गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे - 9
गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे - 8
मैं अपने कमरे से बाहर आकर अपना पल्लू ठीक करते हुए फोन रिसीव करने आश्रम के ऑफिस की तरफ जाने लगी. ऑफिस गेस्ट रूम के पास था. और मैं जैसे ही अंदर गयी , फोन के पास परिमल खड़ा था. उस बौने आदमी और उसके मजाकिया चेहरे को देखते ही मेरे होठों पे मुस्कुराहट आ जाती थी.
“किसका फोन है?”
परिमल – आपके पति का, मैडम.
“ओह....”
मैं बहुत खुश हो गयी और मुझे आश्चर्य भी हुआ की राजेश ने फोन किया है.
“हेलो..”
राजेश – हेलो रश्मि, मैं राजेश बोल रहा हूँ.
“कैसे हो आप ? आज इतने बाद मेरी याद आई.”
अपने पल्लू को अंगुलियों में घुमाते हुए मैंने बनावटी गुस्सा दिखाया.
राजेश – तुम्हें तो मालूम ही है रश्मि की मैं गांव गया था और कल ही वापस लौटा हूँ. तुम्हें फोन कैसे करता ?
मुझे याद आया की राजेश को किसी काम से हमारे गांव जाना पड़ गया था इसीलिए वो मुझे आश्रम तक छोड़ने नही आ पाए थे.
“हम्म्म …मालूम है. अब बहाने मत बनाओ.”
राजेश – जान, वहाँ कैसा चल रहा है ?
इस सवाल से मेरे दिल की धड़कनें रुक गयी और मैंने थूक निगलते हुए जवाब दिया.
“सब ठीक है . मेरा उपचार चल रहा है.”
राजेश – जान, तुम्हें बहुत सी जड़ी बूटियाँ लेनी पड़ रही होंगी.
क्या क्या लेना पड़ रहा है, तुम क्या जानो, मैंने सोचा.
“हाँ …बहुत सी जड़ी बूटियाँ, पूजा, यज्ञ, वगैरह. तुम्हारा तो इनमें विश्वास नही है.
राजेश – अगर अच्छा परिणाम मिलेगा तो मैं विश्वास करने लग जाऊँगा. पर ये तो बताओ तुम कैसी हो ? दवाइयों का कोई साइड एफेक्ट तो नही है ?
“ना…ना ..मैं बिल्कुल ठीक हूँ.”
पता नही कितने मर्दों ने मेरी जवानी से छेड़छाड़ की है यहाँ, मैं सोच रही थी.
राजेश – अच्छी बात है. यहाँ घर पे भी सब ठीक है, तुम फिकर मत करना.
“तुम्हें मालूम है मामाजी मुझसे मिलने आए थे.”
राजेश – हाँ ….मम्मी ने बताया था. क्या कहा उन्होंने ?
“कुछ ख़ास नही. बस मेरा हाल चाल पूछ रहे थे.”
राजेश – बहुत अच्छे आदमी हैं.
हाँ बहुत अच्छे हैं. जिस तरह से उन्होने मेरे माथे को चूमा था, मेरे कंधों पर ब्रा के स्ट्रैप को छुआ था , मेरी चूचियों को अपनी छाती पे दबाया था और मेरे नितंबों पर थप्पड़ मारा था….मुझे सब याद आया. बहुत अच्छे या बहुत बदमाश ?
“ह्म्म्म्म …”
राजेश – रश्मि, कोई आस पास है तुम्हारे ?
मुझे हैरानी हुई की ऐसा क्यों पूछ रहे हैं. मैंने इधर उधर देखा तो ऑफिस के कमरे में कोई नही था. परिमल मुझे फोन पकड़ाकर चला गया था.
“ना , मैं अकेली हूँ. पर क्यों पूछ रहे हो ?”
राजेश – उम्म्म…जान , तुम्हें मिस कर रहा हूँ……बेड में.
अंतिम दो शब्द राजेश ने फुसफुसाते हुए कहे थे. मेरी नंगी जांघों पर दीपू के छूने से मुझे गर्मी चढ़ी थी और अब मेरे पति का फोन पे प्यार, मैं पिघलने लगी.
“उम्म्म…मैं भी आपको मिस कर रही हूँ.”
राजेश – एक बार मुझे किस करो ना.
“ये आश्रम है , आपको ऐसा नही…..”
राजेश – उफ …एक बार किस करो ना. तुम्हें मेरी याद नही आती ?
“हम्म्म …मैं तुम्हें बहुत मिस करती हूँ.”
राजेश – अच्छा, ये बताओ अभी तुम साड़ी पहनी हो ?
“क्यूँ पूछ रहे हो ?”
राजेश – असल में फिर मुझे तुम्हारा ब्लाउज खोलना होगा.
“बदमाश…”
राजेश – रश्मि सुनो ना.
“क्या ?”
