दारू के नशे में मम्मी को एक वेश्या रांड की तरह चोदा
हेल्लो दोस्तों मेरा नाम शशांक शुभम है और मै एक बहुत बड़ाशराबी हूँ. मेरे घर में मै और मेरी अम्मी हम तीन जने रहते है. मेरे अब्बू एक नंबर के शराबी है इसी लिये बचपन से मेरी अम्मी ने ही मुझे एक माँ और बाप दोनों का प्यार देकर पाला है. बहुत ज्यादा लाड प्यार मिलने के कारन मै गलत लोगो की सांगत में पड़ गया और दारू पिने लग गया. यारों मैंने दारू के नशे में मेरी अम्मी के साथ ही गन्दा कम कर डाला. दोस्तों आहिस्ता आहिस्ता मेरी दारू पिने की लत कब इतनी बड गई मुझे पता ही नहीं चला.
आप को मेरी अम्मी की और मेंरी गन्दी हिन्दी 18+ XXX फ्री अश्लील XXX सेक्स कहानी हिंदी में सुनाने से पहले मेरी अम्मी के बारे में बता देता हूँ मेरी अम्मी 43 साल की एक बहुत सुंदर गोरी महिला है. मेरी अम्मी के बदन में सबसे ज्यादा आकर्षक उनके मोटे मोटेयोनी्तर और नारियल के जैसे दूध से भरे स्तन थे माँ के स्तनो के निप्पल भाले की तरह से नुकीले थे. मेरी अम्मी के स्तन इतने मोटे थे की उन्हें देखते ही ऐसा लगता था जैसे की मेरी सगी रांड माँ मेरी अम्मी का ब्लाउज फाड़ के बाहर निकल जाएँगे.
मेरी अम्मी की चूतड़ के तो क्या कहने जब मेरी अम्मी अपनी डबलरोटी जैसी गद्देदार गांड हिलते हुए चलती थी तब उनकी चूतड़ को देख कर सारे मर्द हिल जाते थे. कई बार दारू के नशे में जब मै मेरी अम्मी के ब्यूटीफुल और हॉट बदन को देखता था तो मेरा भी मन उन्हें अपनी रांड बनाकर पेलने का हो जाता था पर मई अपने आप पर काबू कर लेटा था. दोस्तों हम बहुत गरीब फैमिली से थे उप्पर से मुझे दारू पिने का गन्दा शौक, हम लोगो के गंदे कपड़े धो धो कर अपना घर चलाते थे हमारा लौंड्री का धंधा था.
(यहाँ भी देंखे 55 साल के अंकल ने कामुक माँ को चोदा रांड मेरी अम्मी की चुदाई) मैं और माँ धोबी घाट पर लोगो के गंदे कपड़े लेकर धोने जाते थे. जब मेरी अम्मी कपड़े को धोभी घाट के किनारे धोने के लिए बैठती थी तब मेरी सगी रांड माँ अपनी साड़ी और पेटिकोट को घुटनो तक उपर उठा लेती थी और फिर पीछे एक पत्थर पर बैठ कर आराम से दोनो टाँगे फैला कर जैसा की औरते गरम मूत करने वक़्त करती है गंदे कपड़ो को धोया करती थी.
मैं भी अपनी लूँगी को जाँघ तक उठा कर गंदे कपड़े धोता रहता था और बिच बिच में एक दो दारू के पैक लगता रहता था. इस स्थिति में माँ की गोरी गोरी टाँगे मुझे देखने को मिल जाती थी और उसकी साड़ी भी सिमट कर उसके ब्लाउज के बीच में आ जाती थी और उसके मोटे मोटे चुचो के ब्लाउज के उपर से दर्शन होते रहते थे.
कई बार मेरी अम्मी की साड़ी उनकी गोरी गोरी जाँघों के उपर तक उठ जाती थी और जब मेरी निगाहें गलती से अपनी प्यारी माँ की मखमली जाँघो पर पड़ती थी तो उन्हें देख कर मेरा फौलादी लण्ड खडा हो जाता था. फिर मैं सोचता था की मै उस महिला के लिये गंदे खयाल कैसे ला सकता हु जिसने मुझे जन्म दिया है फिर मै अपना सिर झटक कर काम करने लगता था.
कपड़े धोने के बाद हम वही पर नहाते थे और फिर शाम होते ही सुखाए हुए कपड़े इकट्ठा कर के घर वापस लौट जाते थे. मैं तो खैर लूँगी पहन कर धोभी घाट के भीतर कमर तक पानी में नहाता था, मगर माँ धोभी घाट के किनारे ही बैठ कर नहाती थी. नहाने के लिए माँ सबसे पहले अपनी साड़ी उतारती थी. में फिर अपने पेटिकोट के नाड़े को खोल कर पेटिकोट उपर को सरका कर अपने दाँत से पकड़ लेती थी इस तरीके से उसकी पीठ तो दिखती थी मगर आगे से ब्लाउज पूरा ढक जाता था फिर मेरी सगी रांड माँ पेटिकोट को दाँत से पकडे हुए ही भीतर हाथ घुसेड़ कर अपने ब्लाउज को खोल कर उतरती थी. और फिर पेटीकोट को छाती के उपर बाँध देती थी जिस से उसके चुचे पूरी तरह से पेटीकोट से ढक जाते थे और कुछ भी नज़र नही आता था और घुटनो तक पूरा बदन ढक जाता था.
फिर मेरी सगी रांड माँ वही पर धोभी घाट के किनारे बैठ कर एक बड़े से जग से पानी भर भर के पहले अपने पूरे बदन को रगड़ – रगड़ कर सॉफ करती थी और साबुन लगाती थी फिर धोभी घाट में उतर कर नहाती थी. माँ की देखा देखी मैने भी पहले धोभी घाट के किनारे बैठ कर अपने बदन को साफ करना शुरू कर दिया. फिर मैं धोभी घाट में डुबकी लगा कर के नहाने लगा. मैं जब साबुन लगाता तो मैं अपने हाथो को अपने लूँगी के घुसा के पूरे लण्ड आंड गांद पर चारो तरफ घुमा घुमा के साबुन लगा कर के धुलाई करता था क्यों मैं भी माँ की तरह बहुत धुलाई पसंद था.





