दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा - 4

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दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा - 4

दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा - 3

मेरे इस तरह करने से उसे बहुत पीड़ा हुई थी और उसका मुँह भी दर्द

से भर गया था, जिसे उसने बाद में बयान किया।

और सच कहूँ तो मुझे भी बाद में अच्छा नहीं लगा.. पर अब तो

सब कुछ हो ही चुका था.. इसलिए पछताने से क्या फायदा..

पर कुछ भी हो ये तरीका था बड़े कमाल का.. आज के पहले मुझे

लौड़ा चुसाई में इतना आनन्द नहीं मिला था।

फिर मैंने पास रखी बोतल उठाई और पानी के कुछ ही घूट गटके

थे कि माया आई और दर्द भरी आवाज़ में बोली- राहुल आज

तूने तो मेरे मुँह का ऐसा हाल कर दिया कि बोलने में भी

दुखता है.. आआआह.. पता नहीं तुम्हें क्या हो गया था.. इसके

पहले तुमने कभी ऐसा नहीं किया.. तुम्हें मेरी हालत देखकर भी

तरस नहीं आया.. बल्कि चांटों को जड़कर मेरे गाल लाल

करके.. दर्द को और बढ़ा दिया।

तो मैंने उससे माफ़ी मांगी और बोला- माया मुझे माफ़ कर दे..

मैं इतना ज्यादा कामभाव में चला गया था कि मुझे खुद का

भी होश न था.. पर अब ऐसा दुबारा नहीं होगा।

मेरी आवाज़ की दर्द भरी कशिश को महसूस करके माया मेरे

सीने से लग गई और बोली- अरे ये क्या.. माफ़ी मांग कर मुझे न

शर्मिंदा करो.. होता है.. कभी-कभी ज्यादा जोश में इंसान

बहक जाता है.. कोई बात नहीं मेरे सोना.. मेरे राजाबाबू..

आई लव यू.. आई लव यू..

यह कहते हुए वो मेरे होंठों को चूसने लगी और अभी मेरे लौड़े में

भी पीड़ा हो रही थी जो कि मेरे जंग में लड़ने की और घायल

होने की दास्तान दर्द के रूप में बयान कर रही थी।

एक अज़ीब सा मीठा दर्द महसूस हो रहा था.. ऐसा लग रहा

था कि अब जैसे इसमें जान ही न बची हो।

फिर मैंने माया को जब ये बताया कि तुम्हारे दाँतों की चुभन

से मेरा सामान बहुत दुःख रहा है.. ऐसा लग रहा है.. जैसे कि

इसमें जान ही न बची हो.. अब मैं कैसे तुम्हारी गांड मार कर

अपनी इच्छा पूरी कर पाउँगा और कल के बाद पता नहीं ये

अवसर कब मिले.. मुझे लगता नहीं कि अब मैं कुछ और कर सकता

हूँ.. ये तो बहुत ही दुःख रहा है।

तो माया ने मेरे लौड़े को हाथ से छुआ जो कि सिकुड़ा हुआ..

किसी सहमे से कछुए की तरह लग रहा था।

माया मुस्कुराई और मुझे छेड़ते हुए बोली- और बनो सुपर हीरो..

अब बन गए न जीरो.. देखा जोश में होश खोने का परिणाम..

और मुझे छेड़ते हुए मेरी मौज लेने लगी.. पर मेरी तो दर्द के मारे

लंका लगी हुई थी.. तो मैंने झुंझला कर उससे बोला- अब उड़ा

लो मेरा मज़ाक.. तुम भी याद रखना.. मुझे इतना दर्द हो रहा

है और साथ-साथ अपनी इच्छा न पूरी हो पाने का कष्ट भी

है.. और तुम हो कि मज़ाक उड़ा रही हो.. वैसे भी कल वो लोग

आ जायेंगे.. तो पता नहीं कब ऐसा मौका मिले… तुमने तो

इतनी तेज़ी से दाँतों को गड़ाया.. जिससे मेरी तो जान

निकल रही है।

मैं बोल कर दर्द से बेहाल चेहरा लिए वहीं बिस्तर पर आँख बंद

करके लेट गया।

मेरे दर्द को माया सीरियसली लेते हुए मेरे पास आई और मेरे

माथे को चूमते हुए मेरे मुरझाए हुए लौड़े पर हाथ फेरते हुए बोली-

तुम इतनी जल्दी क्यों परेशान हो जाते हो?

तो मैंने बोला- तुम्हें खुराफात सूझ रही है और मेरी जान

निकाल रही है।

वो मुस्कुराते हुए प्यार से बोली- राहुल तेरी ये जान है न.. इसमें

जान डालने के लिए.. तुम अब परेशान मत हो.. अभी देखना मैं

कैसे इसे मतवाला बनाकर एक बार फिर से झूमने पर मज़बूर कर

दूंगी।

और मैं कुछ बोल पाता कि उसके पहले ही उसने अपने होंठों से

मेरे होंठ सिल दिए।

हम कुछ देर यूँ ही एक-दूसरे को चूमते रहे..

फिर माया के दिमाग में पता नहीं क्या सूझा वो उठ कर गई

और फ्रिज से बर्फ के टुकड़े ले आई।

यार सच कहूँ तो मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि ये

सब क्या करने वाली है।

फिर उसने मेरे लंड को पकड़ कर उसकी अच्छे से सिकाई की..

यार दर्द तो चला गया पर बर्फ का अधिक प्रयोग हो जाने से

वो सुन्न सा पड़ गया था।

मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे मतवाले हाथी को किसी ने मार

दिया हो और अन्दर ही अन्दर बहुत डर सा गया था कि अब

क्या होगा.. अगर इसमें तनाव आना ख़त्म हो गया.. तो क्या

होगा?

मेरे चेहरे के चिंता के भावों को पढ़कर माया बोली- अरे राहुल

क्या हुआ.. तुम इतना उलझन में क्यों लग रहे हो?

तो मैंने बोला- मेरा दर्द तो ठीक हो गया.. पर मुझे अब ये डर है

कि इसमें जान भी बची है कि नहीं?

तो माया मुस्कुरा दी और हँसते हुए बोली- तुमने कभी सुना है..

‘अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना..’ अब तुमने मेरे मुँह में

जबरदस्ती सब कुछ किया.. तो तुम भुगत रहे हो.. पर अब जो मैं

तुम्हारे दर्द को दूर करने के लिए कर रही हूँ.. उससे शायद मैं खुद

ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जा रही हूँ।

मैं उसकी बातों को सुनकर आश्चर्य में पड़ गया कि आखिर

माया के कहने का मतलब क्या है.. सब कुछ मेरी समझ के बाहर

था।

तो मैंने उससे बोला- साफ़-साफ़ बोलो.. कहना क्या चाहती

हो?

बोली- अरे जान.. तुम्हें नहीं मालूम.. अगर बर्फ से सिकाई अच्छे

से की जाए.. जब तक की लण्ड की गर्मी न शांत हो जाए और

उसके बाद जो सेक्स करने का समय होता है.. वो बढ़ जाता है

और अब तुम परेशान न हो.. परेशान तो मुझे होना चाहिए कि

पता नहीं आज मेरा क्या होने वाला है.. और अब मुझे पता है

कि इसमें कैसे तनाव आएगा.. पर मेरी एक शर्त है।

तो मैं बोला- क्या?

तो बोली- पहले बोलो कि मान जाओगे..

मैंने भी बोला- ठीक है.. मान जाऊँगा।

तो माया बोली- एक तो आज तक पीछे छेद में मैंने किसी के

साथ सेक्स नहीं किया है.. तो तुम फिर से मेरे मुँह की तरह वहाँ

जबरदस्ती कुछ नहीं करोगे और पहले मेरी चूत की खुजली

मिटाओगे.. तुम्हें नहीं मालूम ये साली छिनाल.. बहुत देर से

कुलबुला रही है..

तो मेरे दिमाग में भी एक हरकत सूझी कि बस एक बार किसी

तरह माया मेरा ‘सामान’ खड़ा कर दे.. तो इसको भी बर्फ का

मज़ा चखाता हूँ।

मैंने उससे बोला- ठीक है.. मुझे मंजूर है..

तो वो बर्फ ट्रे लेकर जाने लगी और बोली- अभी आई।

तो मैंने बोला- अरे ये ट्रे मुझे दे दो.. तब तक मैं इससे अपनी

सिकाई करता हूँ।

वो मुझे ट्रे देकर चली गई।

अब आखिर उसे कैसे पता चलता कि उसके साथ अब क्या होने

वाला है।

फिर कुछ ही देर में वो मक्खन का डिब्बा लेकर आ गई और

बोली- जानू.. अब तैयार हो जाओ.. देखो मैं कैसे अपने

राजाबाबू को अपने इशारे पर ठुमके लगवाती हूँ।

तो मैंने हल्की सी मुस्कान देकर अपनी सहमति जता दी।

अब बारी उसकी थी तो उसने अपने गाउन की डोरी खोली

और उसे अपने बदन से लटका रहने दिया और फिर वो एक हलकी

पट्टीनुमा चड्डी को दिखाते हुए ही मेरे पास आ गई और मेरे

सीने से चिपक कर गर्मी देने लगी और मेरे होंठों को चूसते हुए मेरे

बदन पर हाथों को फेरने लगी..

जिससे मेरे बदन में प्रेम की लहर दौड़ने लगी।

उसकी इस क्रिया में मैंने सहयोग देते हुए और कस कर अपनी

बाँहों में कस लिया.. फिर उसके होंठों को चूसना प्रारम्भ कर

दिया।

देखते ही देखते हम लोग आनन्द के सागर में डुबकी लगाने लगे और

फिर माया ने अचानक से अपना हाथ मेरे लौड़े पर रखकर देखा..

जो कि अभी भी वैसा ही था।

तो वो अपने होंठों को मेरे होंठों से हटा कर बोली- लगता है

इसको स्पेशल ट्रीटमेंट देना होगा।

मैं बोला- कुछ भी कर यार.. पर जल्दी कर।

तो माया उठी और मुझे पलंग के कोने पर बैठने को बोला.. तो

मैं जल्दी से उठा और बैठ गया।

मेरे इस उतावलेपन को देखकर माया हँसते हुए बोली- अरे राहुल..

अब होश में रहना.. नहीं तो यूँ ही रात निकल जाएगी.. फिर

बाद में कुछ भी न कहना।

मैं बोला- यार वो एक बार हो गया… अब ऐसे कभी नहीं

करूँगा.. पर दर्द तो जरूर दूँगा.. जब तुझे दर्द में सिसियाते हुए

देखता हूँ और तेरी दर्द भरी चीखें मेरे कानों में जाती हैं.. तो

मेरा जोश और बढ़ जाता है.. पर अब दर्द देने वाली जगह पर ही

दर्द दूँगा।

तो वो हँसते हुए बोली- बड़ा मर्द बनने का शौक है तुझे.. चल

देखती हूँ कि तू कितना दर्द देता है.. मुझे भी तेरे दर्द देने वाली

जगह पर दर्द देने में एक अजीब से प्यार की अनुभूति होती है..

जो कि मुझे तेरा दीवाना बनाए हुए है।

यह कहते हुए उसने मक्खन निकाला और मेरे लौड़े पर मलने लगी।

फिर ऊपरी सतह पर लगाने के बाद उसने थोड़ा मक्खन और

निकाला और मेरे लौड़े की खाल को खींच कर सुपाड़े पर

हल्के-हल्के नर्म उँगलियों का स्पर्श देते हुए मलने लगी।

मैंने ध्यान से देखा तो सुपाड़े का रंग गुलाबी न होकर कुछ कुछ

बैंगनी सा हो गया था.. तो मैं चिंता में पड़ कर सोचने लगा

कि ये गुलाबी से बैंगनी कैसे हो गया?

तो मेरे दिमाग में आया या तो यह चोट के कारण है.. या फिर

बर्फ की ठंडक का कमाल है?

खैर.. अब सब कुछ मैंने माया पर छोड़ दिया था।

फिर उसने सहलाते हुए मेरे लौड़े को फिर से अपने मुख में ढेर

सारा थूक भर कर ले लिया और अपने होंठों से मेरे लौड़े पर पकड़

मजबूत बना दी.. जिससे मुझे मेरे सामान पर गर्मी का अहसास

होने लगा।

फिर कुछ देर यूँ ही रखने के बाद माया बिना होंठों को खोले

अन्दर ही अन्दर मेरे लौड़े के सुपाड़े को चूसने लगी.. जैसे कोई

हाजमोला की गोली चूस रही हो।

उसकी इस चुसाई से मेरे लौड़े में जगी नई तरंगें मुझे महसूस होने

लगीं और समय के गुजरने के साथ साथ मेरा लौड़े ने फिर से

माया के मुँह की गर्मी पाकर हिलोरे मारने शुरू कर दिए..