राजेश की प्यार भरी आवाज़ सुनकर मैं कमज़ोर पड़ने लगी थी और मेरा मन कर रहा था की अभी दौड़कर उसकी बाँहों में समा जाऊँ.
राजेश – जान, अपने होंठ खोलो.
मैंने फोन के आगे अपने होंठ खोल दिए.
राजेश – क्या हुआ ? खोलो ना.
“ओहो…मैंने खोल रखे हैं….सिर्फ़ तुम्हारे लिए.”
राजेश – ऐसा है तो तुमने फोन कैसे पकड़ा हुआ है ?
“ओफफो…..मैंने तुम्हारे लिए अपने होंठ खोले हैं. फोन से उसका क्या लेना देना ?”
राजेश – रश्मि डार्लिंग , मैंने तुमसे साड़ी के अंदर वाले होंठ खोलने को कहा था ताकि मैं अपना डाल सकूँ.
“तुम बहुत बदमाश हो. मैं फोन रख रही हूँ.”
मुझे राजेश की बातों में मज़ा आ रहा था लेकिन मैंने गुस्से का दिखावा किया.
राजेश – ना ना….जान. प्लीज़ फोन मत रखना. अच्छा चलो तुम्हारे होठों को चूमने तो दो.
राजेश ने फोन पे मुझे कई बार चूमा.
राजेश – रश्मि, तुम्हारे बिना बेड सूना सा लगता है.
मेरे पति की ऐसी बातों से मैं उत्तेजित होने लगी थी. मैं दाएं हाथ में फोन को पकड़े हुई थी और मेरा बायां हाथ अपनेआप साड़ी के पल्लू के अंदर चला गया और ब्लाउज के ऊपर से मैं अपनी रसीली चूचियों को दबाने लगी.
राजेश – अब अपनी आँखें बंद कर लो. एक बार मुझे अपने सेबों को दबाने दो….. आह ……..
मेरी आँखें बंद थी और मैं कल्पना कर रही थी की राजेश मेरे सेबों को पकड़े हुए है और दबा रहा है.
राजेश – उम्म्म….बहुत मिस कर रहा हूँ जान तुम्हें.
“मुझे अपनी बाँहों में ले लो…”
राजेश – उम्म्म….रश्मि, एक बार मुझे किस करो ना.
“नही. मैं यहाँ से नही कर सकती.”
राजेश – क्यूँ ? शरमाती क्यूँ हो ? तुमने कहा था की वहाँ कोई नही है . फिर ?
क्या मुझमें कुछ शरम बची भी है, मैं सोचने लगी. लेकिन मेरे पति के लिए तो मैं वही पुरानी शर्मीली रश्मि थी.
राजेश – क्या हुआ जान ?
“हम्म्म ….ठीक है बाबा.”
मेरी साँसे तेज हो गयी थी और मेरी चूचियाँ ब्लाउज के अंदर टाइट हो गयी थी. मैंने इधर उधर देखा और फोन पे ज़ोर से राजेश को किस किया.
राजेश – तुम बहुत प्यारी हो रश्मि.
“उम्म….”
राजेश – आशा करता हूँ की तुम्हारे आश्रम के उपचार से हमें फल ज़रूर मिलेगा.
“उम्म…”
राजेश – रश्मि ?
मैं अभी भी राजेश के प्यार में खोई थी.
राजेश – तुम वापस कब आओगी ?
मैंने अपने पर काबू पाने की कोशिश की.
“हाँ , शायद परसों को .”
राजेश – ठीक है . तब तक मैं तुम्हें रोज़ फोन करूँगा.
मैं घबरा गयी , क्यूंकी आज रात से महायज्ञ होना था और गुरुजी ने बताया था की दो दिन तक चलेगा.
“अरे सुनो ना. अब यहाँ फोन मत करना . मैं जल्दी ही वापस आ तो रही हूँ. गुरुजी आश्रम में ज़्यादा फोन कॉल पसंद नही करते……”
राजेश – हम्म्म …मैं समझता हूँ. वो तो पवित्र जगह है. ठीक है जान, कुछ चाहिए होगा तो बता देना.
“तुम अपना ख्याल रखना और भगवान से प्रार्थना करना की ….”
राजेश – हाँ ज़रूर, ताकि तुम्हारा उपचार सफल हो जाए. बाय.
“बाय ..”
राजेश ने फोन काट दिया और मैंने रिसीवर रख दिया. बेचारा राजेश. वो कल्पना भी नही कर सकता की यहाँ मेरे साथ क्या क्या हुआ है भले ही वो मेरे उपचार का ही एक हिस्सा था. मेरा अभी भी गुरुजी पर पूर्ण विश्वास था और मुझे उम्मीद थी की महायज्ञ से वो मुझे माँ बनने में मदद करेंगे. ये सही है की मैंने भी अपने साथ घटी कुछ घटनाओ का मज़ा लिया था ख़ासकर की विकास और गोपाल टेलर के साथ. लेकिन मैं भी तो एक इंसान हूँ, 28 बरस की जवान औरत , मर्दों के मेरे बदन से छेड़छाड़ करने पर मैं कामोत्तेजित हुए बिना कैसे रह सकती थी.
