठों में रक्त सा जम गया था, मुझे तो कुछ होश ही न

था कि कैसी अवस्था में हम दोनों का प्रेममिलाप हो रहा

है। वो तो कहो, रूचि ज्यादा एक्साइटेड हो गई थी, जिसके

चलते उसने मेरे होठों पर अपने दांत गड़ा दिए थे जिससे मेरा कुछ

ध्यान भंग हुआ।

फिर मैंने उसे कहा- यार, तुम तो वाकयी में बहुत कमाल की हो,

तुम्हारा कोई जवाब ही नहीं!

वो कुछ शर्मा सी गई और मुस्कुराते हुए मुझसे बोली- आखिर ये

सब है तो तुम्हारा ही असर!

मैं बोला- वो कैसे?

तो बोली- जिसे मैंने केवल सुना था, उससे कहीं ज्यादा तुम मेरे

साथ कर चुके हो और सच में मुझे नहीं मालूम था कि इसमें इतना

मज़ा आएगा जो मुझे तुमसे मिला है। मैं तुमसे सचमुच बहुत प्यार

करने लगी हूँ…

‘आई लव यू राहुल…’ कहते हुए उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़

लिया, उसका सर इस समय मेरे सीने पर था और दोनों हाथ मेरे

बाजुओं के नीचे से जाकर मेरी पीठ पर कसे थे और यही कुछ

मुद्रा मेरी भी थी, बस फर्क इतना था कि मेरे हाथ उसकी

पीठ को सहला रहे थे।

मुझे भी काफी सुकून मिल रहा था क्योंकि अभी हफ्ते भर

पहले तक मेरे पास कोई ऐसा जुगाड़ तो क्या कल्पना भी नहीं

थी कि मुझे ये सब इतना जल्दी मिल जायेगा!

पर हाँ इच्छा जरूर थी और इच्छा जब प्रबल हो तो हर कार्य

सफल ही होता है, बस वक़्त और किस्मत साथ दे !

फिर मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो उधर उसका भी वही हाल

था वो भी अपनी दोनों आँखें बंद किए हुए मेरे सीने पर सर रखे

हुए काफी सहज महसूस कर रही थी जैसे कि उसे उसका

राजकुमार मिल गया हो।

मैं इस अवस्था में इतना भावुक हो गया कि मैंने अपने सर को

हल्का सा नीचे झुकाया और उसके माथे पर किस करने लगा

जिससे रूचि के बदन में कम्पन सा महसूस होने लगा।

शायद रूचि इस पल को पूरी तरह से महसूस कर रही जो उसने मुझे

बाद में बताया।

वो मुझे बहुत अधिक चाहने लगी थी, मैं उसका पहला प्यार बन

चुका था!

अब आप लोग समझ ही सकते हो कि पहला प्यार तो पहला

ही होता है।

आज भी जब मैं उस स्थिति को याद कर लेता हूँ तो मैं एकदम

ठहर सा जाता हूँ, मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता है

और रह रह कर उसी लम्हे की याद सताने लगती है।

आज मैं इसके आगे अब ज्यादा नहीं लिख सकता क्योंकि अब

मेरी आँखों में सिर्फ उसी का चेहरा दौड़ रहा है क्योंकि

चुदाई तो मैंने जरूर माया की करी थी पर वो जो पहला

इमोशन होता है ना प्यार वाला… वो रूचि से ही प्राप्त हुआ

था।

इसी तरह मैंने चुम्बन करते हुए उसके गालों और आँखों के

ऊपर भी चुम्बन किया और जैसे ही उसकी गर्दन में मैंने अपनी

जुबान फेरी.. तो उसके मुख से एक हलकी सी ‘आह’ फूट पड़ी-

आआआअह.. शीईईईई.. मत करो न.. गुदगुदी होती है..

वो मेरी बाँहों में से छूटते हुए बोली- यार अब मुझसे रहा नहीं

जाता.. कुछ भी करो.. पर मुझे आज वो सब दो.. जो मुझे

चाहिए..

तो मैं बोला- जान बस तुम साथ देना और कुछ न बोलना..

जैसा मैं बोलूँ.. करती जाना.. फिर देखना.. आज नहीं तो कल

पक्का तुम्हें मज़ा ही मज़ा दूँगा।

वो बोली- ठीक है.. तुम्हारा प्लान तो ठीक है.. पर भगवान

करे सब अच्छा अच्छा ही हो..

तो मैं बोला- तुम फिक्र मत करो.. अब मैं विनोद के पास जा

रहा हूँ।

उसने मुझे फिर से मेरे कन्धों पर हाथ रख कर मेरे होंठों पर चुम्बन

लिया और बोली- तुम कामयाब होना..