जिसे माया ने भी महसूस किया और मुझसे हँसते हुए बोली- अब

होश मत खोना.. बस थोड़ा समय और दो.. देखो कैसे अभी इसे

लोहे सा सख्त करती हूँ।

वो फिर से मेरे लौड़े को मुँह में भरकर चूसने लगी और चूसते हुए

उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर अपनी दोनों चूचियों पर रख

दिए।

मैंने उसके इस इशारे को समझ कर धीरे-धीरे उसके चूचे मसलने लगा

और कुछ ही देर में मैंने महसूस किया कि मेरे लौड़े का हाल पहले

ही जैसा और सख्त हो चुका था।

तो मैंने माया के मुँह से अपने लौड़े को निकला जो कि उसके

थूक और मक्खन से सना होने के कारण काफी चमकदार और

सुन्दर महसूस हो रहा था.. जैसे उस पर पॉलिश की गई हो।

अब सुपाड़ा भी अपने रंग में वापसी कर चुका था.. जो कि

शायद बर्फ की ठंडक के कारण नीला सा हो गया था।

फिर धीरे से मैंने माया के माथे को चूमा और उसे ‘थैंक्स’

बोला.. तो बोली- अरे इसमें थैंक्स की क्या बात है.. ये तो सब

चलता है.. और किसी का भी ‘आइटम’ इतनी जल्दी खराब

नहीं होता.. तभी भगवान ने इसमें हड्डियां नहीं दीं..

ये कह कर वो हँसने लगी।

तो मैंने माया के कन्धों को पकड़ा और उसे उठा कर बिस्तर पर

लिटा दिया और उसके दोनों हाथों को सर के ऊपर ले जाकर

उसे चूमते हुए.. उसके मम्मों को भींचने लगा।

जबकि माया अभी तक इससे अनजान होते हुए बंद आँखों से मेरे

होंठों का रस चूस रही थी.. उसे क्या पता की आज मैं उसे

कौन सा दर्द देने वाला हूँ और फिर मैंने उसके हाथों पर थोड़ा

पकड़ मजबूत की.. तो बोली- अरे हाथों को इतना न कसो..

दर्द होता है।

तो मैंने बोला- जानेमन.. अभी तो बहुत बोल रही थीं कि दर्द

में मज़ा आता है.. अब क्या हुआ.. अब तू देखती जा.. तेरे साथ

क्या होने वाला है।

तो मारे आश्चर्य के उसकी दोनों आँखें बाहर निकल आईं और

बहुत सहमे हुए तरीके से बोली- अब कैसा दर्द देने वाले हो.. मुझे

कुछ समझ नहीं आ रहा है।

तो मैंने बोला- समझ जाओगी.. बस आँखें बंद करो और ऐसे ही

लेटी रहो..

अब क्योंकि मैं उसके ऊपर था.. तो मैंने उसके ऊपर अपने शरीर

का भार डाल दिया और डोरी को पहले आहिस्ते से पलंग की

रैक को खींचने वाले छल्ले में बाँध दिया जिसमें कि पहले से ही

लॉक लगा हुआ था।

जिसका माया को बिल्कुल भी अहसास न था कि क्या हो

रहा.. बल्कि वो भूखी शेरनी की तरह वासना की आग से

तड़पती हुई मेरी गर्दन और छाती को चूसने और चाटने में लगी

हुई थी।

फिर मैंने धीरे से अपने पैरों को सिकोड़ लिया और उसकी

छाती पर ही बैठ गया ताकि वो कुछ भी न कर सके।

वो जब तक कुछ समझ पाती.. मैंने उसके हाथों में रस्सी का

फन्दा सा बनाकर मज़बूती से कस दिया और उसके ऊपर से

हटकर उसके होंठों को चूसने लगा.. जिससे माया जो बोलना

चाह रही थी.. वो बोल ही न सकी।

मैं इसी तरह निरंतर उसके होंठों को चूसते हुए उसके मम्मों को

रगड़े जा रहा था जिसमें माया का अंग-अंग उमंग में भरकर

नाचने लगा था।

तो मैंने सोचा.. अब मौका सही है.. अब ये कुछ मना नहीं

करेगी।

मैंने उसके होंठों को आज़ाद करके जैसे ही उठा और बर्फ की ट्रे

हाथों में पकड़ी.. वो तुरंत ही चीखकर बोली- अरे राहुल.. अब

क्या करने वाले हो.. मुझे बहुत डर लग रहा है.. प्लीज़ पहले

मैं बोला- यार वो एक बार हो गया… अब ऐसे कभी नहीं

करूँगा.. पर दर्द तो जरूर दूँगा.. जब तुझे दर्द में सिसियाते हुए

देखता हूँ और तेरी दर्द भरी चीखें मेरे कानों में जाती हैं.. तो

मेरा जोश और बढ़ जाता है.. पर अब दर्द देने वाली जगह पर ही

दर्द दूँगा।

तो वो हँसते हुए बोली- बड़ा मर्द बनने का शौक है तुझे.. चल

देखती हूँ कि तू कितना दर्द देता है.. मुझे भी तेरे दर्द देने वाली

जगह पर दर्द देने में एक अजीब से प्यार की अनुभूति होती है..

जो कि मुझे तेरा दीवाना बनाए हुए है।

यह कहते हुए उसने मक्खन निकाला और मेरे लौड़े पर मलने लगी।

फिर ऊपरी सतह पर लगाने के बाद उसने थोड़ा मक्खन और

निकाला और मेरे लौड़े की खाल को खींच कर सुपाड़े पर

हल्के-हल्के नर्म उँगलियों का स्पर्श देते हुए मलने लगी।

मैंने ध्यान से देखा तो सुपाड़े का रंग गुलाबी न होकर कुछ कुछ

बैंगनी सा हो गया था.. तो मैं चिंता में पड़ कर सोचने लगा

कि ये गुलाबी से बैंगनी कैसे हो गया?

तो मेरे दिमाग में आया या तो यह चोट के कारण है.. या फिर

बर्फ की ठंडक का कमाल है?

खैर.. अब सब कुछ मैंने माया पर छोड़ दिया था।

फिर उसने सहलाते हुए मेरे लौड़े को फिर से अपने मुख में ढेर

सारा थूक भर कर ले लिया और अपने होंठों से मेरे लौड़े पर पकड़

मजबूत बना दी.. जिससे मुझे मेरे सामान पर गर्मी का अहसास

होने लगा।

फिर कुछ देर यूँ ही रखने के बाद माया बिना होंठों को खोले

अन्दर ही अन्दर मेरे लौड़े के सुपाड़े को चूसने लगी.. जैसे कोई

हाजमोला की गोली चूस रही हो।

उसकी इस चुसाई से मेरे लौड़े में जगी नई तरंगें मुझे महसूस होने

लगीं और समय के गुजरने के साथ साथ मेरा लौड़े ने फिर से

माया के मुँह की गर्मी पाकर हिलोरे मारने शुरू कर दिए..

जिसे माया ने भी महसूस किया और मुझसे हँसते हुए बोली- अब

होश मत खोना.. बस थोड़ा समय और दो.. देखो कैसे अभी इसे

लोहे सा सख्त करती हूँ।

वो फिर से मेरे लौड़े को मुँह में भरकर चूसने लगी और चूसते हुए

उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर अपनी दोनों चूचियों पर रख

दिए।

मैंने उसके इस इशारे को समझ कर धीरे-धीरे उसके चूचे मसलने लगा

और कुछ ही देर में मैंने महसूस किया कि मेरे लौड़े का हाल पहले

ही जैसा और सख्त हो चुका था।

तो मैंने माया के मुँह से अपने लौड़े को निकला जो कि उसके

थूक और मक्खन से सना होने के कारण काफी चमकदार और

सुन्दर महसूस हो रहा था.. जैसे उस पर पॉलिश की गई हो।

अब सुपाड़ा भी अपने रंग में वापसी कर चुका था.. जो कि

शायद बर्फ की ठंडक के कारण नीला सा हो गया था।

फिर धीरे से मैंने माया के माथे को चूमा और उसे ‘थैंक्स’

बोला.. तो बोली- अरे इसमें थैंक्स की क्या बात है.. ये तो सब

चलता है.. और किसी का भी ‘आइटम’ इतनी जल्दी खराब

नहीं होता.. तभी भगवान ने इसमें हड्डियां नहीं दीं..

ये कह कर वो हँसने लगी।

तो मैंने माया के कन्धों को पकड़ा और उसे उठा कर बिस्तर पर

लिटा दिया और उसके दोनों हाथों को सर के ऊपर ले जाकर

उसे चूमते हुए.. उसके मम्मों को भींचने लगा।

जबकि माया अभी तक इससे अनजान होते हुए बंद आँखों से मेरे

होंठों का रस चूस रही थी.. उसे क्या पता की आज मैं उसे

कौन सा दर्द देने वाला हूँ और फिर मैंने उसके हाथों पर थोड़ा

पकड़ मजबूत की.. तो बोली- अरे हाथों को इतना न कसो..

दर्द होता है।

तो मैंने बोला- जानेमन.. अभी तो बहुत बोल रही थीं कि दर्द

में मज़ा आता है.. अब क्या हुआ.. अब तू देखती जा.. तेरे साथ

क्या होने वाला है।

तो मारे आश्चर्य के उसकी दोनों आँखें बाहर निकल आईं और

बहुत सहमे हुए तरीके से बोली- अब कैसा दर्द देने वाले हो.. मुझे

कुछ समझ नहीं आ रहा है।

तो मैंने बोला- समझ जाओगी.. बस आँखें बंद करो और ऐसे ही

लेटी रहो..

अब क्योंकि मैं उसके ऊपर था.. तो मैंने उसके ऊपर अपने शरीर

का भार डाल दिया और डोरी को पहले आहिस्ते से पलंग की

रैक को खींचने वाले छल्ले में बाँध दिया जिसमें कि पहले से ही

लॉक लगा हुआ था।

जिसका माया को बिल्कुल भी अहसास न था कि क्या हो

रहा.. बल्कि वो भूखी शेरनी की तरह वासना की आग से

तड़पती हुई मेरी गर्दन और छाती को चूसने और चाटने में लगी

हुई थी।

फिर मैंने धीरे से अपने पैरों को सिकोड़ लिया और उसकी

छाती पर ही बैठ गया ताकि वो कुछ भी न कर सके।

वो जब तक कुछ समझ पाती.. मैंने उसके हाथों में रस्सी का

फन्दा सा बनाकर मज़बूती से कस दिया और उसके ऊपर से

हटकर उसके होंठों को चूसने लगा.. जिससे माया जो बोलना

चाह रही थी.. वो बोल ही न सकी।

मैं इसी तरह निरंतर उसके होंठों को चूसते हुए उसके मम्मों को

रगड़े जा रहा था जिसमें माया का अंग-अंग उमंग में भरकर

नाचने लगा था।

तो मैंने सोचा.. अब मौका सही है.. अब ये कुछ मना नहीं

करेगी।

मैंने उसके होंठों को आज़ाद करके जैसे ही उठा और बर्फ की ट्रे

हाथों में पकड़ी.. वो तुरंत ही चीखकर बोली- अरे राहुल.. अब

क्या करने वाले हो.. मुझे बहुत डर लग रहा है.. प्लीज़ पहले

अब माया बोली- राहुल अब अन्दर डाल दे.. मुझे बर्दाश्त नहीं

होता।

तो मैंने भी सोचा वैसे भी समय बर्बाद करने से क्या फायदा..

चल अब काम पर लग ही जाते हैं।

वैसे भी अभी गाण्ड भी मारनी है गाण्ड मारने का ख़याल

आते ही मेरा ध्यान उसके छेद पर गया जो कि काफी कसा

हुआ था।

मैं सोच में पड़ गया कि मेरा लौड़ा आखिर इतने छोटे और कैसे

छेद को कैसे भेदेगा।

इतने में ही मेरे दिमाग में एक और खुराफात ने जन्म लिया और

वो यह था कि माया की गाण्ड का छेद बर्फ से बढ़ाया

जाए.. क्योंकि उसमें किसी भी तरह का कोई रिस्क भी

नहीं था.. अन्दर रह भी गई तो घुल कर निकल जाएगी.. पर

माया तैयार होगी भी या नहीं इसी उलझन में था।

इतने में माया खुद ही बोल पड़ी- अब क्या हुआ जान.. क्या

सोचने लगे?

तो मैंने उससे बोला- मुझे तो पीछे करना था.. पर तुमने पहले आगे

की शर्त रखी है.. पर मैं ये सोच रहा हूँ.. अगर आगे करते हुए

तुम्हारी गाण्ड में अगर बर्फ ही डालता रहूँ तो उसका छेद

आसानी से फ़ैल सकता है।

तो वो बोली- यार तेरे दिमाग में इतने वाइल्ड और रफ

आईडिया आते कहाँ से हैं?