यही सब सोचते हुए मैं अपने कमरे की तरफ वापस जा रही थी.
गोपाल टेलर – मैडम, किसका फोन था ?
“राजेश का. मेरा मतलब मेरे पति का….”
कमरे में आते समय मैं ख्यालों में खोई हुई थी और मुझे ध्यान ही नही रहा की मेरा पल्लू ब्लाउज के ऊपर से खिसक गया है. जैसे ही मेरी नज़रें दीपू से मिली तो मैंने उसे अपनी चूचियों को ताकते पाया. तुरंत मैंने अपने पल्लू को ठीक किया और अपने ख़ज़ाने को ढक लिया. मेरी साँसे अभी भी तेज चल रही थी और इससे चूचियाँ तेज़ी से ऊपर नीचे गिर रही थी.
दीपू – मैडम, वो तो आपको बहुत मिस कर रहे होंगे.
दीपू शरारत से मुस्कुराया. मैं उसका इशारा समझ रही थी.
गोपाल टेलर – तब तो उनसे बात करके आपको ताज़गी महसूस हो रही होगी.
“बिल्कुल. ऐसा लग रहा था की ना जाने कितने लंबे समय से मैंने राजेश से बात नही की है.”
गोपाल टेलर – मैडम, काम शुरू करें फिर ?
“हाँ ज़रूर. अब क्या बचा है ?”
मैं अभी भी राजेश के ख्यालों में खोई हुई थी और टेलर की बातों में ध्यान नही दे रही थी. मेरे पति की प्यार भरी अंतरंग बातों से मुझमें मस्ती छाई हुई थी. गोपालजी अनुभवी आदमी था और शायद उसने मेरी भावनाओ को समझ लिया.
गोपाल टेलर – मैडम, मुझे आपके अंतर्वस्त्र भी तो सिलने हैं क्यूंकी महायज्ञ में आप अपने अंतर्वस्त्र नही पहन सकती.
“ओहो…. हाँ .”
तभी मुझे कुछ याद आया.
“गोपालजी आपको मैंने अपनी एक पुरानी समस्या बताई थी, उसे भी जरूर ठीक कर देना. आपको याद है ?”
तभी मुझे कुछ याद आया.
“गोपालजी आपको मैंने अपनी एक पुरानी समस्या बताई थी, उसे भी जरूर ठीक कर देना. आपको याद है ?”
गोपालजी – हाँ मैडम, आपकी पैंटी की समस्या. मैं उसको भी ज़रूर ठीक कर दूँगा. मैं आपके लिए कुछ और पैंटीज भी सिल दूँगा जिनको आप अपने घर वापस जाकर यूज कर सकती हो.
मैं मुस्कुरायी और हाँ में सर हिला दिया.
“गोपालजी आपका शुक्रिया. मैं काफ़ी समय से इस समस्या से परेशान हूँ.”
गोपालजी – मैडम, अपने कस्टमर्स की परेशानियों को हल करना ही मेरा काम है, है की नही ?
हम दोनो एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए. अपने पति से बात करके मैं बहुत हल्का महसूस कर रही थी.
गोपालजी – मैडम, आपकी समस्या ये है की कुछ समय बाद आपकी पैंटी बीच की तरफ सिकुड़ने लगती है. यही है ना ?
“हाँ, यही है.”
उस समय मेरा मन ऐसा हल्का हो रखा था की अपने टेलर से पैंटी की बात करते हुए मुझे बिल्कुल भी शरम नही आ रही थी.
गोपालजी – मैडम, जैसा की मैंने आपको बताया था की आपको नॉर्मल की बजाय मेगा साइज़ की पैंटी पहननी है. इसलिए अब जब भी आप शॉपिंग करने जाओगी तो डेसी मेगा ही लेना.
मैंने बेशर्मी से उसके इस सुझाव पर सर हिलाया.
“हाँ, अब मैं वही लूँगी.”
गोपालजी – मैडम, अगर एक मुझे मिल जाती तो……
मुझे समझ नही आया की गोपालजी क्या मांग रहा है और मैं एक बेवकूफी भरा सवाल कर बैठी.
“क्या मिल जाती?”
गोपालजी – मैडम, कोई एक्सट्रा पैंटी हो तो …
“अरे …अच्छा…..एक मिनट…”
मैं जल्दी से अलमारी की तरफ गयी और एक पैंटी निकालकर टेलर को दे दी.
गोपालजी – शुक्रिया मैडम.
दीपू अब नज़दीक़ आ गया शायद मेरी पैंटी देखने के लिए.
गोपालजी – मैडम देखो, आपकी समस्या का मुख्य कारण.