फिर मैं सीधा बाहर आ गया और विनोद के पास आकर बैठ

गया और हम इधर-उधर की बात करते हुए टीवी देखने लगे।

इतने में ही रूचि आई और मेरी ओर मुस्करा कर बोली- आप के

लिए चाय ले आऊँ?

मैं बोला- अरे खाना खाते हैं न पहले?

तो बोली- खाने में अभी कुछ टाइम और लगेगा..

मैं बोला- फिर चाय ही बना लाओ..

तो बोली- जरूरत नहीं है.. माँ को आपकी पसंद पता है.. वो

बना चुकी हैं.. मैं तो बस आपकी इच्छा जानने आई थी कि आप

क्या कहते हो?

मैंने कहा- अगर जवाब मिल गया हो.. तो जाओ.. अब ले भी

आओ..।

यह कहते हुए मैंने विनोद से बोला- यार ये भी तुम लोगों की

तरह.. मेरी मौज लेने लगी.. जैसे मेरे सभी दोस्त चाय के लिए मेरे

पीछे पड़े रहते थे..

तभी विनोद भी बोला- और इतनी ज्यादा चाय पियो

साले.. मैंने 50 दफा बोला कि सबके सामने अपने इस शौक को

मत जाहिर किया करो.. पर तुम मानते कहाँ हो.. अब झेलो..

तभी आंटी और रूचि दोनों लोग आ गईं.. और दूसरी साइड पड़े

सोफे पर बैठते हुए बोलीं- आज तो बहुत ही गरम है।

तो मैं हँसते हुए बोला- चाय तो गर्म ही अच्छी होती है।

वो बोली- मैं मौसम की बात कर रही हूँ।

सभी हंसने लगे.. फिर हमने चाय खत्म की और फिर रूचि मेरी

तरफ देखते हुए बोली- अच्छा खाना तैयार है.. अब आप बोलें..

कितनी देर में लेना चाहोगे?

उसके इस दो-अर्थी शब्दों को मैंने भांपते हुए कहा- मज़ा तो

तभी है.. जब गर्मागर्म हो।

वो भी कातिल मुस्कान लाते हुए बोली- फिर तैयार हो

जाओ.. मैं यूं गई और आई..

अब आंटी.. विनोद और मैं उठे और खाने वाली टेबल पर बैठ कर

बात करने लगे।

तभी मैंने आंटी को छेड़ते हुए पूछा- आज आप इतना थकी-थकी

सी क्यों लग रही हो..?

वो बोलीं- नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है..

मैं बोला- फिर कैसा है?

वो बोलीं- कुछ नहीं.. बस गर्म बहुत है तभी कुछ अच्छा नहीं लग

रहा है..

मुझे उन्होंने बाद में बताया था कि उन्हें बेचैनी इस बात की

सता रही थी कि विनोद के होते हुए हम चुम्बन कैसे लेंगे..

खैर.. फिर मैंने बोला- अरे कोई बात नहीं.. आप खाना खाओ..

फिर आज हम लोग भी एक गेम खेलेंगे।

वो बोलीं- अरे ये गेम-वेम तुम लोग ही खेलना.. मुझे इस चक्कर में

मत डालो.. मुझे कोई खेल-वेल नहीं आता।

मैं बोला- अरे ये बहुत मजेदार है.. आप खेल लोगी.. और तो और

इससे आपको पुराने दिनों की बातें भी याद आ जाएगीं।

वो बोलीं- ऐसा क्या है.. इस गेम में?

तो मैं आँख से इशारा करते हुए बोला- क्या है.. ये खुद ही देख

लेना..

वो समझते हुए बोलीं- अब तुम इतना कह रहे हो.. तो देखते हैं ये

कौन सा खेल है?

तभी रूचि आई और मेरी ओर देखकर हँसते हुए बोली- अरे मुझे भी

बताओ.. तुम लोग कौन से खेल की बात कर रहे हो?

तो विनोद बोला- हम में से सिर्फ राहुल को ही मालूम है।

मैं बोला- सब कोई खेल सकता है इस खेल को।

तो वो बोला- पहले बता तो दे कि कौन सा खेल है?

मैं बोला- ठीक है.. पहले पेट पूजा बाद में काम दूजा..

एक बार इसी के साथ साथ सब लोग फिर हंस दिए।

अब आप लोगों को बता दूँ कि हम कैसे बैठे थे.. ताकि आप आगे

का हाल आसानी से समझ सकें।

खैर.. हुआ कुछ इस तरह कि मेरे दांए सेंटर चेयर पर विनोद बैठा

था और मैं उसके बाईं ओर बैठा था। फिर आंटी यानि कि वो

मेरे बाईं ओर.. फिर रूचि विनोद के दांई ओर.. यानि कि मेरे

ठीक सामने..