तो मैं हँसते हुए बोला- चलो बन जाओ घोड़ी.. अब मैं तेरी

सवारी भी करूँगा और तेरी गाण्ड भी चौड़ी करूँगा।

तो वो बोली- पहले हाथ तो खोल दे.. अब मेरे हाथों में भी

दर्द सा हो रहा है।

तो मैंने उसके हाथों की रस्सी खोली और रस्सी खुलते ही

उसने मेरे सीने से चिपक कर मेरे होंठों को चूसा और मेरा लण्ड

सहलाती हुई मेरी गर्दन पर अपनी गर्म साँसों का एहसास

कराते हुए मेरे लौड़े तक पहुँच गई।

फिर से उसे मुँह में लेकर कुछ देर चूसा और फिर बिस्तर से उतार

कर बिस्तर का कोना पकड़ कर घोड़ी की तरह झुक गई।

मैंने भी मक्खन ले कर अच्छे से उसकी गाण्ड के छेद में भर दिया

और अपनी ऊँगली उसकी गाण्ड में घुसेड़ कर अच्छे से मक्खन

अन्दर तक लगा दिया.. जिससे आराम से ऊँगली अन्दर-बाहर

होने लगी।

फिर मैंने एक बर्फ का टुकड़ा लिया और उसकी गाण्ड में घुसड़ने

के लिए छेद पर दबाने लगा.. पर इससे माया को तकलीफ होने

लगी..

अब मेरा आईडिया मुझे फेल होता नज़र आ रहा था.. तो मैंने

सोचा क्यों न कुछ और किया जाए।

तो फिर मैंने अपने लण्ड को पीछे से ही माया की चूत में डाल

दिया और उसे धीरे-धीरे पीछे से लण्ड को गहराई तक पेलते हुए

चोदने लगा.. जिससे मेरा लण्ड उसकी बच्चेदानी से टकरा

जाता और माया के मुँह से ‘आआआह स्स्स्स्स्स्स्श’ की

सीत्कार फूट पड़ती।

मैं लौड़ा पेलना के साथ ही साथ उसके चूचों को ऐसे दाब रहा

था.. जैसे कोई हॉर्न बजा रहा हूँ।

जब मैंने देखा कि माया पूरी तरह मदहोश हो चुकी थी तो मैंने

फिर से ऊँगली उसके गाण्ड के छेद में डाल दी.. जो कि आराम

से अन्दर-बाहर हो रही थी।

इसी तरह दो ऊँगलियाँ एक साथ डालीं.. वो भी जब आराम

से आने जाने लगीं.. तो मैंने फिर से उसकी गाण्ड में बर्फ का

टुकड़ा डाला..

पर इस बार उसकी गाण्ड अपने आप ही खुल बंद हो रही थी और

बर्फ का ठंडा स्पर्श पाते ही माया का रोम-रोम रोमांचित

हो उठा।

उसकी सीत्कार ‘आआआह्ह्ह स्स्स्श्ह्ह्ह्ह ष्ह्ह उउउउम’ उसके

अन्दर हो रहे आनन्द मंथन को साफ़ ब्यान कर रही थी।

उसकी गाण्ड की गर्मी पाकर बर्फ जब घुलने सी लगी तो

उसकी ठंडी बूँदें उसकी चूत तक जा रही थीं.. जिससे माया

को अद्भुत आनन्द मिल रहा था।

वो मस्तानी चुदक्कड़ सी सिसिया रही थी, ‘बस ऐसे ही..

अह्ह्हह्ह उउउउम.. और तेज़ करो राहुल.. मुझे बहुत अच्छा लग रहा

है.. आआआअह

वो अपनी चूत से गर्म रस-धार छोड़ने लगी.. जिससे मुझे भी

बहुत अच्छा लग रहा था।

एक तो बाहर बर्फ का ठंडा पानी जो कि लौड़े पर गिर रहा

था और अन्दर माया के जलते हुए बदन का जलता हुआ गर्म

काम-रस..

मुझसे भी अब रहा नहीं जा रहा था।

जैसे रेस का घोड़ा अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए पूरी ताकत

लगा देता है.. वैसे ही मैं पूरी ताकत और रफ़्तार के साथ उसकी

चूत में अपना लौड़ा पेलने लगा।

जिससे माया लौड़े की हर ठोकर पर ‘आआअह… अह्ह्ह् उउम्म्म

ष्ह्ह स्स्स्श्ह्ह्ह’ के साथ जवाब देते-देते चोटें झेलने लगी।

उसकी आवाज़ों ने मुझे इतना मदहोश कर दिया था कि मैंने

फिर से अपने होश को खो दिया और जो बर्फ का टुकड़ा

उसकी गाण्ड के छेद पर टिका रखा था, उसे किसी बटन की

तरह उसकी गाण्ड में पूरी ताकत से अंगूठे से दबा दिया.. जिससे

एक ही बार में उसकी गाण्ड में बर्फ का टुकड़ा चला गया।

अब माया गहरी पीड़ा भरी आवाज़ के साथ चिल्लाने लगी-

आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह म्मा.. माँ मार.. डाला..

उसकी तो जैसे जान ही निकल गई हो.. पर अब क्या हो

सकता था उसे तो निकाला भी नहीं जा सकता था और

उसकी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया जो कि मुझे बाद में

पता चला।

खैर.. अब तो मेरा काम हो ही चुका था.. और माया उसी तरह

अपनी टाँगें फैलाए बिस्तर पर सर रखकर झुकी-झुकी ही दर्द पर

काबू पाते हुए ‘आआअह आआआह उउउम्म्म्म्म’ कराहने लगी।

उसके अनुभव के अनुसार उसे उस वक़्त चूत चुदाई का आनन्द और

गाण्ड में बर्फ का दर्द दोनों का मिला-जुला अहसास हो

रहा था।

खैर मैंने उसी तरह माया की ठुकाई करते हुए उसकी चूत में ही

अपना वीर्य उगल दिया..

जिससे माया को अपनी चूत में तो राहत सी मिल गई किन्तु

उसकी गाण्ड में अब खुजली बढ़ चुकी थी।

उसकी गाण्ड की गर्मी का साफ़ पता चल रहा था क्योंकि

बर्फ का टुकड़ा लगभग एक मिनट में ही पिघल कर आधा रह

गया था।

तो मैंने भी वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए सोचा.. अभी

लोहा गर्म है बेटा.. मार ले हथौड़ा.. नहीं तो चूक जाएगा।

तो मैंने तुरंत ही झुककर उसकी पीठ सहलाते हुए उसे चुम्बन भी

करना चालू कर दिया और बर्फ के पिघलने से माया का दर्द

भी कम सा हो गया था।

उसके शरीर में रोमांच की तरंगें फिर से उमड़ने लगी थीं..

तो मैंने फिर से उसे यूँ ही प्यार देते हुए जहाँ तक ऊँगलियां जा

सकती थीं.. से बचे हुए बर्फ के टुकड़े को और अन्दर करने लगा।

फिर मैं अपनी दोनों ऊँगलियां अन्दर-बाहर करते हुए आश्चर्य में

था कि पहले जो आराम से नहीं हो रहा था.. पर वो अब

आराम से हो रहा था।

तो मैंने फिर से एक बर्फ का टुकड़ा लिया और उसकी गाण्ड में

दबा दिया जो कि अन्दर नहीं जा पा रहा था और माया

फिर से ‘आआअह’ कराह उठी।

तो मैंने बर्फ के टुकड़े को मक्खन में सान कर फिर से उसकी

गाण्ड में झटके से दबा दिया.. तो इस बार फिर से बर्फ का

टुकड़ा गाण्ड में आराम से चला गया और ख़ास बात यह थी

कि अबकी बार माया को भी दर्द न हुआ।

जैसा कि उसने बाद में बताया था कि पहली बार जब अन्दर

घुसा था तो उसे ऐसा लगा जैसे उसे चक्कर सा आ रहा है..

उसकी आँखें भी बंद हो चुकी थीं और काफी देर तक उसकी

आँखों में अधेरा छाया रहा था.. जैसे किसी ने उसकी जान

ही ले ली हो।

उसे सुनाई तो दे रहा था.. पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

खैर मैंने यूँ ही बर्फ के टुकड़े डाल डाल कर माया की गाण्ड को

अच्छे से फैला दिया था।

जब बर्फ का टुकड़ा आराम से अन्दर-बाहर होने लगा.. तो मैंने

भी देर न करते हुए माया को चूमा और उसे उठा कर.. फिर से

उसके होंठों का रसपान किया और उसके मम्मों को रगड़-रगड़

कर मसलते हुए उसकी चुदाई की आग को हवा देने लगा।

मेरा लौड़ा भी पूरे शबाव में आकर लहराते हुए उसके पेट पर

उम्मीदवारी की दस्तक देने लगा.. जिसे माया ने बड़े प्यार से

पकड़ा और उसे चूमते हुए बोली- बहुत जालिम हो गए हो.. अब

अपनी गुड़िया को दर्द दिए बिना भी नहीं मानते।

वो कुछ इस तरह से बोल रही थी कि उसके शब्द थे तो मेरे लिए..

पर वो मेरे लौड़े के लिए लग रहे थे।

तो मैंने भी अपने लौड़े को लहराते हुए उससे बोला- जान बस

आखिरी इच्छा और पूरी कर दे.. फिर जब तू कहेगी तेरी हर

तमन्ना खुशी से पूरी कर दूँगा।

तो वो उसे मुँह में भरकर कुछ देर चूसने के बाद बोली- ले अब मार

ले बाजी.. लेकिन प्यार से..

उसकी आवाज़ों ने मुझे इतना मदहोश कर दिया था कि मैंने

फिर से अपने होश को खो दिया और जो बर्फ का टुकड़ा

उसकी गाण्ड के छेद पर टिका रखा था, उसे किसी बटन की

तरह उसकी गाण्ड में पूरी ताकत से अंगूठे से दबा दिया.. जिससे

एक ही बार में उसकी गाण्ड में बर्फ का टुकड़ा चला गया।

अब माया गहरी पीड़ा भरी आवाज़ के साथ चिल्लाने लगी-

आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह म्मा.. माँ मार.. डाला..

उसकी तो जैसे जान ही निकल गई हो.. पर अब क्या हो

सकता था उसे तो निकाला भी नहीं जा सकता था और

उसकी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया जो कि मुझे बाद में

पता चला।

खैर.. अब तो मेरा काम हो ही चुका था.. और माया उसी तरह

अपनी टाँगें फैलाए बिस्तर पर सर रखकर झुकी-झुकी ही दर्द पर

काबू पाते हुए ‘आआअह आआआह उउउम्म्म्म्म’ कराहने लगी।

उसके अनुभव के अनुसार उसे उस वक़्त चूत चुदाई का आनन्द और

गाण्ड में बर्फ का दर्द दोनों का मिला-जुला अहसास हो

रहा था।

खैर मैंने उसी तरह माया की ठुकाई करते हुए उसकी चूत में ही

अपना वीर्य उगल दिया..

जिससे माया को अपनी चूत में तो राहत सी मिल गई किन्तु

उसकी गाण्ड में अब खुजली बढ़ चुकी थी।

उसकी गाण्ड की गर्मी का साफ़ पता चल रहा था क्योंकि

बर्फ का टुकड़ा लगभग एक मिनट में ही पिघल कर आधा रह

गया था।

तो मैंने भी वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए सोचा.. अभी

लोहा गर्म है बेटा.. मार ले हथौड़ा.. नहीं तो चूक जाएगा।

तो मैंने तुरंत ही झुककर उसकी पीठ सहलाते हुए उसे चुम्बन भी

करना चालू कर दिया और बर्फ के पिघलने से माया का दर्द

भी कम सा हो गया था।

उसके शरीर में रोमांच की तरंगें फिर से उमड़ने लगी थीं..

तो मैंने फिर से उसे यूँ ही प्यार देते हुए जहाँ तक ऊँगलियां जा

सकती थीं.. से बचे हुए बर्फ के टुकड़े को और अन्दर करने लगा।

फिर मैं अपनी दोनों ऊँगलियां अन्दर-बाहर करते हुए आश्चर्य में

था कि पहले जो आराम से नहीं हो रहा था.. पर वो अब

आराम से हो रहा था।

तो मैंने फिर से एक बर्फ का टुकड़ा लिया और उसकी गाण्ड में

दबा दिया जो कि अन्दर नहीं जा पा रहा था और माया

फिर से ‘आआअह’ कराह उठी।

तो मैंने बर्फ के टुकड़े को मक्खन में सान कर फिर से उसकी

गाण्ड में झटके से दबा दिया.. तो इस बार फिर से बर्फ का

टुकड़ा गाण्ड में आराम से चला गया और ख़ास बात यह थी

कि अबकी बार माया को भी दर्द न हुआ।

जैसा कि उसने बाद में बताया था कि पहली बार जब अन्दर

घुसा था तो उसे ऐसा लगा जैसे उसे चक्कर सा आ रहा है..