ऐसा कहते हुए गोपालजी ने पैंटी के एलास्टिक को खींचा और पैंटी के पीछे का हिस्सा मुझे दिखाया. अब मुझे असहज महसूस होने लगा.
गोपालजी – देखो मैडम, यहाँ पर कपड़ा इतना छोटा है की ये आपके नितंबों को ठीक से नही ढक रहा है और एलास्टिक भी बेकार है. ग्रिप ढीली होने से ये आपके नितंबों पर फिसलकर सिकुड जा रही है.
“अच्छा…”
गोपालजी मेरी पैंटी पकड़कर दिखा रहा था और दीपू गौर से उसे देख रहा था. अब मैं अनकंफर्टेबल फील करने लगी थी.
गोपालजी – देखो मैडम, एलास्टिक इतना ढीला है.
“लेकिन गोपालजी जब मैंने ये खरीदी थी तब ठीक था , कई बार धुलने के बाद एलास्टिक ढीला हो ही जाता है.”
गोपालजी – लेकिन अगर कमर पे ठीक से ग्रिप नही बनेगी तो पैंटी अपनी जगह से खिसक जाएगी और आपको समस्या होगी.
“वो तो ठीक है पर धुलने के बाद तो कोई भी पैंटी ढीली हो ही जाएगी.”
गोपालजी – लेकिन मैडम, तब उस पैंटी को फेंक दो और नयी पैंटी यूज करो.
“अगर बार बार मुझे ऐसे ख़रीदनी पड़ेंगी तब तो मुझे किसी अंडरगार्मेंट वाले से शादी करनी पड़ेगी.”
मेरी बात पर सभी हंस पड़े. कमरे का माहौल हल्का हो जाने से मेरी असहजता भी थोड़ी कम हुई.
दीपू – गोपालजी जो पैंटी आप सिलते हो उसको भी तो कस्टमर्स मैडम के जैसे धोते होंगे. वो कितना चलती हैं ?
गोपालजी – दीपू , मैं अच्छी क्वालिटी का एलास्टिक लगाता हूँ और अगर गुनगुने पानी में धोया जाए तो 6 महीने चल जाएँगी.
दीपू – मैं शर्त लगा सकता हूँ की मैडम ठंडे पानी से पैंटी धोती होगी.
मैंने हाँ में सर हिला दिया.
गोपालजी – मैडम, ये भी आपकी समस्या का एक कारण है. आपको अपनी ब्रा भी ठंडे पानी से नही धोनी चाहिए.
“ठीक है मैं कोशिश करूँगी पर हर बार गुनगुने पानी से धोना मुश्किल है.”
गोपालजी – मैडम, आप फिकर मत करो. मैं आपकी समस्या ठीक कर दूँगा.
“ठीक है.”
गोपालजी – दीपू क्या तुम बता सकते हो की किसी औरत के लिए पैंटी में बैक कवरेज कितनी होनी चाहिए ?
दीपू – मेरे ख्याल से 50%.
गोपालजी – बिल्कुल सही. और मैडम के जैसी बड़े साइज़ वाली के लिए और भी ज़्यादा होना चाहिए. इसके बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है ?
गोपालजी ने अपने हाथ में पकड़ी हुई पैंटी की तरफ इशारा किया.
दीपू – ये तो पूरी खींचकर भी 25% से ज़्यादा नही कवर करेगी. मैडम के तो इतने बड़े हैं…..
गोपालजी – सिर्फ़ 25% ?
दीपू – जी मुझे तो यही लगता है.
गोपालजी – दीपू ऐसा कैसे हो सकता है ?
दीपू – कपड़ा तो देखिए, ये ज़्यादा खिंचेगा नही.
गोपालजी – हाँ बहुत अच्छी क्वालिटी का नही है. फिर भी सिर्फ़ 25% ? ये कोई थोंग थोड़े ही है.
थोंग ? ये क्या होता है. जो भी हो लेकिन कोई कम कपड़े वाली चीज़ है, मैं सोच रही थी.
दीपू – गोपालजी, मैडम कोई इतनी मॉडर्न थोड़े ही है जो थोंग पहनेगी. ये तो पहली बार इसका नाम सुन रही होगी….हा हा हा……
दीपू की हँसी इतनी इरिटेटिंग थी की मैंने अपने दाँत निचले होंठ में गड़ा दिए. लेकिन उसकी बात सही थी की मैं पहली बार थोंग का नाम सुन रही थी.
गोपालजी – हाँ ये तो है. मैडम मेट्रो सिटी में तो रहती नही ,तो वो कैसे जानेगी.
वो दोनो मुस्कुरा रहे थे.
गोपालजी –मैडम, दीपू ने कहा की आपकी पैंटी नितंबों को सिर्फ़ 25% ढकेगी , इसलिए मैंने थोंग का नाम लिया. मेरा अंदाज़ा है की आपको नही मालूम की थोंग क्या होता है ?
मैंने ना में सर हिला दिया.