तो दोस्तो, दिल थाम कर बैठ जाईए क्योंकि अब असली खेल

शुरू होता है।

आंटी ने प्लेट लगाना चालू किया तो सबसे पहले रूचि को

दिया.. पर उसने ये बोल कर अपनी थाली को अपने भाई

विनोद की ओर सरका दी.. कि माँ आपने इसमें अचार क्यों

रख दिया..

तो माया हैरान होकर बोलीं- पर ये तो तुम्हें बहुत पसंद है.. तुम

रोज ही लेती हो।

वो बोली- मेरा पेट ख़राब है।

जबकि आपको बता दूँ उसने ऐसा इसलिए किया था ताकि

वो देर तक खाना खा सके।

विनोद ने खाना शुरू नहीं किया था तो वो फिर बोली-

भैया शुरू करो न..

तो विनोद बोला- पहले सबकी प्लेट लग जाने दे।

वो बोली- अभी जब बन रहा था तो आपको बड़ी भूख लगी

थी.. अब खाओ भी.. हम में से कोई बुरा नहीं मानेगा।

तो मैंने भी बोल दिया- हाँ.. शुरू कर यार.. वैसे भी प्लेट तो लग

ही रही हैं।

इस पर उसने खाना चालू कर दिया और इधर आंटी ने खाना

लगाया और रूचि को प्लेट दी.. तो वो रखकर बोली- सॉरी..

अभी आई.. मैंने हाथ तो धोए ही नहीं..

उसने मुझे आँखों से अपने साथ चलने का इशारा किया.. जिससे

मैंने भी तपाक से बोल दिया- अरे हाँ.. मैंने भी नहीं धोए..

थैंक्स रूचि.. याद दिलाने के लिए..

फिर हम उठे और चल दिए।

अब मैं आगे और रूचि मेरे पीछे थी.. शायद उसने इसलिए किया

था ताकि मैं पहले हाथ धोऊँ।

मैं वाशबेसिन के पास जाकर हाथ धोने लगा और रूचि से इशारे

में पूछा- क्या हुआ?

तो वो फुसफुसा कर बोली- जान कुछ होगा.. तो अपने आप

बोलूँगी तुम्हें..

और उसने एक नॉटी स्माइल पास कर दी।

प्रतिक्रिया में मैं भी हंस दिया। मैं हाथ धो ही रहा था..

तभी वो बोली- खाना खाते समय चौंकना नहीं.. अगर कुछ

एक्स्ट्रा फील हो तो..

मैं बोला- क्यों क्या करने का इरादा है?

वो बोली- इरादा तो नेक है.. पर हो.. ये पता है कि नहीं.. ये

ही देखना है बस..

फिर मैं हाथ धोकर टेबल की ओर चल दिया.. साथ ही साथ

सोचने लगा कि रूचि क्या करने वाली है.. ये सोचते हुए बैठ

गया।

तब तक मेरी थाली भी लग चुकी थी और आंटी की भी..

उन्होंने खाना भी शुरू कर दिया था।

मेरे बैठते ही बोलीं- चल तू भी शुरू कर..

तो मैंने भी चालू कर दिया.. तभी रूचि आई और बैठते हुए उसने

चम्मच नीचे गिरा दी.. जो कि उसकी एक चाल थी। फिर वो

चम्मच उठाने के लिए नीचे झुकी.. और उसने एक हाथ से चम्मच

उठाई और दूसरे हाथ से मेरे पैरों को खींच कर आगे को कर

दिया।

मैंने भी जो हो रहा था.. होने दिया.. फिर वो अपनी जगह पर

बैठ गई और अपना खाना शुरू करने के साथ ही साथ उसने अपनी

हरकतें भी शुरू कर दीं।

अब वो धीमे-धीमे अपने पैरों से मेरे दायें पैर को सहलाने लगी..

जिससे मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।

मेरे चेहरे पर कुछ मुस्कराहट सी भी आ रही थी.. वो बहुत ही

सेंसेशनल तरीके से अपने पैरों से मेरे पैर को रगड़ रही थी..

जिसका आनन्द सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।

कुछ ही देर बाद अब हम सिर्फ तीन ही रह गए थे.. यानि कि मैं

रूचि और माया क्योंकि विनोद अपना खाना समाप्त करके

टीवी देखने चला गया था।

इधर रूचि की हरकत से मैं इतना बहक गया था कि मेरे खाने की

रफ़्तार स्वतः ही धीमी पड़ गई थी।

शायद यही हाल उसका भी था.. क्योंकि वो खाना कम.. मेरे

पैरों को ज्यादा सहला रही थी।

मैं अपने सपनों में खोने वाला ही था.. या ये कह लो कि

लगभग स्वप्न की दुनिया में पहुँच ही गया था कि तभी माया

ने अपना खाना समाप्त कर पास बैठे ही मेरे तन्नाए हुए लौड़े

पर धीरे से अपने हाथ जमा दिए।

इस हमले से मैं पहले तो थोड़ा सा घबरा सा गया.. पर जल्द ही

सम्भलते ही बोला- अरे आंटी आपने तो अपना खाना बहुत

जल्दी फिनिश कर दिया?