उसकी आँखें भी बंद हो चुकी थीं और काफी देर तक उसकी

आँखों में अधेरा छाया रहा था.. जैसे किसी ने उसकी जान

ही ले ली हो।

उसे सुनाई तो दे रहा था.. पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

खैर मैंने यूँ ही बर्फ के टुकड़े डाल डाल कर माया की गाण्ड को

अच्छे से फैला दिया था।

जब बर्फ का टुकड़ा आराम से अन्दर-बाहर होने लगा.. तो मैंने

भी देर न करते हुए माया को चूमा और उसे उठा कर.. फिर से

उसके होंठों का रसपान किया और उसके मम्मों को रगड़-रगड़

कर मसलते हुए उसकी चुदाई की आग को हवा देने लगा।

मेरा लौड़ा भी पूरे शबाव में आकर लहराते हुए उसके पेट पर

उम्मीदवारी की दस्तक देने लगा.. जिसे माया ने बड़े प्यार से

पकड़ा और उसे चूमते हुए बोली- बहुत जालिम हो गए हो.. अब

अपनी गुड़िया को दर्द दिए बिना भी नहीं मानते।

वो कुछ इस तरह से बोल रही थी कि उसके शब्द थे तो मेरे लिए..

पर वो मेरे लौड़े के लिए लग रहे थे।

तो मैंने भी अपने लौड़े को लहराते हुए उससे बोला- जान बस

आखिरी इच्छा और पूरी कर दे.. फिर जब तू कहेगी तेरी हर

तमन्ना खुशी से पूरी कर दूँगा।

तो वो उसे मुँह में भरकर कुछ देर चूसने के बाद बोली- ले अब मार

ले बाजी.. लेकिन प्यार से..

मैं माया से कुछ बोलता कि इसके पहले ही माया बोली- क्यों

अब हो गई न इच्छा पूरी?

तो मैंने बोला- अभी काम आधा हुआ है।

वो बोली- चलो फिर पूरा कर लो.. तो मैंने फिर से उसकी

गाण्ड से लौड़ा निकाला और तेज़ी के साथ लौड़े को फिर से

अन्दर पेल दिया जो कि उसकी जड़ तक एक ही बार में पहुँच

गया।

जिससे माया के मुख से दर्द भरी सीत्कार, ‘अह्ह्ह ह्ह..

आआआह मार डाला स्स्स्स्श्ह्ह्ह्ह’ फूट पड़ी और आँखों के

सामने अँधेरा सा छा गया।

और मैं उस पर रहम खाते हुए कुछ देर यूँ ही रुका रहा और आगे को

झुक कर मैंने उसकी पीठ को चूमते हुए उसकी चूत में ऊँगली डाल

कर अन्दर-बाहर करने लगा।

इसके कुछ देर बाद ही माया सामान्य होते हुए चूत में उँगलियों

का मज़ा लेते सीत्कार करने लगी।

अब मैंने भी इसी तरह उसकी चूत में ऊँगली देते हुए उसकी गाण्ड

में लण्ड अन्दर-बाहर करने लगा फिर कुछ ही समय बाद चूत की

खुजली मिटाने के चक्कर में माया खुद ही कमर चलाते हुए तेज़ी

से आगे-पीछे होने लगी और उसके स्वर अब दर्द से आनन्द में

परिवर्तित हो चुके थे।

मैंने वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए अपनी भी गति बढ़ा दी

और अब मेरा पूरा ‘सामान’ बिना किसी रुकावट के.. उसको

दर्द दिए बिना ही आराम से अन्दर-बाहर होने लगा।

जिससे मुझे भी एक असीम आनन्द की प्राप्ति होने लगी थी..

जिसको शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता है।

देखते ही देखते माया की चूत रस से मेरी ऊँगलियां ऐसे भीगने

लगीं जैसे किसी ने अन्दर पानी की टोंटी चालू कर दी हो।

पूरे कमरे उसकी सीत्कारें गूंज रही थी- आआआअह्ह्ह उउम्म्म्म

स्सस्स्स्स्श ज्ज्ज्जाअण आआअह आआइ जान बहुत मज़ा आ

रहा है.. मुझे नहीं मालूम था कि इतना मज़ा भी आएगा.. शुरू में

तो तूने फाड़ ही दी थी.. पर अब अच्छा लग रहा है.. तुम बस

अन्दर-बाहर करते रहो.. लूट लो इसके कुंवारेपन का मज़ा..

तो मैं भी बेधड़क हो उसकी गाण्ड में बिना रुके ऐसे लण्ड ठूँसने

लगा.. जैसे ओखली में मूसल चल रहा हो।

उसकी चीखने की आवाजें, ‘उउउउम्म्म्म आआआअह्ह्ह्ह

श्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हह अह्ह्हह आह आआह’ मेरे कानों में पड़ कर मेरा जोश

बढ़ाने लगीं।

जिससे मेरी रफ़्तार और तेज़ हो गई और मैं अपनी मंजिल के

करीब पहुँच गया। अति-उत्तेजना मैंने अपने लौड़े को ऐसे ठेल

दिया जैसे कोई दलदल में खूटा गाड़ दिया हो।

इस कठोर चोट के बाद मैंने अपना सारा रस उसकी गाण्ड के

अंतिम पड़ाव में छोड़ने लगा और तब तक ऐसे ही लगा रहा.. जब

तक उसकी पूरी नली खाली न हो गई।

फिर मैंने उसकी गाण्ड को मुट्ठी में भरकर कसके भींचा और

रगड़ा.. जिससे काफी मज़ा आ रहा था। और आए भी क्यों

न.. माया की गाण्ड किसी स्पंज के गद्दे से काम न थी।

फिर इस क्रीड़ा के बाद मैं आगे को झुका और उसकी पीठ का

चुम्बन लेते हुए.. उसकी बराबरी में जाकर लेट गया।

अब उसका सर नीचे था और गाण्ड ऊपर को उठी थी.. तो मैं

उसके गालों पर चुम्बन करते हुए उसकी चूचियों को छेड़ने लगा..

पर वो वैसे ही रही।

मैंने पूछा- क्या हुआ.. सीधी हो जाओ.. अब तो हो चुका जो

होना था।

तो माया अपना सर मेरी ओर घुमाते हुए बोली- राहुल तूने

कचूमर निकाल दिया।

उस समय तो जोश में मैंने भी रफ़्तार बढ़ा दी थी.. पर अब जरा

भी हिला नहीं जा रहा है।

तो मैंने उसे सहारा देते हुए आहिस्ते से लिटाया और मेरे लिटाते

ही माया की गाण्ड मेरे लावे के साथ-साथ खून भी उलट रही

थी जो कि उसके अंदरुनी भाग के छिल जाने से हो रहा था।

मैंने माया के चेहरे की ओर देखा जो कि इस बात से अनजान

थी। उसकी आँखें बंद और चेहरे पर ओस की बूंदों के समान पसीने

की बूँदें चमक रही थीं और मुँह से दर्द भरी आवाज लगातार

‘आआआअह अह्ह्हह्ह श्ह्ह्ह्ह्ह’ निकाले जा रही थी।

मैं उसकी इस हालत तरस खाते हुए वाशरूम गया और सोख्ता पैड

और गुनगुना पानी लाकर उसकी गाण्ड और चूत की सफाई

की.. जिससे माया ने मेरे प्यार के आगोश में आकर मुझे अपने

दोनों हाथ खोल कर अपनी बाँहों में लेने का इशारा किया।

तो मैं भी अपने आपको उसके हवाले करते हुए उसकी बाँहों में

चला गया।

उसने मुझे बहुत ही आत्मीयता के साथ प्यार किया और बोली-

तुम मेरा इतना ख़याल रखते हो.. मुझे बहुत अच्छा लगता है.. आज

से मेरा सब कुछ तुम्हारा राहुल.. आई लव यू.. आई लव यू.. सो

मच.. मुझे बस इसी तरह प्यार देते रहना।

मैंने माया के चेहरे की ओर देखा जो कि इस बात से अनजान

थी। उसकी आँखें बंद और चेहरे पर ओस की बूंदों के समान पसीने

की बूँदें चमक रही थीं और मुँह से दर्द भरी आवाज लगातार

‘आआआअह अह्ह्हह्ह श्ह्ह्ह्ह्ह’ निकाले जा रही थी।

मैं उसकी इस हालत तरस खाते हुए वाशरूम गया और सोख्ता पैड

और गुनगुना पानी लाकर उसकी गाण्ड और चूत की सफाई

की.. जिससे माया ने मेरे प्यार के आगोश में आकर मुझे अपने

दोनों हाथ खोल कर अपनी बाँहों में लेने का इशारा किया।

तो मैं भी अपने आपको उसके हवाले करते हुए उसकी बाँहों में

चला गया।

उसने मुझे बहुत ही आत्मीयता के साथ प्यार किया और बोली-

तुम मेरा इतना ख़याल रखते हो.. मुझे बहुत अच्छा लगता है.. आज

से मेरा सब कुछ तुम्हारा राहुल.. आई लव यू.. आई लव यू.. सो

मच.. मुझे बस इसी तरह प्यार देते रहना।

ये कहते हुए उसने अपना हाथ मेरे लौड़े पर रख दिया और मेरी

आँखों में देखते हुए मुझसे बात करते-करते मेरे लौड़े को मुठियाने

लगी।

उसकी इस अदा पर में’ फ़िदा ही हो गया था.. आज भी जब

कल्पना करता हूँ.. उसके खुले रेशमी बाल.. बड़ी आँखें उसके

होंठ.. समझ लो आज भी बस यही सोचकर मुट्ठ मार लेता हूँ।

खैर.. अब कहानी में आते हैं..

तो मैं उसके इस रूप पर इतना मोहित हो गया कि बिना कुछ

बोले बस एकटक उसे ही देखता रहा… जैसे कि मैं उसे अपनी

कल्पनाओं में चोदे जा रहा हूँ.. और देखते ही देखते मैंने उसके

होंठों पर अपने होंठों से आक्रमण कर दिया और उसे बेतहाशा

मदहोशी के आगोश में आकर चूमने चाटने लगा।

जिससे माया का भी स्वर बदल गया और उसकी बोलती बंद

हो गई और बीच-बीच में बस ‘आआह्ह्ह श्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह.. ऊऊम्म’ के

स्वर निकालने लगी।

मैं उसके चूचे ऐसे चूसे जा रहा था जैसे गाय के पास जाकर उसका

बछड़ा उसके थनों से दूध चूसता है।

फिर कुछ देर बाद देखा तो वो भी मेरी ही तरह से पूरी तरह से

मदहोशी के आगोश में आकर अपने दूसरे निप्पल को रगड़कर

दबाते हुए, ‘आह्ह्ह्ह्ह श्ह्ह्ह्ह्ह्ह.. उउउउउम..’ की ध्वनि निकाल

रही थी.. जिससे कि मेरा जोश और बढ़ गया।

मैंने उसे वैसे ही लिटाया और उसके पैरों के बीच खड़ा होकर..

उसकी चूत में एक ही बार में लण्ड डालकर.. उसे जबरदस्त तरीके

से गर्दन को बाएं हाथ से पलंग पर दबाकर तेज़ ठोकरों के साथ

चोदने लगा।

माया की सीत्कार ‘आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह’ चीत्कार में बदल गई।

‘अह्ह्हह्ह.. बहुत मज़ा आ रहा है राहुल.. बस ऐसे ही करते आह्ह्ह्ह

रहो..।’

देखते ही देखते माया का शरीर ढीला पड़ गया और मैं भी

उसके साथ तो नहीं… पर उसके शांत होते ही अपने लौड़े का

गर्म उबाल.. उगल दिया।

फिर उसके मम्मों पर सर रखकर आराम करने लगा।

सच बताऊँ दोस्तों इसमें हम दोनों को बहुत मज़ा आया था।

थोड़ी देर यू हीं लेटे रहने के बाद माया मेरे सर को अपने हाथों

से सहलाते हुए चूमने लगी और बोली- राहुल तुम मेरे साथ जब

भी.. कैसे भी.. करते हो, मुझे बहुत अच्छा लगता है और सुकून

मिलता है.. मुझे अपना प्यार इसी तरह देते रहना।

मैंने बोला- तुमसे भी मुझे बहुत सुकून मिलता है.. तुम परेशान मत

होना जान.. मैं हमेशा तुम्हें ऐसे ही प्यार देता रहूँगा।

फिर वो मुझे चूमते हुए बोली- आगे की तो जंग छुड़ा कर

ऑयलिंग कर दी.. पर अब पीछे की बारी है।

तो मैंने हैरान होते हुए उसकी आँखों में झाँका.. तो वो तुरंत

बोली- क्यों क्या हुआ.. ऐसा मैंने क्या बोल दिया.. जो

इतना हैरान हो गए?

तो मैंने बोला- अरे कुछ नहीं..

वो बोली- है तो कुछ.. मुझसे न छिपाओ.. अब बोल भी दो।

तो मैंने बोला- अरे तुम्हारे पीछे दर्द होगा.. तो क्या बर्दास्त

कर लोगी? मैंने देखा था.. महसूस भी किया था तुम्हें बहुत

तकलीफ हुई थी।

तो मुस्कुराते हुए बोली- अले मेले भोलू लाम.. तुम सच में बहुत

प्यारे हो.. मेरा बहुत ख़याल रखते हो.. पर तुम्हें जानकर ख़ुशी

होगी कि अब तालाब समुन्दर हो गई है.. चाहो तो खुद देख

लो।

वो मेरा हाथ पकड़ कर अपनी गांड के छेद पर रखते हुए बोली-

खुद ही अपनी ऊँगली डालकर देख लो..