गोपालजी – मैडम, थोंग पैंटी के जैसा ही होता है पर छोटा होता है. इसमें आगे V शेप में कपड़ा होता है और पीछे से डोरी या थोड़ा सा कपड़ा होता है. आजकल बड़े शहरों में मॉडर्न लड़कियाँ इसे पहनती हैं.
वो थोड़ा रुका और सीधे मेरी आँखों में देखा.
गोपालजी – मैडम अगर आप साड़ी या सलवार कमीज़ के अंदर थोंग पहनोगी तो कपड़ों के अंदर आपकी पूरी गांड खुली रहेगी. मुझे लगता है पैंटी सिकुड़ने से आपको सेम वही फीलिंग आती होगी.
उस टेलर की विस्तार से कही बातों से मेरा चेहरा लाल होने लगा था और अब मैं इस बात को समाप्त करना चाहती थी.
“हम्म्म …”
गोपालजी – मैडम, सही कहा ना मैंने ?
“हाँ …”
मेरे पास उसकी बात सुनने के अलावा और कोई चारा नही था.
दीपू – गोपालजी अगर मैडम थोंग पहने तो क्या नज़ारा होगा.
गोपालजी – क्यूँ ?
दीपू – मैडम की गांड देखो. कितनी बड़ी है, बिल्कुल गोल और बहुत मांसल है.
गोपालजी – हे..हे….ये तो सही है. मैडम, दीपू ग़लत नही कह रहा है.
“गोपालजी , काम पर लौटें ?”
गोपालजी – जी जी मैडम. फालतू की बातें हो गयी.
दीपू – गोपालजी एक काम करो.
गोपालजी – क्या ?
दीपू – मैडम की पैंटी ऐसे पकड़ो फिर मेरी बात समझ में आ जाएगी.
गोपालजी – देखते हैं.
गोपालजी ने मेरी पैंटी को एलास्टिक से पकड़कर अपने चेहरे के आगे पकड़ा और दीपू ने उसके कपड़े को दोनो हाथों से खींचा और दिखाया की मेरी बड़ी गांड को ये कितना ढकेगी.
मैं हैरान थी की ये दोनो कर क्या रहे हैं. इतने आराम से मेरी पैंटी के बारे में बातें कर रहे हैं और वो भी मेरे सामने. चीज़ें मेरे काबू से बाहर होते जा रही थी पर मैं कुछ नही कर सकती थी.
दीपू – देखो गोपालजी. सिर्फ़ इतना खिंच रहा है और मैडम की गांड देखो .
दोनो मर्द मेरी साड़ी से ढकी हुई गांड की तरफ देखने लगे. लेकिन मेरा मुँह उनकी तरफ था इसलिए उन्हे ठीक से नही दिखा.
गोपालजी – मैडम, थोड़ा पीछे को घूम सकती हो ? हमें देखना है की आपकी पैंटी में कितना कपड़ा और लगाने की ज़रूरत है ताकि ये ठीक से ढके और बीच में ना सिकुड़े.
“लेकिन …मेरा मतलब…”
गोपालजी – मैडम , आप हिचकिचा क्यों रही हो ? आपको कुछ नही करना है, बस पीछे मुड़ जाओ.
मैं कुछ कर पाती इसे पहले ही उस टेलर ने अपने सवाल से मुझे चित्त कर दिया.
गोपालजी – मैडम, अभी आपने पैंटी पहनी है ?
“क्या ???”
गोपालजी – मेरा मतलब, अभी आप टॉयलेट गयी थी तो हो सकता है की आपने उतार दी हो….इसलिए मैं पूछ रहा हूँ.
जाहिर था की ऐसे सवाल से मैं इरिटेट हो गयी थी. मैंने फर्श की तरफ देखा और हाँ में सर हिला दिया. मुझे एक मर्द के सामने ऐसे सवाल का जवाब देते हुए इतनी शरम आई की मन हुआ दौड़कर कमरे से बाहर चली जाऊँ.
“नही , लेकिन…”
गोपालजी – नही ? आपने नीचे कुछ नही पहना है ?
“ओह..नही नही. मैंने पहनी है.”
गोपालजी – आपने कहा नही. …चलो बढ़िया.
वो बातें करते हुए मेरी जवानी को देख रहा था. मैंने आश्चर्य से गोपालजी को देखा. मैंने पैंटी पहनी है तो इसमें बढ़िया क्या है , मुझे समझ नही आया.
गोपालजी – मैडम मैं अभी चेक करता हूँ. आपको फिर कभी पैंटी की समस्या नही होगी. प्लीज़ एक बार पीछे को मुड़ो.
मैं उलझन में थी. अब ये क्या करनेवाला है ? ये कैसे चेक करेगा ? मेरी पैंटी मेरी बड़ी गांड को कितना ढकती है ये चर्चा का विषय था पर क्या गोपालजी मेरी साड़ी को कमर तक उठाकर ये चेक करेगा ?