तो वो बोली- हाँ.. इसी लिए तो बैठी हूँ.. ताकि तुम लोगों

को सर्व कर सकूँ।

वो निरंतर मेरे लौड़े को मनमोहक अंदाज़ में सहलाए जा रही

थी और उधर रूचि नीचे मेरे पैरों को सहला रही थी.. जिससे

मुझे जन्नत का एहसास हो रहा था।

मेरे मन में एक डर भी था कि दोनों में से कोई भी कहीं और आगे

न बढ़ जाए वरना सब गड़बड़ हो जाएगी.. क्योंकि अगर रूचि

आगे बढ़ती है.. तो माया का हाथ लगेगा और माया आगे

बढ़ती है.. तो रूचि का पैर..

फिर मैंने इसी डर के साथ अपने खाने को जल्दी फिनिश

किया और उठ कर मुँह धोने के बाद सीधा वाशरूम जाकर मुठ

मारने लगा.. क्योंकि इतना सब होने के बाद मैं अपने लौड़े पर

काबू नहीं रख सकता था।

शायद मेरी कामुकता बहुत बढ़ गई थी और खुद पर कंट्रोल रख

पाना कठिन था।

मुठ्ठ मारने के बाद जब मेरा लण्ड शांत हुआ.. तब जाकर मेरे दिल

को भी शान्ति मिली और इस सब में मुझे बाथरूम में काफी देर

भी हो चुकी थी.. तो मैंने झट से कपड़े ठीक किए और बाहर

निकल कर आ गया।

बाहर आकर देखा सभी टीवी देखने में लगे थे और जैसे ही मैं वहां

पहुँचा तो माया और रूचि दोनों ही मुझे देखकर हँसने लगीं..

जिसे मैं भी देखकर शरमा गया था।

मुझे ऐसा लग रहा था कि जो मैंने अभी बाथरूम में किया.. वो

सब ये लोग समझ गईं शायद..

मुझे अपने ऊपर गुस्सा भी आ रहा था कि मैं आखिर कंट्रोल

क्यों नहीं कर पाया।

मैं अभी इसी उलझन में था कि माया ने मुझे छेड़ते हुए बोला-

बड़ी देर लगा दी अन्दर.. सब कुछ ठीक है न?

तभी रूचि भी चुहल लेते हुए कहा- कहीं ऐसा तो नहीं मेरी पेट

वाली समस्या आपके पास ट्रांसफर हो गई?

तो मैं झेंपते हुए बोला- नहीं कुछ भी गड़बड़ नहीं है.. जैसा आप

लोग समझ रहे हैं।

रूचि हँसते हुए बोली- फिर कैसा है?

तो मैंने बोला- अरे मैं टॉयलेट गया था.. तभी मेरी आँख में

शायद कोई कीड़ा चला गया था.. तो मैं अपनी आँख धोकर

देखने लग गया था कि वो आँख के अन्दर है कि नहीं..

तभी रूचि मेरे पास आई उसने कातिलाना मुस्कान देते हुए

कहा- लाओ मैं अभी तुम्हारा कीड़ा चैक किए देती हूँ..

तो मैं बोला- अरे नहीं.. अब हो गया..

वो मेरे लौड़े को देखते हुए बोली- हाँ दिख तो रहा है.. कि

साफ़ हो गया।

फिर से चुहलबाज़ी में हँसने लगी।

तभी माया ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा- तू उसे तंग मत कर.. बड़ा है

तेरे से..

तब कहीं जाकर रूचि शांत हुई.. फिर हम टीवी देखने लगे कि

तभी माया बोली- टीवी में आज कुछ अच्छा आ ही नहीं रहा

है..

रूचि भी बोली- हाँ.. माँ आप सच कह रही हो.. मैं भी बोर

हो रही हूँ।

तो मैंने भी उनकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाते हुए अपने प्लान को

सफल बनाने के लिए अपनी इच्छा प्रकट की- हाँ यार.. कुछ

मज़ा नहीं आ रहा है..

तो विनोद बोला- फिर क्या किया जाए?

रूचि बोली- कुछ भी सोचो.. जिससे आसानी से टाइम पास

हो सके।

वो बोला- अब सोचो तुम ही लोग.. मेरा क्या है.. मैं तो बस

शामिल हो जाऊँगा।

अब मुझे अपना प्लान सफल होता हुआ नज़र आने लगा जो कि

मैंने घर से आते ही वक़्त बनाया था.. जिसकी सम्पूर्ण

जानकारी सिर्फ रूचि को ही थी.. लेकिन प्लान क्या था..

इसके लिए अभी थोड़ा और इंतज़ार कीजिएगा.

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