तो मैंने उसकी गांड में दो ऊँगलियां डालीं.. जो कि आराम

से चली गईं।

कुछ देर बाद फिर जब मैंने तीन डालीं तो उसे हल्का सा दर्द

महसूस हुआ..

पर वो बोली- चलो अब जल्दी से इस दर्द को भी दूर कर दो।

मैंने बोला- अच्छा.. फिर से तेल या मक्खन लगा लो।

तो वो बोली- अरे अब उसकी जरुरत नहीं है.. मैं हूँ न.. बस तुम

सीधे होकर लेट जाओ।

फिर मैं सीधा ही लेट गया.. माया अपने हाथ से मेरे लण्ड को

मुठियाते हुए मुँह में भरकर चूसने लगी.. जिससे मेरा लौड़ा फिर

आनन्द की किश्ती में सवार हो कर झूम उठा और जब उसके मुँह

से लौड़ा निकलता तो उसके माथे पर ऐसे टीप मारता.. जैसे

कहता हो, ‘पगली.. ठीक से चूस..’

फिर मैंने माया को बोला- जल्दी से इसे ले लो.. वरना ये ऐसे

ही उबाल खा कर भावनाओं के सागर में बह जाएगा।

तो माया ने भी वैसा ही किया और मुँह में ज्यादा सा थूक

भरकर.. मेरे लौड़े को तरबतर करके.. खुद ही मैदान सम्हालते हुए

मेरे ऊपर आ गई।

वो मेरे लौड़े को अपनी गांड के छेद पर टिका कर धीरे-धीरे

नीचे को बैठने लगी और उसकी थूक की चिकनाई के कारण

आराम से उसकी गांड ने मेरा पूरा लौड़ा निगल सा लिया

था।

उसकी गांड की गर्माहट पाकर मेरे अन्दर मनोभावनाओं में

फिर से तूफ़ान सा जाग उठा और मैं भी कमर चलाकर उसे नीच

से ठोकते हुए लण्ड की जड़ तक उसकी गांड में डालने लगा।

इतना आनन्द भरा समा चल रहा था कि दोनों सब कुछ भूल कर

एक-दूसरे को ठोकर मारने में लगे थे।

माया ऊपर से नीचे.. तो मैं नीचे से ऊपर की ओर कमर चला रहा

था।

माया लगातार ‘अह्ह्हह्ह उउउउम..’ करते-करते चूत से पानी

बहाए जा रही थी.. जिसकी कुछेक बूँदें मेरे पेट पर गिर चुकी

थीं।

उसको इतना मज़ा आ रहा था कि बिना चूत में कुछ डाले ही

चरमोत्कर्ष के कारण स्वतः ही उसकी चूत का बाँध छूट गया

और उसका कामरस मेरे पेट पर ही गिरने लगा।

और देखते ही देखते माया ने निढाल सा होकर पलंग पर घुटने

टिका कर.. लण्ड को अन्दर लिए ही मेरी छाती पर सर रख

दिया और अपने हाथों से मेरे कंधों को सहलाने लगी।

जिससे मेरा जोश भी बढ़ने लगा और मैंने अपने हाथों से उसके

चूतड़ों को पकड़ा और मज़बूती से पकड़ते हुए नीचे से जबरदस्त

स्ट्रोक लगाते हुए उसकी गांड मारने लगा।

जिससे वो सीत्कार ‘श्ह्ह्ह्ह्ह्ह आआआअह..’ करते हुए जोश में

आने लगी और मेरी छातियों को चूमने चाटने लगी।

मैंने रफ़्तार बढ़ा कर उसे चोदते हुए उसकी गांड में अपनी कामरस

की बौछार कर दी।

झड़ने के साथ ही माया को अपनी बाँहों में जकड़ कर उसके सर

को चूमते हुए उसे प्यार करने लगा।

ऐसा लग रहा था.. जैसे सारी दुनिया का सुख भोग कर आया

हूँ।

फिर उस रात मैंने थोड़ी-थोड़ी देर रुक रूककर माया की गांड

और चूत मारी.. करीब पांच बजे के आस-पास हम दोनों एक-दूसरे

की बाँहों में निर्वस्त्र ही लिपटकर सो गए।

वो मेरे लौड़े को अपनी गांड के छेद पर टिका कर धीरे-धीरे

नीचे को बैठने लगी और उसकी थूक की चिकनाई के कारण

आराम से उसकी गांड ने मेरा पूरा लौड़ा निगल सा लिया

था।

उसकी गांड की गर्माहट पाकर मेरे अन्दर मनोभावनाओं में

फिर से तूफ़ान सा जाग उठा और मैं भी कमर चलाकर उसे नीच

से ठोकते हुए लण्ड की जड़ तक उसकी गांड में डालने लगा।

इतना आनन्द भरा समा चल रहा था कि दोनों सब कुछ भूल कर

एक-दूसरे को ठोकर मारने में लगे थे।

माया ऊपर से नीचे.. तो मैं नीचे से ऊपर की ओर कमर चला रहा

था।

माया लगातार ‘अह्ह्हह्ह उउउउम..’ करते-करते चूत से पानी

बहाए जा रही थी.. जिसकी कुछेक बूँदें मेरे पेट पर गिर चुकी

थीं।

उसको इतना मज़ा आ रहा था कि बिना चूत में कुछ डाले ही

चरमोत्कर्ष के कारण स्वतः ही उसकी चूत का बाँध छूट गया

और उसका कामरस मेरे पेट पर ही गिरने लगा।

और देखते ही देखते माया ने निढाल सा होकर पलंग पर घुटने

टिका कर.. लण्ड को अन्दर लिए ही मेरी छाती पर सर रख

दिया और अपने हाथों से मेरे कंधों को सहलाने लगी।

जिससे मेरा जोश भी बढ़ने लगा और मैंने अपने हाथों से उसके

चूतड़ों को पकड़ा और मज़बूती से पकड़ते हुए नीचे से जबरदस्त

स्ट्रोक लगाते हुए उसकी गांड मारने लगा।

जिससे वो सीत्कार ‘श्ह्ह्ह्ह्ह्ह आआआअह..’ करते हुए जोश में

आने लगी और मेरी छातियों को चूमने चाटने लगी।

मैंने रफ़्तार बढ़ा कर उसे चोदते हुए उसकी गांड में अपनी कामरस

की बौछार कर दी।

झड़ने के साथ ही माया को अपनी बाँहों में जकड़ कर उसके सर

को चूमते हुए उसे प्यार करने लगा।

ऐसा लग रहा था.. जैसे सारी दुनिया का सुख भोग कर आया

हूँ।

फिर उस रात मैंने थोड़ी-थोड़ी देर रुक रूककर माया की गांड

और चूत मारी.. करीब पांच बजे के आस-पास हम दोनों एक-दूसरे

की बाँहों में निर्वस्त्र ही लिपटकर सो गए।

कितना

समय लगता है.. हो सकता है तीस मिनट और लग जाएँ।

मेरा मन उसकी यह बात सुनकर ख़ुशी में झूम उठा और मैंने मन ही

मन खुश होकर विनोद से बोला- अरे कोई बात नहीं आराम से

आओ वैसे भी आज का खाना मैं खा कर ही जाऊँगा..

इस तरह दो-अर्थी शब्दों में बाते करते हुए मैंने फोन रख दिया..

तब तक माया आई और मेरे चेहरे के भावों से भांप गई कि विनोद

लोग अभी और देर में आएंगे।

वो मुझसे बोली- क्या बात है.. लगता है तुम्हें अब मन चाहा

फल देना ही पड़ेगा..

तो मैंने भी उससे झूट बोलते हुए कहा- अभी उनको दो घंटे और

लगेंगे.. उनकी ट्रेन शहर से दूर कहीं सिग्नल न मिलने के कारण

खड़ी हो गई है..

अब अगर मैं ये कहता कि गाड़ी स्टेशन के आउटर पर खड़ी है..

तो शायद वो कुछ भी मन से न करती और डरते हुए चुदाई करने में

वो मज़ा कहाँ.. जो पूरे इत्मीनान के साथ करने में मिलता है।

खैर.. माया भी ख़ुशी से फूली न समाई और आकर मुझे अपनी

बाँहों में भींच लिया और अपने होंठों से मेरे होंठों को चूमने

लगी।

मैं भी उसे अपनी बाँहों में जकड़े हुए प्यार से चूमने-चाटने लगा

और उसकी गर्दन पर जैसे ही चूमा.. वैसे ही उसके बालों से आ

रही खुश्बू जो कि आज ही उसने धोए थे..

तो उसके बालों से आ रही खुश्बू से मैं मदहोश सा हो गया और

उसे अपनी गोद में उठा कर उसे रूचि वाले बिस्तर पर लिटा

दिया।

अब मैं उसके भीगे बालों की खुशबू लेने लगा।

उसके बाल भीगे होने से तकिया भी गीला होने लगा.. मैं उसे

और वो मुझे बस पागलों की ही तरह चूमे-चाटे जा रहा था।

फिर उसने मुझे ऊपर की ओर धकेला और मुझे नीचे लेटने को

बोला।

मैं कुछ समझ पाता.. उसके पहले ही उसने अपनी पैंटी निकाली

और फिर मेरा लोअर हटा के वहीं पलंग के नीचे डाल दी और मेरे

ऊपर आकर मेरी जांघों पर बैठते हुए अपने ब्लाउज के हुक खोलने

लगी।

मैं इतना बेताब हो गया कि बिना उसके खोले ही उसके चूचे

नोचने-दबाने लगा।

जिससे उसके मुँह से चीख निकल गई और बोली- यार दो मिनट

रुक नहीं सकते।

तो मैंने बोला- इतना मदहोश कर देती हो कि होश ही नहीं

रहता।

तभी माया ने ब्लाउज निकाल दिया और मेरे होंठों को चूसते

हुए मेरा सर सहलाने लगी।

फिर मैंने अपने दोनों हाथों को उसकी पीठ पर ले जाकर

उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और उसकी पीठ सहलाते हुए

सके चूतड़ों को रगड़ते हुए उन पर चाटें मारने लगा..

जिससे माया चिहुँक उठी।

अब तो उसे भी मेरी इस अदा पर मज़ा आने लगा था और मेरे हर

तरीके का मज़े से स्वागत करने लगी थी..

जैसे कि वो मेरी आदी हो चुकी हो।

उधर मेरा लण्ड जो कि अब बेकरार हो चुका उसकी चूत से रगड़

खाते हुए उसकी चूत के मुहाने पर तन्नाते हुए अपना सर पटकने

लगा था.. मानो कह रहा हो कि अब तुम लोगों का हो गया

हो तो अब मेरी बारी आ गई है।

तभी मुझे भी होश आया कि वो लोग कभी भी घर पहुँच सकते

हैं.. तो मैंने धीरे से अपने हाथों से उसके मम्मे दबाने चालू किए..

जिससे माया की सीत्कार निकलने लगी।

वो भी गर्म जोशी के साथ अपनी गर्दन उठा कर लहराती हुई

जुल्फों से पानी की बूँदें टपकाती हुई ‘आआह.. उउउम्म्म्म और

जोर से राहुल.. आआआह.. ऐसे ही करो.. आआअह..’ बोलने

लगी।

तभी मैंने महसूस किया कि माया की चूत का पानी रिस कर

मेरी जांघों और लौड़े के अगल-बगल बह रहा है।

फिर मैंने माया के चूतड़ों को पकड़कर थोड़ा सा ऊपर उठाया

और अपना सीधे हाथ से लौड़े को पकड़कर उसकी चूत पर सैट

करने लगा।

तो माया ने मोर्चा सम्हालते हुए खुद ही अपने हाथ से मेरे पप्पू

को पकड़ा और उस पर अपनी चूत टिका एक ही बार में ‘गच्च’

से बैठ गई।

चूत के रसिया जाने से मेरा लण्ड भी बिना किसी रुकावट के

उसकी चूत में लैंड हो गया और अब बल खाते हुए अपनी कमर

चला-चला कर हुमक के ऊपर-नीचे होने लगी।

यार.. मैं तो उसका चेहरा ही देखता रह गया।

उसके जोश को देखकर एक पल के लिए मैं तो थम सा गया कि

आखिर आज माया को क्या हो गया है.. वो एक भूखी शेरनी

की तरह एक के बाद एक मेरे लौड़े पर अपनी चूत से वार करने

लगी और निरंतर उसकी गति बढ़ती चली गई।

जैसे रेल की चाल चलती है.. कभी धीमे-धीमे और बीच में तेज़

और जब रूकती है तो फिर धीमे-धीमे.. ठीक उसी तरह माया

कि भी गति अब बढ़ चुकी थी।

वो इतनी मदहोशी के साथ सब कर रही थी कि उसका अब खुद

पर कोई काबू नहीं रहा था और वो अपनी आँखों को बंद किए

हुए अपने निचले होंठों को मुँह से दाबे हुए दबी आवाज़ में

‘श्ह्ह्ह्ह्ह्ह.. आआआअह.. उम्म्म्म्म्..’ करती हुई मेरे सीने को

अपने हाथों से सहला रही थी..