हे भगवान…. ऐसा नही हो सकता…
क्या वो मेरी साड़ी के अंदर हाथ डालकर ये चेक करेगा ? मेरे होंठ सूखने लगे थे और मुझे बहुत फिकर होने लगी थी.
गोपालजी – मैडम मैं अभी चेक करता हूँ. आपको फिर कभी पैंटी की समस्या नही होगी. प्लीज़ एक बार पीछे को मुड़ो.
मैं उलझन में थी. अब ये क्या करनेवाला है ? ये कैसे चेक करेगा ? मेरी पैंटी मेरी बड़ी गांड को कितना ढकती है ये चर्चा का विषय था पर क्या गोपालजी मेरी साड़ी को कमर तक उठाकर ये चेक करेगा ?
हे भगवान…. ऐसा नही हो सकता…
क्या वो मेरी साड़ी के अंदर हाथ डालकर ये चेक करेगा ? मेरे होंठ सूखने लगे थे और मुझे बहुत फिकर होने लगी थी.
खुशकिस्मती से ऐसा कुछ नही हुआ पर मेरे पति से फोन पे बात करने से जो खुशी मुझे मिली थी वो अब गायब होने लगी थी क्यूंकी मुझे डर सताने लगा था की टेलर फिर से मेरे साथ छेड़छाड़ करेगा.
गोपालजी – मैडम, जो समस्या आप बता रही हो, वो अभी इस समय भी हो रही है ?
“नही नही, अभी तो बिल्कुल ठीक है.”
मैंने कमज़ोर सी आवाज़ में जवाब दिया.
गोपालजी – हुह ….आपके कहने का मतलब है की आपकी पैंटी पूरी ढकी हुई है …..आपकी गांड को ?
मैं उन दोनो टेलर्स के मुँह से बार बार गांड शब्द सुनकर अजीब महसूस कर रही थी लेकिन मुझे अंदाज़ा था की ये लोवर क्लास के आदमी हैं और ऐसे शब्दों का प्रयोग बोलचाल में करते हैं.
“हाँ, मुझे ठीक लग रहा है…”
गोपालजी – लेकिन मैडम, अभी तो आपने बताया था की पहनने के कुछ समय बाद पैंटी नितंबों से खिसकने लगती है , है ना ?
“हाँ लेकिन …”
मेरे अंतर्वस्त्र के बारे में ऐसे डाइरेक्ट सवालों से मैं हकलाने लगी थी .
दीपू – गोपालजी, मेरे ख्याल से मैडम के कहने का मतलब है की पैंटी पहनने के कुछ समय बाद, अगर वो चलती है या कोई काम करती है तो उसे समस्या होने लगती है. सही कह रहा हूँ मैडम ?
“हाँ, हाँ. बिल्कुल यही मेरे कहने का मतलब था.”
गोपालजी – अच्छा. चूँकि आप इस कमरे में ज़्यादा हिली डुली नही हो तो आपको अभी पैंटी की समस्या नही है. मैडम ये बताओ की क्या पैंटी आपकी दरार में पूरी घुस जाती है ….मेरा मतलब गांड की दरार में ?
अब तो मुझे टोकना ही था. अब मैं और ज़्यादा बर्दाश्त नही कर पा रही थी.
“क्या मतलब है आपका ? ये कैसा सवाल है ?”
गोपालजी – मैडम, मैडम, प्लीज़ बुरा ना मानो. मुझे मालूम है की ये अंतरंग किस्म के सवाल हैं और आपको जवाब देने में शरम महसूस हो रही है. लेकिन अगर आप पूरी डिटेल नही बताओगी तो मैं समस्या को हल कैसे करूँगा ?
दीपू – मैडम, गोपालजी आपके डॉक्टर की तरह हैं. आपके ड्रेस डॉक्टर.
कमरे में कुछ देर चुप्पी छाई रही. दीपू और गोपालजी मुझे देख रहे थे और मैं अपने सूखे हुए होठों को गीला करके उन दोनो मर्दों के सामने अपने कॉन्फिडेंस को वापस लाने की कोशिश कर रही थी.
गोपालजी – हाँ, हाँ. मैडम, आप अपने डॉक्टर को अंतरंग बातें बताती हो की नही ?
मुझे जवाब में सर हिलाना पड़ा.
गोपालजी – ये भी उसी तरह है. मैडम हिचकिचाओ नही. मुझे बताओ की पैंटी पूरी तरह से नितंबों से फिसलकर आपकी गांड की दरार में घुस जाती है ? मेरा मतलब दोनो तरफ से ? क्या आप इसको चेक करती हो ?
मेरा चेहरा टमाटर की तरह लाल हो गया था. मेरे कान गरम होने लगे थे और मेरी साँसे तेज हो गयी थी. मेरा वर्बल ह्युमिलिएशन हो रहा था और मुझे लग रहा था की मैं फँस चुकी हूँ. मैं उनसे बहस कर सकती थी लेकिन इससे आश्रम के और लोग भी वहाँ आ सकते थे. सभी के सामने तमाशा होने से मैं बचना चाहती थी. इसलिए मैंने चुप रहना ही ठीक समझा और अपने ह्युमिलिएशन को सहन कर लिया क्यूंकी जो भी हो रहा था वो इस बंद कमरे से बाहर नही जाएगा.
“नही…मेरा मतलब ज़्यादातर हिस्सा अंदर चला जाता है…”
गोपालजी - मुझे ठीक से समझ नही आया. देखो मैडम, अगर आप साफ साफ नही बताओगी तो मैं पैंटी के लिए सही कपड़े का चुनाव नही कर पाऊँगा.
मुझे समझ आ रहा था की अगर मुझे ये किस्सा बंद करना है तो बेशरम बनना पड़ेगा.
“मेरा मतलब है की पैंटी का कपड़ा सिकुड़कर इकट्ठा हो जाता है और अंदर चला जाता है …मेरा मतलब..वहाँ…”
गोपालजी – हम्म्म …..आपका मतलब है की कपड़ा एक रस्सी की तरह लिपट जाता है और आपकी दरार में घुस जाता है , ठीक ?
मैंने सर हिला दिया.
गोपालजी – हम्म्म …मैडम, इसका मतलब आपके पेटीकोट के अंदर आपकी गांड पूरी नंगी रहती है.
मैं गूंगी की तरह चुप रही. ये तो साफ जाहिर था की अगर मेरी पैंटी सिकुड़कर दरार में घुस जाती है तो मेरे नितंब नंगे रहेंगे. वो मुझसे इसका क्या जवाब चाहता था ?
वैसे उसकी बात सही थी क्यूंकी असल में होता तो यही था.
गोपालजी – दीपू तुम्हे समस्या समझ में आई ?
दीपू – जी. ये पदमा मैडम की समस्या की तरह ही है.
गोपालजी – पदमा मैडम ? कौन पदमा ?
दीपू – जी आप उनको नही जानते. पिछले साल मैं शहर की एक दुकान में काम कर रहा था ये तब की बात है.
गोपालजी – अच्छा. मेरी एक कस्टमर भी पदमा है पर वो मुझसे सिर्फ ब्लाउज सिलवाती है.
मैं उन दोनो मर्दों की बातचीत सुन रही थी.
गोपालजी – मैडम, सुना आपने. ये सिर्फ आपकी समस्या नही है. दीपू उसकी क्या समस्या थी ?
दीपू – जी, पदमा मैडम की समस्या ये थी की चलते समय उसकी पैंटी दाहिनी साइड से सिकुड़कर बीच में आ जाती थी.
“और इस समस्या का हल कैसे निकला ?”
पहली बार मैं जवाब सुनने के लिए उत्सुक थी.
दीपू – उसकी टाँगों की लंबाई में थोड़ा सा अंतर था और ये जानने के बाद हमने उसी हिसाब से उसकी पैंटी सिल दी और उसकी समस्या दूर हो गयी.
गोपालजी – मैडम, मैंने पहले भी बताया है की सबसे पहले आपकी पैंटी में पीछे से ज़्यादा कपड़ा चाहिए. उसके अलावा थोड़ा सा मोटा कपड़ा और एक अच्छा एलास्टिक लगा देने से आपकी समस्या हल हो जाएगी.
“ठीक है गोपालजी.”
गोपालजी – दीपू नोट करो की जब मैं मैडम की पैंटीज सिलू तो ट्विल कॉटन 150 यूज करना है.
दीपू ने अपनी कॉपी में नोट कर लिया.
गोपालजी – ठीक है मैडम, अब प्लीज़ पीछे मुड़ो और मैं साबित करता हूँ की दीपू की बात ग़लत है.
मैं तो बिल्कुल भूल ही गयी थी की गोपालजी और दीपू के बीच मेरी पैंटी के बैक कवरेज को लेकर बहस हुई थी. और अब जबकि मैं इस वर्बल ह्युमिलिएशन को सहन कर रही थी तो अब फिज़िकल ह्युमिलिएशन की बारी आने वाली थी.
गोपालजी – मैडम, प्लीज़ टाइम वेस्ट मत करो.
मैंने दांतों में होंठ दबाए और धीरे से पीछे को मुड़ने लगी. मेरी पीठ और बाहर को उभरे हुए नितंब दीपू और गोपालजी को ललचा रहे थे. मैं ऐसे खड़े होकर शरम से मरी जा रही थी क्यूंकी मुझे मालूम था की उन दोनो मर्दों की निगाहें मेरी कद्दू जैसी गांड पर ही गड़ी होंगी.
गोपालजी – शुक्रिया मैडम. दीपू अब मुझे ये बताओ की मैडम की पैंटी लाइन कहाँ पर है.
दीपू – जी अभी देखकर बताता हूँ.