जिससे मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था और मैं भी उससे बोलने

लगा- माया.. अब कर दो मेरे लण्ड पर प्यार की बरसात.. अब

मेरा लण्ड अन्दर की और गर्मी बर्दास्त नहीं कर सकता..

इतना कहते ही मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके तरबूज

सामान चूतड़ों को भींचते हुए कसकर पकड़ लिया।

अब मैं भी अपनी कमर चलाने लगा.. जिससे माया का बांध

कुछ ही धक्कों के बाद टूट गया और वो हाँफते हुए मेरे सीने पर

सर टिका कर झुक गई।

अब वो इस स्थिति में अपनी गांड उठाए हुए मेरा लण्ड अपनी

चूत में खाने लगी.. जिससे मुझे भी मज़ा आने लगा और मैं भी

नीचे से तेज़ी के साथ कमर चलाते हुए उसकी चूत बजाने लगा।

अब आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने ये बजाना शब्द क्यों प्रयोग

किया.. तो आपको बता दूँ कि उसकी चूत से इतना ज्यादा

पानी डिस्चार्ज हुआ था.. और मेरे लौड़े के बार-बार अन्दर-

बाहर होने से गप्प-गप्प और चप्प-चप्प की आवाजें आ रही थीं..

जो कि एक अलग प्रकार के जोश को बढ़ाने के लिए काफी

थी। उधर माया की भी कराहें भी बढ़ गईं और प्यार भरी

सीत्कार ‘आआआह.. आह.. उम..उम्म्म..’ के साथ भारी-भारी

सांसें मेरे सीने पर गिर रही थीं।

उसकी गर्म सांसें मेरे रोम-रोम से टकरा कर कह रही थीं कि अब

आ जाओ और पानी डाल कर बुझा दो.. इन गर्म साँसों को..

और कर दो ठंडा..

मैं भी पूरी तल्लीनता के साथ अपने चरमोत्कर्ष के मार्ग पर

आगे बढ़ता हुआ उसकी चूत पर लण्ड की ठोकर जड़ने लगा। इतने

में ही डोर बेल बजी.. जिससे माया सकते में आ गई और घबरा

गई।

वास्तव में हम दोनों पसीने से लथपथ तो थे ही.. अब आँखों में

घबराहट के डोरे भी साफ़ दिखने लगे और उधर लगातार डोर-

बेल बजे ही जा रही थी।

मेरा मन तो कर रहा था जाऊँ और जाकर उस बेल को तोड़ दूँ..

पर करता भी तो क्या? मेरा अभी भी हुआ नहीं था तो मैं

जल्दी से उठा और अपना लोअर पहना और उसी से जुड़े हुए

बाथरूम में चला गया।

जल्द-बाज़ी में माया ने भी अपनी साड़ी सही की जो

अस्तव्यस्त हो गई थी और चड्डी वहीं पलंग के ऊपर पड़ी भूल गई

थी।

वो अपने कपड़े सुधारने के बाद बिस्तर बिना सही किए ही

चिल्लाते हुए चली गई।

‘आ रही हूँ.. पता नहीं कौन है.. बार-बार परेशान कर रहा है..’

उधर मैं भी अपना हाथ जगन्नाथ करने में जुटा था और अपना

पानी बहाते हुए मैं थोड़ी देर वहीं बैठ गया.. अब मुझे क्या पता

कि जल्दबाजी में लोअर उठाने के चक्कर में मेरी चड्डी जो

कि रूचि के पलंग के नीचे रह गई थी और माया की चूत रस से

भीगी चड्डी बिस्तर पर ही पड़ी थी।

खैर.. तब तक मुझे कमरे कुछ हलचल महसूस हुई.. तो मैंने सोचा अब

निकलना चाहिए ताकि बहाना बना सकूँ कि मैं फ्रेश हो

रहा था और मैं कैसे दरवाज़ा खोलता।

खैर.. मैं धीरे से अपना मुँह धोते हुए बाहर निकला.. तो मैं

हक्का-बक्का सा रह गया क्योंकि रूचि के हाथों मेरी और

माया की चड्डी थीं.. उसके दाए हाँथ में मेरी और बाएं हाथ में

माया की.. और वो बड़े ही गौर से मेरी चड्डी को बिस्तर पर

रखकर माया की चड्डी के गीले भाग को बड़े ही गौर से देखते

हुए सूंघने लगी और अपनी ऊँगली से छू कर शायद ये देख रही थी

कि ये चिपचिपा-चिपचिपा सा क्या है

तभी मैंने महसूस किया कि माया की चूत का पानी रिस कर

मेरी जांघों और लौड़े के अगल-बगल बह रहा है।

फिर मैंने माया के चूतड़ों को पकड़कर थोड़ा सा ऊपर उठाया

और अपना सीधे हाथ से लौड़े को पकड़कर उसकी चूत पर सैट

करने लगा।

तो माया ने मोर्चा सम्हालते हुए खुद ही अपने हाथ से मेरे पप्पू

को पकड़ा और उस पर अपनी चूत टिका एक ही बार में ‘गच्च’

से बैठ गई।

चूत के रसिया जाने से मेरा लण्ड भी बिना किसी रुकावट के

उसकी चूत में लैंड हो गया और अब बल खाते हुए अपनी कमर

चला-चला कर हुमक के ऊपर-नीचे होने लगी।

यार.. मैं तो उसका चेहरा ही देखता रह गया।

उसके जोश को देखकर एक पल के लिए मैं तो थम सा गया कि

आखिर आज माया को क्या हो गया है.. वो एक भूखी शेरनी

की तरह एक के बाद एक मेरे लौड़े पर अपनी चूत से वार करने

लगी और निरंतर उसकी गति बढ़ती चली गई।

जैसे रेल की चाल चलती है.. कभी धीमे-धीमे और बीच में तेज़

और जब रूकती है तो फिर धीमे-धीमे.. ठीक उसी तरह माया

कि भी गति अब बढ़ चुकी थी।

वो इतनी मदहोशी के साथ सब कर रही थी कि उसका अब खुद

पर कोई काबू नहीं रहा था और वो अपनी आँखों को बंद किए

हुए अपने निचले होंठों को मुँह से दाबे हुए दबी आवाज़ में

‘श्ह्ह्ह्ह्ह्ह.. आआआअह.. उम्म्म्म्म्..’ करती हुई मेरे सीने को

अपने हाथों से सहला रही थी..

जिससे मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था और मैं भी उससे बोलने

लगा- माया.. अब कर दो मेरे लण्ड पर प्यार की बरसात.. अब

मेरा लण्ड अन्दर की और गर्मी बर्दास्त नहीं कर सकता..

इतना कहते ही मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके तरबूज

सामान चूतड़ों को भींचते हुए कसकर पकड़ लिया।

अब मैं भी अपनी कमर चलाने लगा.. जिससे माया का बांध

कुछ ही धक्कों के बाद टूट गया और वो हाँफते हुए मेरे सीने पर

सर टिका कर झुक गई।

अब वो इस स्थिति में अपनी गांड उठाए हुए मेरा लण्ड अपनी

चूत में खाने लगी.. जिससे मुझे भी मज़ा आने लगा और मैं भी

नीचे से तेज़ी के साथ कमर चलाते हुए उसकी चूत बजाने लगा।

अब आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने ये बजाना शब्द क्यों प्रयोग

किया.. तो आपको बता दूँ कि उसकी चूत से इतना ज्यादा

पानी डिस्चार्ज हुआ था.. और मेरे लौड़े के बार-बार अन्दर-

बाहर होने से गप्प-गप्प और चप्प-चप्प की आवाजें आ रही थीं..

जो कि एक अलग प्रकार के जोश को बढ़ाने के लिए काफी

थी। उधर माया की भी कराहें भी बढ़ गईं और प्यार भरी

सीत्कार ‘आआआह.. आह.. उम..उम्म्म..’ के साथ भारी-भारी

सांसें मेरे सीने पर गिर रही थीं।

उसकी गर्म सांसें मेरे रोम-रोम से टकरा कर कह रही थीं कि अब

आ जाओ और पानी डाल कर बुझा दो.. इन गर्म साँसों को..

और कर दो ठंडा..

मैं भी पूरी तल्लीनता के साथ अपने चरमोत्कर्ष के मार्ग पर

आगे बढ़ता हुआ उसकी चूत पर लण्ड की ठोकर जड़ने लगा। इतने

में ही डोर बेल बजी.. जिससे माया सकते में आ गई और घबरा

गई।

वास्तव में हम दोनों पसीने से लथपथ तो थे ही.. अब आँखों में

घबराहट के डोरे भी साफ़ दिखने लगे और उधर लगातार डोर-

बेल बजे ही जा रही थी।

मेरा मन तो कर रहा था जाऊँ और जाकर उस बेल को तोड़ दूँ..

पर करता भी तो क्या? मेरा अभी भी हुआ नहीं था तो मैं

जल्दी से उठा और अपना लोअर पहना और उसी से जुड़े हुए

बाथरूम में चला गया।

जल्द-बाज़ी में माया ने भी अपनी साड़ी सही की जो

अस्तव्यस्त हो गई थी और चड्डी वहीं पलंग के ऊपर पड़ी भूल गई

थी।

वो अपने कपड़े सुधारने के बाद बिस्तर बिना सही किए ही

चिल्लाते हुए चली गई।

‘आ रही हूँ.. पता नहीं कौन है.. बार-बार परेशान कर रहा है..’

उधर मैं भी अपना हाथ जगन्नाथ करने में जुटा था और अपना

पानी बहाते हुए मैं थोड़ी देर वहीं बैठ गया.. अब मुझे क्या पता

कि जल्दबाजी में लोअर उठाने के चक्कर में मेरी चड्डी जो

कि रूचि के पलंग के नीचे रह गई थी और माया की चूत रस से

भीगी चड्डी बिस्तर पर ही पड़ी थी।

खैर.. तब तक मुझे कमरे कुछ हलचल महसूस हुई.. तो मैंने सोचा अब

निकलना चाहिए ताकि बहाना बना सकूँ कि मैं फ्रेश हो

रहा था और मैं कैसे दरवाज़ा खोलता।

खैर.. मैं धीरे से अपना मुँह धोते हुए बाहर निकला.. तो मैं

हक्का-बक्का सा रह गया क्योंकि रूचि के हाथों मेरी और

माया की चड्डी थीं.. उसके दाए हाँथ में मेरी और बाएं हाथ में

माया की.. और वो बड़े ही गौर से मेरी चड्डी को बिस्तर पर

रखकर माया की चड्डी के गीले भाग को बड़े ही गौर से देखते

हुए सूंघने लगी और अपनी ऊँगली से छू कर शायद ये देख रही थी

कि ये चिपचिपा-चिपचिपा सा क्या है

अब आगे बढ़ कर मैंने उससे बोला- तुम्हें क्या लग रहा है?

तो वो मुझसे बोली- वही तो समझने की कोशिश कर रही हूँ

कि मुझे क्यों सब कुछ गड़बड़ लग रहा है या फिर बात कुछ और

है?

तो मैंने उसे बोला- जो तुम्हें लग रहा है पहले वो बोलो.. फिर

अगर सही होगा तो मैं ‘हाँ’ या ‘न’ में जवाब दूँगा और तुम गलत

हुई.. तो मैं बता दूँगा.. पर ये बात मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगी।

मैं उस दिन बहुत डर गया था.. घबराहट के मारे मेरे माथे से

पसीना बहने लगा था। पर जैसे ही उसकी बात सुनी तो मेरी

जान में जान आई और मैंने सोचा इसे अपनी बात पूरी कर लेने

दो फिर तो मैं इसे हैंडल कर लूँगा।

मैं दरवाजा बंद करने लगा तो उसने कहा- ये क्यों किया तुमने?

मैंने बोला- ताकि कोई यहाँ न आए.. फिर मैं उसी बिस्तर पर

जाकर बैठ गया.. और उससे बोला- मेरे पास न सही.. पर चाहो

तो सामने वाले बिस्तर पर बैठ जाओ.. नहीं तो थक जाओगी..

अभी तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं है।

तो उसने मुँह बनाते हुए बोला- ज्यादा हमदर्दी दिखाने की

कोशिश मत करो..

वो यह कहते हुए बैठ गई।

फिर मैंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा- अच्छा अब बोलो.. तुम क्या

सोच रही थी?

मैंने उसके हाथ की ओर इशारा करते हुए पूछा.. जिसमें वो

माया के रस से सनी चड्डी को पकड़े हुए थी।

तो वो बोली- आप कितने गंदे हो.. मैंने कभी भी नहीं सोचा

था कि आप माँ के अंदरूनी कपड़ों को लेकर सोओगे और ये सब

करोगे..