पैंटी लाइन ? मेरे दिल की धड़कने रुक गयी. पर इससे पहले की मैं और कुछ सोच पाती मुझे साड़ी से ढके हुए अपने नितंबों पर हाथ महसूस हुए जो की मेरे नितंबों को कसके पकड़े हुए थे. दीपू ने अपने हाथों से दो तीन बार मेरे नितंबों को दबाया और मेरे होंठ अपनेआप खुल गये. मेरा सांस लेना मुश्किल हो गया और मैंने अपनी भावनाओ पर काबू पाने की भरसक कोशिश की.
गोपालजी – मैडम के कपड़ों के बाहर से तुम्हे पैंटी महसूस हो रही है क्या ?
दीपू – जी गोपालजी.
ऐसा कहते हुए उसने मेरे मांसल नितंबों पर अपनी अँगुलियाँ फिरानी शुरू की और जल्दी ही उसको मेरी साड़ी और पेटीकोट के बाहर से पैंटी लाइन मिल गयी. मुझे महसूस हुआ की दीपू मेरी भारी गांड के सामने झुक गया है और अपने घुटनो पर बैठकर दोनो हाथों से मेरी पैंटी के कपड़े के ऊपर हाथ फिरा रहा है. इस हरकत से कोई भी औरत कामोत्तेजित हो जाती और मैं भी अपवाद नही थी.
दीपू के हाथों को मैं अपनी बड़ी गांड के ऊपर घूमते हुए महसूस कर रही थी और अब पैंटी को छोड़कर उसकी अँगुलियाँ बीच की दरार की तरफ बढ़ गयी. लगता था की दीपू को मेरे नितंबों का शेप बहुत पसंद आ रहा था और जैसे जैसे उसकी अँगुलियाँ मेरी साड़ी को बीच की दरार में धकेल रही थी वैसे वैसे मेरे नितंबों का उभार सामने आ रहा था.
गोपालजी – क्या हुआ ? लगता है तुम्हे मैडम की बड़ी गांड बहुत भा गयी है ….हा हा हा…..
टेलर की हँसी कमरे में गूँज रही थी और उन दोनो मर्दों के सामने मेरी हालत को बयान कर रही थी.
दीपू – गोपालजी चाहे आप कुछ भी कहो पर मैडम की गांड बहुत ही शानदार है. सुडौल भी है और मक्खन की तरह चिकनी और मुलायम भी है . क्या माल है.
मैं अपने दांतों से होंठ काट रही थी और उनके अश्लील कमेंट्स को नज़रअंदाज करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन मेरा बदन इन कामुक हरकतों को नज़रअंदाज़ नही कर पा रहा था.
मुझे साफ समझ आ रहा था की पैंटी लाइन ढूंढने के बहाने दीपू मेरे नितंबों से मज़े ले रहा है. उसने मेरे बाएं नितंब पर अपना अंगूठा ज़ोर से दबा दिया और बाकी अंगुलियों से मेरी पैंटी लाइन के एलास्टिक को पकड़ लिया. मेरा बदन इतना गरम होने लगा था की मुझे हल्के से हिलना डुलना पड़ा. मुझे खीझ भी हो रही थी और कामोत्तेजना भी. दीपू मेरी बड़ी गोल गांड को दोनो हाथों से दबाने में मगन था. सच कहूँ तो उसकी इस कामुक हरकत से मैं कामोत्तेजित होने लगी थी. वो पैंटी लाइन ढूँढने के बहाने बिना किसी रोक टोक के मेरे नितंबों को मसल रहा था.
दीपू - गोपालजी, मिल गयी पैंटी लाइन , ये रही.
ऐसा कहते हुए उसने मेरी साड़ी के बाहर से मेरी पैंटी के किनारों पर अपनी अंगुली फेरी. उत्तेजना से मेरे बदन में इतनी गर्माहट हो गयी थी की मेरा मन हो रहा था की साड़ी उतार दूं और सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी रहूं.
गोपालजी – कहाँ ? मुझे देखने दो.
मुझे एहसास हुआ की अब गोपालजी भी मेरे पीछे दीपू के पास आ गया. वो भी झुक गया और मेरी उभरी हुई गांड के पास अपना चेहरा ले आया. क्यूंकी दीपू लगातार मेरे नितंबों पर हाथ फेर रहा था इसलिए मैं स्वाभाविक रूप से हल्के से अपनी गांड को हिला रही थी. मैं जानती थी की दो मर्दों के सामने इस तरह साड़ी के अंदर मेरी भारी गांड को हिलाना बड़ा भद्दा लग रहा होगा लेकिन ऐसा करने से मैं अपनेआप को रोक नही पा रही थी.
अब मुझे एहसास हुआ की गोपालजी का हाथ भी मेरी गांड को छू रहा है.
गोपालजी – हम्म्म …मैडम, मुझे पैंटी लाइन को महसूस करने दो तभी मुझे मालूम पड़ेगा की ये आपके नितंबों को कितना ढक रही है.

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