तो मैं समझ गया कि ये अभी नादान है.. इसे ज्यादा कुछ नहीं

पता लगा।

मैंने भी थोड़ी बेशर्मी दिखाते हुए बोला- क्या.. इस सबसे

तुम्हारा क्या मतलब है?

तो वो चड्डी में लगे हुए रस को छूते हुए बोली- ये..

तो मैंने पूछा- तुम्हें नहीं पता कि ये क्या है.. तो तुम मुझे गन्दा

कैसे कह सकती हो?

मुझे पता चल गया था कि वो क्या कहना चाह रही थी.. पर

उसके मुँह से सुनने के लिए मैंने उसे उकसाया.. तो वो बोली-

बेवकूफ मत समझो मुझे.. आपको नहीं मालूम.. ये आपका स्पर्म

है। मैंने अपनी सहेलियों से सुना है कि लड़कों का स्पर्म

चिकना होता है.. और आपको मैं पहले दिन से नोटिस कर रही

हूँ कि आप मेरी माँ को मौका पाकर छेड़ते रहते हैं और…

तो मैंने बोला- और क्या?

बोली- और.. अब तो हद ही हो गई.. आपने हम लोगों की

गैरहाज़िरी का फायदा उठाते हुए मेरी माँ पर गन्दी नज़र रखते

हुए.. उनके अंडरगार्मेंट्स को अपने साथ लेकर सोने लगे और न

जाने मन में क्या क्या करते होंगे.. जिससे आपका स्पर्म निकल

जाता होगा..

तो मैंने उससे बोला- तुम्हें पता है.. स्पर्म कैसे निकलता है?

बोली- हाँ.. गन्दा सोचने पर..

मैंने हंस कर बोला- उतनी देर से तुम भी तो मेरे बारे मैं गन्दा

सोच रही हो.. तो क्या तुम्हारा भी ‘स्पर्म’ निकल रहा है?

वो तुनक कर बोली- अरे मेरे कहने का मतलब ऐसा नहीं है..

तो मैंने बोला- फिर कैसा है?

बोली- मैं अभी जाती हूँ.. और बाहर जाकर सबको बताती

हूँ.. फिर वही तुम्हें समझा देंगे..

ये कह उठने सी लगी तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखे और उसे बैठने

को कहा और बोला- पहले ठीक से हम समझ तो लें.. फिर जो

मन में आए.. वो करना।

तो बोली- नहीं.. अब मुझे कुछ नहीं समझना.. मैं आपको बहुत

अच्छा समझती थी.. पर आप बिलकुल भी ठीक इंसान नहीं

हो..

मैंने बोला- अभी सब समझा दूँगा.. पर पहले ये बताओ.. तुम मेरी

किस सोच को गन्दा बोल रही थी.. जिससे स्पर्म निकल

आया।

तो वो कुछ हकलाते हुए सी बोली- मैं सब सब समझती हूँ.. अब

मैं छोटी नहीं रही.. जो आप मुझे बेवकूफ बना लोगे.. आपसे

सिर्फ दो ही साल छोटी हूँ।

तो मैंने बोला- तुम्हें कुछ पता होता.. तो अब तक बता चुकी

होतीं.. और ये क्या है मुझे भी नहीं मालूम।

तो बोली- ज्यादा होशियारी मत दिखाओ.. जब मन में

सेक्स करने के ख़याल आते हैं तो स्पर्म निकलता है और वही तुम

करते थे।

मैंने बोला- ऐसा नहीं है।

तो वो बोली- इस उम्र में ये सब होना बड़ी बात नहीं है.. पर

मेरी माँ को लेकर तुम्हारी नियत खराब हो गई.. ये बहुत गलत

बात है.. मैं अभी भैया और माँ को बताती हूँ।

तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे बैठाया और उसी के बगल में

बैठ गया और उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाया।

तो बोली- ये आप क्या कर रहे हैं?

तो मैंने बोला- अभी कहाँ कुछ किया.. और जब तक तुम ‘हाँ’

नहीं कहती.. मैं कुछ भी नहीं करूँगा।

तो बोली- मैं समझी नहीं.. आप कहना क्या चाहते हो?

तो मैंने उसे बुद्धू बनाते हुए बोला- प्लीज़ तुम किसी को भी ये

बात मत बोलना.. मगर मेरी अब एक बात सुन लो.. फिर तुम

अगर चाहोगी तो मैं यहाँ दोबारा आऊँगा.. वर्ना कभी भी

अपनी शक्ल तक नहीं दिखाऊँगा।

तो वो बोली- आप पहले मेरे ऊपर से अपने गंदे हाथ हटाएं.. और

यहाँ से जल्दी अपनी बात खत्म करके निकल जाएं।

फिर मैं उसे उल्लू बनाते हुए बोला- जो ये तुम्हारे हाथ में चड्डी

है..

वो बोली- हाँ तो?

तो मैंने बोला- यह मैं नहीं जानता था कि ये तुम्हारी है या

आंटी की.. क्योंकि ये मुझे यहीं मिली थी।

तो वो हैरानी से बोली- मतलब क्या है तुम्हारा? किसी की

भी चड्डी में अपना रस गिरा देते हो

तो मैंने बोला- नहीं.. ऐसा नहीं है..

वो बोली- फिर कैसा है?

मैंने उससे बोला- मैंने जबसे तुमको देखा है.. मैं बस तुम्हारे बारे में

ही सोचता रहता हूँ और तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.. और मुझे सच

में यह नहीं मालूम कि यह किसकी थी.. मैंने तो तुम्हारी समझ

कर ही अपने पास रख ली थी और आंटी को लेकर मेरा कोई

गलत इरादा नहीं था। मैं तो सोते जागते बस तुम्हारे बारे में ही

सोचता था.. इसीलिए मैंने सोने के लिए बिस्तर भी तुम्हारा

ही पसंद किया था.. जिसमें मुझे तुम्हारे बदन की मदहोश कर

महक अपना स्पर्म निकालने के लिए मजबूर कर देती थी.. और

अगर तुम्हें ये गलत लगता है.. तो आज के बाद मैं तुम्हें कभी मुँह

नहीं दिखाऊँगा.. पर मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ.. आगे

तुम्हारी मर्ज़ी…

यह कहते हुए मैं शांत होकर उसके चेहरे के भावों को पढ़ने लगा।

उसका चेहरा साफ़ बता रहा था कि अब वो कोई हंगामा

नहीं खड़ा करेगी.. तो मैंने फिर से उससे बोला- क्या तुम भी

मुझे अपना सकती हो?

तो वो उलझन में आ गई… जो कि उसके चेहरे पर दिख रही थी..

मैं उठा और उससे बोला- कोई जल्दी नहीं है.. आराम से सोच

कर जवाब देना.. पर हाँ.. तब तक के लिए मैं तुम्हारे घर जरूर

आऊँगा.. पर बाहर ही बाहर तक.. मुझे तुम्हारे जवाब का

इंतज़ार रहेगा।

मेरी बात समाप्त होते ही दरवाज़े पर विनोद आ गया और

खटखटाने लगा तो रूचि ने मुझे फिर से इशारे से बाथरूम का

रास्ता दिखा दिया और मैं अपनी चड्डी की जगह

जल्दबाज़ी में माया की ले आया और बाथरूम अन्दर से बंद करके

बाहर की आवाज़ सुनने लगा।

विनोद ने घुसते ही पूछा- राहुल किधर है.. माँ ने बोला है कि

वो यहीं होगा?

तो रूचि बोली- भैया.. वो तो नहा रहे हैं मैंने भी जब बाथरूम

खोलना चाहा तो वो अन्दर से लॉक था.. फिर अन्दर से

उनकी आवाज़ आई कि मैं नहा रहा हूँ.. तब मैंने सोचा कि चलो

तब तक कपड़ों को ही अलमारी में एक सा जमा दूँ।

भैया बोले- तू बहुत पागल है.. इस तरह से पूरे बिस्तर में कपड़े

फ़ैलाने की क्या जरुरत थी? चल जल्दी से निपटा ले।

तभी मैं अन्दर से निकला और मैंने शो करने के लिए शावर से

थोड़ा नहा भी लिया था।

मैंने निकलते ही पूछा- अरे रूचि तुम्हारा एग्जाम कैसा रहा?

तो बोली- अच्छा रहा..

वो मेरी ओर देखते हुए मुस्कुरा दी.. फिर मैंने विनोद से पूछा-

यार नींद पूरी नहीं हुई क्या.. जो आते ही सो गए।

तो बोला- हाँ यार.. ट्रेन में सही से सो नहीं पाया।

तब तक आंटी ने आवाज़ देते हुए बोला- अरे सुनो सब.. तुम लोग

आ जाओ.. नाश्ता रेडी है।

विनोद बोला- रूचि पहले तू फ्रेश होने जाएगी या मैं जाऊँ?

वो बोली- आप हो आइए.. मैं कपड़े रखकर आती हूँ।

मैं मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।

मैंने बोला- ऐसा नहीं है।

तो वो बोली- इस उम्र में ये सब होना बड़ी बात नहीं है.. पर

मेरी माँ को लेकर तुम्हारी नियत खराब हो गई.. ये बहुत गलत

बात है.. मैं अभी भैया और माँ को बताती हूँ।

तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे बैठाया और उसी के बगल में

बैठ गया और उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाया।

तो बोली- ये आप क्या कर रहे हैं?

तो मैंने बोला- अभी कहाँ कुछ किया.. और जब तक तुम ‘हाँ’

नहीं कहती.. मैं कुछ भी नहीं करूँगा।

तो बोली- मैं समझी नहीं.. आप कहना क्या चाहते हो?

तो मैंने उसे बुद्धू बनाते हुए बोला- प्लीज़ तुम किसी को भी ये

बात मत बोलना.. मगर मेरी अब एक बात सुन लो.. फिर तुम

अगर चाहोगी तो मैं यहाँ दोबारा आऊँगा.. वर्ना कभी भी

अपनी शक्ल तक नहीं दिखाऊँगा।

तो वो बोली- आप पहले मेरे ऊपर से अपने गंदे हाथ हटाएं.. और

यहाँ से जल्दी अपनी बात खत्म करके निकल जाएं।

फिर मैं उसे उल्लू बनाते हुए बोला- जो ये तुम्हारे हाथ में चड्डी

है..

वो बोली- हाँ तो?

तो मैंने बोला- यह मैं नहीं जानता था कि ये तुम्हारी है या

आंटी की.. क्योंकि ये मुझे यहीं मिली थी।

तो वो हैरानी से बोली- मतलब क्या है तुम्हारा? किसी की

भी चड्डी में अपना रस गिरा देते हो

तो मैंने बोला- नहीं.. ऐसा नहीं है..

वो बोली- फिर कैसा है?

मैंने उससे बोला- मैंने जबसे तुमको देखा है.. मैं बस तुम्हारे बारे में

ही सोचता रहता हूँ और तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.. और मुझे सच

में यह नहीं मालूम कि यह किसकी थी.. मैंने तो तुम्हारी समझ

कर ही अपने पास रख ली थी और आंटी को लेकर मेरा कोई

गलत इरादा नहीं था। मैं तो सोते जागते बस तुम्हारे बारे में ही

सोचता था.. इसीलिए मैंने सोने के लिए बिस्तर भी तुम्हारा

ही पसंद किया था.. जिसमें मुझे तुम्हारे बदन की मदहोश कर

महक अपना स्पर्म निकालने के लिए मजबूर कर देती थी.. और

अगर तुम्हें ये गलत लगता है.. तो आज के बाद मैं तुम्हें कभी मुँह

नहीं दिखाऊँगा.. पर मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ.. आगे

तुम्हारी मर्ज़ी…

यह कहते हुए मैं शांत होकर उसके चेहरे के भावों को पढ़ने लगा।

उसका चेहरा साफ़ बता रहा था कि अब वो कोई हंगामा

नहीं खड़ा करेगी.. तो मैंने फिर से उससे बोला- क्या तुम भी

मुझे अपना सकती हो?

तो वो उलझन में आ गई… जो कि उसके चेहरे पर दिख रही थी..

मैं उठा और उससे बोला- कोई जल्दी नहीं है.. आराम से सोच

कर जवाब देना.. पर हाँ.. तब तक के लिए मैं तुम्हारे घर जरूर

आऊँगा.. पर बाहर ही बाहर तक.. मुझे तुम्हारे जवाब का

इंतज़ार रहेगा।

मेरी बात समाप्त होते ही दरवाज़े पर विनोद आ गया और

खटखटाने लगा तो रूचि ने मुझे फिर से इशारे से बाथरूम का

रास्ता दिखा दिया और मैं अपनी चड्डी की जगह

जल्दबाज़ी में माया की ले आया और बाथरूम अन्दर से बंद करके

बाहर की आवाज़ सुनने लगा।

विनोद ने घुसते ही पूछा- राहुल किधर है.. माँ ने बोला है कि

वो यहीं होगा?

तो रूचि बोली- भैया.. वो तो नहा रहे हैं मैंने भी जब बाथरूम

खोलना चाहा तो वो अन्दर से लॉक था.. फिर अन्दर से

उनकी आवाज़ आई कि मैं नहा रहा हूँ.. तब मैंने सोचा कि चलो

तब तक कपड़ों को ही अलमारी में एक सा जमा दूँ।

भैया बोले- तू बहुत पागल है.. इस तरह से पूरे बिस्तर में कपड़े

फ़ैलाने की क्या जरुरत थी? चल जल्दी से निपटा ले।

तभी मैं अन्दर से निकला और मैंने शो करने के लिए शावर से

थोड़ा नहा भी लिया था।

मैंने निकलते ही पूछा- अरे रूचि तुम्हारा एग्जाम कैसा रहा?

तो बोली- अच्छा रहा..

वो मेरी ओर देखते हुए मुस्कुरा दी.. फिर मैंने विनोद से पूछा-

यार नींद पूरी नहीं हुई क्या.. जो आते ही सो गए।

तो बोला- हाँ यार.. ट्रेन में सही से सो नहीं पाया।

तब तक आंटी ने आवाज़ देते हुए बोला- अरे सुनो सब.. तुम लोग

आ जाओ.. नाश्ता रेडी है।

विनोद बोला- रूचि पहले तू फ्रेश होने जाएगी या मैं जाऊँ?

वो बोली- आप हो आइए.. मैं कपड़े रखकर आती हूँ।

मैं मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।

तो मैं बिना बोले ही रूचि की आँखों में आँखे डालकर शांत

होकर देखने लगा.. जिससे उसे ऐसा लगा.. जैसे मैं उससे ही पूछ

रहा होऊँ कि मैं आऊँ या न आऊँ..

तब तक विनोद भी बोला- बोल न यार.. शाम को आ जा..

पर अब भी मुझे शांत देख कर रूचि ने अपनी चुप्पी तोड़ी और

बोली- क्यों न आप आज भी यहीं रुक जाएँ.. हम मिलकर मस्ती

करेंगे और कल फिर आपको देर तक सोने को मिलेगा।

सच बोलूँ तो यार उसकी ये बात सुन तो मेरी ख़ुशी का कोई

ठिकाना ही न रहा।

मेरी ख़ुशी को देखकर रूचि बोली- देखना माँ.. राहुल भैया

जरूर मान जायेंगे.. क्योंकि लगता है.. उनको सोने का बहुत

शौक है और ये शौक वो अपने घर में पूरा नहीं कर पाते हैं।

तो विनोद बोला- हाँ यार.. चल अब जल्दी से ‘हाँ’ बोल दे..

सबकी जब यहीं इच्छा है.. तो तू आज रात यहीं रुक जा..

तो मैंने भी बोला- चलो ठीक है.. जैसी आप लोगों की

इच्छा.. पर मुझे अभी घर जाना ही होगा। फिर शाम तक आ

जाऊँगा।

मैं मन में सोचने लगा कि मैंने तो सोचा था कि अब आना ही

कम हो जाएगा.. पर यहाँ तो खुद रूचि ही मुझे रुकने के लिए

बोल रही है। ये मैं कैसे हाथ से जाने दूँ।

इतने में रूचि बोली- अब क्या सोच रहे हो.. आप जल्दी से आप

अपने घर होकर आओ।

मैंने बोला- अब घर पर क्या बोलूँगा कि आज क्यों रुक रहा हूँ?

तो कोई कुछ बोलता.. उसके पहले ही रूचि बोली- अरे आप

परेशान न हों.. मैं खुद ही आंटी जी को फ़ोन करूँगी।

तो मैंने बोला- वो तो ठीक है.. पर बोलोगी क्या?

तब उसने जो बोला उसे सुन कर तो मैं हैरान हो गया और मुझे

ऐसा लगा कि ये तो माया से भी बड़ी चुदैल रंडी बनेगी।

साली मेरे साथ नौटंकी कर रही थी। उसकी बात से केवल मैं

ही हैरान नहीं था बल्कि बाकी माया और विनोद भी बहुत

हैरान थे।

उसने बोला ही कुछ ऐसा था कि आप अभी अपने घर जाओ और

आंटी पूछें कि हम आए या नहीं.. तो आप बोलना मैं जब

निकला था.. तब तक तो वो लोग नहीं आए थे और उनका फ़ोन

भी स्विच ऑफ था..। फिर आप अपने काम में लग जाना.. जैसे

आप सही कह रहे हों और फिर 6 बजे के आस-पास मैं ही आपकी

माँ को काल करूँगी और उनसे बोलूँगी कि आंटी अगर भैया घर

पर ही हों तो आप उनसे बोल दीजिएगा कि हम आज नहीं आ

पा रहे हैं। हमारी ट्रेन कैंसिल हो गई है.. तो हम कल ही घर पहुँच

पायेंगे..

मैं उस अभी सुन ही रहा था कि वो और आगे बोली- और हाँ..

वैसे कल की जगह परसों ज्यादा ठीक रहेगा और आपके साथ

वक़्त बिताने के लिए दो दिन भी ठीक है न..

तो मैंने भी मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ बोला।

फिर उसने अपनी बात शुरू की- हाँ.. तो अब ये बोलूँगी कि ट्रेन

कैंसिल हो जाने से रिजर्वेशन परसों का मिला है.. तो आप

प्लीज़ उनसे बोलिएगा कि वो दो दिन घर पर ही रहें..

क्योंकि माँ को अकेले रहने में बहुत डर लगता है और उन्हें कोई

शक न हो इसलिए बाद मैं ये भी बोल दूँगी कि पता नहीं

क्यों.. माँ और राहुल भैया का फ़ोन भी नहीं मिल रहा है..

इसलिए आप ही उन्हें कह देना।

फिर अपनी बात को समाप्त करते हुए बोली- क्यों कैसा लगा

सबको मेरा आईडिया?

तो सब ने एक साथ बोला- बहुत ही बढ़िया..

मैंने मन में सोचा- यार इससे तो संभल कर रहना पड़ेगा.. ये तो

अपनी माँ से भी ज्यादा चालाक लड़की है।

फिर हमने एक साथ बैठकर चाय पी। इस बीच रूचि बार-बार मुझे

ही घूरते हुए हँसे जा रही थी.. पर कुछ बोल नहीं रही थी।

जबकि मैं उससे सुनना चाहता था कि वो ऐसा क्यों कर रही

है.. पर मुझे कोई मौका ही नहीं मिल रहा था।

इतने में विनोद उठा और वहीं सोफे के पास पड़े दीवान पर लेटते

हुए बोला- मैं तो चला सोने.. अब मुझे कोई डिस्टर्ब न करना।

मैंने भी सोचा.. चलो अब तो बात करने का मौका मिल ही

जाएगा।

मैं वक़्त की नजाकत को समझते हुए बोला- अच्छा विनोद..

तुम सो.. मैं चला अपने घर.. फिर शाम को मिलते हैं।

तो बोला- ठीक है।

आंटी भी वहीं बैठी थीं.. वो तुरंत बोलीं- शाम को क्या

खाओगे?

तो मैंने उनके रसभरे चूचों की ओर घूरते हुए कहा- जो आप पिला

और खिला पाओ?

तो वो मेरी निगाहों को समझते हुए बोलीं- ठीक है.. देखते हैं

फिर क्या बन सकता है।

फिर मैंने बोला- अब आप सोचती रहो.. शाम तक.. मैं चला

अपनी पैकिंग करने.. घर जल्दी ही पहुँचना पड़ेगा।

तो रूचि भी खुद ही बोली जैसे वो भी मुझसे बात करना चाह

रही हो, खैर.. वो मुझसे बोली- हाँ भैया.. चलिए मैं भी

आपकी कुछ मदद कर देती हूँ ताकि आपका ‘काम’ जल्दी हो

जाए।

वो ‘काम’ तो ऐसे बोली थी.. जैसे कामशास्त्र की प्रोफेसर

हो और मुझे नीचे लिटाकर ही मेरा काम-तमाम कर देगी।

लेकिन फिर भी मैंने संभलते हुए बोला- अरे मैं कर लूँगा.. तुम

परेशान न हो।

तो बोली- अरे कोई बात नहीं.. आखिर मैं कब काम आऊँगी।

मैंने भी सोचा.. चलो ‘हाँ’ बोल दो.. नहीं तो ये काम-काम

बोल कर मेरा काम बढ़ा देगी।

फिर मैंने भी मुस्कुराते हुए बोल दिया- ठीक है.. जैसी तेरी

इच्छा..

हालांकि अभी मैं उससे दो अर्थी शब्दों में बात नहीं कर रहा

था.. पर अपने नैनों के बाणों से उसके शरीर को जरूर छलनी कर

रहा था। जिसे वो देख कर मुस्कुरा रही थी।

शायद वो ये समझ रही होगी कि मैं उसे प्यार करता हूँ। मुझे वो

उसकी अदाओं और बातों से लगने भी लगा था कि बेटा राहुल

तेरा काम बन गया.. बस थोड़ा सब्र रख.. जल्द ही तेरी इसे

चोदने की भी इच्छा पूरी हो जाएगी।

फिर वो अपने भारी नितम्बों को मटकाते हुए मेरे आगे चलने

लगी।

उसकी इस अदा से साफ़ लग रहा था कि वो मुझे ही अपनी

अदाओं से मारने के लिए ऐसे चल रही है.. क्योंकि वो बार-बार

साइड से देखने का प्रयास कर रही थी कि मेरी नज़र किधर है।

साला इधर मेरा लौड़ा इतना मचल गया था कि बस दिल तो

यही कर रहा था कि अपने लौड़े को छुरी समान बना कर इसके

दिल समान नितम्ब में गाड़ कर ठूंस दूँ।

पर मैं कोई जल्दबाज़ी नहीं करना चाहता था.. क्योंकि मेरे

मन में ये भी ख़याल आ रहे थे कि हो सकता है कि रूचि अभी

कुंवारी हो.. और न भी हो..

पर यदि ये कुवांरी हुई.. तो सब गड़बड़ हो जाएगी और वैसे भी

उसकी तरफ से लाइन क्लियर तो थी ही.. ये तो पक्का हो ही

गया था कि आज नहीं तो कल इसको चोद कर मेरी इच्छा

पूरी हो ही जाएगी।

फिर ये सब सोचते-सोचते हम दोनों कमरे में पहुँचे तो रूचि

बोली- भैया आप दरवाज़ा बंद कर दीजिए।

तो मैंने प्रश्नवाचक नज़रों से उसकी ओर देखा तो बोली- अरे

आप परेशान न हों.. मैं आपकी तरह नहीं हूँ।

तो मैंने भी तुरंत ही सवाल दाग दिया- क्या मेरी तरह.. मेरी

तरह.. लगा रखा है।

वो बिस्तर की ओर इशारा करते हुए बोली- यही.. जो आप

दरवाज़ा बंद करके मेरे बिस्तर और माँ की चड्डी से करते थे।

मैंने भी बोला- मैं कैसे समझाऊँ कि मुझे नहीं मालूम था कि

वो तेरी माँ की चड्डी है।

उतो वो तुरंत ही बोली- और ये बिस्तर..

मैंने बोला- हाँ.. ये तो मालूम था।

तो वो बोली- बस यही तो मैं बोली कि आप दरवाज़ा बंद

करो.. मैं आपकी तरह आपका रेप नहीं करूँगी।

साली बोल तो ऐसे रही थी.. जैसे बोल रही हो कि राहुल

आओ जल्दी से.. और मेरा रेप कर दो और मेरे शरीर को मसलते हुए

कोई रहम न करना।

मैंने बोला- फिर दरवाज़ा बंद करने की क्या ज़रूरत है?

तो बोली- आप भी इतना नहीं मालूम कि एसी चलने पर

दरवाजे बंद होने चाहिए!

मैंने बोला- तो ऐसे बोलना चाहिए न..

तो वो हँसते हुए बोली- आप इतने भी बुद्धू नहीं नज़र आते.. जो

आपको सब कुछ बताना पड़े.. कुछ अपना भी दिमाग लगाओ।

फिर मैंने दरवाज़ा अन्दर से बंद करते हुए सिटकनी भी लगा दी।

अब बंद कमरे में आगे क्या हुआ जानने के लिए अगले भाग का

इंतज़ार कीजिए। तब तक के लिए चूत चिपचिपाती

चूतवालियों और खड़े लौड़े वालों को मेरी चिपचिपी चुदाई

के रस सा चिपचिपा नमस्कार और मैं उम्मीद करता हूँ कि आगे

भी इसी तरह मैं अपने साथ घटी घटना से आपका मनोरंजन

करता रहूँगा। मेरी चुदाई की अभीप्सा की ये मदमस्त कहानी

जारी रहेगी

दोस्तों इतने कम कमेण्ट आ रहे है की स्टोरी आगे बड़हाने का मन नहीं होता

दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा - 5

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